जाते-जाते अमरउजालाइटों को रुला गए शशि : भावुक विदाई संदेश की हर ओर चर्चा : शशि शेखर अमर उजाला से गए लेकिन अपने साथियों को रुलाकर। उन्होंने जो आखिरी लिखित संदेश सभी के लिए भेजा है, उसे पढ़कर अमर उजाला के कई वरिष्ठ और जूनियर रो पड़े। उनके साथ काम करने और उनके करीबी लोगों ने तो विदा संदेश की सभी पंक्तियों को रट-सा लिया है। बेबाक बोल बोलने वाले शशि शेखर का विदा संदेश भी पूरी बेबाकी लिए हुए है। अमर उजाला के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने भड़ास4मीडिया के पास शशि शेखर का विदा संदेश प्रेषित किया है। यह संदेश हिंदी मीडिया के एक ऐसे शो मैन का संदेश है जो देखते ही देखते देश का सबसे चर्चित मीडिया मैन बन बैठा। संदेश के आखिर में शशि शेखर ने लिखा है- उम्मीद है, फिर मिलेंगे, शो अभी जारी है…
चलिए, शशि शेखर का अमरउजालाइटों के नाम लिखा अंतिम विदा संदेश पढ़ते हैं-
अब तुमसे रुखसत होता हूं
एक वरिष्ठ साथी ने एसएमएस भेजा है- ‘किसी चराग का कोई मकां नहीं होता, जहां रहेगा वहीं रोशनी लुटाएगा… आपको नई पारी की अग्रिम शुभकामनाएं…. हर पल मिस करेंगे… सादर।’ यह अकेला एसएमएस नहीं है। जिस दिन से मेरे जाने की खबर उजागर हुई है, उस दिन से सैकड़ों साथियों के फोन, ई-मेल और एसएमएस मुझे रुलाते रहे हैं। कभी सोचा भी नहीं था कि 24 घंटे काम में मशगूल रहने के बावजूद स्नेह के तंतु इतने मजबूत हो जाएंगे कि सब कुछ तरल और धुंधला नजर आने लगेगा। इसलिए जाते समय कृतज्ञता के कहीं गहरे धंसे लंगर में खुद को बंधा हुआ महसूस कर रहा हूं। जहां रहूंगा, जैसे भी रहूंगा, स्नेह की यह डोर मेरे चारों ओर लिपटी रहेगी। और एहसास दिलाएगी कि ईमानदारी का जवाब ईमानदारी है, भावना का जवाब भावना है, यह डोर इसकी गवाह है।
आंधी-पानी के सात साल जाने कैसे गुजर गए। मैंने अपने बच्चों को बड़ा होते हुए नहीं देखा, पर अमर उजाला को बढ़ते देखता रहा। साथियों को आगे बढ़ता देखता रहा। दिन, तारीख और साल ऐसे में कैसे दिखते! कृतज्ञ हूं कि मुझे आप जैसे सहयोगी मिले, जिन्होंने सुर में सुर मिलाया और एक महागान की सर्जना कर सके।
मैं भाग्यशाली हूं कि इस दौरान मालिकों का भी भरपूर सहारा मिला। आपका सहयोग, उनका सहारा और मेरे सपने, मिल-जुलकर एक मीठी कहानी सी बन गए। उम्मीद है यह मिठास रह जाएगी। इस संदेश के बाद [email protected] को डिलीट कर दिया जाएगा। अब न इस पर कोई संदेश आएगा, न जाएगा। पर यह अफसाना अधूरा रह जाएगा, अगर मैं अतुल माहेश्वरी जी की चर्चा न करूं। दुष्यंत ने कभी कमलेश्वर के लिए कहा था, आज मैं उसी शेर को समर्पित कर रहा हूं- ‘मैं हाथ में अंगारे लिए सोच रहा था, कोई मुझे इसकी तासीर बताए।’
उम्मीद है, फिर मिलेंगे, शो अभी जारी है….
आपका
शशि शेखर