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हलचल

हेमंत तिवारी घृणित राजनीति न करें : मुदित

[caption id="attachment_16711" align="alignleft"]मुदित माथुरमुदित माथुर[/caption]निवर्तमान सचिव ने भड़ास4मीडिया पर पत्र लिख कर खुद ब खुद अपनी साज़िश उजागर कर दी है : दस जनवरी को संपन्न यूपीएसएसीसी के चुनाव परिणाम पर चुनाव अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया जाना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री हेमंत तिवारी इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों को भड़का कर पत्रकारों के बीच अनावश्यक मतभेद पैदा करा रहे हैं। आरोप लगाने की घृणित राजनीति में उलझने की बजाय हेमंत तिवारी को अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिए। उन्होंने जो बोया था, वही काटा है। नैतिकता की बात करने वाले हेमंत तिवारी और उनके समर्थक समय से चुनाव कराने को लेकर इतने गंभीर क्यों नहीं थे? जुलाई 2009 में समिति का कार्यकाल समाप्त हो गया था परन्तु पूर्व समिति के पदाधिकारी अपनी कुर्सी से चिपके रहना चाहते थे।

मुदित माथुर

मुदित माथुरनिवर्तमान सचिव ने भड़ास4मीडिया पर पत्र लिख कर खुद ब खुद अपनी साज़िश उजागर कर दी है : दस जनवरी को संपन्न यूपीएसएसीसी के चुनाव परिणाम पर चुनाव अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया जाना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री हेमंत तिवारी इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोगों को भड़का कर पत्रकारों के बीच अनावश्यक मतभेद पैदा करा रहे हैं। आरोप लगाने की घृणित राजनीति में उलझने की बजाय हेमंत तिवारी को अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिए। उन्होंने जो बोया था, वही काटा है। नैतिकता की बात करने वाले हेमंत तिवारी और उनके समर्थक समय से चुनाव कराने को लेकर इतने गंभीर क्यों नहीं थे? जुलाई 2009 में समिति का कार्यकाल समाप्त हो गया था परन्तु पूर्व समिति के पदाधिकारी अपनी कुर्सी से चिपके रहना चाहते थे।

चुनाव की मांग करने वाले पत्रकारों का उत्पीड़न किया गया। मुखर हो रहे पत्रकारों की मान्यता तक समाप्त कर दी गयी। प्रमुख रूप से सुरेश बहादुर जैसे पत्रकार भी उनकी गन्दी राजनीति के शिकार हुए। सवा सौ पत्रकारों ने हस्ताक्षर अभियान चलाकर चुनाव का बिगुल बजा दिया। इतिहास में यह पहला अवसर आया जब 16 दिसम्बर 2009 को समिति के पदाधिकारियों के बहिष्कार के बावजूद जनरल बॉडी की बैठक सम्पन्न हुई जिसमें चुनाव की घोषणा कर दी गयी। इस प्रकार आम पत्रकारों के बीच थू-थू होती देख मजबूरन 18 दिसम्बर को समिति के पदाधिकारियों ने जनरल बॉडी की अचानक बैठक बुलाई जिसमें सर्वसम्मति से वरिष्ठ पत्रकार श्री जे पी शुक्ला को मुख्य निर्वाचन अधिकारी चुना गया और चार सहायक निर्वाचन अधिकारी चुनाव संचालन में लगाये गये जिसमें श्री अम्बरीश कुमार, गोलेश स्वामी, विजय शंकर पंकज और नरेंद्र श्रीवास्तव शामिल थे। बैठक में चुनाव कार्यक्रम की विधिवत घोषणा की गयी।

पिछली समिति के पदाधिकारियों को अपनी कुर्सी का कितना मोह था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव तिथि घोषित होने के बाद भी 4 जनवरी को आम सहमति बनाने के नाम पर फिर एक आम सभा की आपात बैठक बुलाई गई जबकि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद सारे अधिकार मुख्य चुनाव अधिकारी में निहित हो जाते हैं। चुनाव प्रक्रिया के चलते इस बैठक में समिति का कार्यकाल छ: माह बढ़ाने का भोंडा प्रयास किया गया। मगर पत्रकारों के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा इसका विरोध किया गया। इसके बाद समिति के पदाधिकारी लड़ाई-झगड़े पर आमादा हो गए। सारी मर्यादाएं तोड़ कर कनिष्ठों ने कई वरिष्ठ पत्रकारों को अपमानित किया। इसमें अधिकतर इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार और कैमरामैन शामिल थे। इन्हें समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद गोस्वामी और सचिव हेमंत तिवारी द्वारा ऐसा करने के लिए उकसाया गया। पूर्व समिति का पूरा ज़ोर इस बात पर था कि चुनाव किसी तरह टल जाये। दस जनवरी को मतदान के समय भी हेमंत तिवारी के कुछ समर्थकों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करने का भरपूर प्रयास किया गया। बहाना उस वोटर लिस्ट को बनाया गया जिसमें सूचना विभाग ने ग्यारह नये पत्रकारों को रातों रात मान्यता प्रदान कर पत्रकारों की सूची में शामिल कर दिया था जबकि 18 दिसम्बर की जनरल बाडी की बैठक में ये तय हो चुका था कि सोलह दिसम्बर तक ही मान्यता प्राप्त पत्रकारों को चुनाव में मतदान का अधिकार होगा।

