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दुख-दर्द

पहले पत्रकारिता के अजगरों को तो सुधारिए

गिरी हुई मानसिकता की इस पत्रकारिता को बंद करिए : यशवन्त भाई, एक स्टिंगर की क्या औकात जो एक सिपाही को पिटवाये और उसके विजुअल बनाये। आप की कलम में ताकत है तो उनको निशाना बनाइये जो स्टिंगर को दलाल और ब्लैकमेलर बनाने का लाइसेंस देते हैं। दिहाड़ी मजदूर को मेहनत करने के बाद पैसा मिलता है लेकिन स्टिंगर को मेहनत करने के बाद भी पैसा नहीं मिलता। चैनलों मे बैठे अजगर स्टिंगर को ऐसा करने को विवश कर देते हैं, इसलिये यशवन्त भाई, पहले पत्रकारिता के उन गंदे हिमालय पर्वतों को धो डालिये जो स्टिंगर पैदा करते हैं। अगर आपकी कलम में ताकत है तो किसी छोटे से कस्बे या छोटे शहर का स्टिंगर बनिए और फिर लेखनी चलाकर या खबर शूट करके देख लीजिये। आपको स्टिंगर शब्द का ज्ञान हो जायेगा।

गिरी हुई मानसिकता की इस पत्रकारिता को बंद करिए : यशवन्त भाई, एक स्टिंगर की क्या औकात जो एक सिपाही को पिटवाये और उसके विजुअल बनाये। आप की कलम में ताकत है तो उनको निशाना बनाइये जो स्टिंगर को दलाल और ब्लैकमेलर बनाने का लाइसेंस देते हैं। दिहाड़ी मजदूर को मेहनत करने के बाद पैसा मिलता है लेकिन स्टिंगर को मेहनत करने के बाद भी पैसा नहीं मिलता। चैनलों मे बैठे अजगर स्टिंगर को ऐसा करने को विवश कर देते हैं, इसलिये यशवन्त भाई, पहले पत्रकारिता के उन गंदे हिमालय पर्वतों को धो डालिये जो स्टिंगर पैदा करते हैं। अगर आपकी कलम में ताकत है तो किसी छोटे से कस्बे या छोटे शहर का स्टिंगर बनिए और फिर लेखनी चलाकर या खबर शूट करके देख लीजिये। आपको स्टिंगर शब्द का ज्ञान हो जायेगा।

यशवन्त भाई, क्या आपको पत्रकारिता के बड़े अजगरों से डर लगता है? अगर नहीं तो पहले अजगरों को सुधारिये। कीड़े-मकोड़े अपने आप सुधर जायेंगे वर्ना इस गिरी हुयी मानसिकता की पत्रकारिता को आप छोड़ दीजिये क्योकि आप में और दूसरे अजगरों मे कोई अन्तर नहीं रह जायेगा। अगर कुछ गलत लिख दिया हो तो क्षमा कीजियेगा। अपना नाम इसलिये नहीं लिख रहा हूं क्योकि मैं भी उन बड़े अजगरों का निवाला छोटा-सा कीड़ा मकोड़ा हूं।

-एक स्टिंगर


गे रहो मुन्ना भाई….: यशवंत जी, मामला सिर्फ फिरोजाबाद तक सीमित नहीं है। हर स्टेट में टीवी स्क्राइब्स यही करने के दौर में हैं। यह जरूर है कि स्क्राइब्स पर भी प्रेशर है कि वो चटक बाइट्स और धमाकेदार विजुवल्स लायें। लेकिन बावजूद इसके यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी चैनलों में यह ट्रेंड ज्यादा है जो जर्नलिज्म के नाम पर कुछ भी परोसने के लिए तैयार हैं। रही सही कसर स्ट्रिंगरों की फौज पूरी कर रही है जिन्हें पत्रकार बनने के लिए सिर्फ एक पच्चीस हजार रुपये के कैमरे की जरूरत है। मैं यह नहीं कहता कि सभी स्ट्रिंगर्स गलत हैं लेकिन स्ट्रिंगर्स में से ज्यादातर वो हैं जिनकाजर्नलिज्म पेशा नहीं है बल्कि जर्नलिज्म उनके दूसरे धंधों को सपोर्ट देता है।

आखिर में यही कहा जा सकता है कि ‘लगे रहो मुन्ना भाई’!

अनुपम त्रिवेदी

[email protected]


बड़े पत्रकार भी खबरें प्रायोजित करते हैं :  यशंवत जी, नमस्ते, आपने जो खबर दी है और इस खबर के अन्त में जो सवाल आपने पूछे हैं, मुझे लगता है कि आज उनका कोई मतलब नहीं है. लेकिन आपने अच्छी कोशिश की है, सो ध्नयवाद. देखिए आपने अपने ही आलेख में यह माना है कि यह स्ट्रिन्गर तो एक मोहरा है और मै कहूंगा कि ये तो सिर्फ एक बानगी है कि स्ट्रिंगर चाहे वो टीवी के हों या प्रिन्ट के, किस तरह से काम करते हैं।

केवल स्ट्रिन्गर ही क्यों, यहाँ तो बड़े-बड़े पत्रकारों को देखा जाता है खबरें बनाते हुए या कहें कि खबरें प्रायोजित करते हुए.

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आपका-

विकास कुमार

[email protected]


झोलाछाप पत्रकारों के खिलाफ अभियान की जरूरत : यशवंत भाई, ये वीडियो देखकर दुःख भी आता है और शर्म भी आती है। क्या आपको लगता है कि इन झोलाछाप सज्जन ने जब ये वीडियो किसी भी (किसी भी इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि ये झोलाछाप पहले तो किसी एक चैनल के नहीं होते बल्कि ये एक साथ कई चैनलों की ठेकेदारी लेकर चलते हैं) न्यूज़ चैनल के असाइंमेंट पे इन्होंने इस रंगीन दृश्य वाली कहानी के बारे में बात की होगी तो ये बिलकुल नहीं बताया होगा की इस पूरी फिल्म के निर्माता और निर्देशक भी यही हैं। पुलिस वाले के अलावा दूसरे पात्र को भी इन्होंने ही साइन किया है। इन्होंने इस कहानी को बढ़ा चढ़ा कर कुछ और ही बताया होगा। इन्होंने ये वीडियो चैनल को भेजा होगा तो अब उस बेचारे चैनल वाले का क्या कुसूर जो 300 किलोमीटर दूर बैठकर ये दृश्य देखा रहा है। जिस चैनल का नाम यहाँ लिया जा रहा है हो सकता है ये सही भी हो। चूँकि आज हर शहर में ऐसे झोलाछापों की भरमार है जो 10-15 हजार का छोटा हैंडीकेम लेकर लाखों रुपये छाप रहे हैं और अपने आप को कई चैनलों का ब्यूरो चीफ भी बताते फिरते हैं। जिस चैनल का नाम लिया जा रहा है और उस चैनल की दी हुई सफाई ठीक भी हो सकती है । दूसरा अगर इस वीडियो को आप गौर से देखें तो इसमें अकेला एक स्ट्रिंगर नहीं बल्कि कई स्ट्रिंगर कई एंगल से वीडियो फिल्म बनाते नजर आ रहे हैं।

ये लोग शर्मसार करते हैं एक संवेदनशील पेशे और पेशेवरों को। जो शब्दावली आपने प्रयोग की है वो इन पर फिट बैठती है। अब वाकई में इनके खिलाफ एक मुहिम चलाने की जरूरत है। ये मुहिम हर चैनल को अपने हिसाब से चलानी होगी अपने स्तर पर शहर दर शहर। ऐसे झोलाछापों को सलाखों के पीछे लाना होगा। इनकी शहर दर शहर एक लिस्ट तैयार करनी होगी। यहाँ इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन लोगों की पहुँच राष्ट्रीय स्तर पर चैनल से होती है। ये लोग इसी तरह से मल्टी एंगल शूट करके और रंगीन दृश्य दिखा कर चैनल को इसे लेने पर मजबूर करने की हिम्मत और ताक़त दोनों रखते हैं। इनकी एक भी स्टोरी चल जाये तो ये अपने आपको वहीं से उसी चैनल का प्रतिनिधि खुद ही घोषित कर देते हैं।

