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‘खुशकिस्मत हूं, विष्णुजी के फरसे से बचा’

आक्षेप लगाने वालों को ईश्वर क्षमा करें : भड़ास4मीडिया पर पढ़ा, जागरण, नोएडा के किसी साथी ने लिखा कि विष्णु त्रिपाठी बहुत अपमानित करते हैं। गालियां देते हैं। राजपूत और बिहारी को साफ करने का अभियान चला रखे हैं। मैं भाई यशवंत को ये तो नहीं कहूंगा कि किसी का लिखा न छापें। आखिर जब पत्रकारों की बात इस मीडिया की वेबसाइट में नहीं जाएगी तो और कहां जाएगी। हां, एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि आक्षेप लगाने वाले इस वेबसाइट को कुंठा व्यक्त करने का जरिया मात्र न समझें। विष्णु जी को कोई एक दशक से मैं जानता हूं। साथ काम कभी नहीं किया। लखनऊ में वो जागरण में थे और मैं अंगेजी दैनिक पॉयनियर में। बाद में मैं इंडियन एक्सप्रेस चला गया और वो नोएडा शिफ्ट हो गए। कई सालों से मेल मुलाकात नहीं है। भड़ास4मीडिया पर जब पढ़ा कि विष्णु जी अपमानित करते हैं, कमरे में बुला गालियां देते हैं तो दिमाग पर बहुत जोर डाला कि कब सुनी उनके मुंह से गाली। खासकर किसी सहकर्मी के लिए। याद नहीं आया। कुछेक उनसे भी पूछा जो उनके साथ काम कर चुके थे।

आक्षेप लगाने वालों को ईश्वर क्षमा करें : भड़ास4मीडिया पर पढ़ा, जागरण, नोएडा के किसी साथी ने लिखा कि विष्णु त्रिपाठी बहुत अपमानित करते हैं। गालियां देते हैं। राजपूत और बिहारी को साफ करने का अभियान चला रखे हैं। मैं भाई यशवंत को ये तो नहीं कहूंगा कि किसी का लिखा न छापें। आखिर जब पत्रकारों की बात इस मीडिया की वेबसाइट में नहीं जाएगी तो और कहां जाएगी। हां, एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि आक्षेप लगाने वाले इस वेबसाइट को कुंठा व्यक्त करने का जरिया मात्र न समझें। विष्णु जी को कोई एक दशक से मैं जानता हूं। साथ काम कभी नहीं किया। लखनऊ में वो जागरण में थे और मैं अंगेजी दैनिक पॉयनियर में। बाद में मैं इंडियन एक्सप्रेस चला गया और वो नोएडा शिफ्ट हो गए। कई सालों से मेल मुलाकात नहीं है। भड़ास4मीडिया पर जब पढ़ा कि विष्णु जी अपमानित करते हैं, कमरे में बुला गालियां देते हैं तो दिमाग पर बहुत जोर डाला कि कब सुनी उनके मुंह से गाली। खासकर किसी सहकर्मी के लिए। याद नहीं आया। कुछेक उनसे भी पूछा जो उनके साथ काम कर चुके थे।

पर किसी ने उन्हें कम से कम किसी सहकर्मी को गरियाते तो नहीं सुना। समाजकार्य में मैंने परास्नातक किया है। वहां मानव व्यवहार भी पढ़ाया जाता है। पढ़ा है कि एक उम्र के बाद मानव नई आदतें डाल नहीं पाता है। विष्णु जी ने अगर डाल ली है तो वो शोध के विषय हो गए हैं। जब मैं भड़ास4मीडिया पर उनके बारे में पढ़ रहा था तो ठीक बगल में एक सज्जन बैठे थे, जिनसे मेरा कुल जमा दो दिन का परिचय है। उन्होंने भी दांतों तले उंगलियां दबा ली, इस तरह का आक्षेप सुनकर। वो अभी हाल में ही कुछ दिन विष्णु जी के साथ नोएडा में काम कर चुके हैं। विष्णु जी कायर्स्थल पर अनुशासित रहते हैं और भाषा में बहुत ही मर्यादित। यह मैंने स्वयं पाया है। हां, एक बात जरूर है कि नकारा और बेकार लोगों को बर्दाश्त करने की सहनशीलता उनमें नहीं है। मैं चाहूंगा भी नहीं कि उनमें यह गुण आ जाए। आक्षेप में राजपूतों का परशुराम की तरह संहार करने की बात कही गयी है। मैं खुशकिस्मत रहा और मेरे एक और राजपूत साथी भी, जो उनसे हजारों बार मिलते रहे पर उनके फरसे का शिकार होने से बच गए। तरस आ रहा है इस तरह के इल्जाम लगाने वाले पर। और रही बात बिहारियों की तो विष्णु जी दशकों उनके साथ काम करते रहे, काम लेते रहे पर कभी ऐसी बात सामने न आयी।

जो दिल में आया वही लिख रहा हूं। आक्षेप लगाने वाले से किसी तरह का दुराग्रह नहीं है। ईश्वर उन्हें क्षमा करे।

आपका

सिद्धार्थ कलहंस

प्रिंसिपल करेस्पांडेंट, बिजनेस स्टैंडर्ड

लखनऊ

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