बिन अन्ना आजतक हुआ सून, इंडिया टीवी फिर किंग

अन्ना के आंदोलन के दौरान आजतक पूरे फार्म में था. दर्शकों ने सबसे ज्यादा भरोसा इसी चैनल पर किया और सबसे ज्यादा इसी को देखा. इस कारण टीआरपी में यह चैनल अपनी नंबर वन की कुर्सी पर आसीन हो गया. लेकिन अन्ना आंदोलन के शांत होने के बाद अब जो टीआरपी आई है, उससे पता चलता है कि इंडिया टीवी ने फिर से नंबर एक कुर्सी पर कब्जा जमा लिया है. इंडिया टीवी थोड़े ही मार्जिन से नंबर वन बना है लेकिन कहा तो यही जाएगा कि आजतक नंबर दो पर चला गया है.

पतन-प्रहसन : नत्था लाइव इंडिया सुधीर चौधरी

[caption id="attachment_18365" align="alignleft" width="148"]अरुण जेटली से सवाल पूछता नत्थाअरुण जेटली से सवाल पूछता नत्था[/caption]यह मीडिया का पतन – प्रहसन काल है. पतन – प्रहसन अपने अंजाम तक नहीं पहुंचे हैं, इसलिए कई लोग आशंकित-अचंभित होते रहते हैं, पतन-प्रहसन के नए-नए तौर-तरीके देखकर. लाइव इंडिया नाम से एक न्यूज चैनल है. पहले जनमत नाम था. तब उसके मालिक कोई और थे. अब कोई और हो गए हैं.

जो सवाल करेगा, वही मारा जाएगा

: पत्रकारिता के फटीचर काल का सही चित्रण है पीपली लाइव : पीपली लाइव के आखिर के उस शाट्स पर आंखें जम गई…जब कैमरे ने कलाई में बंधे ब्रैसलेट को देखा था। जला हुआ। यहां भी मीडिया ग़लत ख़बर दे गया। नत्था तो नहीं मरा लेकिन एक संवेदनशील और मासूम पत्रकार मारा गया। फिल्म की कहानी आखिर के इसी शॉट के लिए बचा कर रखी गई थी। किसी ने राकेश को ठीक से नहीं ढूंढा, सब नत्था के मारे जाने की कहानी को खत्म समझ कर लौट गए।

10 वर्षों में 187000 ‘नत्था’ जान दे चुके हैं

[caption id="attachment_17959" align="alignleft" width="80"]रमेश भट्टरमेश भट्ट[/caption]एक नहीं, दो नहीं, इस देश में करोड़ों नत्था है। क्या हुआ जो पीपली लाइव का नत्था नहीं मरा। इस देश में 1997-2007 यानि 10 सालों में 187000 नत्था अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं। यह तो सरकारी रिकार्ड में दर्ज नत्थाओं के आंकड़े हैं। ऐसे न जाने कितने नत्था होंगे जिनका नाम सरकारी फाइलों में नहीं होगा। दरअसल राजनीति और मीडिया के लिए नत्था जैसा मसाला संजीवनी की तरह होता है। एक पक्ष अपने वोट बढ़ने की आस लेकर आनंदित होता है, दूसरा टीआरपी के खेल में मशगूल।

पीपली लाइव : राकेश उर्फ मीडिया का नत्था

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म पीपली लाइव ने धूम मचा रखी है. फिल्म के मूल में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का फटीचरपन दिखाया गया है. वैसे तो फिल्म में मीडिया के अलावा भी समाज के अन्य पहलुओं को छुआ गया है. पर पूरा फोकस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर ही है. फिल्म में आपको इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हर रूप के दर्शन हो जायेंगे. फिल्म में एक खास बात है फिल्म में एक स्ट्रिंगर राकेश की मौत. राकेश संवेदनशील पत्रकार था. किसी बड़े मीडिया चैनल में नौकरी पाना उसका सपना था. सब कुछ खत्म होने के बाद कोई भी राकेश को याद नहीं रखता और वह नेपथ्य में ही गुम हो जाता है.

