हिंदुस्तान अखबार के एचटी मीडिया से अलग नई कंपनी ‘हिंदुस्तान वेंचर्स मीडिया लिमिटेड’ (एचएमवीएल) के छतरी तले आने के महीने भर के भीतर ही इस अखबार से जुड़े सबसे जमीनी पत्रकारों, जिन्हें स्ट्रिंगर और सुपर स्ट्रिंगर कहा जाता है, पर गाज गिरी है। शशि शेखर के राज में जिस तरह अमर उजाला में दस रुपये के शपथ पत्र पर जूनियर पत्रकारों से हस्ताक्षर करवाया गया था और जिसमें लिखा था कि वे पत्रकारिता शौकिया तौर पर कर रहे हैं, उनका मुख्य बिजनेस कुछ और है, उसी तरह शशि शेखर के राज में ही अब हिंदुस्तान के स्ट्रिंगरों और सुपर स्ट्रिंगरों से शपथ पत्र भरवाया जा रहा है कि…
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मीडिया में सर्वहारा यानी ‘हिन्दुस्तान’ का ‘सुपर स्ट्रिंगर’
एक पाठक, जो हिंदुस्तान अखबार में पत्रकार हैं, ने वहां के अंदर की स्थिति के बारे में यह कहानी बयां की है। बता दें, वे बिहार में कहीं कार्यरत हैं। इस पत्र के जरिए उन्होंने हिंदुस्तान अखबार के सबसे बेचारे पत्रकारों, जिन्हें वहां की शब्दावली में ‘सुपर स्ट्रिंगर’ कहा जाता है, की दशा-दुर्दशा बयान की है। यह पत्र इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है ताकि मीडिया के सबसे ज्यादा शोषित और उपेक्षित तबके की आवाज व समस्याओं को सामने लाया जा सके। ऐसा नहीं है कि ये सुपर स्ट्रिंगर सिर्फ हिंदुस्तान में ही होते हैं। इनका नाम बदल जाता है पर ये होते हैं हर जगह। कुछ अखबारों में इन्हें ‘संवाद सूत्र’ कहा जाता है तो कुछ में ‘संवाद सहयोगी’। हिंदुस्तान के सुपर स्ट्रिंगरों की इस स्टोरी को हर अखबार से जोड़कर देखें, प्रतीकात्मक मानें। -एडिटर, भड़ास4मीडिया
क्या आप मीडिया के अजगरों से डरते हैं?
एक स्ट्रिंगर की चिट्ठी : भड़ास4मीडिया से स्ट्रिंगरों को न्याय दिलाने की अपील : यशवन्त जी, आप देश के महान पत्रकारों व मीडिया परिवार की खबरों को तो मसाला लगाकर परोसते हैं, आपने अपने पोर्टल के माध्यम से अभियान चलाकर बडे़ बडे़ लोगों को न्याय दिला डाला लेकिन कभी आपकी कलम टीवी चैनलों के स्ट्रिंगरों को न्याय दिलाने के लिये क्यो नहीं चलती? क्या आपको मीडिया के अजगरों से डर लगता है? आपने भी स्ट्रिंगर जैसे पद पर रहते हुए कभी तो काम किया होगा तो फिर देरी किस बात की? आप जैसे लोग ही स्ट्रिंगर को न्याय दिला सकते हैं। टीवी चैनलों को चलाने वाले स्ट्रिंगरों का कब तक शोषण करते रहेंगे? आपके पोर्टल पर प्रतिदिन किसी न किसी स्ट्रिंगर के खिलाफ दलाली-लूट की खबर छपती रहती है। क्या आपने ये जानने की कोशिश की कि स्ट्रिंगर को दलाल व लुटेरा बनाने वाला उसका ही चैनल होता है। बड़े न्यूज चैनल स्ट्रिंगर को कोई पहचान पत्र नहीं देते जिससे वह मुसीबत में पड़ने पर अपनी पहचान साबित कर सके।
इसमें उस स्ट्रिंगर पोरवाल की क्या गलती?
बी4एम पर 1 जुलाई को एक वीडियो दिखाया गया, जिसमें एक रिक्शा चालक एक पुलिस पुलिसकर्मी को पीट रहा है और दोनों ने शराब पी रखी है। इस मामले में फिरोजाबाद के एमएच वन के स्ट्रिंगर कृष्ण कुमार पोरवाल के खिलाफ रिक्शा चालक को उकसाने का मुकदमा दर्ज हो गया है। आप मुझे एक बात बताइये कि जब ये अधिकारी और पुलिसकर्मी पुलिस विभाग में भर्ती होते हैं तो ट्रेनिंग के दौरान इन्हें क्या यही सिखाया जाता है कि अपनी उस खाकी वर्दी का मजाक उड़ाकर दारू पीकर पब्लिक प्लेस पर हंगामा करो। अब इसमें उस स्ट्रिंगर पोरवाल की क्या गलती है? क्या पोरवाल या अन्य कैमरामैन उस सिपाही को उसके घर पहुंचाते?
