मान्या कहती है कि अगर ऐसा है तो उसे अपनी भाभी से प्यार का प्रस्ताव रखना चाहिए न की उससे. इस पर भावेश कहता है- वो मान्या से प्यार करता है, किसी और से शादी नहीं कर सकता. मान्या भावेश के इस शब्दजाल में फंस जाती है! मान्या को लगता है- शायद भावेश सच बोल रहा है. वो उसके प्रेम-प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है. मान्या कहती है- भावेश मुझसे विवाह कर लो तो हम-दोनों एक साथ हर समस्या का सामना कर लेंगे. भावेश नहीं मानता है और कहता है- वो आजीवन बिना विवाह के ही रहेगा. पता नहीं क्यों मान्या उसकी बातों पर भरोसा कर लेती है और भावेश से कहती है कि वो दोस्त की तरह से आजीवन रह सकते हैं, पर भावेश नहीं मानता है.
एक दिन भावेश मान्या के शहर उससे मिलने आता है. उस दिन मान्या बहुत खुश होती है, क्योंकि जीवन में पहली बार किसी अपने से मिलने जा रही होती है, पर जब वो भावेश से मिलती है तो उसकी आत्मा कहती है कि कहीं कुछ गलत है. वो भावेश को सबसे मिलाती है पर भावेश उसे किसी से पहचान कराने से भी डरता है और बस वह उससे कुछ ऐसी डिमांड करता है जो कोई भी अच्छी लड़की पूरे नहीं कर सकती हो. मान्या उसकी इच्छा पूरा करने से मना कर देती है. वह भावेश को बहुत समझाती है कि वो एक अच्छा दोस्त बन सकती है, पर भावेश का बर्ताव बड़ी अजीब सा हो जाता है, क्योंकि भावेश का मकसद सिर्फ मान्या के शारीर को पाना था!….”
इंटरनेट के माध्यम से शुरू हुई दोस्ती के देह और धोखे तक पहुंचने की सच्ची कहानी बयान कर रही हैं लखनऊ की पत्रकार मंजू मनु शुक्ला. पात्रों के नाम उन्होंने बदल दिए हैं, लेकिन पात्र हमारी-आपकी दुनिया के ही हैं. मंजू का कहना है कि वे अपने इस लेख के जरिए लड़कियों को आगाह करना चाहती हैं कि इस दुनिया में हर किसी के कहे पर यकीन न करें, जाने कौन-कौन किस-किस तरह के नकाब पहने हों. पूरी कहानी भड़ास4मीडिया के विचार सेक्शन पर प्रकाशित हुई है. पढ़ने के लिए क्लिक करें… वो बस मान्या का शरीर चाहता था
shailendra shrivastava
September 9, 2010 at 8:54 am
Manju ji,
Namaste,
Manya jasi hi nahin kayee Manya is bhanwar jaal me aakar apne aap ko thaga sa pati hai. stri ki vishvash karne ki manovarti ishwar ne banayee hai aur wo sahaj hi us me apne aap ko samarpit kar deti hai. yeh stri svabhab ka gun hai .jiska fayeda Bhavesh jesay log uthate hai. mera manna hai mata pita aal ki aadhunik chamak dhamak se apne bachcho ko tou door nahi rakh sakte hai par unki gatividhiyo per nazar jaroor rakh sakte hai.
rajesh kumar
September 9, 2010 at 10:17 am
manju ji main to aapko nahi janta but har mamle main ladke hi doshi nahi hote hain hain.ajkal ladki bhi kam nikalne ke liye kafi kutch karne ko taiyyar rahti hai. balki ladke to emotional bhi hote hai bt ladki to bilkul nahi.
rajesh
reporter
hindustan ghaziabad
[email protected]
मदन कुमार तिवारी
September 9, 2010 at 11:36 am
मंजू कहानी और लिखने की शैली अच्छी है। मै सेवेन डेज वीकली का मगध एवं शाहाबाद का प्रभारी हुं । लिखने की आजादी हासिल है। माहौल भी ठिक है। इसका प्रकाशन रांची से होता है। अगर मन बनाओ तो लिख सकती हो। मेरे ब्लाग http://7daysbihar.blogspot.com/ पर जाकर देखो। बहुत कम अखबार लिखने की आजादी देते हैं ।
dilzala
September 9, 2010 at 1:11 pm
aao…or aage barr kar madaddgaron ka swagat karain…
shravan shukla
September 10, 2010 at 11:07 am
kya kare sir ji..maanya jaisi kai anya ladkiya bhi aise bahkaave or jhoothe waado me aa jaate hai….kahi na kahi yeh atiunnat hote samaaj k kaale andhere syaah sach ko bhi bayan karti aapki yah khabar…..ummed hai maanya jaisi or ladkiya isse kuch sabak lekar…is LSDn (LOVE, SEX&DHOKHA via NET) ke chakkar me nahi padengi…dhanyawaad
dhanish sharma
September 10, 2010 at 2:54 pm
i m dhanish sharma.. yadi mujko chance mila to main manju shukla sa bhi better likh sakta hu…
Amr rajput
September 12, 2010 at 5:56 pm
Manju…ji….. Mujhe lagta hai ke apne serf ek he pahlu ko dekha hai……..warna ..apka bechar kuch aur hota…..??
manu manuju shukla
September 15, 2010 at 9:05 am
अमर जी मे कोई भी बात हवा में नहीं लिखती जबतक सच की परत दर परत न जान लू .. मने दोनों पहले पर गौर किया है और शयद इसे लिखने से पहले अपने आप से भी लड़ी हूँ इसमें बावेश का कित्दारा है वो इन्सान सच्ची स्वार्थी और मोका परस्त है नारी लेखन में महारथ और औरतो को बवाकुफ़ बनाने में भी उसका जवाब नहीं … यहाँ भी वाही हुआ वो लड़की के सामने सरे सच होते हुए भी वो इस इन्सान के भ्रम जलमे पड़ी १
और रही बात उस ओरत का जो इसके पाटने है वो उसका दुर्भग्य हे है क्यों की जिसका पति दोगला इन्सान हो उसका जीवन वसे ही निरर्थक है अब वो चाहे जितने सती क्यों न बन जाये पर उसे भी जानना चहिए की सीता को छूने के अपराध में रावन का पूरा कुल नाश होगया था !
और सर बात इतनी है प्यार निस्वार्थ होता है
raj
September 18, 2010 at 12:19 pm
pyar ek mitha zaher hota hai, boys ko esse bschna chahiye