नमस्कार भड़ास। पहले की तरह कुछ शब्द भड़ास के नाम। सब को पता है लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तम्भ माना गया है। जो विधायिका, न्यायपालिका व कार्यपालिका पर निगरानी के बाद उनके कार्यकलापों को जन- जन तक पहुंचाने का काम करता है। अब यहाँ जरुरत पड़ती दिखी मीडिया की इन्टरनल खबरों की। सब की खबर लेने वालों की भी खबर लेने वाला भी तो कोई होना चाहिए।
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जूतों का लाइव और मेरे जूते की गुमशुदगी
[caption id="attachment_20576" align="alignleft" width="94"]मनीष दुबे[/caption]बीते कुछ समय से मैं कंगाली काट रहा हूँ. पिछले दिनों भड़ास ने मेरी आप बीती “आजाद के गौरी ने हड़पे मेरे 35,000 रुपये” प्रकाशित की. कई लोगों के विचार आए, कई फ़ोन आए मेरे पास. इन सब के बीच आई- गई बातों के बीच सबसे पहले मैं भड़ास का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ, जिसने मुझे और मेरी कलम को अपने दिनोंदिन नामचीन होते पोर्टल में जगह दी. अपनी बात रखने का मौका दिया. थैंक्यू.
आजाद के गौरी ने हड़पे मेरे 35,000 रुपये
[caption id="attachment_20576" align="alignleft" width="94"]मनीष दुबे[/caption]इस बात को शायद मैं कहता नहीं, या कह न पाता! पर इन दिनों थोडा परेशानी में हूँ, इस कारण दिल की टीस उभर कर जुबान पर आ गई! और भड़ास जैसा माध्यम हो, जिसने सबको अपनी बात रखने का जरिया और प्लेटफ़ॉर्म इजाद किया है, काबिले तारीफ़ है! इस घटनाक्रम को हुए अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं!