: मेरी भोपाल यात्रा (1) : भोपाल से आज लौटा. एयरपोर्ट से घर आते आते रात के बारह बज गए. सोने की इच्छा नहीं है. वैसे भी जब पीता नहीं तो नींद भी कम आती है. और आज वही हाल है. सोच रहा हूं छोड़ देने की.
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फेसबुक पर मदिरा महात्म्य… अथ श्री राजू मिश्रा उवाच
वेब-ब्लाग ने बहुत से लोगों को मंच प्रदान किया है. संपादकों से दूर. संपादन से परे. जो दिल में वो जमाने के सामने. इंटरनेट ने पोर्टल, ब्लाग, फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यमों के जरिए इस सदी के मनुष्यों को अभिव्यक्ति की सबसे बड़ी आजादी दी है. इसी कारण इसे न्यू मीडिया और भविष्य का मीडिया कहा जाता है. फेसबुक पर हिंदी समाज के लाखों लोग सक्रिय हैं. पत्रकार से लेकर आम पढ़े लिखे युवक तक फेसबुक के जरिए अपनी फोटो, विचार, भावना आदि को व्यक्त करते हैं.
दारू की दरिद्रता
गांधीजी के दर्शन को विजय माल्या ने किस तरह धंधे में तब्दील किया है और हम सब इसे कैसे ”ग्रेट सोल्यूशन” मानते हुए सेल्यूट कर रहे हैं, गांधी दर्शन का बैंड बजा रहे हैं, इसके बारे में बताने के लिए सिर्फ यह तस्वीर ही काफी है. यह तस्वीर मेल के जरिए आजकल दोस्तों से आंखें दो-चार कर रही है. कई बार कई लोगों को लगता है कि यह दारू सही है पर क्यों सही है? अगर दारू लड़ने का जज्बा पैदा करे, हार न मानने का रास्ता बताए तब तो कह सकते हैं कि ये कुछ-कुछ ठीक है पर अगर दारू दिमाग में चल रही समस्याओं को ही खत्म कर दे तो फिर दारू से बुरी कोई चीज नहीं है.
दारू का साथ, जिंदगी के उतार-चढ़ाव
[caption id="attachment_15740" align="alignleft"]यशवंत सिंह[/caption]दारूबाजी पर बात हो और मैं न लिखूं, ये भला कैसे हो सकता है। मेरे जीवन में अब जो दो-तीन चीजें बेहद करीब-अजीज हैं, उसमें एक मदिरा भी है। जो बहस शुरू हुई, उसमें सागर साहब और राजेश ने शानदार लिखा। उनका लिखा पढ़ कई बार हंसा, मुस्काया और खुश हुआ। कितने सहज-सरल ढंग से अपनी भावनाओं का इजहार कर लेते हैं ये लोग। दारू की बात चली है तो मुझे याद आ रहे हैं एक संपादक मित्र। उन्हें बताया था कि मैंने छोड़ रखी है। छोड़ने के भावावेग में उनसे भी अपील कर बैठा कि सर, कुछ दिनों के लिए आप भी बंद कर दीजिए, इंटरनल सिस्टम सही हो जाएगा, तब फिर शुरू करिएगा। उनसे बात फोन पर हो रही थी लेकिन उनकी मुखमुद्रा की कल्पना कर पा रहा हूं। वे बड़ी-बड़ी आंखें गोल-गोल नचाते हुए, थोड़ा सांस खींचते छोड़ते हुए और चेहरे पर दर्प का भाव लेते हुए बोले- यशवंत, मेरी अंतिम इच्छा है कि जब मैं मरूं तो दारू पीकर मरूं और मरते वक्त मेरे बगल में दारू रखी हो, इससे अच्छी मौत की कल्पना मैं आज तक नहीं कर पाया।
‘बिन पिए दिमाग का ढक्कन नहीं खुलता’
एक पियक्कड़ संपादक की दास्तान : मदिरा सेवन को किसी भी प्रोफेशन से एकदम अलग करना मुश्किल है। जो लोग पीते हैं वह बिना पिए बेहतर या क्रिएटिव काम नहीं कर पाते। ऐसा मेरा नहीं, पीने वालों का मानना है। करिअर में कुछ लोग ऐसे मिले जो बिना पिए भी बहुत अच्छा काम करते हैं। हालांकि मुझे देहरादून की बात याद आती है। वहां के एक नामचीन अखबार के संपादकजी बहुत पीते थे। उन्हें जानने वाले लोगों का कहना था कि बिना पिए उनके दिमाग का ढक्कन नहीं खुलता। मुझे यह बात सौ फीसदी सही लगी। संपादक जी क्रिएटिव थे।
