: प्रभाष परंपरा की रचनात्मक पहल : कल रात उस जमात पर लिखने बैठा जिसने कुछ सालों पहले पूरे देश में गणेश जी को दूध पिला दिया था. इनके दुष्प्रचार तंत्र का यह सबसे रोचक उदाहरण रहा है. तभी दो जानकारी मिली. उस पोस्ट को रोक दिया है. पता चला कि भगवा रंग में रंगा प्रभाष परंपरा न्यास ने काम शुरू कर दिया. कैंसर से जूझ रहे साथी आलोक तोमर को धमकाने की कोशिश हुई. दूसरी सूचना पत्रकार सुप्रिया (आलोक तोमर की पत्नी) के बारे में मिली.
जिस बहू सुप्रिया को आशीर्वाद देने खुद रामनाथ गोयनका गए थे, उनके खिलाफ एक न्यासी के गुमास्ते ने अश्लील टिप्पणी की. आज ही रामनाथ गोयनका को उनके नाम पुरूस्कार देकर याद भी किया जा रहा है. यह सूचना मै कुछ लोगों से विशेष तौर पर बाँटना चाहता हूँ जो प्रभाष जोशी के साथ सालों रहे है. सबकी खबर ले -सबकी खबर दे, का नारा गढ़ने वाले कुमार आनंद से जिन्हें प्रभाष जी इंतजाम बहादुर कहते थे. दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस एम्प्लाइज यूनियन के मेरे चुनाव में जब एक खेमे ने प्रभाष जोशी के लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया तो कुमार आनंद ने उन लोगों पर गुस्से में हाथ उठा दिया था और फिर जो हिंसा हुई उसमे कई घायल हुए और कुमार आनंद ने झुकने की बजाय इस्तीफा दे दिया था. कुमार संजय सिंह जो आलोक को अपना छोटा भाई बताते है और एक्सप्रेस यूनियन के मौजूदा अध्यक्ष अरविंद उप्रेती को भी जिन्होंने उस दिन हमला करने वालो का डटकर मुकाबला किया और तब से लेकर आज तक इन ताकतों से लगातार भिड रहे है.
साथ ही बनवारी, मंगलेश डबराल, सुरेन्द्र किशोर, श्रीश चन्द्र मिश्र, सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शम्भू नाथ शुक्ल, देवप्रिय अवस्थी, मनोहर नायक, सुशील कुमार सिंह, ओम प्रकाश, अनिल बंसल आदि से भी जो जनसत्ता के महत्वपूर्ण पत्रकारों में शामिल रहे हैं उन्हें भी यह जानकारी देना चाहता हूँ. उन संजय सिंह को भी जो उन लोगों में शामिल थे जिन पर जनसत्ता की वजह से तेज़ाब फेक दिया गया था. जनसत्ता के छत्तीसगढ़ संस्करण के साथी रहे अनिल पुसदकर, राजकुमार सोनी, संजीत त्रिपाठी से लेकर पटना के साथी गंगा प्रसाद, भोपाल में आत्मदीप, जयपुर में राजीव जैन और कोलकोता में प्रभाकर मणि से त्रिपाठी से भी पूछना चाहता कि न्यास में मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह पर सवाल खड़ा करने पर धमकाया जाएगा?
जनसत्ता प्रभाष जोशी का वह अखाडा था जिसमे बड़े बड़े चित हो गए. और प्रभाष जोशी जनसत्ता में जिस टीम को साथ लेकर चलते थे आज उस टीम को हाशिये पर फेकने की साजिश हो रही है. जनसत्ता में हर धारा के लोग रहे. वामपंथी, समाजवादी से लेकर धुर वामपंथी और संघी भी. वाद विवाद होता था पर यह नहीं कि किसी खास धारा के लोगों को हाशिये पर कर दिया जाए. पर आज एक धारा के लोग परंपरा के नाम पर जनसत्ता के लोगों का अपमान कर रहे हैं. क्या यही है प्रभाष परंपरा? आलोक तोमर जिस हालत में है हो सकता है उसमे वे ज्यादा कुछ न बोले, सुप्रिया जिस मनोदशा में है, वे भी टाल जाए पर उनकी ख़ामोशी से मामला रुकेगा नहीं.
देश के दूरदराज इलाको में, जिलों और कस्बों में पत्रकारिता की मशाल जलाने वाले साथियों, मानवाधिकार से लेकर जल जंगल जमीन के लिए संघर्ष करने वाले साथियों से इस मुद्दे पर जो समर्थन मिला है उसके हम आभारी है. उन वेबसाईट का भी आभार जिन्होंने इस सवाल को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया. ‘दैनिक 1857’ का भी जिस अकेले अखबार ने प्रभाष जोशी के जन्मदिन पर पूरा पेज निकला.
लेखक अंबरीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. इन दिनों जनसत्ता के यूपी ब्यूरो चीफ के रूप में लखनऊ में कार्यरत हैं. उनका यह लिखा उनके ‘विरोध’ ब्लाग से साभार लिया गया है.
Chandrabhan Singh
July 26, 2010 at 6:47 am
Very good. Prabhash ji ki teem ko hasiye per phenkne se Naye logo ko moka milega. Hum log nai urja se rubroo honge.
shailendra sengar
July 26, 2010 at 2:20 pm
ambrish jee ki shikayat hai ki isme Dr. girish kyun nahi hain jinke naam ke bina inka koi report hi pura nahi hota