अब समय आ गया है जब इन लोगों पर लगाम कसने की जरुरत हर स्तर पर है।

सतेंदर चौहान

चंडीगढ़

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घटना नहीं है तो पैदा करो ! : यशवंत जी, नमस्कार, आजकल के टीवी जर्नलिज्म में वही कामयाब है जो खबर ‘बनाना’ जानता है। खबर हो ना हो, खबर बनाना / बनानी चाहिए। हमारे साथ एक बार नहीं कई बार हुआ जब हमें ऐसी बातों का सामना करना पड़ा। हम हैरान होते कि फलां टीवी वाले पत्रकार को कैसे पता लग गया कि वहां एक पुलिस वाला पिट रहा है या कोई लड़की अपने स्कूल टीचर परर कुछ आरोप लगारही है। ऐसी कितनी ही खबरें हैं जो बनाई गईं।

सच है, खबर चलेगी तो दाम मिलेंगे। न्यूज चैनल को भी ऐसी ही खबर चाहिए। आजकल आम आदमी के दर्द, तकलीफ, उसको मिल रही प्रताड़ना, उसके साथ हर स्थान पर हो रहे अन्याय से किसी भी प्रकार के मीडिया को कोई लेना-देना नहीं है। सब कुछ घटना प्रधान हो गया है। घटना नहीं है तो पैदा करो। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई आदि बड़े शहरों में तो दो चार बूंद बारिश के पड़ जाए तो खबर है। हमारे जैसे इलाके में लोग खेती के लिए पानी को तरसें तो कुछ नहीं।

स्ट्रिंगर की हालत क्या है, यह तो वही जानता है। कोई मुसीबत आ जाए तो चैनल वाले पल्ला झाड़ लेते हैं।

गोविंद गोयल

श्रीगंगानगर, राजस्थान

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काबिल लोगों को टीवी जर्नलिज्म में लाएं :  भाई यशवंत जी, नमस्कार, मीडिया पूरी तरह से पथभ्रष्ट हो चुकी है- ऐसा कहना सरासर गलत होगा या फिर बहुत जल्दबाजी होगी। रही बात टीवी जर्नलिज्म के राह भटकने की, तो इस मुद्दे पर मेरा मानना है कि ग्लैमर के चक्कर में कुछ नौसिखिए पत्रकारों, जो मीडिया जिम्मेदारियों से अनजान हैं, ने टीवी की दशा और दिशा को नकारात्मक रूप से बदल दिया है। इस पर मंथन करने की सख्त जरूरत है। इसके साथ ही व्यक्तिगत संबंधों को ना निभाते हुए अच्छे और सही मायनों में काबिल लोगों को टीवी जर्नलिज्म में लाने की आवश्यकता है।

अमित गर्ग

बेंगलोर

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प्रति खबर के हिसाब से पैसे देने से पैदा हुआ रोग : यशवंत भइया, आपकी सारी बातें सही हैं, मगर आप बताएं एक स्ट्रिंगर क्या ये मानवीय बदलाव ला सकता है? जब सीरियस ख़बरों को चैनल पूछ ही नहीं रहा है, तब यही सब खबरें छोटे जिलों से निकल सकती हैं. किसी घोटाले का चाहे जितना बड़ा पर्दाफाश करने की कूव्वत स्ट्रिंगर में हो, वो उस खबर पर बात भी नहीं करता. कारण बताने की जरुरत नहीं है. इस तरह की खबरें टीवी जर्नलिज्म में “बेकार की खबरें” कही जाती हैं. जब तक स्ट्रिंगर को प्रति खबर के हिसाब से पैसे दिए जायेंगे तब तक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. चैनल ऐसी खबरों को जरूर चलाएगा क्योंकि मानवीयता स्ट्रिंगर में तो एक बार आ सकती है मगर…….

