मीडिया से सीधे तौर पर जुड़ने के बाद रेप, मर्डर, चोरी, धोखाधड़ी की खबरें बहुत ज्यादा चौंकाती नहीं हैं। कन्ट्रोल रूम में बैठकर हर रोज ऐसी ही बातें सुनने, लिखने और बांचने लगी हूं। कभी 70 साल की वृद्धा के साथ बलात्कार.. फिर लूट तो कभी 2 साल की मासूम के साथ रेप के बाद कत्ल। कभी कुछ तो कभी कुछ… पहले अफेयर वर्ड सुनकर भी कान खड़े हो जाते थे पर अब तेजाब फेंकने की घटना भी कॉमन लगने लगी है…
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केबीसी की अंकगणित
: इसे पढ़ने के बाद रियल्टी शोज में एसएमएस या फोन करने से पहले चार बार सोचेंगे : नए जमाने के धनी और शहरी मदारियों से सावधान रहने की जरूरत : केबीसी से कौन बन रहा है करोड़पति? जवाब के लिए चार आप्शन हैं- A) सोनी टीवी. B) मोबाइल कम्पनियां. C) बिग बी. D) सिद्धार्थ बसु. कनफ्यूज हैं आप? हम बताते हैं. ये चारों ही विकल्प सही हैं.
अखबारों में गांव-देहात को सिर्फ एक फीसदी स्पेस मिलता है
मीडिया का मतलब सीधे सीधे तो यही होता है कि वह गरीब, अविकसित, आम जन की बात करे, उनके हित को ध्यान में रखते हुए काम करे. भारत के संदर्भ में कहें तो मीडिया को गांवों और वहां के निवासियों की बात को प्रमुखता से उठाना चाहिए. शासन की नीतियों का मकसद जिस आखिरी आदमी को लाभ पहुंचाना होता है, वह आखिरी आदमी गांव में ही रहता है. वो कहते भी हैं, आज भी असली भारत गांवों में ही बसता है, शहरों में नहीं.
रेडियो की शक्ल अख्तियार करता एनडीटीवी इंडिया
कुछ वक्त पहले तक एनडीटीवी पर ”ज्योतिष नहीं जर्नलिस्ट की टीम के साथ करिए दिन की शुरूआत…” जैसे स्लोगन सुनने को मिलते थे। पर अब खबरों के साथ जर्नलिस्ट की टीम एनडीटीवी से गायब हो चुकी है। एनडीटीवी इंडिया ने रवीश की रिपोर्ट, विनोद दुआ लाइव जैसे कई बेहतरीन प्रोग्राम दिखाकर एक बहुत बड़े वर्ग को अपना मुरीद बनाया है। झाड़-फूंक और तन्त्रमंत्र दिखाने वाले चैनलों की भीड़ में एनडीटीवी इंडिया ने अलग रास्ता चुना था।
लालू यादव राजनीति के राखी सावंत हैं!
: संसद में कहिन- कोई 74 साल का आदमी 12 दिन का अनशन कर कैसे सकता है, और कैसे कह सकता है कि अभी मैं 3 किमी तक और दौड़ सकता हूं : बचपन में राजनेताओं के नाम और उनके काम में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, खेलने-कूदने से फुर्सत ही कब रहती थी कि कुछ और याद रहे। लेकिन उस वक्त भी लालू प्रसाद यादव का नाम याद था। पता था कि आप बिहार के ‘राजा’ हैं।
ये बच्चे कितने गंदे हैं, ये बच्चे क्यों गंदे हैं
[caption id="attachment_20969" align="alignleft" width="94"]भूमिका राय[/caption]: टीवी पर दिखने का नहीं, रोटी खाने का है सपना : बड़े प्यार से वो अपने नाक साफ कर रहा था। कभी 360 डिग्री में घुमाता तो कभी किसी कोण पर रुककर खुरचने लगता। ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर कुछ मिल जाने सा भाव था। पर क्या, वो नाक से निकाल कर उसे खा भी सकता है…? मैं सोच भी नहीं सकती थी। उसने ऐसा ही किया।
”अमूल बेबी” के बोल कब फूटेंगे
[caption id="attachment_20539" align="alignleft" width="94"]भूमिका राय[/caption]: रामदेव से लेकर अन्ना और भाजपा तक को कुछ न कुछ मिला… हर बार की तरह इस बार भी ठगी गई सिर्फ जनता : एक बार फिर जनता ठगी-सी खड़ी है. अवाक है और परेशान भी। अवाक, क्योंकि जिन हाथों में उसकी सुरक्षा का दायित्व था, उन्हीं हाथों से उसे ज़ख्म मिले हैं और परेशान इसलिए, कि आखिर वो जाए तो जाए कहां?