फ्रांस में पहली बार मनाया गया हिंदी दिवस

फ्रांस शासित बेहद खूबसूरत रीयूनियन द्वीप में पहली बार हिंदी की पताका पहुंची है. यहाँ पर भारतीय मूल के लोगों की लगभग 225000 आबादी है. जिनमें तमिल व गुजराती मूल के भारतवंशी प्रमुख रूप से सम्मिलित है. यहां भाषाई विभिन्नता न हो कर सभी लोग फ्रेंच अथवा क्रियोल ही बोलते है. अंग्रेजी नाममात्र की भी प्रयोग नहीं होती है. यहां हिंदी का रास्ता गुजराती मूल के भारतवंशियों में सम्मिलित मुस्लिम व सुनार समुदाय में बची भाषाए उर्दू व गुजराती के बीच से निकलता है.

जर्मन रेडियो डायचे वेले : खामोश हुई हिंदी की एक और आवाज

इस महीने की पहली तारीख से बेहद गुमनाम तरीके से विदेशों में हिंदी की एक और आवाज खामोश हो गई. यह आवाज थी जर्मन रेडियो डायचे वेले की हिंदी सेवा की. 15 अगस्त 1964 को शुरू हुई यह सेवा बरसों से ठिठक-थमक कर चलते हुए आखिर पहली जुलाई को हमेशा के लिए बंद हो गई. लेकिन बीबीसी की तरह इसके बंद होने पर कोई शोर-शराबा तो दूर, अब तक बहुतों को इसके बंद होने तक की जानकारी नहीं है.

कागज पर नहीं, व्‍यवहार में अपनानी होगी हिंदी : विमल

राष्ट्रभाषा हिंदी के हितैषी अगर सचमुच में इसकी उन्नति देखना चाहते हैं तो इसे कागजी नहीं बल्कि व्यवहार में इसे अपनाना होगा। चंडीगढ़ में हुए हिंदी भाषा के राष्ट्रीय विचार गोष्ठी में यही निष्कर्ष के तौर पर सामने आया। सेक्टर 46 के गवर्नमेंट कालेज स्नातकोत्तर कालेज के मल्टीमीडिया सभागार में यह आयोजन हुआ। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित इस विचार गोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों से हिंदी के जाने-माने विद्वानों ने हिस्सा लिया। ‘वैश्वीकरण और हिंदी का प्रचार, प्रसार तथा प्रयोग की व्यावहारिकता, समस्याएं और समाधान’ विषय पर वक्ताओं ने अपनी-अपनी बात रखी। इसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के 120 से ज्यादा हिंदी विद्वानों ने शिरकत की। कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि हिंदी के विख्‍यात विद्वान गंगाप्रसाद विमल थे। मुख्‍य मेहमान के तौर पर चंडीगढ़ दूरदर्शन के निदेशक केके रत्तू थे।

संयुक्‍त राष्‍ट्र में हिंदी में बोले राजनाथ

भाजपा के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह ने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इसके खिलाफ जारी युद्ध जीतने के लिए विश्‍व के सभी संप्रदायों को आपस में सक्रिय सहयोग करना होगा. उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि हम सब आतंकवाद पर काबू पा ही लेंगे.

हिंदी को बिगाड़ रहे हैं हिंदी अखबार

: मुंबई विवि के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा : नवभारत टाईम्स के एनबीटी बनने पर चिंता : मुंबई : युवा पीढी के नाम पर कुछ अखबार हिंदी को हिंगलिश बनाने पर तुले हुए हैं. मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा में बुद्धिजीवियों की यह चिंता उभर कर सामने आई.

क्या हिन्दी रीजनल भाषा है?

शेष जीहिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने एक दिलचस्प विषय पर फेसबुक पर चर्चा शुरू की है. कहते हैं कि सारी पीआर कंपनियां हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल मीडिया कहती हैं. कोई विरोध नहीं करता. वक्‍त आ गया है कि उन्‍हें भारतीय भाषा कहा जाए. आगे कहते हैं कि मैं उनकी राय से सहमत नहीं हूं और उन सभी पीआर कंपनियों की भर्त्‍सना करता हूं जो सभी भारतीय भाषाओं को रीजनल कैटेगरी में डालती हैं.

हिंदी रुकने वाली नहीं है

अरविंद कुमार: बूढ़ी होती दुनिया में युवाओं का देश है भारत :हिंदी के उग्रवादी समर्थक बेचैन हैं कि आज भी इंग्लिश का प्रयोग सरकार में और व्यवसाय में लगभग सर्वव्यापी है। वे चाहते हैं कि इंग्लिश का प्रयोग बंद कर के हिंदी को सरकारी कामकाज की एकमात्र भाषा तत्काल बना दिया जाए। उनकी उतावली समझ में आती है, लेकिन यहां यह याद दिलाने की ज़रूरत है कि एक समय ऐसा भी था जब दक्षिण भारत के कुछ राज्य, विशेषकर तमिलनाडु, हिंदी की ऐसी उग्र मांगों के जवाब में भारत से अलग होकर अपना स्वतंत्र देश बनाने को तैयार थे।

‘हिंदी को ऐसे कई केशव राय चाहिए’

: विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने वाले कई युवा व प्रतिभाशाली हस्तियों को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित किया गया : अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान अलंकरण समारोह उज्जैन में सम्पन्न :

महाबलशाली देश मजबूर हैं हिंदी सीखने के लिए

[caption id="attachment_18135" align="alignleft" width="151"]दयानंद पांडेय का संबोधनदयानंद पांडेय का संबोधन[/caption]”कोई भाषा बाज़ार और रोजगार से आगे बढती है। हिंदी अब बाज़ार की भाषा तो बन ही चुकी है, रोजगार की भी इसमें अपार संभावनाएं हैं। अब बिना हिंदी के किसी का काम चलने वाला नहीं है। बैंक किसी भी बाज़ार की धुरी हैं। तो बैंक हिंदी को आगे बढाने में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि कोई भी भाषा विद्वान नहीं बनाते, जनता बनाती है। अपने दैनंदिन व्यवहार से। इसीलिए बैंकों की भूमिका हिंदी को आगे बढाने में बहुत बड़ी है।”

हिन्दी यूएनओ की भाषा बने : अनिरूद्ध जगन्नाथ

रायपुर। मारीशस के राष्ट्रपति श्री अनिरूद्ध जगन्नाथ ने कहा कि छत्तीसगढ़, भारत की साहित्यिक संस्था सृजन सम्मान द्वारा विश्वभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार, साहित्यकारों का सम्मान एवं हिन्दी की जो सेवा की जा रही है वह प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित करने का प्रयास करना अच्छी बात है। यह विचार उन्होंने ‘सृजन सम्मान’ द्वारा आयोजित साहित्यिक भ्रमण के अंतर्गत संयोजक द्वय जयप्रकाश मानस एवं एचएस टाकुर के नेतृत्व में मारीशस पहुँचे यात्रा समूह के सदस्यों के साथ आयोजित एक बैठक में व्यक्त किए।