एक्शन : चंद्रकांत सस्पेंड, पोरवाल पर मुकदमा
भड़ास4मीडिया ने पिछले दिनों जिन दो मुद्दों को उठाया, उस पर कार्रवाई की शुरुआत हो चुकी है। पहला मामला दैनिक जागरण के सोनभद्र ब्यूरो का है जहां रिपोर्टर ने अपने ब्यूरो चीफ पर अवैध खनन कराने का आरोप लगाया था। दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले का है जहां नशे में धुत एक सिपाही को एक स्ट्रिंगर ने खबर बनाने के लिए रिक्शे वाले से पिटवाया। सोनभद्र वाले मामले में प्रबंधन ने ब्यूरो चीफ को निलंबति कर दिया है। फिरोजाबाद वाले मामले में आरोपी स्ट्रिंगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। नशे में धुत सिपाही को भी सस्पेंड कर दिया गया है। अब बात करते हैं विस्तार से। पहले सोनभद्र प्रकरण। ब्यूरो चीफ और रिपोर्टर के बीच जंग को भड़ास4मीडिया ने जब प्रमुखता से उठाया तो अखबार की छवि खराब होते देख दैनिक जागरण, वाराणसी के प्रबंधन ने इस प्रकरण में अपने स्तर से हस्तक्षेप किया है।
पहले पत्रकारिता के अजगरों को तो सुधारिए
गिरी हुई मानसिकता की इस पत्रकारिता को बंद करिए : यशवन्त भाई, एक स्टिंगर की क्या औकात जो एक सिपाही को पिटवाये और उसके विजुअल बनाये। आप की कलम में ताकत है तो उनको निशाना बनाइये जो स्टिंगर को दलाल और ब्लैकमेलर बनाने का लाइसेंस देते हैं। दिहाड़ी मजदूर को मेहनत करने के बाद पैसा मिलता है लेकिन स्टिंगर को मेहनत करने के बाद भी पैसा नहीं मिलता। चैनलों मे बैठे अजगर स्टिंगर को ऐसा करने को विवश कर देते हैं, इसलिये यशवन्त भाई, पहले पत्रकारिता के उन गंदे हिमालय पर्वतों को धो डालिये जो स्टिंगर पैदा करते हैं। अगर आपकी कलम में ताकत है तो किसी छोटे से कस्बे या छोटे शहर का स्टिंगर बनिए और फिर लेखनी चलाकर या खबर शूट करके देख लीजिये। आपको स्टिंगर शब्द का ज्ञान हो जायेगा।
आइए, इस टीवी जर्नलिज्म पर रोएं!
एक वीडियो, जो है भड़ास4मीडिया के पास, जिसमें छिपा है टीवी पत्रकारिता का एक ऐसा भयावह सच, जिसे जान-देख-पढ़ आप सिहर जाएंगे, सिर पर हाथ रख खुद से पूछेंगे- किस समाज में रहते हैं हम! खुद से कहेंगे- क्या यही है चौथा खंभा? दूसरों को समझाएंगे- मीडिया वालों से बच के रहना रे बाबा!
बिहार के दसटकिया पत्रकारों का दर्द
[caption id="attachment_15024" align="alignleft"]संजय कुमार[/caption]चुनाव के दौरान जिस तरह मीडिया की दुकानदारी चली, उस पर बहस लाजिमी है। प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने मुहिम छेड़ दी है। इस मुद्दे पर नेताओं की तरह पत्रकारों में भी दो गुट बन गए हैं। कोई पक्ष में है तो तो कोई विपक्ष में। मोटी चमड़ी वाले मीडिया मालिकों पर वैचारिक हमलों का कितना असर होगा, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन एक महत्वपूर्ण मुद्दा छूटा जा रहा है। वह है ‘दसटकिया पत्रकारों’ का दर्द। ये ऐसे पत्रकार होते हैं जिन्हें प्रति खबर 10 रुपये दिए जाते हैं। बिहार में इन्हें भले ही दसटकिया कहा जाता है लेकिन ऐसे शोषण के शिकार पत्रकार पूरे देश में हैं। मीडिया में कार्यरत ज्यादातर पत्रकारों की माली स्थिति बेहद खराब है। इनके शोषण के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता। मीडिया के ये सिपाही अखबार में काम करते हुए जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।