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दुख-दर्द

स्ट्रिंगर का दुख और गिल्लो रानी का सुख

गिल्लो रानीआप पढ़े-लिखे हैं, विचारवान हैं, लेखक हैं, ईमानदार व सीधे-साधे हैं तो पत्रकारिता की बात छोड़िए, इस दुनिया में जीने में आपका दम निकलेगा। दुखों के दंश से गुजरना होगा। दर्द को दवा मानकर जीना होगा। कुछ यही हाल आशुतोष का है। वे पटना  के पत्रकार हैं। मनुष्यों की नगरी में मनुष्यों द्वारा मिला दुख जब बढ़ जाता है तो वो गैर-मनुष्यों के पास चले जाते हैं। उनकी प्रिय गिल्लो रानी न सिर्फ उनका स्वागत करती हैं बल्कि उनके देह पर कूद-फांद कर दुख-दर्द हर लेती हैं।

गिल्लो रानी

गिल्लो रानीआप पढ़े-लिखे हैं, विचारवान हैं, लेखक हैं, ईमानदार व सीधे-साधे हैं तो पत्रकारिता की बात छोड़िए, इस दुनिया में जीने में आपका दम निकलेगा। दुखों के दंश से गुजरना होगा। दर्द को दवा मानकर जीना होगा। कुछ यही हाल आशुतोष का है। वे पटना  के पत्रकार हैं। मनुष्यों की नगरी में मनुष्यों द्वारा मिला दुख जब बढ़ जाता है तो वो गैर-मनुष्यों के पास चले जाते हैं। उनकी प्रिय गिल्लो रानी न सिर्फ उनका स्वागत करती हैं बल्कि उनके देह पर कूद-फांद कर दुख-दर्द हर लेती हैं।

आशुतोष बिहार के एक रीजनल टीवी न्यूज चैनल के पटना आफिस में कई बरस से स्ट्रिंगर हैं। पिछले दिनों उनकी सेकेंड हैंड बाइक आफिस के नीचे से चोरी चली गई। तब आशू झोला टांगकर पैदल ही रिपोर्टिंग पर निकलने लगे। जितनी खबर चलेगी, उतना पैसा मिलेगा के फंडे पर जीने वाले स्ट्रिंगरों में से एक आशुतोष के लिए पैदल चलना मुश्किल न था पर खबरें वो बहुत कम कवर कर पाते। बाद में उन्हें नजदीक के एसाइनमेंट दिए जाने लगे। ज्यादा पैदल चलने से देह में जो दर्द शुरू होता, उससे निजात पाने के लिए आशुतोष गांधी मैदान के पास स्टेट बैंक के क्षेत्रीय हेडक्वार्टर की बिल्डिंग के बगल के पीपल के पेड़ के नीचे बैठ जाते।

पीपल पर रहने वाली गिलहरियां अनजान पथिक को देर से बैठे देख सूंघते-सरकते नीचे आने लगीं। कुछ दिनों तक दूर से चौकन्ने होकर निहारने के बाद अब सरक कर करीब पहुंचने लगीं। शून्य में निगाह गड़ाए आशुतोष की नजर जब इन पर गई तो भावुक हो गए। पुचकारने और पुकारने लगे, आहिस्ते-आहिस्ते, हौले-हौले। गिलहरियां बेजुबान भले थीं पर बेअक्ल नहीं। वैसे भी, मनुष्यों को पहचानने के मामले में ये बड़ी तेज होती हैं। उन्हें पता होता है आदमियों के हरामीपने, सो उन्होंने आशुतोष पर एकदम से यकीं नहीं किया। पास आती गईं, दूरियां सिमटती गई पर फासले गिलहरी और आशुतोषकुछ न कुछ बने रहे। प्यार और मनुष्यता को जीने वाले आशू ने जिद ठान ली इन गिलहरियों के प्यार की परीक्षा में सफल होने की।

