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‘जल्दी कर बेटा, वरना तेरी खबर नहीं जाएगी’

[caption id="attachment_14838" align="alignright"]नीरज कर्ण सिंहनीरज कर्ण सिंह[/caption]पार्ट-1 : ये न्यूज रूम है, न्यूज रूम यानि एक ऐसी जगह जहां डॉन का राज चलता है। डॉन बोले तो दाऊद नहीं रे। ये न्यूज रूम का डॉन है बोले तो अपना बाबा… अरे जो न्यूज रूम में हर किसी पर चिल्लाता है… नहीं समझे… अरे यार एडिटर… उसका राइट हैंड अपना पप्पू चिकना और शार्पशूटर है एस.एस. यानि डॉन का शार्प शूटर। पूरे न्यूज रूम में डॉन की और उसके शूटरों की ही चलती है। आखिर क्या-क्या होता है डॉन के न्यूज रूम में पेश है- ”न्यूज रूम का रहस्य”। न्यूज रूम का हमेशा की तरह पारा गर्म था। हर कोई खुद को काम में बेइंतहा मशगूल दिखा रहा था। चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल। कोई टेपों का जत्था उठाये दौड़ रहा है। कोई रिपोर्टर को फोन पर हड़का रहा है। एक जनाब फोन पर अपनी माशूका से बतिया रहे हैं। बिग बॉस की नजर पड़ते ही ये जनाब कम्प्यूटर को खड़खड़ाना शुरू कर देते हैं। बिग बॉस की नजर पड़ती है और नजारा देख कर मुस्कराते हैं। उन्हें ये मालूम है कि जनाब अपनी माशूका से फुनिया रहे हैं।

नीरज कर्ण सिंह

नीरज कर्ण सिंहपार्ट-1 : ये न्यूज रूम है, न्यूज रूम यानि एक ऐसी जगह जहां डॉन का राज चलता है। डॉन बोले तो दाऊद नहीं रे। ये न्यूज रूम का डॉन है बोले तो अपना बाबा… अरे जो न्यूज रूम में हर किसी पर चिल्लाता है… नहीं समझे… अरे यार एडिटर… उसका राइट हैंड अपना पप्पू चिकना और शार्पशूटर है एस.एस. यानि डॉन का शार्प शूटर। पूरे न्यूज रूम में डॉन की और उसके शूटरों की ही चलती है। आखिर क्या-क्या होता है डॉन के न्यूज रूम में पेश है- ”न्यूज रूम का रहस्य”। न्यूज रूम का हमेशा की तरह पारा गर्म था। हर कोई खुद को काम में बेइंतहा मशगूल दिखा रहा था। चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल। कोई टेपों का जत्था उठाये दौड़ रहा है। कोई रिपोर्टर को फोन पर हड़का रहा है। एक जनाब फोन पर अपनी माशूका से बतिया रहे हैं। बिग बॉस की नजर पड़ते ही ये जनाब कम्प्यूटर को खड़खड़ाना शुरू कर देते हैं। बिग बॉस की नजर पड़ती है और नजारा देख कर मुस्कराते हैं। उन्हें ये मालूम है कि जनाब अपनी माशूका से फुनिया रहे हैं।

लेकिन बंदा काम का आदमी है, उसकी ऊपर तक घुसपैठ है, इसलिए वो चहेता है, इसीलिए उसे आजादी है… कुछ भी करने की। जब बिग बॉस का हंटर चलना शुरू होता है तो वो खुद को काम का आदमी साबित करने के लिए काम करता हुआ दूसरों को प्रतीत होने लगता है। ज्यादातर रिपोर्टर अपनी-अपनी बीट पर हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पार्किंग में खड़ी अपनी गाड़ी के काले शीसे चढ़ाकर आराम से सिगरेट सुलगा रहे हैं। वो गाड़ी में बैठे-बैठे ही छोटू को चाय का ऑर्डर दे देते हैं और गाड़ी का एसी आन कर थोड़ा सुस्ताने लगते हैं। ऐसे लोगों की इज्जत बिग बॉस की नज़रों में बहुत ज्यादा होती है क्योंकि न्यूज रूम में जब भी वे दिखाई देते हैं तो बड़ी जोर-जोर से किसी को हड़का रहे होते हैं या फिर बिग बॉस के रूम में जाकर किसी की चुगली करते हैं। इससे बिग बॉस को लगता है कि यही आदमी है जो कम्पनी को बचाए हुए है वरना ज्यादातर गधों की भीड़ भर्ती कर ली गई है।