पीपली लाइव : राकेश हम तुम्हें नहीं बचा पाए…

मयंक सक्सेनाउस वक्त तक मैं भूल चुका था कि मैं फिल्म देख रहा हूं, कुछ कुछ ऐसा लगने लगा था कि मैं भी उस भीड़ का हिस्सा हूं जो नत्था के घर के बाहर जुटी हुई थी. अब वो आम ग्रामीण हों. या मीडियावाले. उनमें से कोई एक बन कर मैं कहानी का हिस्सा बनता जा रहा था. शुरुआत में कई घटनाक्रमों पर लगातार हंसता रहा पर एक दृश्य में राकेश अपनी मोटरसाइकिल रोक कर मिट्टी खोदते बूढ़े़ का नाम पूछता है. और जवाब आते ही जैसे शरीर झनझना जाता है. तुरंत ‘गोदान’ आंखों के सामने से चलती जाती है. किसान से मजदूर हो जाने की व्यथा.

‘पीपली लाइव’ में न्यूज चैनलों का आतंकवाद

नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आतंकवाद पर सीधा प्रहार है फिल्म ‘पीपली लाइव’। जिस तरह आतंकवादी आम लोगों का जीना हराम कर देते हैं, ठीक उसी तरह कोई घटना घटित होने पर उससे जुड़े व्यक्ति और उसके परिवार वाले का जीना टीवी चैनल वाले हराम कर देते हैं।

महंगाई डायन वाले मास्साब और पीपली लाइव

प्रवीण दुबे: देखो मीडिया बना रहा है बजरंगबली : बजरंगबली बेहद बलशाली थे लेकिन कहते हैं, उन्हें अपनी ताकत का गुमान नहीं था. वो तब जाग्रत होते थे जब उन्हें ताकत का भान कराया जाता था. मीडिया भी ऐसी ही ताकत का भान कराकर कई लोगों को बजरंगबली बनाता है.

पीपली लाइव और एमपी का एक अखबार

आमिर खान की शायद ही कोई फिल्म ऐसी रहती है जिसकी चर्चा न हो। ऐसी ही एक अब सुर्खियों में है। पीपली लाइव। कहा जा रहा है कि पीपली लाइव  किसानों की हालत पर फोकस फिल्म है। मेरा मकसद यहां पर आमिर खान की फिल्म की तारीफ करना नहीं है। मेरा मकसद है कि जब आमिर खान किसानों की हालत पर फिल्म बना सकते हैं तो क्यों न लगे हाथों मध्यप्रदेश के प्रकाशित होने वाले उस अखबार का भी जिक्र हो जाए जिसकी नाम राशि आमिर खान की पीपली लाइव से मिलती है।

कुंजीलालों की पत्रकारिता और पीपली लाइव

: मास्टर कहें मीडिया काहें बैंड बजात है, पीपली लाइव मार जात है : भोपाल से 70 किलोमीटर दूर रायसेन जिले का एक गाँव बड़बई इन दिनों खासी शोहरत बटोर रहा है. सारा मीडिया इस गांव की ओर भाग रहा है पिछले दो तीन दिन से. मैं भी वहां चक्कर मार कर लौटा हूं. गांव की लोकप्रियता बढ़ने की वजह भी बड़ी माकूल है. आमिर खान की आने वाली फिल्म “पीपली लाइव” इसी गांव में शूट हुई है. ‘लगान’ के बाद ठेठ देसी अंदाज़ की फिल्म बनाने का जोखिम आमिर खान ही इस दौर में ले सकते हैं. इस फिल्म का एक गाना भी ख़ासा चर्चित हो रहा है….. सखी सैंया तो खूबई कमात हैं, महंगाई डायन खाई जात है…. इसे लिखा है इसी गांव के एक सरकारी स्कूल के मास्साब गया प्रसाद प्रजापति ने. इस गाने को फिल्म में रघुवीर यादव ने गाया है.