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कहिन

चमड़िया जैसा ‘इडियट’ नहीं चाहिए

[caption id="attachment_16843" align="alignright"]विजय प्रतापविजय प्रताप[/caption]साबजी को अनिल अंकित राय जैसा ‘चतुर’ चाहिए : अनिल चमड़िया एक ‘इडियट’ टीचर है। ऐसे ‘इडियट्स’ को हम केवल फिल्मों में पसंद करते हैं। असल जिंदगी में ऐसे ‘इडियट’ की कोई जगह नहीं। अभी जल्द ही हम लोगों ने ‘थ्री इडियट’ देखी है। उसमें एक छात्र सिस्टम के बने बनाए खांचे के खिलाफ जाते हुए नई राह बनाने की सलाह देता है। यहां एक अनिल चमड़िया है, वह भी गुरु-शिष्य परम्परा की धज्जियां उड़ाते हुए बच्चों से हाथ मिलाता है, उनके साथ एक थाली में खाता है। उन्हें पैर छूने से मना करता है। कुल मिलाकर वह हमारी सनातन परम्परा की वाट लगा रहा है। महात्मा गांधी के नाम पर बने एक विश्वविद्यालय में यह प्रोफेसर एक संक्रमण की तरह अछूत रोग फैला रहा है। बच्चों को सनातन परम्परा या कहें कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। दोस्तों, यह सबकुछ फिल्मों में होता तो हम एक हद तक स्वीकार भी लेते। कुछ नहीं तो कला फिल्म के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समारोहों में दिखाकर कुछ पुरस्कार-वुरस्कार भी बटोर लाते। लेकिन साहब, ऐसी फिल्में हमारी असल जिंदगी में ही उतर आएं, यह हमे कत्तई बर्दाश्त नहीं। ‘थ्री इडियट’ फिल्म का हीरो एक वर्जित क्षेत्र (लद्दाख) से आता था। असल जिंदगी में यह ‘इडियट’ चमड़िया (दलित) भी उसी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐसे तो कुछ हद तक ‘थ्री इडियट’ ठीक थी। हीरो कोई सत्ता के खिलाफ चलने की बात नहीं करता। चुपचाप एक बड़ा वैज्ञानिक बनकर लद्दाख में स्कूल खोल लेता है।

विजय प्रताप

विजय प्रतापसाबजी को अनिल अंकित राय जैसा ‘चतुर’ चाहिए : अनिल चमड़िया एक ‘इडियट’ टीचर है। ऐसे ‘इडियट्स’ को हम केवल फिल्मों में पसंद करते हैं। असल जिंदगी में ऐसे ‘इडियट’ की कोई जगह नहीं। अभी जल्द ही हम लोगों ने ‘थ्री इडियट’ देखी है। उसमें एक छात्र सिस्टम के बने बनाए खांचे के खिलाफ जाते हुए नई राह बनाने की सलाह देता है। यहां एक अनिल चमड़िया है, वह भी गुरु-शिष्य परम्परा की धज्जियां उड़ाते हुए बच्चों से हाथ मिलाता है, उनके साथ एक थाली में खाता है। उन्हें पैर छूने से मना करता है। कुल मिलाकर वह हमारी सनातन परम्परा की वाट लगा रहा है। महात्मा गांधी के नाम पर बने एक विश्वविद्यालय में यह प्रोफेसर एक संक्रमण की तरह अछूत रोग फैला रहा है। बच्चों को सनातन परम्परा या कहें कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। दोस्तों, यह सबकुछ फिल्मों में होता तो हम एक हद तक स्वीकार भी लेते। कुछ नहीं तो कला फिल्म के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समारोहों में दिखाकर कुछ पुरस्कार-वुरस्कार भी बटोर लाते। लेकिन साहब, ऐसी फिल्में हमारी असल जिंदगी में ही उतर आएं, यह हमे कत्तई बर्दाश्त नहीं। ‘थ्री इडियट’ फिल्म का हीरो एक वर्जित क्षेत्र (लद्दाख) से आता था। असल जिंदगी में यह ‘इडियट’ चमड़िया (दलित) भी उसी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐसे तो कुछ हद तक ‘थ्री इडियट’ ठीक थी। हीरो कोई सत्ता के खिलाफ चलने की बात नहीं करता। चुपचाप एक बड़ा वैज्ञानिक बनकर लद्दाख में स्कूल खोल लेता है।

