वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में जिस तरह अनिल चमड़िया को रखा और फिर हटाया गया उससे एक बात तो साफ हो गई है कि विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय अब जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) को सबसे ताकतवर बता रहे हैं उसकी इच्छा के बिना भी कुलपति अपने मनमुताबिक नियुक्ति कर सकता है और छह आठ महीने वेतन देने के साथ-साथ अवैध या अस्थायी तौर पर नियुक्त व्यक्ति की इच्छा के अनुसार दूसरे खर्चे भी कर सकता है। अब यह साफ हो चुका है कि कुलपति विभूति नारायण राय ने इस छूट या लोच का लाभ उठाकर एक ऐसी नियुक्ति की जिसे बाद में ईसी ने सही नहीं माना। सवाल उठता है कि नियुक्ति के मामले में अगर ईसी सबसे ताकतवर है तो कुलपति ने उसकी सहमति के बगैर नियुक्ति क्यों की। और अगर कुलपति ने गलत निर्णय, गलत चुनाव किया तो उसे क्या कोई सजा मिलनी चाहिए। क्या उसे कोई पश्चाताप करना चाहिए। वीएन राय की मानें तो जो कुछ हुआ वह सब नियम और कायदे के मुताबिक हुआ। यानी विश्वविद्यालय का नियम इस बात की छूट देता है कि कुलपति जिसे चाहे हजारों रुपए प्रतिमाह की नौकरी पर रख ले और छह-आठ महीने बाद जब कभी ईसी की बैठक हो (या आयोजित कर सकें) तो ईसी कह दे कि नहीं साब हमारे महान कुलपति का निर्णय गलत है आप घर जाइए। ईसी ने अगर ऐसा किया है तो अपने कुलपति के किए पर भी तो अविश्वास जताया है। क्या नैतिकता का तकाजा नहीं है कुलपति इस्तीफा दे दें।
मेरे ख्याल से आईपीएस तो वे हैं ही और डंडा चलाने का काम तो उनके लिए वैसे भी अभी कुछ वर्ष सुरक्षित है। दूसरी ओर, जिस व्यक्ति को बाइज्जत नियुक्ति कर सम्मान दिया गया और फिर नियुक्ति रद्द कर अपमानित और परेशान किया गया उसके लिए कौन जिम्मेदार है? उसे दी गई तनख्वाह किसकी जेब से जानी चाहिए? वीएन राय ने यह भी कहा है कि “ईसी का गठन अभी हाल में ही हुआ है। एक महीना पहले, बल्कि पंद्रह दिन पहले यह कमेटी गठित हुई है। इसकी पहली बैठक दिल्ली में हुई।” जो कमेटी सबसे शक्तिशाली है, गठन से पहले के निर्णयों को पलट सकती है उसका गठन पहले क्यों नहीं किया गया? कौन जिम्मेदार है इसके लिए। वैसे विश्वविद्यालय के वेबसाइट की मानें तो पिछली ईसी का कार्यकाल खत्म हो गया है और नई का गठन अभी तक नहीं हुआ है। ऐसे में अगर अनिल चमड़िया या उनके समर्थक कह रहे हैं कि विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने जल्दबाजी में आधी-अधूरी ईसी की बैठक बुलाकर अपनी इच्छा के अनुसार फैसला करवा लिया तो विभूति नारायण राय के यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि, मुझे तो पता भी नहीं है कि अनिल चमड़िया दलित हैं। कुलपति महोदय अब यह भी कह रहे हैं कि, ईसी ने अनिल चमड़िया की नियुक्ति को मानकों के हिसाब से नहीं पाया तो इसमें मेरा दोष क्या है। ये तो ईसी का एरिया है। ईसी को ही फैसला करना था। मुझे तो कुछ करना नहीं था।
आगे वही कहते हैं, मेरे हाथ में अप्वायंटमेंट था जो मैंने किया। और ईसी ने इसे मानकों के हिसाब से नहीं पाया। उन्होंने यह नहीं कहा है कि ऐसा क्यों हुआ। न ही बताया है कि यह किसकी जिम्मेदारी थी। उल्टे कहा है, मेरे हाथ में होता तो मैं बिलकुल नहीं हटाता। हाथ में नहीं था तो रखा कैसे? ईसी ने हटा दिया क्योंकि आप ही कह रहे हैं कि वह मानकों के हिसाब से नहीं था। आपने मानकों के हिसाब से नियुक्ति क्यों नहीं की और की तो ईसी को कौन बताएगा कि आपने नियुक्ति मानकों के हिसाब से की थी?
लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. इन दिनों वे अनुवाद का काम बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. उनसे संपर्क anuvaadmail@gmail.com या 9810143426 के जरिए कर सकते हैं.
Comments on “किस कायदे की बात कर रहे राय साब”
SANJAI JI V.N. RAI KI BAAT TO MAIN NAHI JANTA KI UNKA KAEHNA KAHAN TAK SAHI HAI PARANTU ISS BAAT KE LIYE UNHE JARUR SADHUVAD DENA CHAHUNGA KI UNHONE NAXLIYO KO CLASS ME BBC KA PATRAKAR BATA KAR INTRODUCE KARVANE WALE DESHDROHI KO BAHAR KAR DIYA. EK BAAT AUR UNIVERSITIES KI EK GARIMA HOTI HAI. KISI UNIVERSITY ME YAH SHOBHA NAHI DETA KI KISI 3RD DIVISIONAR PERSON KO PROFESSOR BANA DIYA JAYE, ISI BAHANE U.G.C. KE IS PRAVDHAN PER BAHAS HONI CHAHIYE KI KYA KEVAL FIELD ME EXPERIENCE RAKHNE WALO KO KYA BINA DEGREE LIYE UNIVERSITIES ME PROFESSOR BANAYA JA SAKTA HAI. SANJAY JI AAP ANIL JI MAMLE SE HAT KAR JARA ISS MAMLE PER BAHAS KARA SAKE TO YE BADA HI ACHHA HOGA.,
रिंकू जी
आप वही कह रहे हैं जो मैंने कहा है। आपको अनिल चमड़िया से खुन्नस है तो पाले रखिए। मेरा विरोध तो वीएन राय द्वारा अपने अधिकारों के दुरुपयोग और आधी-अधूरी ईसी द्वारा उनका साथ दिए जाने से है। अनिल चमड़िया की जगह कोई भी होता मेरी राय यही होती। डिग्री वालों के बारे में विजय प्रताप जी ने थ्री इडियट्स के हवाले से अच्छा लिखा है उसे पढ़कर विचार कीजिए।
bhai sanjay
aap patrakar bhi ho aur anuvad bhi karte ho, yaha tak to sab thik hai. lekin kisi ki glat tarike se parokari karna patrakarita nahi chatukarita kahi jayegi
Wonderful writing! keep it up! Thanks!
प्रिय रिंकू जी,
मैंने भी दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की है। बहुत सारे डिग्रीधरियों को देखा है। उनकी हकीकत भी जानता हूं। ‘कहीं का ईंट का कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा’ की तर्ज पर पीएच.डी. की थिसिसें लिखी जाती हैं। इसलिए डिग्रियों की बात मत कीजिए। केवल डिग्रियां ही योग्यता ही पैमाना नहीं होती।
Anil , Ab jab LADAI shuri ho hi gayi hai toh hum sab khul kar saane ayenge aapke saath , lekin aapke liye bhi yeh jaroori hai ki Bharat ke ruling establishment ke class character ko sahi tareh se pehchane , BHOPAL CONVENTION mein India ke ruling establishment ke class character mein SEMI FEUDAL – SEMI INDUSTRIAL ke saath hi AFSARVAAD ko bhi joda gaya hai , RAI SAHIB iska symbol hai
lagta hai aap v.n rai se kuch laabh uthana chate the.laabh nahi milne par jali bhuni tippani likh rahe hai.
sanjay
yaar ab ye din aa gaya hai ki tum chatukarita ki dagar per utar gaye ho, wo bhi ek controversial person ki khatir. Aur tum us comred vijay ka hawala apni tippani mein de rahe ho jiski lekhni ne to samyavad ke chare per kalikh potene ka kam kiya hai. wo vijay pratap nahi parajay andhera hai