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आयोजन

श्रवण गर्ग और वैदिक बनेंगे आंदोलनकारी!

जनगणना में जाति जोड़ने से कई वरिष्ठ पत्रकार खफा हैं. ये लोग अपने विरोध को सार्वजनिक करने जा रहे हैं. श्रवण गर्ग और वेद प्रताप वैदिक जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने निवेदन किया है कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रबुद्ध जन आज शाम छह बजे 13, बाराखंबा रोड पर (टाल्सटाय रोड के कोने पर, माडर्न स्कूल के सामने) मिलें. यहां प्रबुद्धजनों की एक संगोष्ठी आयोजित की गई है.

<p style="text-align: justify;">जनगणना में जाति जोड़ने से कई वरिष्ठ पत्रकार खफा हैं. ये लोग अपने विरोध को सार्वजनिक करने जा रहे हैं. श्रवण गर्ग और वेद प्रताप वैदिक जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने निवेदन किया है कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रबुद्ध जन आज शाम छह बजे 13, बाराखंबा रोड पर (टाल्सटाय रोड के कोने पर, माडर्न स्कूल के सामने) मिलें. यहां प्रबुद्धजनों की एक संगोष्ठी आयोजित की गई है.</p> <p>

जनगणना में जाति जोड़ने से कई वरिष्ठ पत्रकार खफा हैं. ये लोग अपने विरोध को सार्वजनिक करने जा रहे हैं. श्रवण गर्ग और वेद प्रताप वैदिक जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने निवेदन किया है कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रबुद्ध जन आज शाम छह बजे 13, बाराखंबा रोड पर (टाल्सटाय रोड के कोने पर, माडर्न स्कूल के सामने) मिलें. यहां प्रबुद्धजनों की एक संगोष्ठी आयोजित की गई है.

इन वरिष्ठ पत्रकारों की ओर से भेजे गए न्योते में कहा गया है कि इस गोष्ठी का लक्ष्य है 2011 की जनगणना में जाति को जोड़ने का विरोध करना. इस संगोष्ठी में एक देश-व्यापी आंदोलन की योजना बनाई जाएगी. निवेदकों में श्रवण गर्ग और वेद प्रताप वैदिक के अलावा पूर्व मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, मधोक फाउंडेशन की निदेशक अलका मधोक, पूर्व राजदूत जेसी शर्मा, पूर्व लोकसभा महासचिव डा. सुभाष कश्यप, प्रसिद्ध समाजसेवी वीरेश प्रताप चौधरी और फिल्म निर्देशक डा. लवलीन थडानी शामिल हैं. कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर अगर कोई जिज्ञासा है तो उसके बारे में 09891711947 पर रिंग कर सकते हैं.

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0 Comments

  1. inder yadav

    May 29, 2010 at 2:52 pm

    best of luck garg ji……….pure media jagat ko esa krna chahiye

  2. कमल शर्मा

    May 15, 2010 at 7:18 am

    सभ्‍य और आधुनिक समाज का निर्माण जाति आधार पर करना चाहती है सरकार। सरकार में बैठे कई मंत्री बेहद पढ़े लिखे हैं लेकिन लगता है अक्‍ल नहीं है।

  3. Narender Vats, Rewari, Haryana.

    May 15, 2010 at 8:18 am

    bhut accha paryas hai ye. garg or vaidik jee ko badhai. log judte chlenge or karwa ban jayega.

  4. Prakash Dube

    May 15, 2010 at 9:11 am

    कभी इन पत्रकारों ने पत्रकारिता में हो रही दलाली के खिलाफ एकजुट होकर बैठक नहीं है। मीडिया से जुड़ा गंभीर मुद्दा अभी उछला है- बरखा दत्त और वीर सिंघवी का। इन दलाल पत्रकारों के खिलाफ बैठक क्यों नहीं करते हैं? चले ही जाति आधारित जनगणना के खिलाफ बैठक करनें?
    सार ब्राह्मण डर गए हैं। ब्राह्मणों के बनाये चार वर्ण में ओबीसी वैश्य कैटेगरी में नहीं आता। ये क्षत्रिय और ब्रöम नहीं है। जिनकी जाति है वे शुद्ध है। अनुसूचित जाति जनजाति की जनगणाना हो रही रही है तो ओबीसी की क्यों नहीं। मैं तो कहता हूं की सवर्णों की भी जनगणना होनी चाहिए।
    भईया जिसकी जितनी भागीदारी, व्यवस्था में उसकी उतनी हिस्सेदारी
    बहुत चुतिये बना लिये इन पोंगे पंडितों ने। पत्रकारिता छोड़ बैठक करने चले हैं। पहले अपना घर सुधारों। जाति आधारित जनगणना का निणर्य जनप्रतिनिधियों का है, तुम्हारा नहीं।।

  5. sagarbandhu

    May 15, 2010 at 9:35 am

    sarahniy kadam hai. aap log apane maksad me jarur kamyab honge.

