[caption id="attachment_14887" align="alignleft"]गिल्लो और आशू का प्रेम : दृश्य एक[/caption]कोई पागलपन तो कोई नशा कहता है पर प्यार तो प्यार है। गिल्लो और उनकी मुस्कराहट किसी को भी पागल कर दे, मेरी बिसात क्या! यदि थोड़ा सब्र और इंतजार करने का जज्बा हो तो इनसे आपको भी प्यार हो सकता है। खुशखबरी ये है कि गिल्लो के परिवार में 35 नए मेहमान आये हैं और अब रोटी या बिस्कुट गिल्लो अपने तो खाती ही हैं, बच्चों के लिए भी ले जाती हैं। इस लोकतंत्र के महापर्व में मुझे भी थोड़ी कम फुर्सत मिल रही है। उपर से गर्मी की वजह से गिल्लो भी ज्यादा देर अपने घर में रहना पसंद करती हैं। लेकिन कितना भी कम समय हो, दिल वहीं खींचकर ले जाता है। नहीं जाने पर मन जाने कैसा-कैसा होने लगता है। क्या करें, प्यार न समय देखता है और न दिन।
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स्ट्रिंगर का दुख और गिल्लो रानी का सुख
आप पढ़े-लिखे हैं, विचारवान हैं, लेखक हैं, ईमानदार व सीधे-साधे हैं तो पत्रकारिता की बात छोड़िए, इस दुनिया में जीने में आपका दम निकलेगा। दुखों के दंश से गुजरना होगा। दर्द को दवा मानकर जीना होगा। कुछ यही हाल आशुतोष का है। वे पटना के पत्रकार हैं। मनुष्यों की नगरी में मनुष्यों द्वारा मिला दुख जब बढ़ जाता है तो वो गैर-मनुष्यों के पास चले जाते हैं। उनकी प्रिय गिल्लो रानी न सिर्फ उनका स्वागत करती हैं बल्कि उनके देह पर कूद-फांद कर दुख-दर्द हर लेती हैं।