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पंडित सुरेश नीरव रिटायर हो गए

[caption id="attachment_17980" align="alignleft" width="127"]पं. सुरेश नीरवपं. सुरेश नीरव[/caption]हंसी-ठहाकों के बादशाह पंडित सुरेश नीरव ने सक्रिय पत्रकारिता से संन्यास ले लिया. वे पिछले दिनों कादंबिनी से रिटायर हो गए. हास्य कवि के रूप में प्रतिष्ठित पंडित सुरेश नीरव पिछले 31 साल से कादंबिनी में थे. दूरदर्शन के लिए सात सीरियल बना चुक सुरेश नीरव की 16 सोलह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. वे 26 देशों की यात्राएं कर चुके हैं. मारीशस की संसद और नेपाल के राजमहल में आयोजित कवि सम्मलन में शामिल हो चुके हैं.

पं. सुरेश नीरव

पं. सुरेश नीरव

पं. सुरेश नीरव

हंसी-ठहाकों के बादशाह पंडित सुरेश नीरव ने सक्रिय पत्रकारिता से संन्यास ले लिया. वे पिछले दिनों कादंबिनी से रिटायर हो गए. हास्य कवि के रूप में प्रतिष्ठित पंडित सुरेश नीरव पिछले 31 साल से कादंबिनी में थे. दूरदर्शन के लिए सात सीरियल बना चुक सुरेश नीरव की 16 सोलह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. वे 26 देशों की यात्राएं कर चुके हैं. मारीशस की संसद और नेपाल के राजमहल में आयोजित कवि सम्मलन में शामिल हो चुके हैं.

भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति द्वारा अभिनंदित हो चुके हैं. हास्य कवि के रूप में ढेरों पुरस्कार पा चुके हैं. चंबल के किनारे बसे ग्वालियर शहर में जन्मे और यहीं से पढ़े-लिखे सुरेश नीरव की पहली रचना धर्मवीर भारती के जमाने में धर्मयुग में छपी थी और तभी से उन्होंने पत्रकारिता के फील्ड में कदम रख दिया. सुरेश नीरव ने कुछ दिन अध्यापन का कार्य भी किया. बाद में वे पत्रकारिता की ओर मुड़ गए. शुरू में उन्होंने ‘ये’ नाम से खुद की मैग्जीन निकाली. ग्वालियर के लोकल अखबारों

अपने एक शिष्य को आशीर्वाद देते पंडितजी

अपने एक शिष्य को आशीर्वाद देते पंडितजी

में लिखते रहे. बाद में वे दिल्ली आए और यहीं बस गए.

सुरेश नीरव की किताबों का फ्रेंच, जर्मन, उर्दू, इंग्लिश समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. कवि, आलोचक एवं पत्रकार सुरेश नीरव सरल-सहज व्यक्तित्व के धनी हैं और मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी हंसने व हंसाने की कला जानते हैं. रिटायरमेंट के बाद पंडित सुरेश नीरव फिर से साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए हैं. वे ब्लागर भी हैं. उनके हिंदी ब्लाग का नाम है- जय लोक मंगल.

मंचीय कवि के रूप में अच्छा-खासा नाम कमा चुके पंडित सुरेश नीरव अब ज्यादा से ज्यादा कवि सम्मेलनों में शामिल होने लगे हैं. वे कहते हैं- ”ज़िंदगी चलते रहने का नाम है, आलसियों के लिए कुछ नहीं, करने वालों के लिए काम ही काम है.” आइए, पंडित सुरेश नीरव की एक गुदगुदी कविता का आनंद लें. उनसे आप 09810243966 के जरिए संपर्क कर सकते हैं.

शर्म आती है यह बताने में।
इक चवन्नी है बस खजाने में।।

रात गुजरी है गुसलखाने में।
क्या खिलाया था तूने खाने में।।

एक ही लट थी चाँद पर उनके।
वक्त लग्ना था उसे सजाने में।।

कैसे बाहर नदी से वो आते।
कपड़े गायब हुए नहाने में।।

कौन संग ले उड़ा उसको।
तुम लगे थे जिसे पटाने में।।

दोस्त मुश्किल से एक दो होंगे।
इतने बैठे हैं शामियाने में।।

उम्र गुजरी है आजमाने में।
कोई अपना नहीं ज़माने में।।

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0 Comments

  1. Ghan Shyam

    August 26, 2010 at 12:26 pm

    doosaron ko hi aazmaate zindagi kharaab kar daali yaa kabhi khud ko bhi aazmaaya. agar aisa kiya hota to ye shikvaa naa karte.

  2. dhanish sharma

    August 26, 2010 at 1:15 pm

    bhai.. kya baat kar raha ho…koi nai sir ki kavita main hai dum.. kyo ki hum sunta hain har dum,…….. kavi dhanish sharma..

  3. sanjay

    August 26, 2010 at 5:36 pm

    उम्र गुजरी है आजमाने में।
    कोई अपना नहीं ज़माने में।।
    VAH NEERV BHAIYA. E HAI SACH KA DAM.
    koi aapki tarah hi kah gaya hai……..
    Ye matlab ki dunia hai
    Yahan kaun kisi ka hota hai
    Vahin par dhokha hota hai
    Jaha par bharosa hota hai.
    31 sal kadambni me… ek kitab jarur likhiyega. main 10 sal hindustan Ranchi se jura raha hoon. kai kamyab patrakar ek jagah 10 sal par chakit rahte the.

  4. sanjay pandey

    August 27, 2010 at 5:19 am

    ek adhyay ka sukhant samapan

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