आपने कहा की नशे में धुत किसी व्यक्ति को हमें घर पहुँचाना चाहिए या पिटाई करनी चाहिए? भइया, उस कथित स्ट्रिंगर (अब तो उसे कथित ही कहा जायेगा, चैनल ने उससे पल्ला झाड़ लिया है) ने तो शराबी सिपाही की पिटाई करवाई थी, यहाँ तो लोग पागल को नहीं बख्शते. अक्सर बे-बात के सड़क पर टहल रहे पागल को पीट दिया जाता है. कम से कम इसी बहाने जो रिक्शा वाला रोज ऐसे ही सिपाहियों से पिटा जाता है, उसे भी सिपाही को पीटने का मौका मिला. आप सोचिये जिन लोगों ने स्ट्रिंगर द्वारा रिक्शे वाले को उकसाते हुए विजुअल्स खींचे, उनका मकसद क्या मानवीयता की रक्षा करना था? या वाकई ये उस स्ट्रिंगर के खिलाफ साजिश थी?

फिरोजाबाद में स्ट्रिंगरों ने जो किया वो उनकी जरुरत थी, जिसे प्रोफेशनलिज्म कहा जाता है. जिसका आज के परिप्रेक्ष्य में मतलब है झूठ, मक्कारी, हर तरीका अपना कर काम पूरा करना.
रोक जरूर लगनी चाहिए मगर इस बात पर भी बहस जरूरी है कि आखिर स्ट्रिंगर अपना पेट कैसे पाले? रीयल खबरें करने जैसा आनंद वाकई मैनेज ख़बरों को करने में नहीं होता फिर स्ट्रिंगर क्यों इस तरह की खबरें करते हैं, इस बात पर गौर करना जरूरी है. आप कम से कम पत्रकारिता के इस सबसे शोषित तबके पर भी बहस  करवायें तो बड़ी कृपा होगी.

बहुत बड़ा गिरोह है भईया लेकिन क्या ब्लैकमेलिंग स्ट्रिंगरों द्वारा इजाद किया हुआ भ्रष्टाचार है या ऊपर से नीचे पहुंचा है? जब पैसा ही नहीं मिलेगा और पत्रकारिता के अलावा दूसरा पेशा किसी भी पत्रकार के पास नहीं होगा तो ब्लैकमेलिंग क्या, इससे भी बड़े गुनाह धीरे-धीरे सामने आयेंगे और कई आ भी चुके हैं. कम से कम बीस उदाहरण मेरे पास फैजाबाद के ही हैं जिसमे लोग अपने दूसरे धंधों जैसे ठेकेदारी या सूदखोरी को सफलतापूर्वक करने के लिए अख़बारों या चैनलों का बैनर थामे हुए हैं और उनके कांटेक्ट किसी भी खालिस पत्रकार से बेहतर हैं. वो दिल्ली तक के लोगों को अपनी सेवाएं पहुचाते रहते हैं.

आखिरी में सिर्फ एक बात आप सभी से कहूंगा यशवंत भइया कि आपने सिपाही के लिए ये लाइन तो यूज की (सिपाही विजय पाल जाने किन हालात में शराब पीने के बाद सड़क पर गिर गया) मगर उस स्ट्रिंगर के भी ऐसे ही  न जाने कितने हालात होंगे की उसे इस तरह का रिस्क लेते हुए खबर को मैनेज करना पड़ा. जरा एमएच1 की महानता पर भी चर्चा कीजिये जिसने कंट्रोवर्सी होने पर अपने स्ट्रिंगर से ही पल्ला झाड़ लिया. ये वही चैनल है न जिसके एक स्ट्रिंगर ने पैसा न मिलने पर इस पर मुकदमा तक कर दिया था, तब भी चैनल ने यही कहा था की वो मेरा पत्रकार नहीं. आप जानते हैं अब फिरोजाबाद में पोरवाल के साथ क्या होगा? पुलिस उस पर मुकदमा लिखेगी. वो तमाम अधिकारीयों से मिन्नतें करेगा, तमाम जिले के कथित बड़े पत्रकारों से सिफारिश करवाएगा कि मामले को यहीं ख़त्म किया जाये. अगर सेटेलमेंट हो गया तो ठीक वर्ना जिंदगी भर एक आपराधिक मुक़दमे का दाग ढोएगा. एक ऐसा दाग जिसका वाकई में वही दोषी है, इस पर जरूर विचार कीजियेगा.

