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टीवी से होड़ लेने में अखबारों का कलेवर बदला

खबरिया चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज के साथ सबसे तेज खबर परोसने के दावों के बीच अखबारों के पाठक संख्या में न सिर्फ दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है बल्कि इसकी साज-सज्जा और प्रस्तुतिकरण में भी धीरे-धीरे निखार आता जा रहा है। ‘खींचो ना कमानों को, न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’ बेशक अकबर इलाहाबादी की यह पंक्ति स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आपातकाल तक प्रासंगिक रही और आज भी इसे कोई नकार नहीं सकता। भारत के प्रथम अखबार ‘बंगाल गजट’ के जन्म दिवस के रूप में 29 जनवरी को ‘न्यूजपेपर डे’ मनाया जाता है। यह कोलकाता से प्रकाशित होता था। इसे ‘हिक्की गजट’ के नाम से भी जाना जाता है। यह 29 जनवरी 1780 को पहली बार प्रकाशित हुआ था।

<p align="justify">खबरिया चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज के साथ सबसे तेज खबर परोसने के दावों के बीच अखबारों के पाठक संख्या में न सिर्फ दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है बल्कि इसकी साज-सज्जा और प्रस्तुतिकरण में भी धीरे-धीरे निखार आता जा रहा है। 'खींचो ना कमानों को, न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो' बेशक अकबर इलाहाबादी की यह पंक्ति स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आपातकाल तक प्रासंगिक रही और आज भी इसे कोई नकार नहीं सकता। भारत के प्रथम अखबार 'बंगाल गजट' के जन्म दिवस के रूप में 29 जनवरी को 'न्यूजपेपर डे' मनाया जाता है। यह कोलकाता से प्रकाशित होता था। इसे 'हिक्की गजट' के नाम से भी जाना जाता है। यह 29 जनवरी 1780 को पहली बार प्रकाशित हुआ था। </p>

खबरिया चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज के साथ सबसे तेज खबर परोसने के दावों के बीच अखबारों के पाठक संख्या में न सिर्फ दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है बल्कि इसकी साज-सज्जा और प्रस्तुतिकरण में भी धीरे-धीरे निखार आता जा रहा है। ‘खींचो ना कमानों को, न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’ बेशक अकबर इलाहाबादी की यह पंक्ति स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आपातकाल तक प्रासंगिक रही और आज भी इसे कोई नकार नहीं सकता। भारत के प्रथम अखबार ‘बंगाल गजट’ के जन्म दिवस के रूप में 29 जनवरी को ‘न्यूजपेपर डे’ मनाया जाता है। यह कोलकाता से प्रकाशित होता था। इसे ‘हिक्की गजट’ के नाम से भी जाना जाता है। यह 29 जनवरी 1780 को पहली बार प्रकाशित हुआ था।

खबरिया चैनलों की 24/7 खबरों को अखबारों ने चुनौती के रूप में लिया और अपना दौर खत्म होने के बारे में लगाए गए सभी कयासों को झूठा साबित कर दिया है। इस बारे में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संचार और मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान के प्राध्यापक डॉ. देवव्रत सिंह का मानना है कि टेलीविजन के आने पर अखबारों के बुरे दिन आने के बारे में लगाए गए सारे कयास उल्टे साबित हुए। सिंह ने बताया कि टीवी पर खबरों को बहुत कम समय मिल पाता है। यह बहुत संक्षिप्त होती हैं। इस वजह से लोग अखबारों में विस्तृत रूप से खबरों को पढ़ते हैं। इसका अखबारों के प्रसार संख्या पर सकारात्मक असर पड़ा है। सिंह ने बताया कि देश में साक्षरता बढ़ने से लोगों में सूचना की भूख बढ़ी है और टीवी तथा अखबार एक-दूसरे के विरोधी बनने के बजाए पूरक बन गए हैं। उन्होंने बताया कि टीवी से होड़ लेने के लिए अखबारों का कलेवर बदल गया है।

माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक लालबहादुर ओझा ने इन विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि टीवी के लोगों में समाचारों का विश्लेषण जानने के प्रति भूख पैदा की है और इससे इनकी प्रसार संख्या में इजाफा हो रहा है। उन्होंने बताया कि अखबारों में पहले के मुकाबले ग्राफिक्स का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। विभिन्न रंगों के जरिए खबरों की साजसज्जा भी की जाने लगी है। ओझा ने बताया कि खबरिया चैनलों के आगमन को अखबारों ने एक चुनौती के रूप में लिया और अब साक्षरता की दर मे बढ़ोतरी ने इसे समाज के वंचित तबके के रूप में एक नया पाठक वर्ग भी दे दिया है।

ओझा ने बताया कि साक्षरता में बढ़ोतरी ने क्षेत्रीय अखबारों के प्रसार पर सकारात्मक असर डाला। खबरों में स्थानीय रंग आने का भी असर पड़ा है। क्षेत्रीय अखबारों के किसी खास राज्य में कई संस्करण हैं। मलयालम मनोरमा के सिर्फ केरल में ही 10 संस्करण है। ‘इंडियन रीडरशीप सर्वे’ 2009 के प्रथम चरण के परिणाम के मुताबिक देश में दैनिक जागरण 5.46 करोड़ पाठकों के साथ शीर्ष पायदान पर है। दैनिक भास्कर 3.35 करोड़ पाठकों के साथ दूसरे पायदान पर है, जबकि अमर उजाला 2.87 करोड़ पाठकों के साथ तीसरे पायदान पर है। दैनिक हिन्दुस्तान 2.67 करोड़ पाठकों के साथ चौथे स्थान पर है। इसके मुकाबले अंग्रेजी अखबारों में टाइम्स आफ इंडिया की पाठक संख्या 1.33 करोड़, हिन्दुस्तान टाइम्स की 63.47 लाख और द हिंदू की 52.76 लाख है। साभार : ‘भाषा’

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0 Comments

  1. sapan yagyawalkya

    January 29, 2010 at 9:02 am

    aj ke hi din desh ka pahla samacharpatra prakashit hua tha.bite samay me desh aur nivasiyon me bhi kafi badlav aya hai. prakrati ke niymo ke anusar akhwaron me bhi vadlav swabhavik hai. yadi yah parivartan nahi hoga to akhbar kho jayege. aise kai udahran hamare samne hai,Sapan Yagyawalkya/Bareli/ MP

  2. chandan kumar jha mobile-09720164110

    January 29, 2010 at 10:01 am

    aaj ve print hit hay

  3. Sam Kumar

    January 29, 2010 at 3:38 pm

    East Ya West : Print is the Best.
    As an employer also.

  4. BAIBHAV

    January 30, 2010 at 6:34 am

    मैं करीब आठ साल प्रिंट में रहा। करीब आठ साल से टीवी में हूं। दोबारा प्रिंट में लौटना चाहता हूं। वाकई प्रिंट इज़ बेस्ट।

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