लेकिन यहां तो यह ‘इडियट’ सत्ता के खिलाफ भी लड़कों को भड़काता रहता है। हम शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति के लोग सत्ता व सनातन सिस्टम के खिलाफ ऐसी बाते नहीं सुन सकते। सो, साथियों हमारे ही बीच से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति या यूं कहें कि सनातन गुरुकुल परम्परा के रक्षक द्रोणाचार्य के अवतार वीएन राय साहब ने इस परम्परा की रक्षा का बोझ उठा लिया है। वह अपनी एक पुरानी गलती (जिसमें कि उन्होंने छात्रों के बहकावे में आकर चमड़िया को प्रोफेसर नियुक्त करने की भूल की) सुधारना चाहते हैं। राय साहब को अब पता चल गया है कि गलती से एक कोई एकलव्य भी उनके गुरुकुल में प्रवेश पा चुका है। दुर्भाग्यवश अब हम लोकतंत्र में जी रहे हैं (नहीं तो अंगुली काटने जैसा ऐपीसोड करते) इसलिए चमड़िया को बाहर निकालने के लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा है। तब एकलव्य के अंगुली काटने पर भी इतनी चिल्ल-पौं नहीं मची थी जितने इस कथित लोकतंत्र में कुछ असामाजिक तत्व कर रहे हैं।

राय साहब आपके साथ हमें भी दुख है कि इस सनातन सिस्टम में लोकतंत्र के नाम पर ऐसे चिल्ल-पौं करने वालों की एक बड़ी फौज तैयार हो रही है। आपने ‘साधु की जाति नहीं पूछने वाली’ मृणाल पाण्डे जी के साथ अपने ऐसे इडियटों को सिस्टम से बाहर करने का जो फैसला किया है, वो अभूतपूर्व है। इसी इडियट ने हमारी मुख्यधारा की मीडिया के सामने आइना रख दिया था, जिसकी वजह से हमें कुछ दिनों तक आइनों से भी घृणा होने लगी थी। हम आइनें में खुद से ही नजर नहीं मिला पा रहे थे। वो तो धन्य हो मृणाल जी का जिन्होंने “साधु को आइना नहीं दिखाना चाहिए, उससे केवल ज्ञान लेना चाहिए” का पाठ पढाया.

ठीक ही किया जो अपने विष्णु नागर जैसे छोटे कद के आदमी को मृणाल जी व खुद के समकक्ष बैठाने की बजाए उनका इस्तीफा ले लिया। हमारे सनातन सिस्टम में सभी के बैठने की जगह तय है। उसे उसके कद के हिसाब से बैठाना चाहिए। मृणाल जी की बात अलग है। वो कोई दलिताइन नहीं, पण्डिताइन हैं, उनका स्थान उंचा है। सनातन सिस्टम में भी फैसला करने का अधिकार पण्डितों व भूमिहारों के हाथ में था, आप उसे जीवित किए हुए हैं, हिंदू सनातन धर्म को आप पर नाज है।

साहब आप तो पुलिस में भी रहे हैं। हम जानते हैं कि आपको सब हथकंडे आते हैं। एक और दलितवादी जिसका नाम दिलीप मंडल है आप की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है। कहता है कि आपने एक्जीक्यूटिव कांउसिल से चमड़िया को हटाने के लिए सहमति नहीं ली। उस मूर्ख को यह पता ही नहीं की द्रोणाचार्य जी को एकलव्य की अंगुली काटने के लिए किसी एक्जीक्यूटिव कांउसिल की बैठक नहीं बुलानी पड़ी थी। आप तो फैसला “आन द स्पाट” में विश्वास करते हैं। सर जी, यह तो लोकतंत्र के चोंचले हैं। और आप तो पुलिस के आदमी हैं, वहां तो थानेदार जी ने जो कह दिया वही कानून और वही लोकतंत्र है। लोग कह रहे हैं, साहब कि जिस मीटिंग में चमड़िया को हटाने का फैसला हुआ, उसमें बहुत कम लोग थे। उन्हें क्या पता कि जो आये थे वह भी इसी शर्त पर आए थे कि सनातन सिस्टम को बचाए रखने के लिए सभी राय साहब को सेनापति मानकर उनका साथ देंगे। जो खिलाफ जाते, आपने बड़ी चालाकी से उन्हें अलग रख दिया। वाह जी साहब, इसी को कहते हैं सवर्ण बुद्धि। आप वहां हैं तो हमें पूरा भरोसा है कि वह विश्वविद्यालय सुरक्षित (और ऐसे भी साहब जहां पुलिस होगी वहां सुरक्षा तो होगी ही) हाथों में है।

साब जी, हमने गांव के छोरों से कह दिया है- यह लंठई-वंठई छोड़ो। इधर-उधर से टीप-टाप कर बीए, ईमे कर लो। बीयेचू चले जाओ, कोई पंडित जी पकड़ कर दुई चार किताबें टीप दो। फिर तो आप हईये हैं। एचओडी नहीं तो कम से कम प्रुफेसर-व्रुफेसर तो बनवाईये दीजिएगा। और साहब हम आपको पूरा भरोसा दिलाते हैं ये लौंडे ‘अनिल चमड़िया’ जैसा इडियट नहीं ‘अनिल अंकित राय’ जैसा चतुर बनकर आपका नाम रौशन करेंगे।

कामरेड और क्रांतिकारी विजय प्रताप से संपर्क 09982664458 के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. Deepak Upadhyay

    January 30, 2010 at 10:23 am

    kya baat hai ji aap to lagta hai kisi abhiyaan par nikle hue hai, all the best

  2. Dr.Hari Ram Tripathi, Journalist ,Lucknow

    January 30, 2010 at 11:27 am

    A journalist is totally different from an educationist in terms of temperament and functioning.An educational body should avoid engaging such active journalists for teaching job.A journalist also should think twice before accepting such assignment.A Delhi based journalist becomes habitual of being respected and greeted by Ministers and senior bureauctats. It is difficult for him to obey middle level administrator like Mr. B N Roy. This is the main problem with jounalist turned Professor like Chamaria.When he changed his job,he should have changed his mindset also.Since he could not do so,he was bound to face such problem.

  3. Ramesh Parashar

    January 30, 2010 at 12:19 pm

    अनिल चमड़िया का ये कहना कि वे दलित हैं, 100 फीसदी झूठ है। श्री चमड़िया पत्रकारिता में मौका पाने के लिए स्वयं को दलित कहते हैं। इनका तथाकथित दलित प्रेम भी एक स्वांग है क्योंकि अनिल जी और इनके परिवार को दलितों से कोई लेनादेना नहीं है। अनिल चमड़िया न जाति से और न कर्म से दलित हैं। बल्कि वे जाति से मारवाड़ी बनिया और बड़े व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनकी शिक्षा सासाराम में ही हुई है। अत: हर व्यक्ति इनके बारे में अच्छी तरह जानता है। इनका विवाह सासाराम शहर के बड़े वैश्य परिवार गिरीश चन्द्र जायसवाल की बेटी से हुआ है। जिनका शहर में दर्जनों मकान, मार्केट और व्यापार है। अन्य भाइयों और बहन की शादियां भी बड़े मारवाड़ी व्यापारी परिवार में हुई है। इनके परिवार के किसी भी दूर के रिश्तेदार का भी वैवाहिक सम्बंध किसी दलित परिवार से नहीं है। अनिल चमड़िया और उनके परिवार का एक संक्षिप्त परिचय-
    अनिल चमड़िया, पिता स्व. राम गोपाल चमड़िया, निवासी -हरे कृष्ण कॉलोनी, कंपनी सराय, थाना- सासाराम, जिला-रोहतास, बिहार, अपने पांच भाई और एक बहन में सबसे बड़े हैं। इनके अन्य भाइयों का नाम सुनील चमड़िया पेशे से चार्टर्ड एकाउटेंट, आलोक चमड़िया और अमित चमड़िया पेशे से पत्रकार और अशोक चमड़िया पारिवारिक गल्ले के व्यवसाय में हैं। बहन प्रीती चमड़िया का विवाह हो गया है। इनके परिवार का लगभग 30-35 वर्षों से गल्ला के थोक दलाली का व्यवसाय है, जिसे पूर्व में इनके पिता और अब भाई संचालित करते हैं। ये लोग मूलत: मध्य प्रदेश के सागर शहर के निवासी हैं। जो बाद में व्यवसाय हेतु सासाराम आ गए थे। इनका परिवार सासाराम शहर के बड़े व्यवसायी मारवाड़ी परिवारों में शुमार होता है। अनिल चमड़िया के चचेरे चाचा श्री मनोहर लाल जी अपने ननिहाल के धन पर सागर से सासाराम आए। यहां आकर इन्होने अपनी सरनेम चमड़िया की जगह पोद्दार लिखना शुरू कर दिया, क्योंकि इनके ननिहाल का उपनाम पोद्दार था। मनोहर लाल जी चूंकि अपने ननिहाल के घर पर आए तो इन्होंने अपना उपनाम पोद्दार रख लिया। परन्तु अनिल चमड़िया के पिता ने अपना मूल मारवाड़ी उपनाम चमड़िया बरकरार रखा। जो आज तक चला आ रहा है। श्री अनिल चमड़िया के दादा का नाम महावीर प्रसाद चमड़िया था, जो म.प्र. के सागर शहर में व्यवसाय करते थे। बाद में सासाराम आने से पहले इनके पिता और चाचा ने वहां की संपति बेच दी। आज श्री चमड़िया के परिवार के पास शहर और उसके आसपास करोड़ों का व्यवसाय पत्रकारिता के धौंस पर बखूबी चलता है। इनके और इनके भाइयों के पत्रकारिता की धौंस हमेशा इन लोगों के व्यवसायिक हितों के काम आई है।
    चमड़िया के सरनेम वाले श्री सीताराम चमड़िया कांग्रेस के जमाने में बिहार सरकार के मन्त्री हुआ करते थे। जो मारवाड़ी बनिया थे। अनिल जी शायद देश के पहले स्वघोषित दलित हैं, जिन्होंने दलित जुमले का इस्तेमाल अपने पत्रकारिता के करियर को चमकाने में किया है। लेकिन श्री चमड़िया पहले शख्स होंगे, जो गैर दलित होते हुए दलित के नाम पर सहानुभूति लेते हैं। मैं पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ इनके तहसील का ही निवासी हूं। इसलिए इनसे जुड़ी हुई सारी जानकारी आप लोगों के सामने रख रहा हूं। इनके दलित होने और दलित प्रेम का खुलासा करना अभी बड़ा मौजूं था क्योंकि मैं भी बेसब्री से इस वक्त का इन्तजार कर रहा था। आशा है आपको यह तहकीकात अच्छी लगेगी।
    रमेश पराशर
    पत्रकार
    [email protected]