  6. Neeraj Upadhyay

    May 15, 2010 at 9:47 am

    जाती पर आधारित जनगणना तो 2001 में हो जानी चाहिए थी. लेकिन चलो देर आए, दुरुस्त आए. मै तो यह कहता हुं के केंद्र में जाती के नामपर मंत्रालय भी हो और जाती की लोकसंख्या के मुताबिक बजट देना चाहिए. ऐसा करने के अलावा नही होगा पिछडों का विकास…बस हो गया… श्रवण गर्ग, वेद प्रताप वैदिक बकवास बंद करो….

  7. rahuladityarai

    May 15, 2010 at 11:58 am

    jangadna me hi nahin har jagah jati ka ullekh band hona chaghiye

  8. Ishwar Dhamu

    May 15, 2010 at 1:35 pm

    Jatiya Jangananaa ki baat karanewalon ne kya yeh bhi socha hai k Jangananaa mai jahan S/C aur S/T ki baat ki jati hai vahan B/C ko puchhanewala koi nahi hain. Apane aapko B/C ke humdard kahanewale netaon ko to shayad isaka gyan tak nahi hai. Kya koi is bare dhyan dega ?

  9. anil pande

    May 15, 2010 at 7:56 pm

    प्रचार भूख से बुरी तरह पीड़ित हैं वैदिक जी.
    अब श्रवण गर्ग को भी फ़ांस लिया है, ताकि भास्कर मे दुकान चलती रहे.
    अरे भाई, कुछ काम नेताओं के लिए भी छोड़ दो.
    सिर्फ पत्रकारिता ही क्यों नही करते आपलोग?

  10. Prem Chand Gandhi

    May 16, 2010 at 8:24 am

    श्रवण गर्ग साहब वो दिन कैसे भूल गए, जब राजस्‍थान में भास्‍कर शुरू हुआ था तो आपके नेतृत्‍व में ही राजस्‍थान की पत्रकारिता में ऐतिहासिक बदलाव के तहत ‘शहर के समाज’ शृंखला चली थी और तमाम जाति/समाजों के बरे में लगातार लेख प्रकाशित हुए थे। भास्‍कर के इस एक कदम से राजस्‍थान में जातिवाद को कितना बल मिला, यह सब जानते हैं। अगर आप अपने अखबार में वैवाहिक विज्ञापन बिना जाति/समाज के छापना आरंभ कर दें तो हम आपके साथ हो सकते हैं। आपकी देखदेखी तमाम अखबार अब जातिवादी संगठनों की खबरें प्रमुखता से छापने लगे हैं और सार्थक कार्यक्रमों की खबरें रद्दी की टोकरी में चली जाती हैं। … वेदप्रताप वैदिक को दिल्‍ली में ही कोई सीरियसली नहीं लेता, आपने उन्‍हें राष्‍ट्रीय बना दिया। वो पत्रकारिता के राष्‍ट्रीय शेखचिल्‍ली हैं। किसके चक्‍कर में आ गए आप। वैसे जाति आधारित जनगणना अब हो ही जानी चाहिए, पता तो चले कि सवर्ण आरक्षण की मांग कितनी जायज है। समानता की बात करने वालों को यह जान ही लेना चाहिए कि भारतवर्ष की आबादी में किसका कितना भाग है। राजस्‍थान में एक सहरिया जनजाति है, जो अब समाप्ति के कगार पर है, उसकी आबादी कुछ हजार रह गई है। इस जनगणना से पता चलेगा कि वास्‍तव में कितने सहरिया बचे हैं। … एक बात समझ में आ रही है कि इसके खिलाफ ज्‍यादातर सवर्ण्‍ ही हैं, जिनकी आबादी पहले से कम ही हुई है, और उन्‍हें डर है कि असलियत सामने आई तो सारा शीराजा बिखर जाएगा। … एक सर्वेक्षण में सामने आया था कि पत्रकारिता की मुख्‍यधारा में सवर्णों का कब्‍जा है, वहां आदिवासी, दलित और अल्‍पसंख्‍यक नाममात्र हैं। उन्‍हें लाइये ना, आंदोलन करना है तो बहुत सी बुराइयां हैं, उनके खिलाफ खड़े होइये। आप जैसे प्रखर चिंतक पत्रकार का इस मुद्दे पर इस तरह समाजविरोध करना तर्कसंगत नहीं लगता। पता नहीं क्‍यों धूमिल की पंक्तियां याद आ रही हैं। जाति के बीज हमारे भीतर इतने गहरे हैं कि हर भारतीय कब जातिवादी हो जाएगा पता ही नहीं चलता। धूमिल ने लिखा था, नहीं – अपना कोई हमदर्द
    यहां नहीं
    मैं ने हरेक को आवाज दी है
    मैं ने हरेक का दरवाजा खटखटाया है
    मगर बेकार
    मैं ने जिसकी पूंछ उठाई है
    उसको ही मादा पाया है

