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सेंध नहीं लगाएंगे, नए पाठक बनाएंगे : श्रवण गर्ग

[caption id="attachment_17383" align="alignleft" width="85"]श्रवण गर्गश्रवण गर्ग[/caption]बिहार-झारखंड में नए अखबारों के लिए काफी स्पेस : कई तरह के दबावों के बावजूद पत्रकारिता अभी बची हुई है : भास्कर समूह के ग्रुप एडिटर श्रवण गर्ग ने पिछले दिनों ‘मीडियागुरु’ संस्‍थान के नोएडा सेक्‍टर-5 स्थित कार्यालय में युवा पत्रकारों के साथ अनौपचारिक मुलाकात की और कई मुद्दों पर चर्चा की.

श्रवण गर्ग

श्रवण गर्ग

श्रवण गर्ग

बिहार-झारखंड में नए अखबारों के लिए काफी स्पेस : कई तरह के दबावों के बावजूद पत्रकारिता अभी बची हुई है : भास्कर समूह के ग्रुप एडिटर श्रवण गर्ग ने पिछले दिनों ‘मीडियागुरु’ संस्‍थान के नोएडा सेक्‍टर-5 स्थित कार्यालय में युवा पत्रकारों के साथ अनौपचारिक मुलाकात की और कई मुद्दों पर चर्चा की.

इस क्रम में उन्‍होंने प्रिंट मीडिया में ‘पेड न्‍यूज’, पत्रकारीय मूल्‍यों, अखबारों की प्रसार संख्‍या और वर्तमान पत्रकारिता की स्थिति सहित कई मुद्दों पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि आज बाजार हमारी जिंदगी पर पूरी तरह हावी हो चुका है. पत्रकारिता भी बाजार के दबावों से अछूती नहीं है, लेकिन इसके बावजूद वास्‍तविक पत्रकारिता न खत्‍म हुई है, न खत्‍म होगी.’

पेड न्‍यूज के मसले पर उन्‍होंने कहा कि कुछ लोग ही इस तरह के काम करते हैं और कुछ लोगों की वजह से पूरी बिरादरी पर उंगली उठाना उचित नहीं है. उन्‍होंने यह भी कहा कि इस संबंध में केवल अखबारों को कटघरे में खड़ा करना सही नहीं है, अगर हम समाचार चैनलों के कंटेट का गहराई से विश्‍लेषण करें तो पाएंगे कि काफी हद तक कई खबरों से किसी न किसी समूह को लाभ पहुंचता है.

पत्रकारीय निष्‍ठा के बारे में बात करते हुए गर्ग ने कहा कि समाज के अन्‍य क्षेत्रों की तरह पत्रकारीय मूल्‍यों का भी पहले की अपेक्षा का क्षरण हुआ है. लेकिन, अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो पूरी निष्‍ठा के साथ पत्रकारिता कर रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि आजादी के पहले पत्रकारिता पूरी तरह से निष्‍ठा और मूल्‍यों पर आधारित थी, क्‍योंकि उस समय आजादी हासिल करने का एक महती लक्ष्‍य सबके सामने था.

इस सवाल पर कि क्‍या इंटरनेट और दूसरे तकनीकी माध्‍यमों के आ जाने से अखबारों की सेहत पर असर पड़ा है, क्‍या इससे अखबारों के खत्‍म हो जाने का खतरा पैदा हो गया है, उन्‍होंने कहा, ‘मुझे तो ऐसा नहीं लगता है. हमारे समाज की जो मानसिकता है, उसे देखते हुए अखबारों की जरूरत बनी रहेगी.’ उन्‍होंने कहा कि कुल मिलाकर अखबारों का प्रसार संख्‍या में वृद्धि ही हुई है.

गर्ग ने दैनिक भास्‍कर के संस्‍करण बिहार और झारखंड में लॉन्‍च किए जाने के संबंध में भी चर्चा की. उन्‍होंने कहा कि दोनों राज्‍यों की अर्थव्‍यवस्‍था का विकास हो रहा है और ऐसे में वहां नए अखबारों के लिए काफी ‘स्‍पेस’ है. उन्‍होंने कहा कि भास्‍कर समूह दोनों राज्‍यों में पहले से चल रहे अखबारों की पाठक संख्‍या में सेंध लगाने के बजाए अपने लिए नया पाठक वर्ग पैदा करेगा.

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0 Comments

  1. ROCKY RANJAN PATNA

    May 5, 2010 at 2:38 pm

    THIS IS GOOD IDEA ?

  2. neeraj kumar jha

    May 5, 2010 at 3:09 pm

    bilkul sahi , aage aane ka yah matlab katai nahi hota ki kisi ko gira kar age bhaga jay. apka akhbar khuk chal parega . jo bhi ho bihar ek akhbar friendly state hai. jise padhne nahi ata wah dusre se padhba kar akhbar kikhabre janta hai

  3. avinash jha

    May 7, 2010 at 2:00 am

    bihar pathko ke liye hi jana jata hai..sabse jyada patrika v paper kikhapat bhi hoti hai…so keep it up yadi aapne kuch achha diya to bihar ka pathak aapko dil me jagah dega….best wishes

  4. sapan yagyawalkya

    May 7, 2010 at 4:44 am

    अख़बारों की प्रसार संख्या में लगातार वृद्धि अख़बारों के भविष्य सम्बन्धी सभी सवालों का तथ्यात्मक जबाब है. सपन याज्ञवल्क्य ,बरेली (म.प्र.)

  5. gurudutt tiwari

    May 7, 2010 at 10:40 am

    neeraj jee bilkul sahi kah rahe hain

  6. sonu

    May 7, 2010 at 12:04 pm

    सही कहा कि अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो पूरी निष्‍ठा से पत्रकारिता करना चाहते हैं, लेकिन क्‍या ऐसे लोगों के लिए उनकी निष्‍ठा के साथ बडे अखबारों में जगह है ?

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