‘आज तक’ में पी कर आने वालों का ब्रेथ एनालाइजर व एलकोमीटर से होने लगा टेस्ट : टीवी टुडे ग्रुप ने रात की पारी में शराब पीकर आने वालों या आने के बाद शराब पीने वालों पर लगाम लगाने के लिए पहल शुरू कर दी है। प्रबंधन ने शाम के वक्त आफिस में घुसने वाले प्रत्येक शख्स का ‘एलकोमीटर’ व ‘ब्रेथ एनालाइजर’ के जरिए ‘लिकर टेस्ट’ अनिवार्य कर दिया है। अभी तक इन उपकरणों का इस्तेमाल दिल्ली पुलिस रात के वक्त नशे में ड्राइविंग पर पाबंदी के लिए करती रही है। पर इसे मैनेजर लोग अब पत्रकारों को काबू में लाने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं। फिलहाल इस टेस्ट को आज तक, तेज व हेडलाइंसस टुडे के पत्रकारों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। टेस्ट से पलक झपकते ही पता चल जाता है कि ब्रेथ एनालाइजर में फूंक मारने वाले शख्स ने पी रखी है या नहीं। जो भी टेस्ट में मदिरामय मिल जा रहा है, उसकी रिपोर्ट सीधे सीईओ के पास जा रही है।
इस टेस्ट से पीने-पिलाने वाले फिलहाल दहशत में हैं। भड़ास4मीडिया को टीवी टुडे ग्रुप के उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ग्रुप के न्यूज चैनलों आज तक, तेज और हेडलाइंस टुडे की रात की पारी में जो लोग काम पर आते हैं, उनमें कई लोग पी कर आते हैं और कुछ लोग आने के चंद घंटों बाद बाहर निकल कर अपनी कार में पीना शुरू कर देते हैं। इस बात की शिकायत प्रबंधन को लगातार मिल रही थी। वैसे भी, यह प्रवृत्ति सिर्फ टीवी टुडे ग्रुप के चैनलों में ही नहीं है। अन्य बड़े न्यूज चैनलों और अखबारों में भी कई लोग रात के वक्त पीकर काम पर आते हैं या देर रात चुपके से पी लेते हैं। प्रत्येक मीडिया हाउस समय-समय पर इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाता रहा है लेकिन टीवी टुडे ग्रुप ने ब्रेथ एनालाइजर का इस्तेमाल कर नई परंपरा की शुरुआत कर दी है। पुलिसिया अंदाज में चेकिंग की यह तरकीब सही है या गलत, यह तो बहस का विषय है लेकिन दारूबाजी से परेशान अन्य न्यूज चैनल भी इस प्रयोग का अनुकरण अपने यहां जल्द करेंगे, यह तो तय है।
टीवी टुडे ग्रुप प्रबंधन की नई पहल से इस समूह से जुड़े कई पत्रकार नाराज हैं और इसे पत्रकारों को अपमानित करने व प्रबंधन की ‘दरोगई’ कायम करने का नया तरीका करार दिया है। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक पत्रकार ने बताया कि टीवी टुडे ग्रुप में वैसे ही पत्रकार मुंह बंद कर रोबोट की माफिक 10 से 12 घंटे तक कार्य करते हैं। इन घंटों में हर पत्रकार से इस कदर काम लिया जाता है कि वह आफिस से निकलने के बाद किसी लायक नहीं बच पाता। अगर रात में कुछ लोग कुछ पैग पी कर आते हैं या आने के बाद पी लेते हैं ताकि वे 12 घंटे की भारी-भरकम ड्यूटी को तनावमुक्त होकर निभा सकें, तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट जा रहा है। असल सवाल यह है कि क्या वे पीकर कोई हुड़दंगी करते हैं या काम को प्रभावित करते हैं? अगर वे सहज तरीके से