टीवी18 से जुड़े एक जर्नलिस्ट ने अपने संस्थान के सैकड़ों मीडियाकर्मियों की छंटनी पर दिल का दर्द लिखकर भड़ास4मीडिया के पास भेजा है। हम इसे पूरा का पूरा प्रकाशित कर रहे हैं। जर्नलिस्ट ने अपना नाम न छापने का अनुरोध किया है। -एडिटर, भड़ास4मीडिया
‘टीवी18’ के दोनों न्यूज चैनलों ‘सीएनबीसी टीवी18’ और ‘सीएनबीसी आवाज’ में जबर्दस्त छंटनी से न सिर्फ इन चैनलों के मुंबई और दिल्ली ऑफिस में मातम का माहौल है बल्कि इतनी प्रतिष्ठित कंपनी के अचानक लिए गए इस कदम से पूरा टीवी मीडिया हिल गया है. क्या ऑपरेशनल कास्ट कम करने के लिए यही एक रास्ता था?
इसके और भी तरीके हो सकते थे. क्या पूरे स्टाफ की सेलरी में कटौती करके यह काम नहीं किया जा सकता था? अपने कर्मियों को एकदम से बाहर कर देना शायद तानाशाही भरा फैसला है.जिन लोगों ने 2003 के अंत में सीएनबीसी आवाज़ की लांचिंग में अहम भूमिका निभाई उन्हें भी इस छंटनी में एक झटके से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. नौकरी गंवाने वालों में से कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी सेलेरी के दम पर ही मकान या गाड़ी ले रखी थी. इतना ही नहीं, घर का बाकी खर्च भी सिर्फ सेलेरी से ही चल रहा था.
फ़ालतू स्टाफ को हटाने की बात समझ में आती है लेकिन अचानक इतना स्टाफ फालतू क्यों नजर आने लगा? क्या इस स्टाफ की भर्ती से पहले नहीं सोचा गया कि इनके बिना काम चल सकता है? कोई भी नौकरी पेशा आदमी इस वक़्त टीवी18 के स्टाफ की मनोदशा को समझ सकता है. सबसे हैरानी वाली बात यह है कि जनता की आवाज़ को उठाने वाले इन मीडियाकर्मियों की आवाज़ उठाने वाला कोई भी नजर नहीं आ रहा.
मुझे पिछले साल का वाकया याद आ रहा है जब जेट ने अपने 800 लोगों को नौकरी से हटाने का फैसला किया था. उस वक़्त पूरा मीडिया जेट के कर्मचारियों के समर्थन में आ गया था और जेट को यह फैसला बाद में वापस लेना पड़ा. लेकिन टी.वी.18 के इन कर्मचारियों की आवाज़ को कौन उठाएगा? राघव बहल जैसे अनुभवी व्यक्ति द्वारा इस तरह के फैसले लेने पर मन में सवाल तो खड़े होते ही हैं. फिलहाल इस मुद्दे पर टीवी18 में मातम का माहौल है और सब अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. जिन लोगों की नौकरी बच भी गयी है, उनका अपना मन इस बात को लेकर दुखी है कि वह इस तरह के संस्थान का हिस्सा हैं जहां काम करने वाले की कोई कद्र नहीं की गयी.