चन्दन श्रीवास्तव

फैजाबाद

[email protected]

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आंखें खोलने के लिए धन्यवाद : धन्यवाद यशवंत भैया, इसलिए कि नया हूं तो पत्रकारिता का ये रूप मैंने अभी तक नहीं देखा था. तो धन्यवाद्….. ऐसा करके तो काफी फायदा पाया जा सकता है बहुत आसानी से, नेम, फेम और कुछ धन पाया जा सकता है। फालतू है यार  इतनी मेहनत  करना….. खैर…. आपको ही आदर्श मान कर ऐसा  ही कुछ कोशिश मैं भी करता हूँ. साथ ही दुआ करता हूं की ऐसा कुछ करने में आपका, मेरा या हम जैसों का कोई अपना  वीडियो में ना दिखाई पड़ जाए.

विक्रांत यादव

छात्र  पत्रकारिता

गोरखपुर विश्वविद्यालय  

गोरखपुर.

[email protected]


अब तो खुद पर शर्म आने लगी है : यशवंत भैया, नमस्कार,  आपका प्रयास काफी अच्छा है, इस वीडियो को देखकर हमें अब अपने आप पर शर्म आती है कि हम उस बिरादरी के हैं जो एक खबर के लिए इस कदर नीचता पर उतर जाते हैं. बेचारा सिपाही वैसे ही होश में नहीं है, उस पर हमारे कथित पत्रकार भाई उसे रिक्श्वा वाले से मार खिलवा रहे हैं, बेहूदगी की सारी सीमाएं लाँघ कर इस तरह की स्टोरी बनाने वाले भाइयों सेमेरी गुजारिश है कि वह पत्रकारिता छोड़ कर भाईगिरी की दूकान खोल लें, कम से कम इनके कारण हम जैसे लोगों को शर्मिन्दगी तो नहीं झेलनी पड़ेगी. साथ ही टीआरपी के चक्कर में इस खबर पर खेलने वाले चैनल वालों से भी गुजारिश करूँगा कि कम से कम खबर की विश्वसनीयता तो परख कर जनता के सामने परोसें…………

अंत में आप के इस पहल के लिए धन्यवाद जो आपने इस तरह के लोगों की पोल खोलने की मुहिम चला रखी  है.. 

दीपक  श्रीवास्तव,

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गोरखपुर, उ.प.

[email protected]


Journalists are no more journalist : Dear Yashwant, When i see this video on india tv in my office, i told our help assistant to change the channel. but some of our coleagues made me fool. i was not able to view this, but they were enjoying it. it is the fact of today that journalist are no more journalist and they create humour for others and themselves. they actually encourage people to do crime.

maze ki baaat yah hai ki kal jab us rickshaw puller ko police joothe mukadme mein phansakar jail bhejegi tab koi media wala use bachane nahin jayega. ferozabad mein is tarah din dahade ek police wale ko peetna us rickshaw puller ke liye musibat bankar barpega, par isse us journalist ko kya matlab. uski to ek din ki dihadi ban gayee.

