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पीड़ा तो होती ही है… : सुषमा वर्मा

दिसंबर लास्ट में सुषमा वर्मा छुट्टी पर गईं थीं। 4 जनवरी को काम पर लौटीं तो पर्सनल डिपार्टमेंट से एक बंदा आया और एक लेटर उन्हें थमा गया। सुषमा ने खोलकर देखा तो लेटर में लिखा था कि आपका हिंदुस्तान के साथ हुआ कांट्रैक्ट खत्म किया जा रहा है। सुषमा का दिल धक हो गया। एक पल के लिए वे कुछ भी सोच नहीं पा रहीं थीं। आपको बता दें, सुषमा वर्मा हिंदुस्तान अखबार में पिछले साढ़े तैंतीस साल से हैं। अभी एसोसिएट एडिटर पद पर थीं। एडिट लिखती थीं। वूमेन इशूज पर रिपोर्ट और आर्टिकल लिखती थीं। फीचर एडिटर रही हैं। वैसे तो सुषमा का नाता हिंदुस्तान समूह से साढ़े तैंतीस साल से है क्योंकि उन्होंने इस समूह के साथ अपनी पारी 1976 में शुरू की पर अप्रत्यक्ष तौर पर सुषमा हिंदुस्तान समूह से हिंदुस्तान अखबार के जन्म से जुड़ी हुई हैं। दरअसल, उनके पिता मुकुट बिहारी वर्मा सन 1936 में हिंदुस्तान अखबार के शुरू होने से ही इसके साथ जुड़ गए थे। मुकुट बिहारी वर्मा सन 1942 से 1963 तक इस अखबार के एडिटर रहे। सबसे लंबे समय तक एडिटर रहने का रिकार्ड उन्हीं के नाम है। उन्होंने ही साप्ताहिक हिंदुस्तान की शुरुआत कराई। बाद में बांके बिहारी भटनागर को एडिटर बनवाया। सुषमा बताती हैं कि उनके भाई विनय कुमार जो नवभारत टाइम्स में हुआ करते थे और अब रिटायर हो गए हैं, ने पत्रकारिता में आने के लिए प्रेरित किया। घर का पूरा माहौल ही पत्रकारिता वाला था। सुषमा को उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ ऐसा होगा। एक दिन अचानक उन्हें चुपके से आफिस को हमेशा के लिए छोड़कर निकल जाना होगा, ऐसी कल्पना नहीं की थी। सुषमा से भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने जो बातचीत की वो इस प्रकार है…


<p align="justify">दिसंबर लास्ट में सुषमा वर्मा छुट्टी पर गईं थीं। 4 जनवरी को काम पर लौटीं तो पर्सनल डिपार्टमेंट से एक बंदा आया और एक लेटर उन्हें थमा गया। सुषमा ने खोलकर देखा तो लेटर में लिखा था कि आपका हिंदुस्तान के साथ हुआ कांट्रैक्ट खत्म किया जा रहा है। सुषमा का दिल धक हो गया। एक पल के लिए वे कुछ भी सोच नहीं पा रहीं थीं। आपको बता दें, सुषमा वर्मा हिंदुस्तान अखबार में पिछले साढ़े तैंतीस साल से हैं। अभी एसोसिएट एडिटर पद पर थीं। एडिट लिखती थीं। वूमेन इशूज पर रिपोर्ट और आर्टिकल लिखती थीं। फीचर एडिटर रही हैं। वैसे तो सुषमा का नाता हिंदुस्तान समूह से साढ़े तैंतीस साल से है क्योंकि उन्होंने इस समूह के साथ अपनी पारी 1976 में शुरू की पर अप्रत्यक्ष तौर पर सुषमा हिंदुस्तान समूह से हिंदुस्तान अखबार के जन्म से जुड़ी हुई हैं। दरअसल, उनके पिता मुकुट बिहारी वर्मा सन 1936 में हिंदुस्तान अखबार के शुरू होने से ही इसके साथ जुड़ गए थे। मुकुट बिहारी वर्मा सन 1942 से 1963 तक इस अखबार के एडिटर रहे। सबसे लंबे समय तक एडिटर रहने का रिकार्ड उन्हीं के नाम है। उन्होंने ही साप्ताहिक हिंदुस्तान की शुरुआत कराई। बाद में बांके बिहारी भटनागर को एडिटर बनवाया। सुषमा बताती हैं कि उनके भाई विनय कुमार जो नवभारत टाइम्स में हुआ करते थे और अब रिटायर हो गए हैं, ने पत्रकारिता में आने के लिए प्रेरित किया। घर का पूरा माहौल ही पत्रकारिता वाला था। सुषमा को उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ ऐसा होगा। एक दिन अचानक उन्हें चुपके से आफिस को हमेशा के लिए छोड़कर निकल जाना होगा, ऐसी कल्पना नहीं की थी। सुषमा से भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने जो बातचीत की वो इस प्रकार है...</p><hr width="100%" size="2" />