वहीं कुछ रिपोर्टर ऐसे भी हैं जो सूचनाएं इकट्ठी करते हैं। उसे खबर के हर अंदाज से सजा कर वे न्यूज रूम में घुसते हैं। उनकी शक्ल को देखें तो बारह बजे होते हैं। पैंट के पीछे से शर्ट बाहर होती है। बाल बिखरे होते हैं। चेहरे पर दिन भर की मेहनत चिकनाहट में तब्दील हो जाती है। शर्ट की बाहें फोल्ड होती है। जूतों पर भारी धूल जमी होती है और इस्त्री की हुई कमीज सलवटों से भरी होती है। वो हाफता हुआ अपने डेस्क पर बढ़ता है। कम्प्यूर लॉग इन करता है और लिखने बैठ जाता है अपनी खबर को। तभी बिग बॉस यानि डॉन का एस.एस. बोले तो शार्प शूटर जो कार में अक्सर आराम फरमाता है, की नजर उस बदहवास थके हुए मामूली से रिपोर्टर पर पड़ती है। डॉन के एस.एस. की कमीज ज्यों की त्यों है। शर्ट पर एक भी सलवट नहीं है। उसके बाल बिलकुल सेट हैं। जूते तो ऐसे चमचमाते हुए हैं कि कोई भी खुद को उनमे निहार सकता है।

डॉन का गुर्गा यानि एस.एस. कान पर फोन लगाये रिपोर्टर की तरफ बढ़ता है। वो शुरू ही सवाल से करता है। वो कान पर लगे फोन को होल्ड पर लगा कर भारी भरकम आवाज में चिल्लाता है और कहता… अभी तक लिखा भी नहीं तूने… रिपोर्टर थकी-मांदी आंखों से पलट कर देखता है और कहता है… सर लिख रहा हूं। एस.एस. यानि शार्प शूटर अपने मुंह से उफ निकालता है और अमूमन बॉस रिपोर्टर को जो गाली देता है… जो च… से शुरू होती है, वो देता है। वो जोर से कहता है चू… तेरा कुछ नहीं हो सकता… । वो तरह-तरह की मुंहजोरी करता है… । यही नहीं, बगैर खबर को जाने कहता है- जल्दी कर बेटा, वरना तेरी खबर नहीं जाएगी। बदहवास रिपोर्टर तमाम बातों और गुर्गे की वॉर्निग को चुपचाप सुनता रहता है। कम्प्यूटर की खटाखट तेज कर देता है। दौड़ कर ये भी देखता है कि फुटेज इंजस्ट हुई या नहीं… । फिर दौड़ता है और खबर लिखता है। तमाम मुंहजोरी के बाद डॉन का गुर्गा एस.एस.वहां से निकल पड़ता है, किसी के कंधे पर हाथ रख कर क्योंकि वो हर फिक्र को धुएं में उड़ा देता है।

थका-मांदा, बदहवास, अदना सा रिपोर्टर अपनी खबर लिख कर आऊटपुट पर जाता है। इंजस्ट से पाथ लेकर असाइनमेंट पर उसे फ्लैश करवाता है। अपनी लिखी खबर को प्रोड्यूसर को बताता है। प्रोड्यूसर अभी बाहर की किसी खबर को लिख रहा है। वो रिपोर्टर को अपने पास ही बैठा लेता है। रिपोर्टर उससे थोड़ा वक्त मांग कर फ्रेश होने जाता है। न्यूज रूम से बाहर जैसे ही निकलता है तो डॉन का गुर्गा एस.एस. जो रिपोर्टर का कथित हेड भी है, सिगरेट पर दमादम कश लगा रहा है। वो अपने संबंधों और बहादुरियों के किस्से कुछ लड़कियों को सुना रहा है। वो लड़कियों से दावा कर रहा है कि वो उन्हें चैनल में एंकर भी बना सकता है। बस उसके लिए कुछ करना होगा। लड़कियां पूछती हैं- क्या सर?  तभी वह रिपोर्टर फ्रेश होने के लिए वहां से निकलता है। गुर्गा न्यूज रूम से बाहर निकलता देख रिपोर्टर को टोकता है क्योंकि जब वो किसी को हड़कायेगा नहीं तो पास खड़ी लड़कियों को कैसे मालूम होगा कि सर कम्पनी में बड़े ओहदे पर हैं और उनकी इंटर्नशिप को नौकरी में बदलवा सकते हैं। रिपोर्टर को देखते ही एस.एस. यानि डॉन का शार्प शूटर झाड़ता है रिपोर्टर को और कहता है कि… बेटा काम ठीक से कर, तेरे पर तलवार लटकी हुई है… मैंने कई बार तुझे बचाया है… ठीक है… चल जा… हां, और क्या हुआ, खबर का?

