दिल्ली से लौटते वक्त इलाहाबाद स्टेशन पर पति के साथ गिरफ्तार हुईं सीमा : पीयूसीएल नेता चितरंजन सिंह ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजा पत्र : इलाहाबाद से आ रही खबर के मुताबिक ‘दस्तक’ नामक मासिक पत्रिका की संपादिका सीमा आजाद को माओवादी बताकर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. सीमा के साथ उनके पति विश्वविजय भी अरेस्ट किए गए हैं. विश्वविजय इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता रहे हैं और बाद में मजदूरों को संगठित करने के काम में जुट गए. सीमा और विश्वविजय मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं. ये दोनों जल, जंगल, जमीन के लिए आदिवासियों को जागरूक और संगठित करते हैं. सीमा पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) की उत्तर प्रदेश राज्य कार्यकारिणी की सदस्या भी हैं.
जानकारी के अनुसार सीमा आजाद और विश्वविजय नई दिल्ली से विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने के बाद रीवांचल एक्सप्रेस से इलाहाबाद लौट रहे थे. इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन पर इन्हें ट्रेन से उतरते ही पुलिस ने अरेस्ट कर लिया. सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तारी का काम आंध्र प्रदेश की पुलिस ने किया है. हालांकि अभी तक पुलिस ने औपचारिक रूप से गिरफ्तारी दर्शाया नहीं है. कहा जा सकता है कि दोनों को पुलिस ने उठा लिया है और पूछताछ करने के लिए ले गई है. पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को फैक्स के जरिए एक पत्र भेजकर आंध्र पुलिस के चंगुल से दोनों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मुक्त कराने और बदसलूकी के लिए पुलिस को दंडित कराने की मांग की है.
mangal
February 7, 2010 at 10:23 am
Some people work as supporter of Naxalites and they call themself journalist. They argue in favour of them and create atmosphere for naxalite activities. There are some so called human right activists who also do this type of things. When Naxalites attack poor people, kill them they dont come forward. When Naxalites were arrested by police they come forward and argue in favour of them. These types of journalists are not less than naxalites . They should be booked . The people who live in north India don’t know about the brutal atrocities done by naxalites. It is we who live in tribal area know this very well. So these types of people should be booked.
rajeev yadav
February 7, 2010 at 12:33 pm
प्रति
अध्यक्ष,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली,
महोदय,
हम आपको अवगत कराना चाहते हैं कि इलाहाबाद की पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता व पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) की राज्य कार्यकारिणी सदस्य व संगठन मंत्री सीमा आजाद, उनके पति पूर्व छात्रनेता विश्वविजय व साथी आशा को शनिवार को पुलिस ने इलाहाबाद जंकशन रेलवे स्टेशन से बिना कोई कारण बताए उठा लिया है। ये दोनों मानवाधिकार कार्यकर्ता नई दिल्ली से विश्व पुस्तक मेले में भाग लेकर रीवांचल एक्सप्रेस से इलाहाबाद लौट रहे थे। पुलिस का कहना है की ये लोग नक्सली हैं.
महोदय, संगठन आपको इस गिरफ़्तारी की पृष्ठभूमि से अवगत करना चाहता है. पिछले दिनों इलाहाबाद व कौशाम्बी के कछारी इलाकों में बालू खनन मजदूरों पर पुलिस-बाहुबलियों के दमन के खिलाफ पीयूसीएल ने लगातार आवाज उठाया। इलाहाबाद के डीआईजी ने बाहुबलियों व राजनेताओं के दबाव में मजदूर आंदोलन के नेताओं पर कई फर्जी मुकदमें लादे हैं। डीआईजी ने यहां मजदूरों के ‘लाल सलाम’ सम्बोधन को राष्ट्रविरोधी मानते हुए है, ‘लाल सलाम’ को प्रतिबंधित करार दिया था। पीयूसीएल ने लाल सलाम को कम्युनिस्ट पार्टीयों का स्वाभाविक सम्बोधन बताते हुए इसे प्रतिबंधित करने की मांग की निंदा की थी। पीयूसीएल का मानना है कि ‘लाल सलाम’ पूरी दुनिया में मजदूरों