दिसंबर लास्ट में सुषमा वर्मा छुट्टी पर गईं थीं। 4 जनवरी को काम पर लौटीं तो पर्सनल डिपार्टमेंट से एक बंदा आया और एक लेटर उन्हें थमा गया। सुषमा ने खोलकर देखा तो लेटर में लिखा था कि आपका हिंदुस्तान के साथ हुआ कांट्रैक्ट खत्म किया जा रहा है। सुषमा का दिल धक हो गया। एक पल के लिए वे कुछ भी सोच नहीं पा रहीं थीं। आपको बता दें, सुषमा वर्मा हिंदुस्तान अखबार में पिछले साढ़े तैंतीस साल से हैं। अभी एसोसिएट एडिटर पद पर थीं। एडिट लिखती थीं। वूमेन इशूज पर रिपोर्ट और आर्टिकल लिखती थीं। फीचर एडिटर रही हैं। वैसे तो सुषमा का नाता हिंदुस्तान समूह से साढ़े तैंतीस साल से है क्योंकि उन्होंने इस समूह के साथ अपनी पारी 1976 में शुरू की पर अप्रत्यक्ष तौर पर सुषमा हिंदुस्तान समूह से हिंदुस्तान अखबार के जन्म से जुड़ी हुई हैं। दरअसल, उनके पिता मुकुट बिहारी वर्मा सन 1936 में हिंदुस्तान अखबार के शुरू होने से ही इसके साथ जुड़ गए थे। मुकुट बिहारी वर्मा सन 1942 से 1963 तक इस अखबार के एडिटर रहे। सबसे लंबे समय तक एडिटर रहने का रिकार्ड उन्हीं के नाम है। उन्होंने ही साप्ताहिक हिंदुस्तान की शुरुआत कराई। बाद में बांके बिहारी भटनागर को एडिटर बनवाया। सुषमा बताती हैं कि उनके भाई विनय कुमार जो नवभारत टाइम्स में हुआ करते थे और अब रिटायर हो गए हैं, ने पत्रकारिता में आने के लिए प्रेरित किया। घर का पूरा माहौल ही पत्रकारिता वाला था। सुषमा को उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ ऐसा होगा। एक दिन अचानक उन्हें चुपके से आफिस को हमेशा के लिए छोड़कर निकल जाना होगा, ऐसी कल्पना नहीं की थी। सुषमा से भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने जो बातचीत की वो इस प्रकार है…


-सुषमा जी, क्या आप रिटायर हो गई हैं?

-हां.

-कब हुईं?

-चार तारीख को.

-आपकी विदाई पार्टी हुई?

-नहीं. अब वो परंपरा ही नहीं रही. काफी समय से ऐसे ही चल रहा है. परंपरा ही खत्म कर दी इन लोगों ने. अखबार में रिटायर होने पर समारोह की परंपरा थी. वो खत्म हो गई है.

-आप को बुरा नहीं लगा, फील नहीं हुआ कि आप यूं ही एक दिन रिटायर होकर घर चली आईं?

-क्या फील करेंगे… पहले डिपार्टमेंट के लोग इकट्ठे होते थे. प्रेस, मैनेजमेंट, एक्जीक्यूटिव, प्रेसीडेंट सब आते थे. विदाई होती थी. मैनेजमेंट गिफ्ट देता था. साथी लोग मिलकर देते थे. अब सब खत्म हो रहा है तो क्या फील होगा…

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-आपको जब कांट्रैक्ट खत्म होने की चिट्ठी मिली तो आप शशि शेखर से मिलीं या शशि शेखर आपसे मिलने आए?

-शशि शेखर से मुलाकात नहीं हुई. मैं दिसंबर लास्ट में छुट्टी पर गई थी. 4 जनवरी को काम पर आई तो उसी दिन चिट्ठी मिल गई.

-चिट्ठी में क्या लिखा था?

-लिखा था कि कांट्रैक्ट खत्म हो गया है आपका.

-क्या आप कांट्रैक्ट पर थीं?

-हां, 2005 में हम लोग कांट्रैक्ट पर कर दिए गए थे.

-तो कांट्रैक्ट वाकई खत्म हुआ या मैनेजमेंट ने अपनी तरफ से खत्म कर दिया?

-कांट्रैक्ट तो मेरा 2011 तक था. मैनेजमेंट ने खत्म कर दिया.

-मैनेजमेंट ने अपनी तरफ से खत्म किया तो आपको क्या नोटिस पीरिडय की एडवांस सेलरी वगैरह दी?

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-अभी तक तो कुछ नहीं दिया है.

-आपकी कितनी उम्र है?

-58 साल.

-तो कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको 58 साल होने के चलते रिटायर किया गया हो?

-रिटायर तो तब करते ना जब मैं परमानेंट होती. कांट्रैक्ट पर थी और कांट्रैक्ट 2011 तक था. 58 साल में रिटायर करने की बात भी मान लें तो उन्हें हम लोगों को इनफार्म तो करना चाहिए था कि रिटायर होने या कांट्रैक्ट स्वतः खत्म होने की उम्र 58 साल कर दी गई है. कोई मेल, सरकुलर, नोटिस नहीं. दूसरी बात, कांट्रैक्ट पर तो किसी को 70 साल की उम्र तक भी रखा जा सकता है. कांट्रैक्ट में उम्र का बंधन नहीं होता.

-आप दुखी हैं?

-पीड़ा तो होती ही है… नेचुरली… किसी को भी बुरा लगेगा… इतने समय से जुड़े रहे… कोई मतलब नहीं है… कोई लायल्टी नहीं है… पहले इनफार्म भी नहीं कर सकते कि ऐसा करने जा रहे हैं… दुख तो होगा ही… लेकिन… जो हो गया सो हो गया… अखबार में जब सब परंपरा ही खत्म हो रही है तो मेरे दुखी होने से क्या फरक पड़ सकता है…

-सुषमा जी, अखबार से मुक्ति के बाद के जीवन के लिए ढेरों शुभकामनाएं. कभी आपसे मिलने आएंगे.

-बिलकुल,  आपका स्वागत है. थैंक्यू जी.

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0 Comments

  1. Sam Kumar

    January 19, 2010 at 4:36 pm

    Vakai aab paramparyen badal rahi hain. Har publication wale jaroorat se jyada professional ho gaye hain. Jab publication wale loyal nahi hain to who employee se loyalty kyon expect karte hain.

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