अपना काम संपादित करते हैं तो इससे किसी को क्या दिक्कत? प्रबंधन को पत्रकार के खराब या अच्छा होने का सुबूत उसके काम से लेना चाहिए, न कि उसके पिए होने या न पिए होने से। उधर, कई पत्रकार जो नहीं पीते हैं, इस पहल से बेहद खुश हैं। इनका कहना है कि जो लोग पी कर आते हैं या आने के बाद पीने लगते हैं, वे काम के माहौल को खराब करते हैं। ऐसे पीने वाले लोग खुद तो ज्यादा कुछ करते नहीं, अन्य लोगों के काम में भी दखलंदाजी करने लगते हैं और उन्हें डिस्टर्ब करना शुरू कर देते हैं। इस कारण प्रबंधन ने आफिस में आने वालों का जो टेस्ट लेना शुरू किया है, वह एकदम वाजिब है। कुछ लोग इस आधार पर भी इस टेस्ट का विरोध कर रहे हैं कि स्वाइन फ्लू के इस दौर में सभी से एक ही मशीन में फूंक मारने को कहा जाता है। इससे कहीं किसी को इनफेक्शन न हो जाए। पर प्रबंधन किसी की एक नहीं सुन रहा है। वह अपनी जिद पर अड़ा है कि बिना टेस्ट दिए कोई आफिस के अंदर नहीं घुस सकता।
दरअसल अखबार या टेलीविजन में रात की पारी में काम करने वालों में पीने की प्रवृत्ति डेवलप होने के पीछे कई वाजिब कारण हैं। रात की ड्यूटी को वैसे तो अप्राकृतिक माना जाता है लेकिन 24 घंटे वाले न्यूज चैनलों व देर रात छपने वाले अखबारों की रात्रिकालीन पारी में जो लोग काम करते हैं, वे खुद को सक्रिय रखने के लिए मदिरा से लेकर सिगरेट व गांजा आदि का सहारा लेते हैं। खासकर न्यूज चैनलों की बात करें तो रात में करने के लिए बहुत कुछ होता नहीं है। दिन वाले प्रोग्राम ही रात में चलाए जाते हैं। कभी कोई बड़ी घटना रात में हो जाती है तो उसे छोड़कर बाकी सामान्य दिनों में रात की पारी के लोग खाली ही रहते हैं। वे अपना खालीपन भगाने और खुद को इंगेज रखने के लिए ग्रुप बनाकर आफिस के बाहर कार में पीने-पिलाने का दौर चलाते हैं। टीवी का काम देखने के लिए ऐसे लोगों को छोड़ दिया जाता है जो पीते ही नहीं हैं। पत्रकारिता में मदिरा सेवन हमेशा से विवाद का विषय रहा है। कई क्रिएटिव व अपने काम में सिद्धहस्त लोग कहते हैं कि उनकी रचनात्मकता ड्रिंक के बाद बढ़ जाती है और वे अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे पाते हैं। वहीं जो लोग मदिरा सेवन नहीं करते, उनका कहना होता है कि मदिरा सेवन करने वाले लोग काम को ठीक तरीके से संपादित नहीं कर पाते और ऐसे अन्य नान-क्रिएटिव व अन-प्रोडक्टिव कार्यों में लग जाते हैं जिससे संस्थान का कोई हित नहीं होता।
आप क्या सोचते हैं-
- पत्रकारिता में मदिरा सेवन जरूरी है या नहीं?
- क्या मदिरा सेवन करने वाले लोग ज्यादा क्रिएटिव होते हैं?
- क्या ब्रेथ एनालाइजर का इस्तेमाल कर पत्रकारों की निजता का उल्लंघन किया जा रहा है?
- साहित्य और मीडिया से मदिरा सेवन कभी खत्म किया जा सकता है?
- दमदार साहित्य और अच्छी खबर या रिपोर्ट वे ही रच पाते हैं जो मदिरा पीते हैं?
- क्या मीडिया और मदिरा के बीच चोली-दामन का रिश्ता नहीं रहा है?
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