26 नवंबर की रात… मैं रोज की तरह शूट पर था। दिन भर की मेहनत के बाद बढ़िया डिनर करने का विचार था। पूरे दिन मुझे कुछ भी खाने का समय नहीं मिला था। मैं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा रैकेट लिंक की स्टोरी बनाने और मालेगांव धमाके की इन्वेस्टिगेटिंग स्टोरी करने में लगातार व्यस्त रहा। तीन बजे से निशाद भी मेरे साथ था। वह सेशन कोर्ट में मालेगांव धमाके के आरोपियों की पेशी की कवरेज में था और मैं सेशन कोर्ट की ओबी वैन पर ही वाई.पी. सिंह की बाइट-पीटीसी और डी.जी. ए.एन.राय के हलफनामे की कॉपी के विजुअल्स भेजने गया था। शाम को मालेगांव मामले में एटीएस ने प्रेस कांफ्रेंस की, लेकिन उसमें कुछ निकला नहीं। तभी दिल्ली स्टूडियो से फोन आया कि रात 8 बजे प्रदीप शर्मा की स्टोरी पर मेरा लाइव है। 9 बजे मालेगांव पर निशाद का और 9.30 बजे शर्मा पर दोबारा मेरा लाइव है। हमने तय समय पर लाइव दिया।
हमारे साथ कैमरामैन राजेन्द्र और प्रशांत पारीख थे। ओबी इंजीनियर पुनीत मिश्रा और ओ.बी. अटेंडेंट उमेश यादव भी साथ थे। रात के 9.42 बजे थे। मोबाइल फोन पर कई मिस्ड कॉल आईं। एक नंबर तो 10 बार था। मैंने उसे चेक किया। वह मेरे इन्फॉर्मर का नंबर था। हम अंधेरी के लिए निकले थे और हमारी गाड़ी मेट्रो सिनेमा के सिग्नल तक पहुंची थी। तभी ताज होटल में दो गुटों में फायरिंग की खबर आई। मैंने डीसीपी- जोन 1 विश्वास नागरे पाटील को फोन मिलाया। घंटी बज रही थी, पर वे फोन नहीं उठा रहे थे। वे ऐसा कभी नहीं करते। मैं समझ गया कि दाल में कुछ काला है। मैंने और निशाद ने कई पुलिसवालों को फोन किया। नो रेस्पांस। तब हमने दोनों कैमरामैनों और ओबी वैन को ताज पहुंचने को कहा।
मैंने कोलाबा पुलिस थाने के एक कांस्टेबल को फोन लगाया। वह जल्दबाजी में बस इतना कह पाया…
‘दादा… कुछ मा…दों ने मुम्बई पर अटैक कर दिया। ताज, लियोपोल्ड कैफे में गोली चला दी। कई हैं वे…’
‘कौन हैं?’