  11. bhaskar

    May 16, 2010 at 9:51 am

    billy huz ko chali…….

  12. ramesh singh

    May 17, 2010 at 10:36 am

    koi kuch kahai..mai to apni jati bhartiya likhoonga….

  13. Dr. Rakesh

    May 17, 2010 at 5:03 pm

    जाति आधारित जनगणना में क्या बुराई है। जाति हिंदुस्तान का सच है, लोहिया ने कहा था। इस सच को हमें भी स्वीकार कर लेना चाहिए। जरूरत है कि जाति को जोड़ने की, परस्पर सद्भाव बढाने और बनाने की। तो क्या दिक्कत है।

    रही बात यह कि ब्राह्मण और क्षत्रिय जाति आधारित जनगणना से डर गये हैं तो यह सब फिजूल की बात है। सिंह है तो सिंह ही रहेगा, उसे किसी गणना वगैरा से क्या डरना। ना काहू को भय देत ना भय मानत आन, यही सच्चे सिंह का लक्षण है। अपना सर्वस्व त्यागकर नयी सदा सृजन करते रहना, नवोन्मेषी विचारों की खोज करना यह ब्राह्मण का कर्म है। नवोन्मेषी विचार को कर्म रूप में परिवर्तित कर सृजन को साकार रूप देना ही हमारे यहां के बनियो और जिन्हें हम कथित तौर पर अति पिछड़ा कह रहे हैं, उनका काम बताया गया है। और इन तीनों के साथ समन्वय पूर्वक सदा प्रत्येक कार्य में सहयोगी की भूमिका निभाने का काम शूद्र का था, यही वेद काल से रीति चली आ रही थी।

    जाने क्यों वैदिक जी परेशान हो रहे हैं। उन्हें सवर्णों के हित की चिंता है। गलत सोचते हैं वे जाति आधारित जनगणना पर। और जो ये सोचते हैं कि जिनकी जितनी जनसंख्या, उनकी उतनी हिस्सेदारी। तो ये लोग भी भ्रम में ना रहें। भारतीय मेधा और उसमें भी खासकर जिन्हें सवर्ण कहकर अनावश्यक रूप से शेष समाज में विभाजन खड़ा किया गया है, उन सवर्णों का इतिहास रहा है कि वे जरूरत पड़ने पर नयी सृष्टि पैदा कर देंगे। ये सरकारी नौकरी और सरकार में भागीदारी तक का मामला नहीं है। ले लो सारी नौकरियां, प्रधानमंत्री से लेकर चपरासी तक के सारे पद, क्या इससे सारे देश की जनसंख्या की सारी आवश्यक्ताएं पूरी हो जाएंगी।

    और काहे की ओबीसी। ओबीसी में कल को ब्राह्मण और क्षत्रिय भी शामिल हो जायेंगे तो कोई क्या करेगा। अरे ये तो हमारे नेताओं के मन की मौज है…कौन सवर्ण और कौन अवर्ण। सब अंग्रेजों का किया धरा आज तक ढो रहे हैं। ये जो पटेल हैं, लोध हैं, गोंड़ हैं, पाल हैं, राजभर हैं, गिनते जाइये ओबीसी की लिस्ट, ये सभी क्षत्रियों में गिने जाते रहे हैं।

    राजनीति समाज को बांटती है। संस्कार और देश-काल-संस्कार समाज को जोड़ता है। आज के भौतिक युग में, टेलेंट के युग में सरकारी नौकरी के मायने बहुत नहीं हैं। इससे किसी भी जाति का कल्याण नहीं होने वाला है। जनगणना में कोई आपत्ति नहीं है, इसे अवश्य करना चाहिए।