सकपकाया रिपोर्टर कहता है- दादा खबर फाइल हो गई है। प्रोड्यूसर साहब चेक करेंगे। गुर्गा ये सुन कर और ज्यादा आग-बबूला हो जाता है। वो फिर च… से शुरू  होने वाली गाली देते हुए कहता है तो चू…तू यहां पर क्या कर रहा है… जल्दी जा। रिपोर्टर बिना फ्रेश हुए ही प्रोड्यूसर साहब के पास पुहंच जाता है। पीछे-पीछे एस.एस. भी वहां आ धमकता है। प्रोड्यूसर साहब वैसे तो बुहत सज्जन इंसान है लेकिन अभी भी बाहर से आई कोई खबर लिख रहे हैं। जो सही भी था क्योंकि अगर रिपोर्टर की खबर चेक कर रहे होते तो बस एस.एस. को एक और बहाना मिल जाता। इसकी खबर वो डॉन को कर देता वो अलग। खैर… प्रोड्यूसर साहब के पास रिपोर्टर बैठा है।

गुर्गा रिपोर्टर की खबर चेक करने की हठ करता है। रिपोर्टर खबर दिखाता है जिसे देख कर गुर्गा फायर हो जाता है। फिर च वाली गाली देता है और कहता है… तेरे को कुछ नहीं लिखना आता। लेकिन तभी प्रोड्यूसर साहब की आवाज लगती है… रिपोर्टर तुरंत प्रोड्यूसर साहब के पास चला जाता है। प्रोड्यूसर रिपोर्टर की खबर को ज्यों का त्यों पास कर देता है। लेकिन आगे से खबर में लगी लोगों की बाइट और पीटीसी के कंटेंट को लिखने के लिए कहता है। फाइनली खबर एडिट मशीन पर लग जाती है। गुर्गा इस वक्त डॉन के कमरे में बिन बुलाये घुसा हुआ है और कोई मुद्दा न होते हुए भी ये जाहिर कर रहा है कि वो किसी अहम काम को अंजाम दे रहा है। रही बात रिपोर्टर की तो वो सुबह आठ बजे से न्यूज रूम में आया था, अब शाम के आठ बजे हैं, वो अभी भी न्यूज रूम में है। उसकी कोई खैर खबर लेने वाला नहीं है। किसी को कोई मतलब नहीं है, रिपोर्टर के दर्द का। वो कब न्यूज रूम में आया है, कब जायेगा, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं। यहां काम करने वालों के साथ ऐसा ही होता है। यहां मौज लेते हैं डॉन के गुर्गे और भूखे मरते हैं शाणे यानि काम जानने और काम करने वाले लोग।

रिपोर्टर भूख से बेहाल हो चुका है पर बर्गर उड़ा रहा है डॉन का एस.एस.। रिपोर्टर का पेट कमर से लग चुका है। सर फटा जा रहा है। दिन भर खड़े-खड़े रह कर टांगों ने जवाब दे दिया है। ऊपर से जिन लोगों की खबर में बाइट या विजुवल गया है, वो भी फोन कर टीवी पर आने का वक्त पूछ रहे हैं। फाइनली खबर एडिट होकर सवा दस बजे सर्वर पर चली जाती है। दिन भर की भारी थकान रिपोर्टर की आत्मा तक को झकझोर रही है। सुबह से काम करते-करते चौदह घंटे से ऊपर हो चुका है। रिपोर्टर अब घर निकलने की तैयारी कर रहा है। वो पार्किंग में अपनी बाइक उठाने के लिए जाता है। पास ही डॉन के एस.एस. यानि शार्प शूटर अपनी लग्जरी कार में बैठा दारू गटक रहा है। न्यूज रूम के दूसरे साथी गुर्गे भी उसके साथ हैं। रिपोर्टर इस सीन को देख कर अपनी किस्मत को रोता है और गाली देता है उस घड़ी को कि जब वो इस न्यूज रूम में आया। वो जोर से अपनी बाइक को स्टार्ट करता है। उसे ऑफिस से 40 किलोमीटर दूर घर पहुंचना है। वो तूफानी रफ्तार से बाइक चला रहा है क्योंकि कल सुबह वक्त से नहीं पहुंचा तो गैर-हाजिरी लग जायेगी मतलब काम भी करना पड़ेगा और उस दिन की पगार भी कट जायेगी।

वो कल फिर आयेगा।

फिर एक बार कुआं खोदेगा और पानी पियेगा।

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अचानक वो गुनगुनाने लगता है, वो मशहूर ग़ज़ल-

अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के हम हैं।

रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं।।

पहले हर चीज थी अपनी मगर अब लगता है।

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।।

वक्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों तक।

किसको मालूम कहां के हम, किधर के हम हैं।।

चलते रहते हैं चलना है मुसाफिर का नसीब।

सोचते रहते हैं के किस रहगुजर के हम हैं।।

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इस कहानी के लेखक नीरज कर्ण सिंह हैं जो युवा पत्रकार भी हैं। वे इन दिनों पीएचडी कंप्लीट करने में लगे हैं। नीरज से संपर्क आप 09212631209 या [email protected] के जरिए कर सकते हैं।
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