‘पता नहीं। साब वहीं गये हैं।’
मामले की गंभीरता को समझकर मैंने दिल्ली असाइनमेंट को फोन किया। वहां सारा हाल बताते हुए हम ताज पैलेस होटल के पीछे वाली गली में बैक गेट के सामने पहुंच गये। अभी हमारे कैमरामैन नहीं आये थे। वहां काफी पुलिस लगी थी। दो रास्तों को बंद कर दिया गया था। इतने में तीर की तरह एक गाड़ी आकर हमारे सामने रुकी। कई युवक उसमें एक घायल को लेकर गए। उसके सिर में कई गोलियां लगी थीं। यानि वह अंधाधुंध फायरिंग का शिकार हुआ था। मैंने निशाद से विजुअल्स उसके मोबाइल फोन पर शूट करने को कहकर हमारे इनपुट हेड प्रबल प्रताप सिंह को फोन लगाया। आधे मिनट के भीतर निशाद ‘फोनो’ कर रहा था।
खबर ब्रेक हो गई थी। अब मैं उस गली में भागा, जहां पुलिस की पीली बत्ती की एक गाड़ी खड़ी थी। यह गाड़ी डीसीपी नागरे पाटील की थी। उनके ड्राइवर ने मुझे बताया, ‘साब ताज के अंदर गये हैं। अंदर कई हथियारबंद लोगों ने काफी लोगों को बंधक बना लिया है।’ मैंने उस ड्राइवर से ‘फोनो’ देने का अनुरोध किया, क्योंकि उसके पास कंट्रोल से लगातार जुड़ा वॉकी-टॉकी था। वो तैयार हो गया। मैंने फिर दिल्ली असाइनमेंट पर फोन किया। अपर्णा ने फोन उठाया। मैंने उसे सारा हाल बताया। वह ‘फोनो’ लेने को तैयार हो गई। लेकिन मेरे मोबाइल पर वहां से फोन आता, उससे पहले 10-15 लोग बेतहाशा भागते हुए मेरे सामने से गुजरे। वे चिल्लाते हुए निकले, ‘उनके हाथ में गन हैं… वे भागते हुए आ रहे हैं… सब भागो।’
और अगले ही क्षण मैंने दो लड़कों को एके47 लेकर अपनी ओर आते देखा। डीसीपी का ड्राइवर कूदकर गाड़ी में घुस गया। मैं भी गाड़ी में घुस गया। मैंने गाड़ी को लॉक कर लिया। दो पल में ही वे लड़के हमारे सामने आ धमके। उन्होंने दरवाजे पर लात मारनी शुरू कर दी। मुझे लगा कि मैंने दरवाजा नहीं खोला, तो वे गोली मार देंगे। इनकी ब्रश फायरिंग से हम दोनों की जान चली जाती। आखिर ड्राइवर से पूछे बिना मैंने दरवाजा खोल दिया।
जैसे ही मैं गाड़ी से बाहर निकला, आगे वाले लड़के ने मुझ पर गन तान कर कहा, ‘बोल नाम… सुना नहीं… नाम बोल।’ मेरे मुंह से बस ‘मैं… मैं…’ निकल पाया। वह फिर बोला, ‘अबे साले नाम बोल… क्या करता है?’ अंदर गाड़ी में पुलिस भी है क्या? ड्राइवर की सीट पर बैठे हवलदार के हाथ से वॉकी-टॉकी गिर गया। वह बुत की तरह हो गया। अंदर कोई हलचल नहीं थी। अगर हम जरा-सी भी हलचल करते, तो वे उसे काउंटर अटैक समझकर हमें तुरंत गोली मार देते। गली में दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। मुझे अपनी आंखों के सामने मौत नाचती नजर आई। मैं घबराहट में उनकी शक्ल भी नहीं देख सका। मेरी नजर तो बस एके 47 पर जमी थी… मुझे लग रहा था कि बस अब इसकी नाल से गोली निकली और मेरी कहानी खत्म। मेरे मुंह से बस इतना निकला, ‘रिपोर्टर हूं।’ तभी हमने कुछ कदमों की अपनी तरफ आती आवाज सुनी। उस आवाज को सुनकर वे दोनों गालियां देते हुए ताज के पिछले गेट की ओर भागे। शायद उन्हें हम दोनों को मारने से बड़ा काम करना बाकी था। शायद मेरे रिपोर्टर बोलने का उन पर कुछ असर हुआ होगा, क्योंकि उन्हें अपनी करतूत दुनिया तक पहुंचाने के लिए मीडिया की जरूरत महसूस हुई होगी।
