या, यों कहिए कि बरेली कालेज को अपने इस मशहूर कवि व सम्मानित प्रोफेसर के रिटायरमेंट का दिन याद नहीं रहा. जो भी हो, पर इस दिन आयोजन हुआ, बरेली कालेज के बिना. वीरेन डंगवाल के रिटायरमेंट से परे. इसमें शामिल हुए वीरेन डंगवाल. आनंद स्वरूप वर्मा, असद जैदी, शीतला सिंह, इब्बार रब्बी जैसे अपने घनिष्ठ दोस्तों की मौजूदगी में मानवाधिकार पर हुए एक कार्यक्रम में कविता पाठ भी हुआ. वीरेन डंगवाल ने बरेली के अपने दोस्त और बरेली कालेज के शिक्षक बलदेव साहनी की मृत्यु पर लिखी गई कविता ‘मरते हुए दोस्त के लिए’ का पाठ किया. ‘दुश्चक्र में श्रष्टा’ और ‘उजले दिन जरूर’ का भी पाठ किया.
शाम के वक्त अपने दोस्तों आनंद स्वरूप वर्मा, इब्बार रब्बी, असद जैदी के साथ वीरेनदा ने बरेली में घूम-टहल, खा-पी और हंसी-ठट्टा कर अपने रिटायरमेंट को इंज्वाय किया. अतीत के पन्ने पलटे तो वर्तमान पर बातचीत की. भविष्य के सपने बुनना बंद नहीं किया. लगता है आपने एक पड़ाव पार कर लिया, पूछने पर वे कहते हैं- ‘अब तो पड़ाव ही पड़ाव है बेटे, बड़ा चूतियापा है जीवन का, लंबी-छोटी जिंदगी, जो भी है, कटेगी, तुम लोगों के साथ रहकर कटेगी. मिलेंगे, घूमेंगे, लिखेंगे, सोचेंगे… कट जाएगी बेटे.’
साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय लोग वीरेन डंगवाल से खूब परिचित हैं, पर जो नहीं जानते, उनके लिए ये लिंक हैं, जिस पर क्लिक कर वीरेन डंगवाल के बारे में थोड़ा-बहुत जान सकते हैं-
सुभाष गुप्ता, देहरादून
July 9, 2010 at 1:39 pm
माननीय डंगवाल साहब तो एक ज्योति पुंज हैं। उन्होंने साहित्य को कई कालजयी रचनाओं से नवाज़ा है। बहुत से साहित्यकारों और पत्रकारों को राह दिखाई है। काम के दबावों के बीच ज़िन्दगी को हंसते मुस्कराते और स्नेह बांटते हुए कैसे जिया जा सकता है, डॉ. डंगवाल का हर दिन इसकी मिसाल नजर आता है। बहुत शालीन और बहुत सह्रदय, लेकिन उनकी शालीनता भी इतनी धारदार होती है कि कोई गलती से भी उसे कमजोरी नहीं मान सकता। वे अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं करते, चाहे कोई भी कीमत चुकानी पडे।
हर किसी से अपनेपन से मिलना और अपने खास अंदाज में उसकी हौसला अफजाई करना कोई उनसे सीखे। वे रिटायर तो क्या होंगे, अब नई सामाजिक और साहित्यिक जिम्मेदारियां ओढने के लिए उन्हें कुछ समय मिल गया है। मैं उन भाग्यशाली लोगों में से एक हूं, जिन्हें उन्हें नजदीक से देखने और काफी कुछ सीखने का मौका मिला।
Jagmohan Phutela
July 9, 2010 at 2:44 pm
मैं था तो जनसत्ता चंडीगढ़ में.पर,दिल्ली अक्सर जाता था.राय साहब (आदरणीय रामबहादुर राय जी) ने पहली बार मिलवाया वीरेन दा से.यों जानता उन्हें मैं हिंदी के अपने पहले गुरु ‘बटरोही’ जी के कारण भी था.तब से आज तक वे पत्रकारीय लेखन में साहित्य और उसकी संवेदनाओं के समावेश के लिए मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं.मेरा सौभाग्य है कि मैं अपने शब्द चयन के लिए उनका आशीर्वाद पा सका. मैं मान के चलता हूँ कि मुझ जैसे कृपापात्र उनके और भी होंगे और वे अभी बहुत लम्बे समय तक मुझ जैसों को लेखन,कथन और उसमें उत्तरदायित्त्व का एहसास कराते रहेंगे.
Prem Arora
July 10, 2010 at 2:57 pm
25 march 2010 ko pauri garhwaal mein umesh dobhal memorial trust kee aur se ayojit programme mein Veeren Da se Rubru Hua. Uske Baad Dehradoon mein Doon Readers Ke Banne Tale Rajpur Road ek hotem mein Veeren da ka Kavi Path Suna, Veeren Da Jintne Ache Kavi Hain, Utne Hee Ache Person bhee, Woh Saral Hain par sath mein sapashtwaadi Bhee. Unka Reitement Nahin Hua Balki, Pahad ke liye ho unhone Lekhan Kiya Usme Ab Tezi Aaegi. Rajen Todriya, PC Tiwari, Narendera Negi Jaise Ankek Unke Mittar Bhee Achha kar rahe hain.
Prem Arora
9012043100
ravishankar vedoriya
July 11, 2010 at 1:17 pm
viren da apko jivan ki nai pari ke liye hamari subhkamnaye college ke baad ab aapkavitayo se aam janta bani student ko jagrat kijiye