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एंकर जो बेचती थी खबर, अब बेच रही है सेब

अथश्री मीडिया कथित मंदी कथा : प्रथमोध्याय : इस बार सब्जी मंडी में नजारा बदला-बदला सा था। जब मैं मंडी पहुंचने वाला ही था कि कानों में दूर से आवाज पड़ने लगी – ब्रेकिंग न्यूज… कश्मीर का ताजा सेब 30 रुपये किलो। पहले तो मुझे लगा कि यह आवाज आसपास के किसी घर में चल रहे किसी टेलीविजन से आ रही होगी। यह आवाज सुनते ही एक बार फिर मुझे खबरिया चैनलों पर कोफ्त होने लगी। इन चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज का क्या हाल कर दिया है। चैनलों के लिये या तो ब्रेकिंग न्यूज का भयानक अकाल पड़ गया है या चैनल वालों का दिमाग पहले से भी ज्यादा खराब हो गया है। किसी भी चीज की हद होती है। मैं ऐसा कुछ सोच ही रहा था कि…

अथश्री मीडिया कथित मंदी कथा : प्रथमोध्याय : इस बार सब्जी मंडी में नजारा बदला-बदला सा था। जब मैं मंडी पहुंचने वाला ही था कि कानों में दूर से आवाज पड़ने लगी – ब्रेकिंग न्यूज… कश्मीर का ताजा सेब 30 रुपये किलो। पहले तो मुझे लगा कि यह आवाज आसपास के किसी घर में चल रहे किसी टेलीविजन से आ रही होगी। यह आवाज सुनते ही एक बार फिर मुझे खबरिया चैनलों पर कोफ्त होने लगी। इन चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज का क्या हाल कर दिया है। चैनलों के लिये या तो ब्रेकिंग न्यूज का भयानक अकाल पड़ गया है या चैनल वालों का दिमाग पहले से भी ज्यादा खराब हो गया है। किसी भी चीज की हद होती है। मैं ऐसा कुछ सोच ही रहा था कि…

अगले ही पल मुझे लगा कि खबरिया चैनलों पर दिन रात चलने वाले बकवास ब्रेकिंग न्यूज से तो यह ब्रेकिंग न्यूज लाख गुना अच्छा है। कम से ऐसे न्यूज से दर्शकों को दाल-रोटी का भाव तो पता चल जाता है। अगर वाकई ऐसा है तो यह परिवर्तन स्वागतयोग्य है। कम से कम टेलीविजन चैनल आम लोगों के जीवन और उनकी जरूरतों से जुड़ तो रहे हैं। कानों में आवाज अब भी पड़ रही थी, बल्कि आवाज और अधिक साफ होती जा रही थी- ताजा सेब, कश्मीर से लाइव सप्लाई। खबरिया चैनलों में आये इस बदलाव के लिये मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो अब बेसिर-पैर और उटपटांग ब्रेकिंग न्यूज सुनने से मुक्ति मिलेगी और अब काम लायक ब्रेकिंग न्यूज देखने-सुनने को मिलेंगे जिनका जीवन में कहीं न कहीं और किसी न किसी हद तक उपयोग हो सकेगा। ऐसा कुछ सोचता हुआ आगे बढ़ रहा था, लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर जो दृश्य मेरे सामने उपस्थित था उसे देखकर मैं बिल्कुल चौंक गया। संतुलित एवं बेहतरीन खबरें देने का दावा करने वाले एक खबरिया चैनल की नामी एंकर उस सब्जी मंडी में ताजे सेब से भरे एक ठेले के पीछे खड़ी होकर चिल्ला रही थी – कश्मीर का असली सेब 30 रुपये किलो।

आखिर माजरा क्या है। या तो मैं पागल हो गया हूं या चैनल के लोग पागल हो गये। चैनल वालों को यह क्या नया सूझा है। अब सब्जी मंडी को ही स्टूडियो बना लिया है क्या? हे भगवान, आखिर चैनल वालों को हुआ क्या है!! अब तक सेलिब्रिटीज की पार्टियों, डांस क्लबों, जिमखानों, राखी सावंत के ड्राइंगरूम, मल्लिका सेरावत के ड्रेसिंग रूम, किसी और हिरोइन के बेडरूम, फाइव स्टार होटल के बाथरूम और सलमान खान के घर के पिछवाड़े से सीधा प्रसारण करने वाले इन चैनलों के दिन इतने खराब हो गये कि अब लाइव प्रसारण के लिये सब्जी मंडी को चुनना पड़ा। लेकिन मुझे तो यह परिवर्तन भी स्वागत योग्य लगा। कम से कम ये चैनल वाले अब आम लोगों की जिंदगी के बीच तो आये। हालांकि मुझे चैनल वालों की सोच पर पूरा भरोसा था और मुझे विश्वास था कि वे इतनी जल्दी बदलने वाले नहीं हैं। जरूर कुछ गड़बड़ है। मैंने चारों तरफ नजर दौड़ायी लेकिन मुझे आसपास न तो कोई ओवी वैन दिखी और न ही कैमरे और न ही कैमरामैन दिखे।