कदमों की वो आहट एसआरपीएफ जवानों के बूटों की थी और शायद वे दोनों लड़के वही थे, जिन्होंने ताज से दो गली दूर लियोपोल्ड कैफे पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। जवानों के पास आते ही मैं गाड़ी से कूदकर बाहर आया और जवानों को अपना आई-कार्ड दिखाकर ओबी वैन की तरफ भागा। निशाद फोनो दे रहा था। मैंने ओबी को ट्रैक होते रखा। मैंने पहली बार ओबी को बिना एंटिना गिराए ताज के मेन गेट पर लगाने को कहा। ओबी इंजीनियर ने एंटिना गिराए बिना ओबी को शायद ही पहले कभी एक जगह से हटाकर दूसरी जगह लगाया होगा। इससे ओबी एंटिना कंट्रोलर खराब होने का डर लगता है। इन हालात में हमने यह जोखिम भी उठाया।
राजेन्द्र को कैमरे के साथ लेकर मैं तेजी से ताज के गेट की ओर भागा। इतने में दिल्ली से अपर्णा ने ‘फोनो’ देने को कहा। मैंने एंकर समीर को फोनो दिया। थर्राती आवाज में, जिंदगी और मौत के वे 15 सेकेंड किसी तरह बयान किए। अगले दो मिनट में ओबी का ऑडियो-वीडियो थ्रू हो चुका था और हमारा लाइव सबसे पहले ऑन एयर हो गया।
फायरिंग की आवाज आ रही थी। न्यू ताज होटल से एक विदेशी महिला की बॉडी निकालने का लाइव शॉट भी हमने सबसे पहले दिया। रात 10.12 बजे हमने सबसे पहले यह खबर ब्रेक की कि ये आतंकी हमला है। तभी ताज का मैनेजर हमें हटाने पहुंचा। हम लगातार ताज में घुसने की कोशिश कर रहे थे। मैंने उसके मुंह पर माइक लगाकर सवाल पूछा, ‘कितने मरे?’ ‘अंदर कितने आतंकी हैं?’
वह हड़बड़ाकर बोला, ’10 हैं’। मैंने खुद देखा है।’
और मैंने न्यूज बेक्र की, ‘ताज में हैं 10 आतंकी।’
इतने में दो और बॉडी निकली गईं। मैंने आगे खबर की, ‘कुल तीन लोगों की मौत हो चुकी है और भी कई लोगों को गोलियां लगी हैं। ताज में अंधाधुंध फायरिंग हो रही है…।’
तभी हमसे करीब 200 फुट दूर एक ग्रेनेड गिरा-धम्म! कैमरामैन राजेन्द्र पीछे हटा। ओबी अटेंडेंट जान बचाकर भागा। इंजीनियर भी गायब! गन पाउडर की तेज गंध हवा में फैली। मैंने चिल्लाकर ओबी वालों को बुलाया।
अब तक टीवी पर मुझे देख रहे मेरे परिजन के मुझे फोन आने लगे। दोस्त, परिचित, शुभिंचंतक, सभी मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। मेरी पत्नी रंजना लगातार रोते हुए फोन कर रही थी। मैंने उसे डांटकर कहा, ‘जिंदा हूं… आज रात घर नहीं आऊंगा। आतंकी हमला हो गया है। मैं गेटवे पर हूं… फोन काटो।’
वह बोली, ‘मैं 10 बजे से लगातार टीवी देख रही हूं। मुझे तुम्हारे पास आना है।’
मैं बोला, ‘सारी गाड़ियां बंद हो गई हैं। चिंता मत करो।’
उसने कहा, ‘हर आधे घंटे में मुझे अपना हाल बताते रहना।’
मैंने उसे डांटकर कहा, ‘अब मुझे क्या यही काम रह गया है?´
और फोन काट दिया। मैंने अपनी पत्नी को पहली बार डांटा था। इसका अफसोस करते हुए मैं फिर खबर ब्रेक करने लगा।
