सच है, असली नायक उपेक्षित रहता है : बड़ी खबरों को छोटा बनाने का खेल भी होने लगा है : सर, आपका पाठक हूं….पिछले 11 सालों से मीडिया में हूं……शुरू में दैनिक जागरण, लखनऊ और अमर उजाला, रायबरेली में 2003 से 2005 तक, ईटीवी, बरेली ब्यूरो 2005 से 2007 तक, ज़ी न्यूज़, नोएडा में आउटपुट डेस्क पर…..2007 में दो महीने एमएचवन में….दिसंबर 2007 से फरवरी 2009 तक इंडिया न्यूज़ में आउटपुट डेस्क पर……और 15 फरवरी से लखनऊ स्थानांतरण के बाद से अब तक बतौर लखनऊ संवाददाता इंडिया न्यूज़ में कार्य कर रहा हूं….. मैंने आपका लिखा ‘असली नायक तो हमेशा उपेक्षित रहता है‘ पढ़ा….बिलकुल सही लिखा गया है…..मैं ऐसी कई खबरों को जानता हूं जिनका उल्लेख कर दूं तो जो उस खबर से बड़े बन गए उनकी असलियत सामने आ जाय…..
लेकिन आप खुद जानते हैं कि हम समाज को आईना दिखाने वाले लोग आइने के सामने केवल बाल झाड़ने से ज्यादा नहीं टिक सकते……स्ट्रिंगरों की रिपोर्ट को बड़े-बड़े रिपोर्टर अपने नाम करके मोटी वेतन के साथ-साथ नामचीन हो गए…..और वो बेचारे वहीं खड़े-खड़े मिट्टी खोद रहे हैं…..मै लखनऊ में 15 फरवरी के बाद आया…..मार्च में मैने एक खबर की “जिस्म दो डिग्री लो”…..ये खबर पूरे साढ़े तीन घंटे चली….मेरे इनपुट पर आउटपुट ने काफी मेहनत की…..और खबर का असर हुआ….जो प्रोफेसर एक छात्रा को एमएससी की दो साल की डिग्री देने में चार साल बीत जाने के बाद भी उसका डेजर्टेशन नहीं पूरा करा रहा था….वो अब हो रहा है…..और डेजर्टेशन पूरा कराने के बदले लड़की का जिस्म चाहने वाला आरोपी प्रोफेसर निलंबित है और मामला एक उच्चस्तरीय कमेटी में विचाराधीन है…..
इसके बाद अब मैंने एक खबर की….लाल खून के काले कारोबार की….इस खबर पर मैं 5 अगस्त से ही लग गया था….लेकिन कुछ तथ्यों के अभाव और दूसरी रूटीन खबरों के दबाव में इसे फाइल नहीं कर पाया था….इस बीच पुलिस ने छापा मारकर एक रैकेट का भंडाफोड़ किया….. बस फिर क्या था, अगले दिन ही हमने अपना वो स्टिंग भी दिखाया जो खून के काले कारोबार से जुड़ा था…और अस्पताल का पर्दाफाश किया जहां ब्लडबैंक की आड़ में ये खेल चल रहा था….मैने साबित किया कि वहां खून बिकता है…हैरानी की बात तो ये कि जब बिना डोनर के इस ब्लडबैंक से ब्लड मिल जाता है तो वो खून आता कहां से हैं……बात साफ हो जाती है कि वहां अवैध तरीके से खून निकालने और बेचने का काम धड़ल्ले से हो रहा है….जब हमारे साथ पुलिस ने वहां छापा मारा तो इसकी भनक लगते ही वहां ताला लग गया और उस अस्पताल के सभी डाक्टर और कर्मचारी भाग गए ….मौके पर वहां भर्ती मरीजों को देखने वाला कोई नहीं था…..बाद में हमारी इस खबर के फालोअप में सभी चैनल और अखबार जुट गए….जिसकी वजह से ही कई लोगों पर गाज गिरी और प्रतिष्ठित बलरामपुर अस्पताल का आरोपी सरकारी डाक्टर निलंबित हुआ. साथ ही ड्रग इंस्पेक्टर और नर्स सस्पेंड की गईं…..उमराई अस्पताल को सील किया गया…बलरामपुर की ओटी वन का स्टोर सील किया गया….बाद में सूबे के कई अस्पतालों के ब्लडबैंक और पैथालाजी सेंटरों पर भी छापे पड़े……अभी भी कार्रवाई जारी है….और इस खून के काले कारोबार से जुड़े बड़े लोगों के नाम सामने आने बाकी हैं…..इसका खुलासा करने के लिए मैं भी लगा हुआ हूं…..
मैंने अपनी खबरों का जिक्र इसलिए किया कि लखनऊ में काम करने के दौरान मुझे लगा कि चाहे दिल्ली हो या लखनऊ, सभी जगह बड़े लोग (वो जो बड़े चैनलों से जुड़े होते हैं) चाहते हैं कि उन्हीं की हर खबर ब्रेकिंग हो और उन्हीं की हर खबर बड़ी मानी जाय. जो लोग छोटे चैनलों में काम करते हैं, उनकी बड़ी खबरों को छोटा बनाने का भी खेल करने से ये बड़े लोग बाज नहीं आते ….ये सब मैने यहां महसूस किया है….मैंने ये सब इसलिए लिखा कि मुझे कोई पुरस्कार की चाहत नहीं लेकिन काम अच्छा करने पर अपनों से कम से कम तारीफ ना मिले, ना सही, लेकिन सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे को कुरेदने पर भी उसे पर्सनल कहकर दबाने की कोशिश और फिर मीन मेख निकालना क्या बड़ों को शोभा देता है….या वो छोटे लोगों का बढ़िया काम बर्दाश्त नहीं कर पाते….ये समझना हम आप पर छोड़ते हैं….
आपका
संजय श्रीवास्तव
संवाददाता, इंडिया न्यूज़, लखनऊ