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दुख-दर्द

सीएनईबी के कैमरामैन की हार्ट अटैक से मौत

सूरज बलिसीएनईबी के सीनियर कैमरामैन सूरज बलि के निधन की सूचना है. उनकी हार्ट अटैक के कारण मौत हो गई. वे पोलिटिकल बीट के कैमरामैन थे और कल विजय चौक पर शूट के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा. साथी कैमरामैनों व पत्रकारों ने उन्हें तत्काल राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन सूरज की हालत ठीक होने के बाद फिर बिगड़ गई और आज उनकी मौत हो गई. सूरज बलि गाजीपुर जिले के युवराजपुर गांव के रहने वाले थे.

सूरज बलि

सूरज बलिसीएनईबी के सीनियर कैमरामैन सूरज बलि के निधन की सूचना है. उनकी हार्ट अटैक के कारण मौत हो गई. वे पोलिटिकल बीट के कैमरामैन थे और कल विजय चौक पर शूट के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा. साथी कैमरामैनों व पत्रकारों ने उन्हें तत्काल राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन सूरज की हालत ठीक होने के बाद फिर बिगड़ गई और आज उनकी मौत हो गई. सूरज बलि गाजीपुर जिले के युवराजपुर गांव के रहने वाले थे.

वे करीब दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय थे. सूरज की उम्र 45-48 साल के आसपास रही होगी. उनके परिवार में छह बच्चे हैं. सभी गांव पर रहते हैं. सूरज दिल्ली में अकेले रहते थे. सूरज के अचानक निधन से उनके पत्नी-बच्चों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. न्यूज कवरेज के दौरान दिल के दौरे के शिकार हुए सूरज बलि के परिजनों को सीएनईबी प्रबंधन उचित मुआवजा प्रदान करेगा, हम सभी यह उम्मीद करते हैं.

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0 Comments

  1. Haresh Kumar

    August 18, 2010 at 9:24 am

    मीडिया में काम करने वाला हर बंदा कितनी परेशानियों से गुजरता है। यह वही जानता है। आए दिन मीडियाकर्मी असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। कईयों को ह्रदय रोग, मधुमेह एवं दिन-रात काम करने के कारण पीठ दर्द की शिकायत आम हो गई है। 24×7 घंटे काम करने वाला बंदा नौकरी को लेकर सबसे ज्यादा असुरक्षित रहता है। इसी असुरक्षा में वह ज्यादा शारीरिक और मानसिक थकान महसूस करता है और अचानक एक दिन असमय मृत्यु का शिकार हो जाता है।इनके मृत्यु पर कोई भी मीडिया उद्यमी आंसू नहीं बहाता। उनके लिए ये रोज का मामला है। जबकि मीडियाकर्मियों का परिवार मृत्यु के बाद दाने-दाने को मोहताज हो जाता है। आशा है कि मीडियाकर्मियों के संगठन इस बात पर ध्यान देंगे और असामयिक मृत्यु पर संबंधित परिवार की हरसंभव सहायता उपलब्ध कराने की भरपूर कोशिश करेंगे।

  2. यशवंत

    August 18, 2010 at 10:08 am

    सूरज बल को मंगलवार दोपहर संसद की कवरेज के दौरान विजय चौक पर हॉर्ट अटैक हुआ था. तभी से वो जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे. आज सुबह तकरीबन साढे दस बजे सूरजबल ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम साँस ली. सूरजबल स्टार न्यूज चैनल के अलावा राय फॉउंडेशन की एकेडमी में भी अध्यापक रह चुके थे. आजकल वो सीएनईबी न्यूज चैनल में कैमरामैन थे. मूल रुप से गाजीपुर जिले के युवराजपुर गाँव के रहने वाले सूरजमल पत्नी, तीन बेटे और तीन बेटियों के साथ महारानी बाग में रहते थे.
    सूरज को श्रद्धांजलि. ईश्वर उनके परिजनों को यह दुख सहन करने की क्षमता दे.