  4. rinkoo singh

    January 30, 2010 at 12:39 pm

    anil chamadiya ki kundali ye sabit karne ke liye kafi hai ki dalit shabd ka kitna najayaj istemal kiya ja raha. anil ji se main ek baat puchna chahta hu ki mera ek bahut hi kabil dost hai accountency ki field me lekin wo keval b.com 3rd division hi pass. jis company me kam karta hai waha se hamesh prashasti patra pata rahta hai. wo iss field me 10 salo se hai. kya aap usko desh ke kisi college me commerce deptt. me accounts ka professor banwa sakte hain. nahi. to phir aap ko kyo professor banaya gaya tha.aapke dost kripa ji media teaching ke baare me badaavachan karte hain unko bhi iss per apni baat kahani chahiye.aap professor shayad iss liye banaye gaye ki jin naxlites ko desh ki sarkar atankvadi manti hai unhe aap bbc ka journalist bata kar class me introduce karwate the. khair ye kam to aap ke ghanishth mitra kripa shankar ji karne ke liye hain hai hi. aap ke baare me yahi kaha ja sakta hai ki MAAR PADI SHAMSHIRO KI TO MAHARAJ MAIN NAAI HOON.

  5. kanhaiya kumar, Guwahati

    January 30, 2010 at 2:43 pm

    anil chamariya ka mahimamandan karne wale mere bhai. lagta hai ki app bhi chijo ko tor maror kar pesh karne mein mahir ho. apni galat bayani ka jariye hazaro student ki kismat se khilwar mat karo mere bhai. varna bhai vijay tumhare nam ki viprit log tumhare karm ke aadhar per parajay kahna shuru kar denge

  6. Dr.Hari Ram Tripathi, LUCKNOW

    January 30, 2010 at 3:49 pm

    MR.RAMESH PARASHAR DESERVES APPRICIATION FOR AUTHENTIC AND EYE OPENING DETAILS ABOUT ANIL CHAMARIA .I DID NOT KNOW ANYTHING ABOUT HIM WHEN I WROTE MY FIRST COMMENT ABOVE.