Thanks And Regards

AMIT TYAGI

Delhi

[email protected]


देश में आदमी नहीं, भेड़ रहते हैं : यशवंत जी नमस्कार! फिरोजाबाद वीडियो देखी, मेरा तो बस यही मानना है की ऐसे पत्रकारों और उनके मालिकों को सड़क पर दौडा-दौडा कर मारना चाहिए वो भी पुरे होशो-हवास में. दूसरी बात जो दुनिया वाले कहते है की हमारे देश में आदमी नहीं भेड़ रहते हैं, वह बिलकुल सही है. आप देखिये, वीडियो में बीसों तमाशबीन खड़े हैं और किसी ने ये जहमत नहीं उठाई कि उस व्यक्ति को घर पहुंचा दिया जाये या पानी-सानी डालकर उसे कुछ होश में लाने की कोशिश की जाये. लोग कैसे पुलिस वालों को दोष देते हैं कि ये लोग ये नहीं करते वो नहीं करते. इस वीडियो को जो भी पुलिसवाला देखेगा वो क्या ऐसे लोगो की कभी सहायता करेगा? खैर मैं भी किस तरह की बात करने लगा.

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ये जो टुंटपुजिये कैमरा लेकर पत्रकार बने घूम रहे हैं, ये बेहूदे कभी अपनी ही माँ बेटी और बहन से साथ हो राही बदतमीजी को भी शूट करके चैनल को बेचने से बाज नहीं आएंगे..

यशवंत जी आपका लेख पढ़कर और वीडियो देखकर मन बड़ा व्यथित हो गया, खिन्न हो गया है. 

धन्यवाद

मनोज द्विवेदी

[email protected]


हिम्मत का काम किया है आपने : यशवंत  जी, आप को मेरी तरफ से बहुत बहुत बधाई,  इस बात के लिए की आपने टीवी मीडिया के  उस  चेहरे को  उजागर किया है, जिसका  खुलासा करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका। टीवी चैनल के न्यूज़ रूम में काम करने वाले किस तरह से फील्ड रिपोर्टर से काम लेते हैं, यह अभी तक टीवी मीडिया वालों को ही पता हुआ करता था लेकिन फिरोजाबाद की शराबी दरोगा को एक रिक्शे वाले से पिटवाने की इस घटना से इस बात को साफ़ तौर पर स्पष्ट किया जा सकता है की एमएच न्यूज़ चैनल में काम करने का दावा करने वाला यह रिपोर्टर किस आधार पर प्रसाशन को गुमराह करता रहा और अपने को न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर बता कर अपने काले कारनामे करता रहा। जरूर  ही इसमें न्यूज चैनल से ही किसी ना किसी की शह मिली हुयी होगी, तभी तो वो अपने को एम्एच १ न्यूज़ चैनल का फिरोजाबाद में रिपोर्टर बता कर काम ही नहीं कर रहा था वल्कि टीवी मीडिया के लिए एक कलंक बना हुआ है। भले ही न्यूज़ चैनल की तरफ से इस बात को इनकार कर दिया गया हो कि उनका फिरोजाबाद में कोई फील्ड रिपोर्टर नहीं है. चलो इस बात को मान भी लिया जाये लेकिन इतने दिनों से यह महाशय किस आधार पर अपने को एम्एच१  न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर बता कर काम करते रहे? उन्होंने सिर्फ न्यूज़ चैनल का ही नाम बदनाम नहीं किया। इस खबर को जरुर ही एम्एच१ न्यूज़ चैनल पर भी प्रसारित किया गया होगा तो किस आधार पर न्यूज़ चैनल वाले इनकार कर रहे हैं  कि फिरोजाबाद में हमारा कोई रिपोर्टर नहीं है?

इस बात की भी जाँच होनी जरुरी है कि जब खबर ली जा रही थी तो रिपोर्टर होगा जरुर ही, इसे क्या समझा जाये की न्यूज़ चैनल वाले बेवकूफ़ नहीं बना रहे हैं तो क्या कर रहे है? इसमें जितना दोषी रिपोर्टर है उतना न्यूज़ चैनल वाला भी है। दोनों के खिलाफ प्रेस परिषद के मार्फ़त कार्रवाही करवाई जाये, तभी इस तरह से टीवी मीडिया को बदनाम करने वाली खबरों पर रोक लग पायेगी।

दिनेश शाक्य

इटावा

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