अब जब चुनाव परिणाम घोषित हो चुके हैं तो पूर्व समिति को हार स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोग अपने गिरेबान मे झांक कर देखें और समीक्षा करें कि पूरे चुनाव में उनका जो चरित्र और आचरण सामने आया है, वह कितना ठीक है। हेमंत तिवारी ने अपनी जीत निश्चित करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया का इस्तेमाल किया। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अध्यक्ष पद पर शलभ मणि त्रिपाठी का नामांकन कराया था जो वास्तव में एक निर्विवाद चेहरा थे, काफी संख्या में प्रिंट मीडिया के नवयुवक पत्रकार भी उनके समर्थन में आ गये थे। अपनी जीत सुनिश्चित करने के बजाय वह खुद हेमंत तिवारी के समर्थन में बैठ गये। सचिव के पद पर अनुराग त्रिपाठी और प्रांशु मिश्रा में से किसी एक को चुनाव लड़ाते तो शायद इस पद पर इलेक्ट्रानिक मीडिया का कब्जा होता। उपाध्यक्ष के पद पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के सत्यवीर सिंह को प्रिंट मीडिया ने चुनाव जीतने के कगार पर ला कर खडा कर दिया और वह मात्र 13 वोट से चुनाव हार गये। वह भी हेमंत तिवारी की राजनीति का शिकार हो गये। नौ जनवरी को तेज कुमार प्लाजा हजरत गंज में चुनाव की रणनीति को लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने एक बैठक की इस बैठक में साठ से सत्तर पत्रकार पहुंचे। आनन फानन में एक पैनल तैयार किया गया जो इस प्रकार था। अध्यक्ष पद पर हेमंत तिवारी, उपाध्यक्ष पद पर हरजेन्द्र फोटोग्राफर, सचिव पद पर अनुराग त्रिपाठी, और कोषाध्यक्ष के पद पर हेमंत मैथिल थे। इसमें एक जातिवादी सोच उभर कर सामने आई।

इस पैनल में यदि सत्यवीर सिंह को रखा जाता तो वह भारी मतों से चुनाव जीतते अनुराग त्रिपाठी को 74 और प्रांशु मिश्रा को 72 वोट मिले यह दोनों को जोड दिया जाये तो निर्वाचित प्रत्याशी से कहीं ज्यादा वोट इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रत्याशी को मिले अगर यह प्रिंट मीडिया के वोट नहीं थे तो किसके थे। कैमरामैन निजाम अंसारी 125 वोट पाकर कार्यकारिणी सदस्य के पद पर निर्वातिच हुए जबकि इलेक्ट्रानिक मीडिया के पास इसका आधावोट भी नहीं था। अनुराग त्रिपाठी जिन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया की ओर से अधिकृत प्रत्याशी बनाया गया था उन्होंने चार जनवरी की बैठक में वरिष्ठ पत्रकारों से जमकर अभद्रता की थी। इनका आचरण और व्यवहार ऐसा था कि इन्हें इस चुनाव में क्या भविष्य में  पत्रकारों के किसी भी चुनाव में निर्वाचित होना पत्रकारों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। बेहतर होगा कि हम सभी पत्रकार चाहे वह इलेक्ट्रानिक मीडिया के हों या प्रिंट मीडिया के आपसी सौहार्द बनाकर रखें, किसी के हाथ की कठपुतली न बनें। सबका लक्ष्य यही होना चाहिए कि हमारी ओर किसी की उंगली न उठ सके।

निवर्तमान सचिव हेमन्त तिवारी ने भड़ास4मीडिया पर पत्र लिख कर खुद ब खुद अपनी साज़िश उजागर कर दी है। तीन सदस्यीय मान्यता समिति की स्थायी समिति में हेमन्त तिवारी व प्रमोद गोस्वामी सदस्य हैं जिनका कार्यकाल 7 जुलाई 2009 को ही समाप्त हो चुका है। 18 दिसम्बर 2009 को आम सभा की बैठक में मुख्य चुनाव अधिकारी की टीम में हेमन्त तिवारी के प्रस्ताव पर जनसत्ता के श्री अम्बरीश कुमार तथा हिन्दुस्तान के श्री गोलेश स्वामी को भी चुनाव संचालन मे सहयोग के लिए शामिल किया गया था। इन सभी ने मुख्य चुनाव अधिकारी के साथ मिलकर सर्वसम्मति से चुनाव प्रक्रिया के चलते 30 दिसम्बर 2009 की स्थायी समिति की बैठक में मान्यता प्राप्त उन 11 नए सदस्यों को मतदान में हिस्सा नहीं लेने दिया जिनके बारे में खुद हेमन्त तिवारी ने लिखा है कि उनमें से 10 उनके समर्थक थे।