थोड़ा और पास पहुंचने पर देखा कि कि भारत के सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करने वाले उस चैनल की नामी एंकर ब्रेकिंग न्यूज पढ़ नहीं रही थी बल्कि वह ब्रेकिंग न्यूज पढ़ने की अपनी पुरानी स्टाइल के साथ ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उसकी तरफ आएं और ज्यादा से ज्यादा सेब की ब्रिकी हो। लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि खबर बेचने वाली एंकर अब सेब क्यों बेच रही है। लेकिन यह सोचकर खुशी हुयी कि बकवास खबरों के बजाय वह अब कुछ अच्छी चीजें तो बेच रही है। उस एंकर से थोड़ा परिचय था, सो उसने मुझे पहचान लिया और वैसे भी मंदी के इस दौर में ग्राहक को कौन नहीं पहचानता है।

मैंने पूछ लिया, ”ये सब माजरा क्या है। आखिर आप सेब क्यों बेच रहीं हैं। कोई रियलिटी शो का रिहर्सल तो नहीं कर रही हैं?”

उस समय वह एंकर एक ग्राहक के लिये दो किलो सेब तौल रही थी। सेब तौलते हुये उसने कहा, ”अब नौकरी कहां रही कि कोई रियलिटी शो करूंगी। अब तो सेब बेच कर ही गुजारा करने को सोचा है। आप भी सेब घर ले जाइये। कश्मीर का सेब है। इस बार मैं लोगों को मूर्ख नहीं बना रही हूं। सच्ची कह रही हूं। यह कश्मीरी सेब ही है। अब तो असली दुनिया में आ गई हूं। खबरिया चैनलों की दुनिया में भले ही झूठ बिकता हो, असली दुनिया में झूठ बेचकर धंधे नहीं कर सकते। कहिये तो पांच किलो आपके थैले में डाल दूं।”

”पहले आपने कितनी झूठी और बकवास चीजें बेची हैं और हमने उन्हें भी खरीदा है और आप अब जब सेब जैसी उपयोगी चीज बेच रही हैं तो हम क्यों नहीं खरीदेंगे।” मैंने मन ही मन कहा।

कोई जवाब नहीं पाकर एंकर ने कहा, ”अरे व्यंग्यकार साहब। कोई व्यंग्य तो नहीं सोचने लगे। हम चैनल वालों का आपने खूब मजाक उड़ाया है। अब तो मैं चैनल वाली नहीं हूं। अब मुझसे क्या दुश्मनी है। अगर आप पांच किलो सेब खरीदेंगे तो आपको एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की यह सीडी मुफ्त दूंगी। मैने बहुत मेहनत करके एक स्टोरी बनायी थी, किसानों की आत्महत्या को लेकर, लेकिन चैनल वालों ने इसे कूड़े में फेक दिया था। इसे मैंने सहेज कर रख लिया कि कभी मौका मिला तो इसे प्रसारित करवाऊंगी। लेकिन अब तो मुझे ही चैनल से बाहर फेंक दिया गया। बताइये तो कितना सेब तौल दूं? अब चलिये, अगर आपको पांच किलो सेब नहीं लेना है तो कम से कम एक किलो तो ले जाइये। अगर एक किलो सेब भी लेंगे तो आपको एक दूसरी स्टोरी की सीडी मुफ्त में दूंगी। आप इसे देखकर कुछ लिखेंगे तो बात लोगों तक तो पहुंचेगी। जिसने देखा है, खूब तारीफ की है। पहली बार मैंने अपनी स्टोरी के लिये तारीफ सुनी है। यह स्टोरी गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भयानक कमी को लेकर है। लेकिन यह स्टोरी भी नहीं चलायी। जब अमिताभ बच्चन के मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती होने के बारे में दिन-रात प्रसारण हो रहा था तब देहात में सैकड़ों-हजारों लोग मामूली बीमारियों से किस तरह मौत के शिकार बन रहे थे, इसे दिखाने में हमारे चैनल को कोई दिलचस्पी नहीं थी।”