  3. vrij nandan chaubey

    August 18, 2010 at 11:01 am

    मीडिया में काम करने वाला हर शख्स चिराग तले अंधेरा वाला काम करता है, हर क्षेत्र की खबरें दिखाता है सबके दुख दर्द को समाज के सामने परोसता है, लेकिन अपनी खबर किसको बताये और दिखाए, क्योंकि उसकी सुध लेने की फुर्सत ना तो उसके ऊपर के अधिकारियों को होती है ना ही चैनल के मालिक को…. मुझे एक वाकया याद आता है अब से कुछ दिन पहले ही जब जेट एयरवेज ने अपने कुछ कर्मचारियों को निकाला था मीडिया ने उस खबर पर इतना दबाव बनाया कि घबराकर नरेश गोयल को सारे कर्मचारियों को रखना पड़ा था लेकिन ठीक उसी वक्त कई जाने माने चैनलों और मीडिया एजेंसियों से लोग निकाले गए थे … इस खबर की भनक तक भी किसी को नहीं लगी … अब क्या किया जाय इसके लिए हमें ही (मीडिया परिवार) कोई कदम उठाना पड़ेगा ….

  4. ashok

    August 18, 2010 at 11:42 am

    मैं हर्ष जी की बात का समर्थन करता हूं.

  5. Agyaani

    August 18, 2010 at 12:00 pm

    Yashwant ji se prarthna hai ki kripya ashudhiyon ko kam karne ka pryaas karein.
    सूरज की उम्र 45-48 साल के आसपास रही होगी ???. उनके परिवार में छह बच्चे हैं???. सभी गांव पर रहते हैं???.
    Kya ye article kisi US returned Reporter ne likha hai?

  6. ek patrakar

    August 18, 2010 at 2:45 pm

    खुशमिजाज़ और जिंदादिल थे सूरज बली,
    फिल्ड में अधिकतर कैमरामैन और रिपोर्टर्स उन्हें चाचा कहकर पुकारते थे,स्वाभाव से बहिर्मुखी और बेहद संवेदनशील थे,
    कई बार कवरेज के दौरान साथियों से झगडा कर लेना और फिर बाद में उसके पास जाकर हंस देना और कंधे पर हाथ रख के मुस्कुराते हुए चलते जाना,ये कुछ ऐसी यादें है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता !
    पिछले चार साल से हर रोज उनसे मिलना होता था,अधिकतर समय कांग्रेस दफ्तर में,कभी-कभार विजय चौक पर और संसद सत्र के दौरान तो सुबह से शाम तक विजय चौक ही उनका घर बन जाता था,संसद के भीतर से आने वाली नेताओं की एक-एक बाईट पर उनकी नज़र होती थी,भाग-भाग के बाईट इकठ्ठा करना और जल्दी -जल्दी अपने चैनल को फीड भेजना,फिर दूसरों को ट्रान्सफर देना, पता ही नहीं चलता था की वो कम हाईट का सांवला और अधेर जैसा दिखने वाला आदमी काम को लेकर इतना समर्पित और उर्जावान हो सकता है…
    आज सूरज बली हमारे बीच नहीं हैं,उनकी बहुत सी यादें जेहन में कौंध रही है,उनकी मौत ने हमारी चेतना को न सिर्फ झकझोरा है बल्कि कई तरह के सवाल भी खड़े किये हैं…न्यूज़ चैनलों में काम करने वाले छोटे स्तर के कर्मचारी अपनी नौकरी बचने की जद में अक्सर इतने व्यस्त हो जाते हैं की भूख और प्यास उनके लिए गैर जरूरी चीज हो जाती है
    नौकरी बचाना उनकी प्राथमिकता होती है,और इसी तरह चैनल की वफादारी में एक श्रमजीवी अपने शरीर से बेवफाई कर बैठता है,और इस तरह के परिणाम सामने आते हैं,जहाँ पलक झपकते ही एक भरा-पूरा परिवार बिखर जाता है,मायूसी,सन्नाटा,शोक और आँखों के सामने सिर्फ अँधेरा दिखाई देता है..घर के बच्चे अचानक बड़े हो जाते हैं.और गाजीपुर जैसे छोटे शहर से कोई नौजवान दिल्ली आकर फिर से एक सूरज बली बन जाता है..
    आखिर सूरज बली जैसे श्रमजीवियों की जिंदगी की गारंटी कौन लेगा, न्यूज़ चैनलों का प्रबंधन या फिर मीडियाकर्मियों का संगठन,यह एक सवाल है जिसका जवाब टीवी चैनलों के पास नहीं होगा जो अक्सर दूसरों की जिंदगी में ताका-झांकी करते हैं,दूसरों की कमियाँ गिनाकर देश और समाज को बदलने की बात करते हैं, जरुरत ऐसी व्यवस्था की है जिसमें सूरज बली जैसे लोगो की जिंदगी की गारंटी मुक्करर हो!!
    वरना विजय चौक पर दिन भर धुप में बैठकर नौकरी बचने की मजबूरी और कईयों की जिंदगी न लील ले!!!