मृतकों की संख्या जानने के लिए मैंने जॉयंट पुलिस कमिश्नर के. एल. प्रसाद को फोन किया। उन्होंने बताया, ‘मैं कंट्रोल रूम में हूं। चार जगह हमला हुआ है और 13 मरे हैं।’
दिल्ली से पता चला है कि हमारे ब्यूरो हैड संजय सिंह सीएसटी पर हैं। वहां भी फायरिंग हुई है और ग्रेनेड फेंके गये हैं। विले पार्ले में एक टैक्सी में बम फटा था। वहां अशोक राज और रवि रिपोर्टिंग कर रहे थे। तभी खबर आई कि कोलाबा मार्केट में नरीमन हाउस पर भी आतंकवादियों ने हमला किया है। वहां हमारी रिपोर्टर प्राची जतानिया पहुंच गई थीं। फिर ओबेरॉय होटल पर भी हमले की खबर आई।
मैंने अभी तक सात अखबारों, एक वेबसाइट कंपनी, एक प्रोडक्शन हाउस और तीन चैनलों में काम किया है। मैंने नांदेड, परभणी, लातूर और मालेगांव के दंगे तथा 1999, 2001, 2002, 2003, 2005, 2006, 2007 और 2008 के धमाके भी कवर किये। लेकिन आतंकवादियों की सीधी कार्रवाई पहली बार कवर कर रहा था। पहली बार ही इतनी दहशत और इतना खौफ भी देख रहा था।
रात का एक बज गया था। तभी एक हताशाजनक खबर आई। कामा अस्पताल के पास एटीएस चीफ हेमंत करकरे, जांबाज अशोक काम्टे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर शहीद हो गये थे। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने के. एल. प्रसाद को फोन किया। वे बोले, ‘नो कमेंट।’ करीब 20 मिनट बाद एटीएस के अफसर और जवान ताज पहुंच गये। रात दो बजे के आसपास नेवी और मारकोस की तीन टुकड़ियां भी आ गईं। तभी ताज के छोटे गुंबद पर पहला धमाका हुआ। इससे वहां आग लग गई। आधे घंटे बाद बड़ा गुंबद भी जलने लगा। दस मिनट बाद फायर ब्रिगेड की कई गाड़ियां टन-टन करती आ पहुंचीं। उनके जवान जान जोखिम में डालकर आग बुझाने और अंदर फंसे लोगों को निकालने में जुट गये। हमने यह रेस्क्यू ऑपरेशन लाइव दिखाया। रात तीन बजे तक सेना की भी पांच टुकड़ियां ताज पहुंच गईं। चार बजे पता चला कि दिल्ली से एनएसजी कमांडो आ रहे हैं। हम गेटवे के पास से शॉट ले रहे थे। हमें लाइट का इस्तेमाल करने की मनाही कर दी गई, क्योंकि इससे ताज के अंदर से आतंकी हमें टारगेट कर सकते थे। दिल्ली से कैमरा लाइट ऑन कर ‘लाइव’ करने को लगातार कहा जा रहा था, लेकिन मैं उन्हें वस्तुस्थिति बताकर केवल ‘फोनो’ देता रहा।
खड़े-खडे़ रात बीती। सुबह 10 बजे आईबीएन-18 नेटवर्क के चेयरमैन राजदीप सरदेसाई भी ताज पहुंच गये। उन्होंने मेरे साहस पर शाबाशी दी। दोपहर 12 बजे आतंकवादियों ने फिर ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिये। इस बीच, 70 से ज्यादा विदेशी और करीब 150 भारतीय ताज से सुरक्षित निकाले जा चुके थे।
दोपहर को मैंने करीब 15-16 घंटे बाद पानी पिया और ऑफिस से आया ब्रेड-बटर खाया। तभी पता चला कि बड़े मियां रेस्तरां और गोकुल रेस्तरां में आरडीएक्स से भरा बैग मिला है। मैं खाना बीच में छोड़कर कैमरामैन दिपेश के साथ उधर भागा। आतंकियों ने ताज में घुसने से पहले यह बम बाहर छोड़ दिया था। लेकिन टाइमर खराब हो जाने के कारण यह फटा नहीं और सैकड़ों जानें बच गईं। घड़ी की सुइयां आगे बढ़ती रहीं। दोपहर से शाम हुई और शाम से रात। ताज के अलावा ओबेरॉय-ट्राइडेंट और नरीमन हाउस में भी कमांडो ऑपरेशन जारी था। दिल्ली से मुझे संदेश मिला, ‘जे.पी., सो जाओ। सुबह 5 बजे तुम्हारा लाइव है।’ मेरा शरीर संवेदनहीन हो चला था। मैं 39 घंटे से वही कपड़े पहने था। चाय पी-पीकर भूख मर चुकी थी। मगर जागे रहने के लिए चाय पीते रहना मजबूरी थी।