    मूल सवाल है कि समाज की उद्यमी भावना को जगाना आज सर्वाधिक जरूरी हो गया है। हर व्यक्ति को उद्यमी बनाना… नहीं तो मुगलों की संख्या कम थी क्या…लालकिला गवाह है…सारी राजनीति धरी रह गयी…मुसलमानों के एक दूसरे वंश ने मुगलिया सल्तनत की खटिया खडी कर दी थी।

    आत्मविश्वास से युक्त समाज कभी किसी का भय नहीं मानता। जंगल का शेर हमेशा शेर ही रहेगा, चाहे जिंदा रहे या फिर मुर्दा। जंगल में रहे या फिर चिड़िया घर में। ये सरकार प्रेरित तंत्र जिसके अन्तर्गत जनगणना हो रही है, आज के चिड़ियाघर के समान है। इसकी एक सीमा है। इसमें कैद रहने के लिए सिंह लालायित क्यों हैं। इसके बाहर भी क्षितिज है। दम होगी तो नया जहां रच देंगे। तुम अपनी जाति की जनगणना के आंकड़े लिये तेरीकी-मेरी की करते रहो….

  14. Anjli ghunavat

    May 18, 2010 at 5:23 am

    [quote][b]खुद बदल नहीं सकते और दूसरों को बदलने की बात करते हैं[/b][/quote]

    इस आन्दोलन में शामिल अधिकतर लोग सवर्ण समाज से हैं. ऊपर जिन लोगों ने टिप्पड़ियाँ लिखी हैं उनकी बात से सहमत हूँ की पत्रकारिता में फ़ैल रही सडन की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. जो लोग आन्दोलन करने की बात कर रहे हैं वे सभी पत्रकार हैं और जहाँ तक मुझे ध्यान है की पत्रकारों को जाती धर्म से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. इसके बावजूद अब पाटकर नेताओं की तरह समाज में जाकर बैठते हैं और राजनीती करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी ये लोग अपनी मानसिकता नहीं बदल पा रहे हैं और दूसरों से मानसिकता बदलने की बात करते हैं.

    [b]अंजली एक नई नवेली रिपोर्टर[/b]

  15. Chandrabhan Singh

    May 20, 2010 at 10:23 am

    Sh. Shravan garg or Vedik ji apni hi biradri ke log hai, Ek achhi muhim ka hame swagat karna chahiye, aalochna nahi.

  16. gautam

    May 21, 2010 at 3:28 pm

    desh chalane wale hi jab jatiyo ke aadhar par aate h. desh ki nitinirdharan bhi jati ke aadhar par hoti h.to. janganna karne me kya burai h.

  17. Rajni Kant Mudgal

    June 10, 2010 at 1:51 pm

    Mere Ek Samajvadi Mitra Hain, Raghubir Kapoor. Jangarna Walon ne jati poochhi. Raghubir ji ne Kaha Samajvadi. Bechara tab to chala gaya lekin agle din unki begum se poochhkar unki jati likj dee.Doosre Mitra Hain Vijay Pratap, Unse jaati poochhi to unhone kaha Pratap likh do, inke ghar me to koi jaatisoochak lagata hi nahin, ab kya karega jangarna adhikari…….Lohiavadi hain dono…..baki phir kabhi..

  18. som sharma bhiwani

    June 23, 2010 at 2:41 pm

    kayo bekar ke topic per bat kar rahe ho
    ye patarkar jo kast ki bat kar rahe hai bhiwani me ek programe me jamkar kast per bat ki thi

  19. neha

    August 16, 2010 at 2:58 pm

    mai ek vigyan ki chatra hu jatiwad me to mera bhi vishwas nahi per jati ke adhar per hone wali janganna ko mudda banakar uthne wala bawal kya sach much itna gehra hai sabse zada ascharya hota hai media dwara uthaye gaye kadmo se. media hume sikke ka ek hi pehlu dikhati hai jise hum sach man baithte hai ap sab bahut vidwan nagrik hai maito sirf yuva pidhi ke vichar aap logo ke samakh prastut karna chhti hu .ap kehte hai ki is prakar ki jangnna bharraatki ekta me badhak hogi,yahan kis ekta ki baat ho rahi hai ap apne dil se puchiye kya bhrat kabhi ek tha jab hamare dwara chuni gayi sarkare dosharopan avam bantware se baaj nahi ati to rajniti to pure bhrat ka pratibimb hai. aur ho sakta hai ki is ganana se wo jatiya jo apne apko alp sankyak samajhithi unhe sochne ka naya nazariya mile is vishay me hum shree prem chand gandhi aur dr rakesh se bilkul sehmet hai.ye sirf hamre vichar hai kripya is vishay me hume ar jankari pradan kare.

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