[caption id="attachment_16846" align="alignleft"]संजय कुमार सिंह[/caption]वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में जिस तरह अनिल चमड़िया को रखा और फिर हटाया गया उससे एक बात तो साफ हो गई है कि विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय अब जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) को सबसे ताकतवर बता रहे हैं उसकी इच्छा के बिना भी कुलपति अपने मनमुताबिक नियुक्ति कर सकता है और छह आठ महीने वेतन देने के साथ-साथ अवैध या अस्थायी तौर पर नियुक्त व्यक्ति की इच्छा के अनुसार दूसरे खर्चे भी कर सकता है। अब यह साफ हो चुका है कि कुलपति विभूति नारायण राय ने इस छूट या लोच का लाभ उठाकर एक ऐसी नियुक्ति की जिसे बाद में ईसी ने सही नहीं माना। सवाल उठता है कि नियुक्ति के मामले में अगर ईसी सबसे ताकतवर है तो कुलपति ने उसकी सहमति के बगैर नियुक्ति क्यों की। और अगर कुलपति ने गलत निर्णय, गलत चुनाव किया तो उसे क्या कोई सजा मिलनी चाहिए। क्या उसे कोई पश्चाताप करना चाहिए। वीएन राय की मानें तो जो कुछ हुआ वह सब नियम और कायदे के मुताबिक हुआ। यानी विश्वविद्यालय का नियम इस बात की छूट देता है कि कुलपति जिसे चाहे हजारों रुपए प्रतिमाह की नौकरी पर रख ले और छह-आठ महीने बाद जब कभी ईसी की बैठक हो (या आयोजित कर सकें) तो ईसी कह दे कि नहीं साब हमारे महान कुलपति का निर्णय गलत है आप घर जाइए। ईसी ने अगर ऐसा किया है तो अपने कुलपति के किए पर भी तो अविश्वास जताया है। क्या नैतिकता का तकाजा नहीं है कुलपति इस्तीफा दे दें।
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चमड़िया जैसा ‘इडियट’ नहीं चाहिए
[caption id="attachment_16843" align="alignright"]विजय प्रताप[/caption]साबजी को अनिल अंकित राय जैसा ‘चतुर’ चाहिए : अनिल चमड़िया एक ‘इडियट’ टीचर है। ऐसे ‘इडियट्स’ को हम केवल फिल्मों में पसंद करते हैं। असल जिंदगी में ऐसे ‘इडियट’ की कोई जगह नहीं। अभी जल्द ही हम लोगों ने ‘थ्री इडियट’ देखी है। उसमें एक छात्र सिस्टम के बने बनाए खांचे के खिलाफ जाते हुए नई राह बनाने की सलाह देता है। यहां एक अनिल चमड़िया है, वह भी गुरु-शिष्य परम्परा की धज्जियां उड़ाते हुए बच्चों से हाथ मिलाता है, उनके साथ एक थाली में खाता है। उन्हें पैर छूने से मना करता है। कुल मिलाकर वह हमारी सनातन परम्परा की वाट लगा रहा है। महात्मा गांधी के नाम पर बने एक विश्वविद्यालय में यह प्रोफेसर एक संक्रमण की तरह अछूत रोग फैला रहा है। बच्चों को सनातन परम्परा या कहें कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। दोस्तों, यह सबकुछ फिल्मों में होता तो हम एक हद तक स्वीकार भी लेते। कुछ नहीं तो कला फिल्म के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समारोहों में दिखाकर कुछ पुरस्कार-वुरस्कार भी बटोर लाते। लेकिन साहब, ऐसी फिल्में हमारी असल जिंदगी में ही उतर आएं, यह हमे कत्तई बर्दाश्त नहीं। ‘थ्री इडियट’ फिल्म का हीरो एक वर्जित क्षेत्र (लद्दाख) से आता था। असल जिंदगी में यह ‘इडियट’ चमड़िया (दलित) भी उसी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐसे तो कुछ हद तक ‘थ्री इडियट’ ठीक थी। हीरो कोई सत्ता के खिलाफ चलने की बात नहीं करता। चुपचाप एक बड़ा वैज्ञानिक बनकर लद्दाख में स्कूल खोल लेता है।
मुझे तो पता भी नहीं कि अनिल दलित हैं : वीएन राय
[caption id="attachment_16827" align="alignleft" width="85"]वीएन राय[/caption]वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से प्रोफेसर पद से हटाए गए जाने-माने पत्रकार अनिल चमड़िया के बारे में विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय का कहना है कि एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) सबसे ताकतवर संस्था होती है. वही किसी की भी नियुक्ति को एप्रूव करती है या निरस्त करती है. अनिल चमड़िया के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मैं उन्हें खुद लेकर आया था. पर ईसी ने उनकी नियुक्ति को कनफर्म नहीं किया तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं.
मेरे पीछे पड़े हैं वीएन राय : अनिल चमड़िया
[caption id="attachment_14920" align="alignleft"]अनिल चमड़िया[/caption]मेरा दलितवादी होना भी वीएन राय को बुरा लगा : वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर पद से हटाए गए जाने-माने पत्रकार अनिल चमड़िया का कहना है कि विश्वविद्यालय की जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) ने उन्हें हटाने का फैसला लिया, उसमें 18 सदस्य हैं लेकिन केवल आठ अपने करीबी लोगों के साथ बैठक करके कुलपति विभूति नारायण राय ने मनमाना निर्णय करा लिया. वीएन राय ने ईसी की बैठक इसी उद्देश्य से दिल्ली में रखी ताकि वे अपने लोगों के साथ बैठकर इच्छित फैसला करा सकें. ईसी की इस बैठक में जो आठ सदस्य शामिल हुए, उनमें मृणाल पांडे भी हैं जो मेरी विरोधी रही हैं. वीएन राय के दो-तीन स्वजातीय लोग हैं. अनिल चमड़िया ने भड़ास4मीडिया से विस्तार से बातचीत में जो कुछ कहा वह इस प्रकार है-