आशुतोष जब खुद चाय पीते तो गिलहरियों को बिस्कुट के टुकड़े तोड़कर खिलाने लगे। आशुतोष जब आते तो गिल्लो रानी उन्हें देखते ही पूरे कुनबे के साथ उपर से नीचे सरक आतीं और दूर से निहारते हुए इठलातीं, बलखातीं और चंचल-शोख हसीना की माफिक मुस्कातीं। आशू इन्हें जब प्यार से अपने बिस्कुट का टुकड़ा डालते तो वे फटाक से आगे बढ़कर चुग तो लेतीं पर फिर सतर्क अंदाज में पीछे आ जातीं। आखिर वो घड़ी आ ही गई जब आशू-गिल्लो के बीच का फासला मिट गया।

अब जब आशू आते तो दो दर्जन से ज्यादा गिलहरियां खुशी के बोल बोलते उनकी देह पर चढ़ने लग जातीं और उन्हें सहलाने-पुचकारने में जुट जातीं। आसपास के चायवालों के लिए यह दृश्य शुरू में कुछ अनोखा था लेकिन बाद में इन लोगों ने आशुतोष को बेचारा मानकर ‘पेड़, गिलहरी, आदमी और प्यार’ के इस अजीब दृश्य को रूटीन में शामिल मान लिया।

तभी तो पेड़ के पास के चाय वाले दुकानदार कन्हैया राय कहते हैं- ये गिलहरियां उनके न आने पर इंतजार करती हैं और जब देर से आते हैं तो वे गुस्सा दिखाती हैं। बगल के पाने वाले दुकानदार कहते हैं कि हम लोग इन्हें ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन इनकी हरकत देखकर लगता है कि ये बेचारे अच्छे आदमी हैं।

आशुतोष की इच्छा इन गिलहरियों पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की है पर पास में फूटी कौड़ी नहीं सो ढेर सारे सपनों के बीच ये सपना भी फिलहाल आर्काइव हो चुका है। इस वक्त ईटीवी, पटना के कंट्रोल रूम में स्क्राल उर्फ टिकर (टीवी स्क्रीन पर नीचे की तरफ खबरों की चलने वाली पट्टी) डेस्क पर कार्यरत आशू का सात महीने से जो अफेयर गिल्लो रानी से चल रहा है, इसके चर्चे दूर-दूर तक होने लगे हैं। आई-नेक्स्ट, पटना में जब गिलहरियों को बिस्कुट खिलाते आशुतोष की तस्वीर प्रकाशित हुई तो आशुतोष चर्चित आदमी हो गए। अब तो दोस्तों के पूछने पर कि कहां जा रहे हो, आशुतोष मुस्करा कर कहते हैं, मेरी दो दर्जन गर्ल फ्रेंड मेरा इंतजार कर रही हैं, चलोगे उनसे मिलने!

आशुतोष ने बिहार के आरा जिले के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया है और पटना विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा का कोर्स किया हुआ है। वर्ष 2002 से 2004 तक जनसत्ता, हिंदुस्तान और जागरण जैसे अखबारों के लिए लिखते रहे। प्रभाष जोशी को अपना आदर्श मानने वाले आशुतोष वर्ष 2004 में बतौर स्ट्रिंगर ईटीवी में भर्ती हुए और आज भी स्ट्रिंगर बने हुए हैं।


गिल्लो के संबंध में आशू से कुछ कहना चाहते हैं तो 09431813609 या 09905908187 का सहारा लें। आशू से [email protected] के जरिए भी संपर्क कर सकते हैं।

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0 Comments

  1. muna baba

    January 20, 2010 at 10:29 am

    HI…ashutosh acha lga aapke bare padkar aapki iss gilhari pyar se aapki insaniyat saaf dikhti hai..aapko aapki manjil mile yhi kamna karta hu…Every success man behind has a painful story…..thanks to your animal love.

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