  7. Viplava Awasthi

    August 18, 2010 at 3:03 pm

    Ishwar surajbali ki aatma ko shanti de….Nischit tour per dukh ki khabar hai…suraj bhai ek inmandar cameraman hone ke sath hi ek acche insan bhi the…Unko lambe samay se sugar ki bimari thi..halaqi wo apni sugar ki bimari ke liye kafi sachet rahte the…lekin ishwar ki marzi ke aage kiska jor hai…Lekin aaj Suraj bhai ke nidhan ke baad shabhi media persons ne jis tarah ka role aada kiya wo bhi kabile tarif tha…Sabhi ne ekjut hoker jo bhi madad ki use dekher media perfessional hone per garv hua….Ram Manohar Lohia hospital se jaise hi suraj bhai ke dehant ki khabar mili to kam se kam 100 media persons aagaye…Khub CNEB ki CEO Rahul Dev bhi hospital mein pahunch gaye aur Suraj bhai ke parental village mein body bhejne ka intezam karwaya …sath hi turant cneb ki taraf se paison ka prabandh kiya..jisse ki unke pariwar ko turant aaye sankat se rahat di jaye…sath hi Suraj bhai ke bare ladke ko noukri dene ki ghosra ker di…Sabhi cneb ke employees ne bhi contribution shru ker diya hai..bhagwan unke ghar per pasri ish dukh ki gari ko jald hi paar lagaye….

  8. पुरुषोत्तम नवीन

    August 18, 2010 at 7:42 pm

    बाइट के लिए भागने-दौड़ने और थोड़े विराम के समय सबसे हंसकर मिलने की सूरज भाई की आदत को स्मृतियों के पार नहीं भेजा जा सकता। अचानक मिली इस खबर ने पत्रकार बंधुओं के अंदर एक शून्यता पैदा कर दी है। मेरे जैसे बहुत ही औपचारिक ढंग से परिचित लोगों के भीतर भी सूरज के अस्त होने ने गहरा अंधकार भर दिया है।
    दरअसल, जीवन की अनिश्चितता और मौत के हरकदम अंदेशे के बीच, अपने सहित हर चेहरे को गौर से देखने का मन होता है कि पता नहीं किस चेहरे से अंतिम बार सामना हो रहा हो। तनाव और बीमारियों की सौगात पत्रकारिता की जिस भागमभाग शैली ने हमें दी है, उसमें यह घटना बहुत हैरत पैदा करने वाली भी नहीं होनी चाहिए। अगर कोई मशीन उपलब्ध हो तो मापा जा सकता है कि फील्ड में काम कर रहे रिपोर्टर या कैमरामैन को जब ऑफिस से फोन आता है तो उसका रक्तचाप, हृदयगति आदि अचानक कैसे बढ़ या घट जाती है। चौबीस घंटे के चैनलों में काम के नाम पर जो ज्यादतियां हो रही हैं, उनमें इन हादसों की पूरी गुंजाइश बन रही है। जब एनडीटीवी जैसे चैनल में भी रात के दस-ग्यारह बजे के बुलेटिन का सुबह तक दुहराव ही होना है तो चौबीस घंटे के चैनल को फिर से परिभाषित किए जाने की जरूरत है। पत्रकारों की रचनात्मकता और श्रमशक्ति की हत्या करके चौबीस घंटे का चैनल चलाने की क्या आवश्यकता है? भारत जैसे देश में 24X7 का कॉन्सेप्ट अनफिट और जबरदस्ती ओढ़े गए लबादे सा लगता है। जब चौबीस घंटे खबर नहीं मिलेगी तो फिलर के तौर पर सांप-छुछुंदर और नाच-गाना तो दिखाया ही जाएगा। बहरहाल।
    सरल, सौम्य और सबके चहेते चाचा को श्रद्धांजलि। सीएनईबी के प्रबंधन का कदम भी सराहनीय है। रिपोर्टरों और कैमरामैनों से दस-बारह घंटे काम लेने की प्रवृत्ति पर पुनर्विचार हो और तमाम श्रम कानूनों को विधिवत लागू किया जाए तो शायद ‘सूरजों’ को असमय अवसान से बचाया जा सके। तभी ‘सूरज’ का भाग्य ‘बली’ होगा।