  7. bebak

    January 30, 2010 at 3:50 pm

    चमड़िया जी की कुंठा इतनी बढ गई है कि वह अपने ही पोस्ट पर अलग-अलग नाम से कमेंट पोस्ट करने लगे हैं|

  8. bebak

    January 30, 2010 at 3:52 pm

    इस लेखक महोदय
    अनिल चामड़िया को मैं टीवी.-9 के जमाने से जानता हुँ और किस बड़े चैनल के दिग्गजों की बात आप कर रहे हैं?
    टीवी.-9 में काम करने के समय भी उन्हे गंदी राजनीति और स्वहित के लिए दलित तथा दलितमुद्दों का दुरुपयोग करते देखा है.मुझे पुरा यकिन है कि वह लोगों को गुमराह करने के अलावे कुछ कर ही नहीं सकते|जिन शुरुआती दिनों की बात आप कर रहे हैं उन दिनों मैं उनका जुनियर था,बहुत अरमान लेकर मैं वहां ज्वाईन किया था कि चामड़िया जी से कुछ सिखुंगा,पर उनकी गंदी रजनीति से परेशान होकर चैनल मालिक ने चैनल ही बंद कर दिया|
    उस सौदेबाजी में भी चामड़ियाजी ने बहुत कमाए पर हम जैसे मिडिया कर्मी जो सपने लेकर वहां गए और उनके बहकाबे में नहीं आए, उनकी आवाज वह कभी नहीं बने.
    और जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल आप कर रहे हीं उससे स्पष्ट झलक रहा है कि आपको किस तरह की गंदी घुट्टी चामड़िया जी ने पिलाई है. अगर संभव है तो खुद को अभी भी बचा लिजिए.

  9. bebak

    January 30, 2010 at 4:00 pm

    आप दुसरों की लाईन छोटी कतने की क्यों सोचते हैं चामड़िया जी अपनी लाईन बड़ी कर लिजिए दुसरों की लाईन छोटी करने के चक्कर में तो आपकी लाईन ही मिटती जा रही है|

  10. ritesh

    January 30, 2010 at 4:04 pm

    चामड़ियाजी आपके अंदर जो कुंठा भरी है वह इतनी स्तरहीन होगी की विश्वविद्यालय छोड़ते ही सजातीय और विजातीय की बात करने लगेंगे ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था.वैसे तो दुसरे विभाग के शिक्षक होने के नाते मेरा आपसे मिलना-जुलना कम होता था पर आप इतने छिछले होंगे, ऐसा कभी सोचा भी नहीं था.खाशकर जब TBI के जमाने के आपके कारनामें जो अलग-अलग रुपों में आज तक जारी है, के बारे में पढा तो यही सोचने में आया कि अगर आपका जमीर तनिक भी खुद को शिक्षक मानता है या जब पहली बार ही आप शिक्षक बनना चाहे, उसी समय आपको एक चुल्लू पानी की तलाश करनी चाहिए थी, अब उस एक चुल्लू पानी में आपको क्या करना है यह बताने की जरुरत नहीं है.

  11. vaibhav

    January 30, 2010 at 4:07 pm

    संज्ञान में आया है कि इस पूरे घटनाक्रम के पिछे उनके पूराने मित्र ‘चौबेजी’ हैं,जो शुरु से ही मौके की तलाश में थे,जैसा कि एक मानव स्वभाव माना जाता है कि अपनों-दोस्तों का आगे निकलना कुछ ज्यादा ही तकलिफदेह होता है,वैसे ही रिडर बने चौबे जी चामड़ियाजी का प्रो. बनना पचा नहीं पा रहे थे तथा मौका मिलते ही उनको विश्वविद्यलय से बाहर का रास्ता दिखलाने की कोशिश में लग गए और सुनने में आया है कि उनकी गिद्ध नजर तो उनकी पोस्ट पर अभी भी लगी है..

  12. vijay pratap

    January 30, 2010 at 4:27 pm

    भाई रितेश
    अनिल चमडिया दलित हो ना हो लेकिन उसने जितना दलितों के लिए लिखा है, उसकी भी कोई खोजी रिपोर्ट देते तो हम आपकी खोजी पत्रकारिता के आभारी होते. दलित जाती से ही होना जरुरी नहीं, चमडिया ने दलितों को लेकर मीडिया को जो आइना दिखाया है उसके बारे में आपका क्या ख्याल है?

