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कितने अखबारों को मिलता है ऐसा सम्मान?

घनघोर बाजारीकरण के दौर में अच्छे-भले अखबार भी नंग-धड़ंग होते जा रहे हैं और अपनी खबरों तक की कीमत लगाने को तैयार बैठे हैं. ऐसे दौर में भी दी हिंदू जैसा अखबार अपने कंटेंट, तेवर, तथ्य, जनपक्षधरता और ईमानदारी के चलते गंभीर पाठकों के बीच लोकप्रिय बना हुआ है. पिछले दिनों चंडीगढ़ के एक चपरासी की बेटी ने जब सिविल सर्विस में सफलता पाई तो उसने अपने बयान में कहा कि वह दी हिंदू को पढ़कर इस मुकाम तक पहुंच सकी है.

<p style="text-align: justify;">घनघोर बाजारीकरण के दौर में अच्छे-भले अखबार भी नंग-धड़ंग होते जा रहे हैं और अपनी खबरों तक की कीमत लगाने को तैयार बैठे हैं. ऐसे दौर में भी दी हिंदू जैसा अखबार अपने कंटेंट, तेवर, तथ्य, जनपक्षधरता और ईमानदारी के चलते गंभीर पाठकों के बीच लोकप्रिय बना हुआ है. पिछले दिनों चंडीगढ़ के एक चपरासी की बेटी ने जब सिविल सर्विस में सफलता पाई तो उसने अपने बयान में कहा कि वह दी हिंदू को पढ़कर इस मुकाम तक पहुंच सकी है.</p> <p>

घनघोर बाजारीकरण के दौर में अच्छे-भले अखबार भी नंग-धड़ंग होते जा रहे हैं और अपनी खबरों तक की कीमत लगाने को तैयार बैठे हैं. ऐसे दौर में भी दी हिंदू जैसा अखबार अपने कंटेंट, तेवर, तथ्य, जनपक्षधरता और ईमानदारी के चलते गंभीर पाठकों के बीच लोकप्रिय बना हुआ है. पिछले दिनों चंडीगढ़ के एक चपरासी की बेटी ने जब सिविल सर्विस में सफलता पाई तो उसने अपने बयान में कहा कि वह दी हिंदू को पढ़कर इस मुकाम तक पहुंच सकी है.

सिविल सर्विस में सेलेक्ट हुई उस लड़की का नाम है संदीप कौर. संदीप का कहना है कि वह दी हिंदू के एडिट पेज का एक भी आर्टिकल कभी मिस नहीं करती. करेंट अफेयर्स, नेशनल और इंटरनेशनल डेवलपमेंट्स के लिए वह हमेशा दी हिंदू पर निर्भर रहती थी. दी हिंदू की खबरों व लेखों से उसे एक दृष्टि मिली, जिसका फायदा उसे एक्जाम में मिला. संदीप कौर जब गांव में होतीं तो उनके पिता या चचेरे भाई बस से 20 किमी चलकर नजदीकी शहर जाते और दी हिंदू की कापी न्यूजपेपर एजेंट से लेकर आते.

कई बार जब कोई नहीं जाता तो न्यूजपेपर एजेंट के यहां कापियां जमा होती रहतीं और इकट्ठे किसी दिन पिता या भाई जाकर दी हिंदू अखबार ले आता. संदीप अखबार को पूरी गंभीरता के साथ पढ़ती. एक चपरासी की बेटी जो हिंदी-पंजाबी इलाके में रहती है, सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दी हिंदू पर निर्भर करती है, किसी और हिंदी पंजाबी अखबार पर नहीं. यह हिंदी पंजाबी अखबारों के लिए शर्म की बात है. इन अखबारों ने भले ही खूब पैसे कमा लिए हों और खूब ज्यादा प्रसार के कारण नंबर टाप टेन में शामिल हो गए हों लेकिन सच्चाई तो यही है कि इनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है. इनकी ब्रांडिंग कमजोर है. असली ब्रांडिंग वही है जिसमें जनता की जुबान से तारीफ निकले.

दी हिंदू में संदीप कौर से पूरी बातचीत पर एक स्टोरी प्रकाशित हुई है जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है.


I owe it to The Hindu, says Punjab winner

Sarabjit Pandher

CHANDIGARH: Overwhelmed by a deluge of accolades for clearing the civil services examinations, Sandeep Kaur, daughter of a peon, acknowledges the major role played by The Hindu in her success. “I did not miss any article on the Edit page as well as in the Opinion section,” the civil engineering graduate from the Punjab Engineering College told this correspondent.

As her family resources were limited, Ms. Kaur never opted for any formal coaching for the civil services examinations, in which she had not succeeded in a previous attempt. She chose Sociology and Punjabi literature as her subjects for the civil services examinations, in which she was ranked 138th this year.

For nearly five years, she had followed the guidelines given by her teachers, seniors and friends. “But the most important factor in my preparations was thorough reading of The Hindu, which provided a proper insight into current affairs, national and international developments.”

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Ms. Kaur’s father or her cousin Jaspreet Singh would travel nearly 20 km by bus to get her a copy of the newspaper from an agent at Kharar town.

“The agent was kind enough to keep copies for a few days, in case we could not collect them,” she recalled, adding that interviews by successful candidates and advice by her teachers led her to reading The Hindu regularly.