  9. santosh

    August 19, 2010 at 3:50 am

    सूरज भाई हमेशा याद आओगें,सुबह सात बजे से 9 बजे तक असाईनमेंट में आकर बतें करना , दिन भर के गिले शिकवे दूर करना । फिर फिल्ड से फूटेज भेजने के लिए जिरह करना हम दोनों भाई की नियती बन चुकी थी। सूरज भाई अब ये फिर नहीं हो सकेगा ।सूरज भाई आप डायबिटिज के कारण मिठाई नहीं खाते थे , स्वतंत्रा दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर मिलने वाली मिठाई को मेरे लिए लाना ,घर से सेव और आम मेरे लिए लाना अब ये सब नहीं हो पाएगा । सूरज भाई आपको लेकर मै स्वार्थी हो गया था ,क्या करुं आपने एसा ही मुझे बना दिया है।सूरज भाई असाईनमेंट में बैठे होने के कारण जब भी मुझे किसी फीड की जरुरत होती मै आपसे अधिकार से मांगता था,और आप कहते रुको,थोड़ी देर में देता हूं ,फिर उसे लेकर लाईव प्ले आउट के लिए कहना ,अब ये फिर नहीं हो सकेगा । सूरज भाई आप जानते थे की मै चाय नही पीता हूं,पर आप सुबह आठ बजे कैंटिन जाते तो मुझसे चाय पीने के लिए चलने को कहते,आप को भी पता था और मुझे भी का मै चाय पीने नहीं जाउंगा, फिर भी यह आपका रोज का काम होता था, लेकिन सूरज भाई अब ये फिर से नहीं हो होगा । भाई आपके बारे में क्या क्या लिखूं —–समझ में नहीं आता –आप ने जो बनया है हम सबने वो कल देखा लोगो के मन में आपके लिए प्यार ,सम्मान सब देखा ,आपके बहाने ही कल पता चला मीडिया के इस जलजले में अच्छे आदमियों का कद्र अभी भी है —–सूरज भाई भगवान आपके आत्मा को शांति दें और आपके परिवार को दुख झेलने की शक्ति दें.

  10. vijay luxmi

    August 19, 2010 at 7:15 am

    दुनियां में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं….जो अपने व्यवहार से ना केवल जीते जी दिल जीतते हैं बल्कि अपने निधन के बाद लोगो के माथे पर शिकन छोड देते हैं शायद इसलिए कहते हैं…की व्यकित को वय्बहार कुशल होना चाहिए….सूरज भाई के साथ बहुत सारे पत्रकारो का संवेदना जुडी हुई है..और उनकी यादें हमेशा खास करके विजय चौक में जुडी रहेगी..भगवान सूरज को आत्मा को शांति दे …..

  11. Debdulal Pahari

    August 19, 2010 at 1:59 pm

    Suraj Bhai ko dekh kar kabhi yeh mehsoos nehi hua ki bo 40 saal cross karchuke hain . bilkul Fit aur sada muskurate hue. 17 August ko office mein dusre din ke tarah mulakat hua , muskurate hua puche “Aur Dada Kaise Ho? ” Life is so short… Unke atma ki shanti ke saath saath main yeh bhi prarthana karta hoon ishwar unke gharwalon ko is ghadi mein sahas de. unke bete ko CNEB ke tarafse naukri mein rakhe jane ki baat ek achchi khabar hai.All CNEB Emplyees is contributing and i apeal all media journalists to contribute too as no one knows who can be the next victim. Debdulal Pahari(Deb), CNEB, Noida

  12. Mohammad suhel

    August 19, 2010 at 3:48 pm

    Suraj bhai ki achanak death ko sunkar mughe bahut afsos hua. mai kai saal pehle Television programme Company ( production house) mai job karta tah . wo aksar wahan aate thai. bauut kuch mughe wahan mughe camera ke bare mai batate thai. uske baad mere unse koi contact nahi raha. kyoki mere paas unka koi Phone no nahi tha . Aaj itne saal baad unki maut ko suner mughe bahut afsos hua .

  13. sanjay rai

    August 20, 2010 at 9:36 am

    surajbali is dunia me nahi hai sunkar dhakka laga. jab bhi milte khule dilse theth bhojpuri me baat karke unhone mujhe apna bana liya tha. ishwar unki aatma ko shanti de.

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