हे मठाधीशों, कुंठा को हथियार मत बनाओ : भाई यशवंत, ब्लाग, वेब और पोर्टल की दुनिया का प्रसार और पसंद बढ़ती देख खुशी तो होती है लेकिन इस दुनिया में कुछ अज्ञानी और कुंठित किस्म के लोगों के आने से संताप भी होता है। आजकल ब्लाग, वेब और पोर्टल दिन दूनी रात चौगुनी गति से उन्नति कर रहे हैं। यह बहुत ही सुखद है। लेकिन मीडिया के इस रूप को कालसर्प योग ग्रसित कर रहा है। मीडिया के इस अवतार को कुछ लोगों ने अपनी कुंठा निकालने का हथियार बना लिया है। यही नहीं, कुछ अल्पज्ञानी लोग भी इस क्षेत्र में मठाधीश बन बैठे हैं। यही कारण है कि अनेक पोर्टल और ब्लॉग जब-तब विवादित होकर शर्मसार होते-करते रहते हैं। लेकिन उन मठों के धीशों को तब भी शर्म नहीं आती। अगर कोई संपादक उनके कहने से किसी को नौकरी न दे या उनकी कोई बात अथवा राय न माने तो मठाधीशों के हाथ में कलमरूपी लाठी तुरंत आ जाती है। ऐसे लोग उस संपादक को अपने कुतर्कों के सहारे देश का सबसे घटिया संपादक सिद्ध करने पर तुल जाते हैं।
उनके आलेखों से लगता है कि देश के सारे अखबारों के प्रबंधतंत्र उनकी ही राय से काम कर रहे हैं। फिलहाल बात एक ब्लाग रूपी साइट की। इस ब्लाग रूपी साइट ने हिंदुस्तान के नवनियुक्त एडिटर-इन-चीफ शशि शेखर को अखबारी दुनिया के विलेन के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। अपने चौबीस साल के पत्रकारिता के कैरियर में मैंने कभी शशि शेखर के साथ काम नहीं किया। आज तक न तो उनसे मुझे कभी कोई नुकसान हुआ और न ही कोई फायदा। न ही आगे कोई फायदा लेने का इरादा है। यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि शशि शेखर के प्रति मेरा भाव पूरी तरह से तटस्थ हैं। देश के एक योग्यतम संपादकों में से एक के बारे में अगर कहीं कुछ बकवास पढने को मिले तो निश्चित रूप से यह दुखदायी है।
ब्लाग संचालकों को यह जानकारी होनी चाहिए कि शशि शेखर को अच्छी खासी संख्या में प्रसारित किसी हिंदी दैनिक का सबसे कम उम्र संपादक होने का गौरव प्राप्त है। दैनिक ‘आज’ उनकी अनुवाई में पूरी बुलंदी पर रहा। आज के डूबने के कारण उसके मालिक के व्यक्तिगत तरीके व कारनामे रहे न कि शशि शेखर। शशि शेखर ने ‘आज’ अखबार को बुलंदी पर पहुंचाकर छोड़ा था, न कि डुबाकर। रही बात ‘आज’ में काम करते हुए अपने स्पर्धी को नुकसान पहुंचाने की तो यह उनकी संस्थान के प्रति वफादारी का प्रमाण है। इसलिए हे ब्लागरों, इसी वफादारी और काबिलियत की वजह से ही अमर उजाला प्रबंधन शशि शेखर को अपने यहां लाया था।
अब बात करते हैं गरिमापूर्ण अखबार अमर उजाला की। आरोप लगाया गया है कि शशि जी के कार्यकाल में अमर उजाला कंटेंट के मामले में पिछड़ा है। हे ब्लागर महोदय, मुझे आपकी जानकारी और पत्रकारिता की समझ पर तरस आता है। शशि जी के आने से पहले अमर उजाला ग्रामीण और परंपरागत परिवेश का अखबार समझा जाता था। इस अखबार को एक स्मार्ट और क्रेडिबल अखबार में तब्दील करने का पूरा श्रेय शशि शेखर को ही है। जहां तक कंटेट की बात है तो ले-आउट, डिजाइनिंग, सलेक्शन ऑफ न्यूज और प्रेजेंटेशन ऑफ न्यूज के मामले में अमर उजाला इस समय देश में अव्वल माना जाता है। अमर उजाला की पहले और आखिरी पन्ने की अगर बात करें तो पूरे देश के हिंदी अखबारों में सिर्फ दिल्ली का नवभारत टाइम्स ही उसे टक्कर देता दिखाई देता है। रही बात पहले पेज की लीड खबर की तो कम से कम यह बेसिक तो जान ही लीजिए कि हर अखबार अपने पाठक वर्ग की पसंद को ध्यान में रखकर पेज डिजाइन करता है। दिल्ली के नवभारत टाइम्स जैसे सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार में भी अनेक बार क्राइम की खबरों को मैं लीड के रूप में देखता रहता हूं। अमर उजाला वह अखबार है जिसने आर्थिक मंदी के दौर में भी किसी प़त्रकार को बेरोजगार नहीं किया। इसका श्रेय प्रबंधन के साथ-साथ शशि जी को भी जाता है।
रही बात अमर उजाला के पंजाब एडिशन बंद होने की तो हे ब्लागर दोस्तों, क्या आपको जानकारी है कि देश के अधिकांश अखबार समूहों ने आर्थिक मंदी में अपने अधिकांश घाटे के प्रोजेक्टस को बंद किया। जानकारी बढाइए। दैनिक जागरण ने अपने टैबलॉयड अखबार को अधिकांश जगह से बंद कर दिया। यही नहीं, भास्कर ग्रुप ने भी अपने सप्लीमेंट ‘सिटी भास्कर’ के कई एडिशन बंद कर दिए। आर्थिक मंदी के दौर में किसी भी प्रबंधन द्वारा घाटे के प्रोजेक्टस को बंद करना अक्लमंदी कहलाती है न कि अकर्मण्यता। इसी दौरान शशि जी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश की राजधानी से एडिशन शुरू किया गया जो रिकार्ड प्रसार संख्या से आरम्भ हुआ। यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि अमर उजाला सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ही अखबार नहीं है। राज्य के पूर्वी हिस्से में भी इस अखबार की रिकार्ड प्रसार संख्या शशि शेखर की अगुआई में ही हुई है।
अब बात करते हैं दो अलग-अलग मीडिया हाउसों के प्रबंध तंत्र की। तो यह एक सार्वभौमिक तथ्य है कि हर संस्थान की सोच और कार्य करने का तरीका हमेशा इतर होता है। लेकिन किसी संस्थान में कार्य करने जा रहे देश के योग्यतम संपादकों में से एक शशि शेखर को उनकी कार्यशैली के लिए आप जैसे ‘महान’ लोग सलाह दें, यह थोड़ा हास्यास्पद लगता है। हे सलाह शिरोमणि, आपको मेरी सलाह है कि आप मीडिया की गतिविधियों पर अपने प्लाग पर कुछ लिख रहे हैं तो उसी तक सीमित रहें और पवित्र भावना से मीडिया के बारे में रिपोर्ट करें। खबरों में अपनी कुंठा और पूर्वाग्रहों की मिलावट न ही करें तो बेहतर होगा। इससे आपकी कंटेंट की इमेज के साथ-साथ ब्लाग और वेब माध्यम की भी विश्वसनीयता बनी रहेगी।
लेखक कुमार संजय त्यागी वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनसे संपर्क [email protected] या फिर 09953932820 के जरिए किया जा सकता है।