एंकर की बात सुनकर मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ कि चैनल में दिखायी जाने वाली उटपटांग चीजों के लिये एंकरों को बेकार ही दोषी मानता रहा। मेरे जैसे लोग तो यही मानते रहे हैं कि एंकरों के पास सुंदर चेहरे के अलावा कुछ और नहीं होता है, लेकिन अब पता चला कि कुछ एंकरों के पास दिमाग भी होता है और समाज के लिये कुछ करने की चाहत भी। लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले उस चैनल ने दूर से ही मंद बौद्धिकता की आभा बिखेरने वाले अपने तुतलाते रिपोर्टरों एवं इठलाते एंकरों को मंदी के नाम पर निकालने के बजाय कानों में अमृत घोलने वाली इसी एंकर को निकाल दिया।

मैंने पूछ लिया, ‘अब आगे क्या करने का इरादा है। आखिर घर-परिवार चलाने के लिये नौकरी तो चाहिये ही। सेब बेचकर कितना दिन गुजारा करेंगीं। जीवन कैसे चलेगा।’

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एंकर ने जबाव दिया, ‘सच कहूं तो जीवन अब ही चल रहा है, पहले तो केवल नौकरी चल रही थी, जीवन नहीं’

‘लेकिन लाख रुपये की सैलरी, ग्लैमर और शोहरत सेब बेचने से मिल नहीं सकती। आपने मीडिया में एक मुकाम हासिल किया।’ मैंने कहा।

‘काहे का मुकाम, ग्लैमर, शोहरत और काहे की सैलरी। सच कहूं तो पहले जितने लोग मुझे एंकरिंग के कारण जानते थे, उससे कम से कम दो गुना लोग मुझे सेब बेचने के कारण जानने लगे हैं। रोज बीसियों लोगों से मिलती हूं। सच कहूं तो पहले मेरा जीवन तो मेकअप रूम और स्टूडियो में ही सिमट कर दम तोड़ रहा था। एंकर की नौकरी में कहने को तो एक लाख रुपये पाती थी लेकिन आधे पैसे तो पाउडर-लिपिस्टिक में और एंकरिंग की नौकरी में मिले स्पाइन दर्द और माइग्रेन का इलाज कराने में खर्च हो जाता था। ऐसी लाख रुपयों की सेलरी का क्या करना है जो घर-परिवार और जीवन की खुशियां ही छीन ले। जब से नौकरी छूटी है तब से स्पाइन दर्द और माइग्रेन भी धीरे-धीरे खत्म हो गया। अब अपने लिये, बच्चों और घर परिवार के लिये जीती हूं। समय मिलेगा तो समाज के लिये कुछ न कुछ करूंगी। चैनल की नौकरी में किसके लिये जी रही थी और किसके लिये क्या कर रही थी, अब तक मुझे कुछ समझ नहीं आया।’

‘वह सब तो ठीक है, लेकिन सेब बेचकर कितना मिलेगा।’ मैंने सवाल किया।  

‘चेहरा दिखाकर लाख रुपये की सेलरी पाने से तो अच्छा है कि मेहनत से हजार रुपये कमाना। चेहरा दिखाकर पैसे कमाने से तो अच्छा सेब बेचना है। मुझे सेब बेचकर जितना भी मिलता है वह जीवन और घर-परिवार चलाने के लिये काफी है। ज्यादा तो नहीं लेकिन रोज एक हजार रुपये की कमाई हो ही जाती है। अरे मैं भी कहां की बात ले बैठी। मैं तो वह सब भूल कर नया जीवन शुरू करना चाहती हूं। ……. अरे आपने तो बताया नहीं कि कितना सेब तौल दूं। आपने पढ़ा नहीं है कि सेब खाने से दिल और दिमाग दोनों ठीक रहता है। बच्चों को तो रोज चार-पांच सेब खिलाइये। मैं भी अब रोज सेब खाती हूं और बच्चों को भी खिलाती हूं। टेलीविजन की नौकरी में तो याद ही नहीं कि कब सेब खाया था।’

‘अगर आप कहती हैं तो पांच किलो सेब तो दे ही दीजिये। देखिये भाव ठीक से लगाइये। यह समझ लीजिये कि मैं आपका स्थायी ग्राहक बनने वाला हूं।’ मैंने अपना थैला आगे बढ़ाते हुये कहा। थैले में पांच किलो सेब भरवाकर आगे बढ़ा, इस बात से अनजान कि विनोद विप्लवथोड़ा आगे एक इससे भी बड़ा आश्चर्य मेरा इंतजार कर रहा था।

(अगले भाग में पढ़िए- सब्जी मंडी में आलू बचने वाले एक पत्रकार की दास्तान जिन्हें मंदी के नाम पर देश के एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक ने अपने यहां से निकाल दिया था)


इस कहानी के लेखक विनोद विप्लव ब्लागर, व्यंग्यकार और पत्रकार भी हैं। वह हिंदी की राष्ट्रीय संवाद समिति यूनीवार्ता में विशेष संवाददाता हैं। उनसे संपर्क करने के लिए 09868793203 या [email protected]  का सहारा ले सकते हैं।

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