आजकल पत्रकार बनने की होड़ है. इस अभिलाषा को पूरा करने के वास्ते गली-कूचे तक में पत्रकारिता के स्कूल-कालेज उग आए हैं. ये बुलाते हैं, लुभाते हैं- आइये पत्रकार और पत्रकारिता में सुनहरी संभावनाओ को तलाशें! पत्रकार कौन होते हैं? वे लोग जिनकी गाड़ियों पर ‘Press’ लिखा होता है. वे इस खुशफहमी (और गलतफहमी) में रहते हैं कि वे बड़े क्रिएटिव लोग हैं और पूरे समाज के ‘सुधार का ठेका’ उन्हीं के कंधों पर है. जब ये कंधे दुखने लगते हैं तो वे शराब के ठेकों पर पहुंच जाते हैं.
पत्रकार बनने की पहली शर्त है कि आपको चीकट चाय और गालियां पकाना-पचाना आना चाहिए. आप में योग्यता का ‘य’ अथवा काबिलियत का ‘क’ भले न हो किंतु आपके पास ‘बड़े-बड़े सोर्स’ होना अति आवश्यक है. अगर आप एनजीओ (NGO) से जुड़े हों तो लोग आपको सुनहरे पंखों वाला पत्रकार समझेंगे.
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इलेक्ट्रॉन में काफी समानता होती है. दोनों में ऋण आवेश होता है. अच्छे-अच्छे प्रोटान यहां इलेक्ट्रोंन, नहीं तो न्यूट्रान में तब्दील हो गये. मीडिया में जो प्रोटॉन दिखते भी हैं, अगर उनका सूक्ष्म अध्ययन कर दिया जाए तो उनका अस्तित्व ही नहीं होता. सो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुनहरे भविष्य सजाने वालों का भगवान ही मालिक है. आप भले पालिटिक्स की बारीक समझ रखते हों, अरुणाचल प्रदेश के कृषी मंत्री तक का नाम जानते हो पर मीडिया में काम के नाम पर भूत-पिशाच पर रिपोर्ट देने के लिए तैयार रहिए. गलती से भी किसी स्टिंग ऑपरेशन टीम का हिस्सा न बनिए वरना यहां मेहनत कोई करता है और क्रेडिट कोई दूसरा लूट लेता है. वैसे, स्टिंग ऑपरेशन दिखाने के हजार और न दिखाने के लाखों रुपये मिलते हैं. मतलब आपकी ईमानदारी और बेईमानी का मूल्य बराबर हुआ.
इंग्लिश प्रिंट मीडिया में अपना भविष्य बनाने वाले लोग खुशकिस्मत हैं. वो इतना कमा सकते हैं कि अपने मोबाइल री-चार्ज करा सकें और महीने के शुरुआती दिनों में भी अपने गाड़ियों में पेट्रोल भरवा सकें. इसी के चलते इनमे ‘पत्रकारिता का कीड़ा’ काफी वक़्त तक जिंदा रहता है. हिंदी प्रिंट मीडिया में नये लोगों को 6-7 वर्षों तक अपने पूर्वजों के धन पर आश्रित रहना पड़ता है. कुछ विरले ही होते हैं जो तीन अंक के आकड़ों में सेलरी साल भर में कमाने लगते हैं. सामान्यतः वर्षों तक लोग मुफ्त में काम करते हैं. अब जब पैसा न कौड़ी, तो भाई हिंदी प्रिंट मीडिया में कोई क्यो जाए? बस लोग जातें हैं ‘भोकाल’ में, शान से गाड़ी पर प्रेस (Press) लिखवाते हैं और भोकाल में बताते हैं हम ‘फलां समाचार पत्र’ के पत्रकार हैं. वैसे पत्रकार बनाना तो एक सर दर्द है ही, पर उससे बड़ा सरदर्द है पत्रकार बने रहना।
आप में राइटिंग स्किल है तो ऐसा नहीं कि आप कुछ भी लिख सकते हैं? यहां ऐसी-ऐसी स्क्रिप्ट लिखने को मिलेगी कि आप लिखना भूल सकते हैं और हां, अपनी काबिलियत का ढिंढोरा न पीटें. ऐसा करने पर आप को काम का अतिरिक्त बोझ मिलने के साथ-साथ अपने सह पत्रकारों के आंखों की किरकिरी बनना पड़ेगा. इतने काबिल न दिखिए कि आपका सीनियर बेवकूफ नजर आने लगे. अगर आपको मीडिया का हिस्सा बने रहना है तो ये जानते और मानते हुए कि आपका सीनियर बेवकूफ है, उस पर ये बात जाहिर न करें और उसकी प्रशंसा के पुल बांधने का काम जारी रखें. सीनियर पत्रकारों से डिबेट, वाद-विवाद करें पर जीतने का मौका सदा उन्हें ही दें. अगर एक डिबेट में आपके जीत का सूरज उग गया तो अपके पत्रकारिता का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है.
इतना सब पढ़ने के बाद भी अगर आपमें पत्रकार बनने या बने रहने कि इच्छा बची हुई है तो यकीन मानिए, आप पत्रकार बन सकते हैं.
इस व्यंग्य के लेखक गौरव श्रीवास्तव हैं, जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है लेकिन उनके कई मित्रकार पत्रकार जरूर हैं। गौरव थिएटर से जुड़े हुए हैं और इन दिनों बीटेक थर्ड सेमेस्टर के स्टूडेंट हैं। उनसे संपर्क करने के लिए आप [email protected] पर मेल कर सकते हैं या फिर 09839843533 पर काल कर सकते हैं।
Prem Kumar sagar
April 16, 2010 at 7:07 pm
great presentation of indian media….
i have worked and now again i have started working in hindi print media, so i can understand this… 🙁
take care