प्रभाषजी की टीम को हाशिए पर फेकने की साजिश!

: प्रभाष परंपरा की रचनात्मक पहल : कल रात उस जमात पर लिखने बैठा जिसने कुछ सालों पहले पूरे देश में गणेश जी को दूध पिला दिया था. इनके दुष्प्रचार तंत्र का यह सबसे रोचक उदाहरण रहा है. तभी दो जानकारी मिली. उस पोस्ट को रोक दिया है. पता चला कि भगवा रंग में रंगा प्रभाष परंपरा न्यास ने काम शुरू कर दिया. कैंसर से जूझ रहे साथी आलोक तोमर को धमकाने की कोशिश हुई. दूसरी सूचना पत्रकार सुप्रिया (आलोक तोमर की पत्नी) के बारे में मिली.

मैं फच्चर अड़ाने वालों में से नहीं हूं

आलोक तोमर: किस्से कहानियां छोड़ो, काम करो : उम्मीद है कि मेरे गुरु के काम में झापड़ की नौबत नहीं आएगी, मगर आएगी तो देखा जाएगा : प्रभाष जोशी के नाम पर बहस इतनी लंबी और इतने आयामों में फैल जाएगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। ऐसे ऐसे लोग बोले जिन्हें न प्रभाष जोशी से कोई मतलब था और न प्रभाष परंपरा का अर्थ ठीक से उन्हें समझ में आता है।

तब हम दूसरा न्यास बनाएंगे : आलोक तोमर

: राय साहब ने इस न्यास में मुझे शामिल होने लायक नहीं समझा : लेकिन इस न्यास में कई बेइमान लोग रख दिए : अंबरीश के बाद नैनीताल में मैं भी घर बनवाने जा रहा हूं : प्रभाषजी जैसे फक्कड़ बैरागी को इन भाई लोगों ने उत्सवमूर्ति बना दिया : पता नहीं हमारे मित्र संजय तिवारी को अचानक क्या हो गया है? प्रभाष परंपरा न्यास का जिस दिन गठन हुआ था उस दिन प्रभाष जी के घर एक अच्छी खासी बैठक हुई थी और तय हुआ था कि नामवर सिंह के संरक्षण में यह न्यास काम करेगा। जिन्हें नहीं पता हो उन्हें बताना जरूरी है कि प्रभाष परंपरा न्यास यह नाम मेरा दिया हुआ है और इस न्यास में आंकड़ों की हेराफेरी करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेखकों की रायल्टी हजम करने वाले एक प्रसिद्ध प्रकाशक हैं जिन्होंने खुद प्रभाष जी से लाखों रुपए कमाएं हैं, एक पत्रिका के मालिक हैं जो राज्यसभा में जाने के लिए आतुर बताए जाते हैं।

संजय तिवारी ने दिया अंबरीश के आरोपों का जवाब

15 जुलाई की शाम दिल्ली के गांधी दर्शन में प्रभाष जोशी को जानने मानने वाले कोई पांच सात सौ लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने उनके जाने के बाद पहला जन्मदिन मनाया. प्रभाष जी जब थे तब वे जन्मदिन पर भी अपनी उत्सवधर्मिता का पालन करते थे. उनके जाने के बाद जिस न्यास ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था उसकी कोशिश भी यही थी कि प्रभाष जी की उस परंपरा को भी जन्मदिन के बहाने बरकरार रखा जाए. जिस दिन यह कार्यक्रम हो रहा था, मैं खुद मुंबई में था. चाहकर भी नहीं पहुंच पाया क्योंकि दिल्ली और मुंबई के बीच अच्छी खासी दूरी है और मुंबई से दिल्ली पैदल चलकर नहीं जाया जा सकता था. फिर भी लोगों से बात करके जो पता चला वह यह कि खूब लोग आये और प्रभाष जी को याद किया.

व्याख्यान बनाम मुकुल शिवपुत्र

[caption id="attachment_17717" align="alignleft" width="71"]मयंकमयंक[/caption]माहौल में एक आवाज़ गूंज रही थी और अंतस में कुछ चलचित्र से चल रहे थे…. पहली बार प्रभाष जी के घर पर था… उन्हीं पुस्तकों के बीच में बैठा जहां कई बार प्रभाष जी को कई बार बाईट देते… लाइव या तस्वीरों में देखा था… कागद कारे पढ़ते हुए कई बार जिस व्यक्ति के व्यवहार के बारे में कल्पनाएं की थी…. वो सामने थे और कुछ भी अलग नहीं था जैसे लिखते थे वैसे ही थे वो…

बौनों के दौर में बहुत बड़े आदमी थे प्रभाषजी

: जन्मदिन पर आयोजन ने साबित किया : खचाखच भरा था संत्याग्रह मंडप : पंडित कुमार गंधर्व को बहुत सुनते थे प्रभाषजी. मालवा की दाल बाटी को बहुत पसंद करते थे प्रभाषजी. गांधीजी और हिंद स्वराज पर खूब बतियाते और सक्रिय रहते थे अपने प्रभाष जोशी जी. कल तीनों का ही संगम था.

15 की शाम प्रभाषजी के नाम

प्रभाष जोशी 15 जुलाई को 74 साल के हो जाते. उन्हें मिलना-जुलना, बोलना-बतियाना, खाना-खिलाना, उत्सव मनाना और संगीत सुनना अच्छा लगता था. इस परंपरा को बचाए रखने की पहल ‘प्रभाष परंपरा न्यास’ ने की है. पत्रकार जगत और प्रभाष जी के घर-परिवार के लोगों ने ‘प्रभाष परंपरा’ नाम देकर लोकार्पण, व्‍याख्‍यान और संगीत का एक सुघड़ कार्यक्रम 15 जुलाई की शाम के लिए तैयार किया है.