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दुख-दर्द

भूकंप में परीक्षा, बाढ़ में नौकरी छोड़ दी थी

‘थ्री इडियट’ का ‘रणछोड़दास चांचड’ था विनय तरूण : ऐसा लिखना पड़ रहा है, जो भगवान किसी से नहीं लिखवाए। विनय तरूण….. जितना प्यारा नाम, उतना ही सरल स्वभाव। लड़ाई-झगड़ा तो उससे कोसों दूर था, लेकिन धुन का इतना पक्का, जो कहना हो, उसे कहकर ही दम लेता था, दोस्तों से तो हर रोज उसकी किसी न किसी विषय पर बहस होती ही रहती थी, लेकिन क्या मजाल कोई उसे निरूत्तर कर सके. यहां तक कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्राकारिता यूनिवर्सिटी में हर पीरियड में उसकी किसी भी विषय पर बाल की खाल उतारने की आदत से टीचर भी परेशान रहते थे.

<p style="text-align: justify;"><strong>'थ्री इडियट' का 'रणछोड़दास चांचड' था विनय तरूण : </strong>ऐसा लिखना पड़ रहा है, जो भगवान किसी से नहीं लिखवाए। विनय तरूण..... जितना प्यारा नाम, उतना ही सरल स्वभाव। लड़ाई-झगड़ा तो उससे कोसों दूर था, लेकिन धुन का इतना पक्का, जो कहना हो, उसे कहकर ही दम लेता था, दोस्तों से तो हर रोज उसकी किसी न किसी विषय पर बहस होती ही रहती थी, लेकिन क्या मजाल कोई उसे निरूत्तर कर सके. यहां तक कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्राकारिता यूनिवर्सिटी में हर पीरियड में उसकी किसी भी विषय पर बाल की खाल उतारने की आदत से टीचर भी परेशान रहते थे.</p>

‘थ्री इडियट’ का ‘रणछोड़दास चांचड’ था विनय तरूण : ऐसा लिखना पड़ रहा है, जो भगवान किसी से नहीं लिखवाए। विनय तरूण….. जितना प्यारा नाम, उतना ही सरल स्वभाव। लड़ाई-झगड़ा तो उससे कोसों दूर था, लेकिन धुन का इतना पक्का, जो कहना हो, उसे कहकर ही दम लेता था, दोस्तों से तो हर रोज उसकी किसी न किसी विषय पर बहस होती ही रहती थी, लेकिन क्या मजाल कोई उसे निरूत्तर कर सके. यहां तक कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्राकारिता यूनिवर्सिटी में हर पीरियड में उसकी किसी भी विषय पर बाल की खाल उतारने की आदत से टीचर भी परेशान रहते थे.

विनय की बातों में दम होता था, इसलिए हम उसके तर्कों से खूब मजे लूटते थे. विनय के बारे में ज्यादा सिर्फ एक चरित्र से तुलना करके बताया जा सकता है कि 1999 से 2002 तक माखनलाल चतुर्वेदी पत्राकारिता विश्वविद्यालय में उसके जैसा कोई नहीं था. उसके सात साल बाद आई ‘थ्री इडियट’ फिल्म का रणछोड़ दास चांचड था वह. हंसी मजाक करना, दोस्तों और टीचरों को चिढाना, हर पल बहस करना, छिछोरापन दिखाना, स्वाभिमान के साथ रहना…

क्या-क्या बताएं… वह तो सर्वगुण सम्पन्न था. लड़के कॉलेज में लड़कियों पर लाइन मारने के लिए पता नहीं क्या-क्या जतन करते थे. पर विनय तो अपने उसी ठेठ अंदाज में धोती-कुर्ता पहनकर कालेज आ जाता था. कोई टोकता तो हो जाता था शुरू… धोती के फायदे गिनाने. वह लड़कियों को पटाने की नहीं बल्कि चिढ़ाने की कोशिश करता था. खाना खुद बनाता था और कैरोसिन का तेल खत्म होने पर कालेज में ही बोतल लहराता नजर आता था.

मेरी और उसकी हर रोज लड़ाई होती थी. पर क्या मजाल कभी उसका पारा उस लेवल तक पहुंचा हो जो दोस्ती को प्रभावित करने वाला हो. हमने कालेज की हड़ताल में फीस नहीं भरी, जिस कारण हमें 2002 में पास आउट होने के बाद डिग्री भी नहीं मिली. खैर डिग्री की किसी को चिंता नहीं थी और कर दी पत्राकारिता शुरू. मैं खुद भी 2007 में बकाया फीस भरकर अपनी बीजे की डिग्री लेकर आया था. विनय ने पूछा तो बोला मैं भी लेकर आ रहा हूं, क्योंकि मैंने एमजे में दाखिला लिया था.

विनय भी एमजे में दाखिले के लिए अपनी डिग्री लेकर आ गया. अब मैं उस मनहूस दिन को कोस रहा हूं, जब हमारी पूरी क्लास और बाकी कोर्सों के स्टूडेंट्स ने फीस न भरने का ऐलान किया था. अगर हम फीस भर देते तो 2002 में ही हमें डिग्री मिल जाती और विनय को अब 2010 में एमजे नहीं करना होता, जिसका पेपर विनय को छीन ले गया.

विनय इतना भावुक था कि गुजरात भूकंप में उसने अपनी फाइनल परीक्षा छोड़ दी थी. बिहार बाढ़ में अपनी नौकरी भी छोड़ दी. लोगों के दुख-दर्द में शामिल होकर अपना मानव धर्म निभाया. हम तो उसके सामने कुछ भी नहीं हैं. कुछ भी नहीं. बस इतना ही कहना चाहूंगा कि 1999 से लेकर 2002 तक कालेज में हमारे सीनियर भी थे और जूनियर भी आए, पर उस जैसा कोई नहीं था. किसी भी मामले में वह किसी की चमचागिरी नहीं करता था. स्पष्ट कहता था, जो उसे कहना होता था.

लेखक चौधरी धीरेन्द्र कुमार युवा पत्रकार हैं और स्वर्गीय विनय तरूण के दोस्त और सहपाठी रहे हैं.

मीडिया से जुड़ी खबरें, सूचनाएं, आलेख, संस्मरण भेजने के लिए [email protected] या 09999330099 का सहारा ले सकते हैं. भेजने वाले का नाम पता ठिकाना हर हाल में गु्प्त रखा जाएगा.

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0 Comments

  1. Dr,Dhanakar Thakur

    July 3, 2010 at 9:21 am

    Vinayka sanasar etna bada tha yah to mujhe gyant nahee tha par vah ek vinayee taun tha jo tarunaiime chala gaya.
    parso sandhyame suchna milee ki vah nahee hai-mera ek pyara karyakarta(mithila movement ka) chala gaya..
    Main unke pita(mujhsew thode bade), uski dono bahnoko yad kar unke dukhka akar samjh nahee pata hun.
    Maine 54 yrs hone par bhi kam bereavement najdikiyonke dekhe hain,,
    17 maheeneke janpahchanme 17 bar usne jarur mujhe kuchh bana khilaya hoga jabki vah midnight me bahrka edition(Koshi,Purnea) le kabhi-kabhi mere news chhap ata tha..tabtak main uski kitaben- Hindike -Englishke shabdon ke shuddharup par to Sahityik kriti adi parhta va sota rahata tha.
    Vinayke sathiyon ke sansarme to nahee par umra ke hisabse kafee bada main ek aisa jo fir akela rah gaya.

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