While the Punjab government plans to use her success in its fight against female foeticide, Ms. Kaur says she is prepared to serve anywhere in the country. Poverty eradication and equal opportunities for all will remain her priorities, avers the eldest of the three siblings, whose father, Ranjit Singh, is employed in the sub-tehsil office at Morinda, about 30 km from here.

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0 Comments

  1. कमल शर्मा

    May 14, 2010 at 12:46 pm

    संदीप कौर को बधाई। हिंदू और उनकी पत्रिका फ्रंटलाइन दोनों ही पढ़ने पर लगता है ज्ञान के चक्षु खुल रहे हैं। आपने सही कहा कि हिंदी और भाषाई अखबारों के कंटेंट में दम ही नहीं रहता। चाकू मारा, बलात्‍कार, लूटपाट, ट्रक गिरा 25 मरे, लड़कियों से छेड़छाडु, ऑटो चालक लूट रहे हैं, पुलिस वाले सो रहे हैं और ढेरों पता नहीं ऐसी रद्दी खबरें। संपादकीय पेज पर अप्रांसगिक और घटिया लेख जिनसे समाज या देश को कोई फायदा नहीं। भाषाई से पहले हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं को अपने को सुधारना होगा।

  2. prabhat

    May 15, 2010 at 6:34 am

    Hindi me V aisee pahal ho rahee hai aap thoda khojbeen to kariye. “The Public Agenda” aur “Samyantar” jaisee patrika hindi me chap rahee hai. Han, filhal The Hindu jaisa koi akhbaar Hindi me sachmuch nahin hai.
    Thanks

  3. Gourav Singh

    May 15, 2010 at 10:40 am

    sabse phale sandip kaur ko badhai!
    hindi ka astar aaj intna niche gir gaya hai ki ise uthne me kai saal lag jayenge, agar ham apni savyata aur sanskriti na bhule to. hindi patrakarita me aise logoun ki bhir ho gai hai jise hindi bhi achhi tarah se nahi aati. hindi patrakariti me waise log hai jinki pahuch bari hai, sabse pahle hame ispar vichar karna hoga, pata nahi kabtak aisa chalega. dekhte hai, age kya hota hai.
    dhanyabad sahit!

  4. अनु

    May 16, 2010 at 3:36 pm

    ” दि हिन्दू” या “द हिन्दू” कृपया समाचार पत्र का नाम ठीक लिख कर सम्मान करें .

  5. Jitender 'Jeet'

    May 20, 2010 at 2:49 pm

    यशवंत भाई को नमस्कार!
    भड़ास लगातार देखता हूँ। पहली बार कुछ लिख रहा हूँ।
    संदीप कौर ने द हिन्दू से कुछ सीखा, ये उसकी सीखने की लगन को दर्शाता है। इसमें यह कहना गलत होगा की बाकी न्यूज़ पेपरों या चंडीगढ़ के हिंदी-पंजाबी अख़बारों के लिए शर्म की बात है।
    सीखना न सीखना तो पढने वाले पर निर्भर करता है। यह पढने वाले की सोच तय करती है कि वह पठनीय सामग्री में से अच्छा ग्रहण करता है या बुरा। कोई भी अखबार बुरा लिखकर अपने लिए ही बुरा करता है। हाँ यह सही है कि आज के व्यवसायीकरण के इस दौर में अखबार अपनी खबरों तक की कीमत लगाने लगे हैं, लेकिन हर अखबार में कुछ न कुछ अच्छा होता है।
    फिर भी संदीप कौर द हिन्दू से सीखकर सिविल सर्विस में सेलेक्ट हुईं, जो दुसरे अखबारों के लिए सीख का विषय है।

    जीतेंदर जीत,
    आज समाज, अम्बाला

  6. Jitender 'Jeet'

    May 20, 2010 at 2:50 pm

    यशवंत भाई को नमस्कार!
    भड़ास लगातार देखता हूँ। पहली बार कुछ लिख रहा हूँ।
    संदीप कौर ने द हिन्दू से कुछ सीखा, ये उसकी सीखने की लगन को दर्शाता है। इसमें यह कहना गलत होगा की बाकी न्यूज़ पेपरों या चंडीगढ़ के हिंदी-पंजाबी अख़बारों के लिए शर्म की बात है।
    सीखना न सीखना तो पढने वाले पर निर्भर करता है। यह पढने वाले की सोच तय करती है कि वह पठनीय सामग्री में से अच्छा ग्रहण करता है या बुरा। कोई भी अखबार बुरा लिखकर अपने लिए ही बुरा करता है। हाँ यह सही है कि आज के व्यवसायीकरण के इस दौर में अखबार अपनी खबरों तक की कीमत लगाने लगे हैं, लेकिन हर अखबार में कुछ न कुछ अच्छा होता है।
    फिर भी संदीप कौर द हिन्दू से सीखकर सिविल सर्विस में सेलेक्ट हुईं, जो दुसरे अखबारों के लिए सीख का विषय है।

    जीतेंदर जीत,
    आज समाज, अम्बाला

  7. TILAK CHAWLA KULLU

    July 21, 2010 at 11:39 am

    It is a matter of shame for the Haryana State & for the CM of Haryana who didnt high light & encouraged the boy Mohit Chawla from Ambala who stood 110 rank.I appreciate CM of Punjab & ,Media of Punjab for encourging the girl Sandeep Kaur .& congratulating her for the sucess in IAS exam 2010.I think Haryana CM might have no time for the people of Haryana.He should learn the lesson from the neighbouring State Punjab.
    TILAK CHAWLA AMBALA

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