मैं थोड़ी देर के लिए घर गया। खिचड़ी के साथ दूध पीकर सो गया। चार बजे का अलार्म लगाया था, पर आंख नहीं खुली। सुबह पांच बजे पत्नी ने जगाया। तैयार होकर मैं ओबेरॉय होटल पहुंचा। वहां से 6.30, 7, 8 और 9 बजे लाइव दिया। सुबह 9.30 बजे कैमरामैन राजेन्द्र के साथ मरीन ड्राइव पुलिस थाने गया। वहां वो क्वालिस जीप खड़ी थी, जिसमें करकरे, काम्टे, सालस्कर और तीन हवलदारों को दो आतंकियों इस्माइल खान और अजमल कसाब ने गोलियों से छलनी किया था। इस गाड़ी पर हर तरफ गोलियों के निशान थे। मैंने उसका ‘वॉक थ्रू’ दिया। तभी एटीएस के सूत्रों से मुझे इन आतंकियों के पास से राहुल जाधव और दिनेश कुमार के नाम के फर्जी आई कार्ड मिलने की खबर 12.42 बजे मिली, जिसे मैंने ब्रेक किया।
वहां से मैं ताज गया। आतंकियों ने मीडिया की ओर टारगेट किया था। इस कारण हमें लेटकर रिपोर्टिंग करनी पड़ रही थी। रात आठ बजे मैं नरीमन हाउस गया। कोलाबा मार्केट का यह इलाका दहशत में डूबा था। पूरा इलाका बंद था। कमांडो आस पास की इमारतों की छतों पर भी तैनात थे। सड़कों पर लोग एक्शन को देखने उमड़े पड़ रहे थे और उन्हें दूर रखने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। कैमरामैन विजयानंद के साथ मैं भी पास की एक ऊंची इमारत पर चढ़ गया। नाइट रिपोर्टर के आने के बाद मैं रात 12.45 बजे घर चला गया।
मैं 29 नवंबर को सुबह छह बजे नरीमन हाउस के लिए निकला। वहां पहुंचा ही था कि ताज में जबरदस्त फायरिंग होने का पता चला। दरअसल नरीमन हाउस में दोनों आतंकी अबू उमर और अबू अक्शा मारे तो पहले ही गये थे, पर कमांडो ने इसे 29 नवंबर की सुबह ही सुरक्षित घोषित किया। इसी समय ताज का ऑपरेशन भी खत्म हुआ। मैंने इन तीनों जगह के ऑपरेशन की लगातार कवरेज की थी। ये मेरे जीवन के अविस्मरणीय क्षण थे। मैंने शरीर और दिमाग को तोड़ डालने की हद तक काम किया था। यह काम करने का मुझे बहुत संतोष था। ऐसा संतोष शायद फिर कभी न मिले। … न ही मिले!
जयप्रकाश सिंह
स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट,
आईबीएन 7
raj
November 26, 2010 at 8:24 am
jai parkash ji namskar. apke bahaduri bhare karname ko salam.
Shashank Singh
November 26, 2010 at 11:33 am
J. P. shabd kaa matlab hi Andolan hona chahiye tha, aapki kahani padhane ke baad mere rongate khade ho gaye. Lajbab ………Greate JP JEE , Esi noubat mere sath naa aaye Bhagwan se dua karta hun. Kyonki Is noubat se desh ki Bhavish judi huyi hai.
kaptan mali
November 27, 2010 at 5:15 am
sirji aap ki ek coverage hum jaise patrakaro ke liye ek aadarsh hai. kaptan mali