मतलब साफ है कि हेमन्त तिवारी ने अपना बहुमत जुटाने के लिए अनैतिक तरीके अपनाए वो विधि सम्मत नहीं थे और उनकी सत्ता लोलुप साज़िशों में न फँस कर चुनाव अधिकारियों के पैनल ने निष्पक्षता तथा अशोभनीय अराजकता पैदा करने की कोशिशों को विफल करने में असीम धैर्य का परिचय दिया तब जा कर कहीं उत्तर प्रदेश जैसे बड़े व राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील प्रदेश के मीडिया जगत में लोकतन्त्र की बहाली हो सकी है और आम पत्रकार इस परिवर्तन से खुश व उत्साहित है। सबको मालुम है कि चुनाव के सम्बन्ध में कोई अधिकार या तो मतदाताओं को होता है या उम्मीदवारों को। 287 वैध मतदाताओं एवं लगभग 30 उम्मीवारों में से किसी ने मतदान के दौरान अथवा बाद में चुनाव प्रक्रिया के बारे में कोई आपत्ति नहीं की और हेमन्त तिवारी के अलावा सभी ने परिणाम को खुशी-खुशी स्वीकार किया है।

लेखक मुदित माथुर लखनऊ के स्वतंत्र पत्रकार हैं और यूपीएसएसीसी के हाल में हुए चुनाव में उपाध्यान चुने गए हैं.

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0 Comments

  1. deoki nandan mishra

    January 14, 2010 at 1:44 pm

    dosto es tarah ke coment kisi patrkar sathi ke lia thik nhi hii. aapas me ladna thik nhi hii. mera anurodh hii ki patrkar sathi aapas me ekjut ho. bahri kahtre bahut hii aapas me kun ladte ho bhaii.
    deoki nandan mishra

  2. MUDIT MATHUR

    January 17, 2010 at 12:02 pm

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    हिसामुल इस्लाम सिद्दिकी को कुल 89 वोट मिले। उन्होंने हेमंत तिवारी को हराया जिन्हें 83 वोट मिले। तीसरे स्थान पर रहे मनमोहन को 81 मतों से संतोष करना पड़ा। एक अन्य प्रत्याशी प्रभात त्रिपाठी को सिर्फ 5 वोट ही मिल पाए।
    उपाध्यक्ष पद पर मुदित माथुर ने 95 वोट पाकर सत्यवीर सिंह को हराया। सत्यवीर को कुल 87 वोट मिले।
    सचिव बने योगेश मिश्रा को 96 वोट मिले। दूसरे नंबर पर अनुराग त्रिपाठी रहे जिन्हें 74 वोट हासिल हुए। एक अन्य प्रत्याशी प्रांशु मिश्रा भी 71 वोट पाकर मजबूत उपस्थिति का एहसास करा गए।
    कोषाध्यक्ष बने जीतेंद्र शुक्ला को 122 वोट मिले। उन्होंने हेमंत मैथिल को हराया जिन्हें 81 मतों पर ही सिमटना पड़ा। एक अन्य प्रत्याशी चंद्रकिशोर शर्मा को 42 वोट मिले।
    कार्यकारिणी सदस्य के लिए कुल 15 प्रत्याशी थे जिनमें से सात चुने जाने थे। इस बार सात की बजाय आठ लोग चुने गए क्योंकि दो लोगों को वोट बराबर-बराबर मिले। इनको लेकर तय किया गया कि ये दोनों बारी-बारी से छह-छह महीने कार्यकारिणी सदस्य रहेंगे। इनके नाम हैं सुरेंद्र सिंह और अविनाश चंद्र मिश्रा। अन्य निर्वाचित कार्यकारिणी सदस्य इस प्रकार हैं- शरत प्रधान, अजय श्रीवास्तव, दयाशंकर शुक्ल सागर, नीरज श्रीवास्तव, दिलीप सिन्हा और निजाम अंसारी।
    चुनाव में कई प्रत्याशियों और मतदाताओं के बीच नोकझोक, कहासुनी भी होने की खबर है। कुछ लोगों में तो मारपीट की भी स्थितियां आ गईं। नए बने सदस्यों को वोट का अधिकार न दिए जाने से काफी विवाद हुआ। खबर है वोट से वंचित नए सदस्य चुनाव को अवैध घोषित कराने की मुहिम शुरू करने वाले हैं

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