का एक आम नारा है और ऐसे सम्बोधन पर किसी तरह का प्रतिबंध अनुचित है। इलाहाबाद-कौशाम्बी के कछारी क्षेत्र में अवैध वसूली व बालू खनन के खिलाफ संघर्शरत मजदूरों के दमन पर सवाल उठाते हुए, पिछले दिनों पीयूसीएल की संगठन मंत्री सीमा आजाद व के के राय ने कौशाम्बी के नंदा का पुरा गांव में वहां मानवाधिकार हनन पर एक रिपोर्ट जारी किया था। नंदा के पूरा गांव में पिछले एक माह में दो बार पुलिस व पीएसी के जवानों ने ग्रामीणों पर बर्बर लाठीचार्ज किया। इसमें सैकड़ों मजदूर घायल हुए। पुलिस ने नंदा का पूरा गांव में भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी के स्थानीय कार्यलय को आग लगा दिया। उनके नेताओं को फर्जी मुकदमों में गिरफ्तार कर कई दिनों तक जेल में रखा। इस सब के खिलाफ आवाज उठाना इलाहाबाद के डीआईजी व पुलिस को नागवार गुजर रहा था। पुलिस कत्तई नहीं चाहती की उसके क्रियाकलापों पर कोई संगठन आवाज उठाए। सीमा आजाद, उनके पति विश्वविजय व एक अन्य साथी आशा की गिरफ्तारी पुलिस ने बदले की कार्रवाई के रूप में किया है। सीमा आजाद का नक्सलियों से कोई संबंध नहीं है और वह मानवाधिकारों के क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से कार्यरत हैं। सीमा आजाद ‘दस्तक’ नाम की मासिक पत्रिका की संपादक भी हैं। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानवाधिकारों की स्थिति, मजदूर आंदोलन, सेज, मुसहर जाति की स्थिति व इन्सेफेलाइटिस बीमारी जैसे कई मसलों पर गंभीर रिपोर्टें बनाई है. सीमा आजाद के पति विश्वविजय व उनकी साथी आशा भी पिछले लम्बे समय तक इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में छात्रनेता के रूप में सक्रिय रहे हैं। इन्होंने ‘इंकलाबी छात्र मोर्चा’ के बनैर तले छात्र-छात्राओं की आम समस्याओं को प्रमुखता से उठाया है। पुलिस जिन्हें नक्सली बता रही है, वो पिछले काफी समय से छात्र और मजदूरों के बीच काम कर रहे है।
महोदय उत्तर प्रदेश पुलिस पहले भी पीयूसीएल के नेताओं को मानवाधिकारों की आवाज उठाने पर धमकी दे चुकी है। 9 नवम्बर को चंदौली में कमलेश चैधरी के पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद पीयूसीएल ने इस पर सवाल उठाए थे। जिसके बाद 11 नवम्बर, 09 को खुद डीजीपी बृजलाल ने एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा था कि “पीयूसीएल के नेताओं पर भी कार्रवाई की जाएगी।” (देखें 12 नवम्बर, 09 का दैनिक हिंदुस्तान ). इलाहाबाद से सीमा आजाद की गिरफ्तारी पुलिस की उसी बदले की कार्रवाई की एक कड़ी है।
अतः, हम आप से अपील करते हैं कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए पुलिसिया उत्पीडन पर रोक लगाये और मानवाधिकारों की रक्षा के दायित्व को पूरा करे. हम यह भी मांग करते हैं की सीमा आजाद व उनके साथिओं को तुरंत मुक्त किया जाए.
– भवदीय
चितरंजन सिंह, राष्ट्रीय सचिव, पीपुल्स यूनियन फाॅर सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल)
के के राय, अधिवक्ता, राज्य कार्यकारिणी सदस्य, पीयूसीएल
संदीप पाण्डेय, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व राज्य कार्यकारिणी सदस्य, पीयूसीएल
एस. आर. दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिदेशक, राज्य कार्यकारिणी सदस्य, पीयूसीएल
शाहनवाज आलम, संगठन मंत्री, पीयूसीएल
राजीव यादव, संगठन मंत्री, पीयूसीएल
विजय प्रताप, स्वतंत्र पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता
kamta prasad
February 8, 2010 at 2:35 am
अरे भाई ये मंगल कौन हैं जो कि यह बता रहे हैं कि नक्सली इस राज्य के नागरिक नहीं हैं और वे रूल आफ दि लॉ के दायरे से बाहर पडते हैं। इनके कमेंट से तो यही लगता है कि ये पुलिस को अदालत का काम भी सौंपने के पक्ष में हैं।
यशवंत जी, आपसे गुजारिश है कि नक्सली शब्द का अर्थ तनिक हमें समझाय दो हम बहुत कन्फ्यूज हो गया हूं।
kavi kumar
February 10, 2010 at 11:55 am
Plice ka yah kaarnaama to loktantra ko dubaane ki koshish hai..
v s chaturvedi
February 14, 2010 at 3:49 pm
we oppose police action.