  13. vijay pratap

    January 30, 2010 at 4:33 pm

    “टीवी.-9 में काम करने के समय भी उन्हे गंदी राजनीति और स्वहित के लिए दलित तथा दलितमुद्दों का दुरुपयोग करते देखा है”

    भाई बेबाक जी,
    नाम न बताए ठीक है लेकिन आप जैसे अनाम साफ-सुथरे लोगों को दलितों के बारे में सवाल उठाना गन्दी राजनीती ही लगेगी. मैं उस समय उस चैनल में नहीं था लेकिन इतना जनता हूँ जहाँ मजदुर-कर्मचारियों की बात उठती है वहां मालिक के कुत्तों को गन्दी राजनीती की बास ही आतीहै.

  14. cp

    January 30, 2010 at 7:36 pm

    I had taken a decision to not to comment on this forum . Shall be happy if found GUILTY under any section of IPC or CrPC to make these comments

    1) Anil Chamadia ne khud ko kabhi dalit nahin kaha , yeh kisi aur ki tippani mein unke surname CHAMADIA ko dekh kar bhranti se kaha gya hai

    2) Dalit vimarsh ke liye dalit hona avayshyak nahin hai , GANDHI dalit nahin the , unka janm BANIYA pariwar mein hua tha

    3) What’s wrong if Anil Chamadia has betrayed his CLASS ( CASTE ) of origin?

    4) SHAHAR MAIN KURFEW ke lehak _ VIBHUTI NARAYAN RAI system ke pat-purje hain , shyad khud ko progressive bhi maante honge , WHAT AN IDEA SIR JEE – Secular kehlana assan hai – JAATIWADI VYAVASTHA se ladna aapke sahitya mein to nahin dikta

    5) Rakesh jee ( IPTA ) aapko kya ho gaya hai jo trade union ki ladai se nikal kar RAY SAHIB ke OSD ban gaye hain ?

  15. shashi bhushan

    January 31, 2010 at 6:16 am

    अनिल चमड़िया किस जाति से ताल्लुक रखते हैं यह कतई महत्वपूर्ण नहीं है। यह मुद्दा उससे कहीं व्यापक मुद्दा है। उनको किस कारण से हटाया गया वो भी निर्धारित प्रकियायों का पालन किये बिना। बहस इसपर हो तो ज्यादा अच्छा है। सब को यह जानने का हक है। जातिवाद ने इस देश का हजारों सालों से नाश किया है। दूसरे क्षेत्रों में तो खुले दिल दिमाग वाले लोग मिल जाते हैं। पर इस पत्रकारिता में तो सब साले जातिवादी भड़े-पड़े हैं। कब इस देश के लोग सुधरेंगे। साले

  16. Ramesh Parashar

    January 31, 2010 at 1:26 pm

    mr chamariaji lekh lhane se dunia nahi badalti. acharan se badalti hai .farji tarike se profesor banakar bina class liye 700000 wetan utha rahe the is par kabhi sharm aai. 15 august ko jhandarohan me anupasthit hone ka jo gunah kiya, us par kabhi sochaa tha, aapko to turant usi smay terminet kar dena chahiye tha.aap to sukrira kahiye vc mahoday ka jo itne dino tak aapko maph karte rahe..

  17. arun khare

    January 31, 2010 at 2:26 pm

    ramesh parasar ne anil chamadia ke bare mi jo bataya yadi voh sach hi to nisadeh anil ji usse bhi jyada mahan hi jitna mi samajhata tha. is jankari ke liy ramesh ji ko dhanyabad. Anil ji behatar insan hi. Arun khare

  18. nameless

    January 31, 2010 at 4:05 pm

    yashwant ji, ye Vijay Pratap ji swaghoshit krantikari hain ya aapne khitab diya hai. waise bhee ya kis tarah ki kranti la rahe hain. These self righteous fellows are cheap. This is a forum for journalist and we can say our thing without indulging in galigalauj. Stop quoting anyone verbatin if the language is foul. You can judge that he is not a journalist but an illiterate pretender. I know u guys r smart enough and dont live in delusion. But then kranti has become a tool for carrierist krantikari’s. Samjhe comrade.

  19. rajesh ranjan

    February 4, 2010 at 10:19 am

    anil chamaria ko mai tab se janta hun . jab se mai akhbar padhta hun. mere hi padosi jile ke rahne wale hain. wo article to khoob achha likhte hain. lekin hain baniya dalit nahi. aur baniya pale apna phayda dekhta hai dusro ki bad me.

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