‘न पीने से कर्मचारियों की सेहत ठीक रहेगी’
आपने जो अपनी न्यूज़ के माध्यम से बताया है कि टीवी टुडे ग्रुप ने शराब पीकर आने वाले कर्मचारियों पर नकेल कसने की शुरुआत की है और ब्रेथ एनालाइजर के जरिए टेस्ट शुरू किया है, तो मैं इस कदम से सहमत हूं. इस कदम से कंपनी को तो फायेदा होगा ही, कर्मचारियों को भी फायेदा होगा. उनकी सेहत ठीक रहेगी. रही बात आपके द्वारा पूछे गए सवालों की तो पांचों सवालों के जवाब इस प्रकार हैं-
‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल’
सेवा में, संपादक, भडास4मीडिया (यत्र-तत्र-सर्वत्र), महोदय, आपके लोकप्रिय उर्फ विवादास्पद होते जा रहे ‘साइट’ पर 7 सितंबर को 11.41 मिनट पर यह पढ़कर सदमा लगा कि टी.वी. चैनल के एक ग्रुप ने (उस ग्रुप का नाम आपके पास है, हमारे पास नहीं है) अपने ‘मज़दूरो’ को शराब पीकर ड्यूटी पर आने से रोकने के लिए मशीनी जांच का बंदोबस्त किया है। आपने ख़्ाबर के दूसरे पैरे में आपने अपने रिपोर्टर (?) की रिपोर्ट में बताया है कि इस टेस्ट से पीने-पिलाने वालों में दहशत है। फिर तीसरे पैरे में एक गुप्त नाम वाले पत्रकार ने जो बताया, उसका लब्बोलुवाब यह है कि चैनल वाले 10-12 घंटे पत्रकारों से काम करवाते हैं। चूस लेते हैं। फिर ऊपर से एक ही बर्तन में फूंकवा कर इंफेक्शन फैलाने का इंतज़ाम भी करते हैं। चौथे पैरे में आपके रिपोर्टर ने पीने का ‘वाजिब’ कारण भी बताया है।
हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी-सी जो पी ली है…
‘आज तक’ में पी कर आने वालों का ब्रेथ एनालाइजर व एलकोमीटर से होने लगा टेस्ट : टीवी टुडे ग्रुप ने रात की पारी में शराब पीकर आने वालों या आने के बाद शराब पीने वालों पर लगाम लगाने के लिए पहल शुरू कर दी है। प्रबंधन ने शाम के वक्त आफिस में घुसने वाले प्रत्येक शख्स का ‘एलकोमीटर’ व ‘ब्रेथ एनालाइजर’ के जरिए ‘लिकर टेस्ट’ अनिवार्य कर दिया है। अभी तक इन उपकरणों का इस्तेमाल दिल्ली पुलिस रात के वक्त नशे में ड्राइविंग पर पाबंदी के लिए करती रही है। पर इसे मैनेजर लोग अब पत्रकारों को काबू में लाने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं। फिलहाल इस टेस्ट को आज तक, तेज व हेडलाइंसस टुडे के पत्रकारों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। टेस्ट से पलक झपकते ही पता चल जाता है कि ब्रेथ एनालाइजर में फूंक मारने वाले शख्स ने पी रखी है या नहीं। जो भी टेस्ट में मदिरामय मिल जा रहा है, उसकी रिपोर्ट सीधे सीईओ के पास जा रही है।
इंदौर यात्रा : जहाज, दारू, दिग्गज और विमर्श
भाषायी पत्रकारिता महोत्सव में जाने के लिए न्योता मुझे भी मिला था। सात मार्च की सुबह 4 बजे का एलार्म मोबाइल में सेट कर रखा था। पांच बजे हवाई अड्डे के लिए निकल पड़ा। आटो से हवाई अड्डे पहुंचते-पहुंचते सिर में कंपकंपी घुस चुकी थी। दिल्ली का मौसम दिन में बेहद गर्म हो चुका है पर तड़के ठंड का वजूद ठीकठाक होगा, इसका अंदाजा नहीं था। हवाई अड्डे पर औपचारिकताओं के क्रम में लाइन में खड़ा था। प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ दिखे तो हाथ हिला अभिवादन किया।