: वीएन राय ने मेरे लिए कहा था- ‘तब तक बचोगी’ : वीएन राय से बड़ा लफंगा नहीं देखा : ‘छिनाल’, ‘वेश्या’ जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं, हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं : वीएन राय लेखिकाओं को ‘छिनाल’ कहकर अपनी कुंठा मिटा रहे हैं। उन्हें लगता है कि लेखन से न मिली प्रसिद्धि की भरपाई वह इसी से कर लेंगे। मैं कुछ याद दिलाना चाहूंगी।
ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया और कुलपति वीएन राय को याद दिलाना चाहुंगी कि दोनों की बीबियां ममता कालिया और पदमा राय लेखिकाएं है, आखिर उनके ‘छिनाल’ होने के बारे में महानुभावों का क्या ख्याल है। लेखन के क्षेत्र में आने के बाद से ही लंपट छवि के धनी रहे वीएन राय ने ‘छिनाल’ शब्द का प्रयोग हिंदी लेखिकाओं के आत्मकथा लेखन के संदर्भ में की है। हिंदी में मन्नु भंडारी, प्रभा खेतान और मेरी आत्मकथा आयी है। जाहिरा तौर यह टिप्पणी हममें से ही किसी एक के बारे में की गयी, ऐसा कौन है, वह तो विभूति ही जानें। प्रेमचंद जयंती के अवसर पर कल ऐवाने गालिब सभागार (ऐवाने गालिब) में उनसे मुलाकात के दौरान मैंने पूछा कि ‘नाम लिखने की हिम्मत क्यों न दिखा सके’, तो वह करीब इस सवाल पर उसी तरह भागते नजर आये जैसे श्रोताओं के सवाल पर ऐवाने गालिब में।
मेरी आत्मकथा ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ कोई पढ़े और बताये कि विभूति ने यह बदतमीजी किस आधार पर की है। हमने एक जिंदगी जी है उसमें से एक जिंदा औरत निकलती है और लेखन में दखल देती है। यह एहसास विभूति नारायण जैसे लेखक को कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह बुनियादी तौर पर लफंगे हैं।
मैं विभूति नारायण के गांव में होने वाले किसी कार्यक्रम में कभी नहीं गयी। उनके समकालिनों और लड़कियों से सुनती आयी हूं कि वह लफंगई में सारी नैतिकताएं ताक पर रख देता है। यहां तक कि कई दफा वर्धा भी मुझे बुलाया, लेकिन सिर्फ एक बार गयी। वह भी दो शर्तों के साथ। एक तो मैं बहुत समय नहीं लगा सकती इसलिए हवाई जहाज से आउंगी और दूसरा मैं विकास नारायण राय के साथ आउंगी जो कि विभूति का भाई और चरित्र में उससे बिल्कुल उलट है। विकास के साथ ही दिल्ली लौट आने पर विभूति ने कहा कि ‘वह आपको कब तक बचायेगा।’ सच बताउं मेरी इतनी उम्र हो गयी है फिर भी कभी विभूति पर भरोसा नहीं हुआ कि वह किसी चीज का लिहाज करता होगा।
रही बात ‘छिनाल’ होने या न होने की तो, जब हम लेखिकाएं सामाजिक पाबंदियों और हदों को तोड़ बाहर निकलें तभी से यह तोहमतें हमारे पीछे लगी हैं। अगर हमलोग इस तरह के लांछनों से डर गये होते तो आज उन दरवाजों के भीतर ही पैबस्त रहते, जहां विभूति जैसे लोग देखना चाहते हैं। छिनाल, वेश्या जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं और हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं।
हमें तरस आता है वर्धा विश्वविद्यालय पर जिसका वीसी एक लफंगा है और तरस आता है ‘नया ज्ञानोदय’ पर जो लफंगयी को प्रचारित करता है। मैंने ज्ञानपीठ के मालिक अशोक जैन को फोन कर पूछा तो उसने शर्मींदा होने की बात कही। मगर मेरा मानना है कि बात जब लिखित आ गयी हो तो कार्रवाई भी उससे कम पर हमें नहीं मंजूर है। दरअसल ज्ञोनादय के संपादक रवींद्र कालिया ने विभूति की बकवास को इसलिए नहीं संपादित किया क्योंकि ममता कालिया को विभूति ने अपने विश्वविद्यालय में नौकरी दे रखी है।
मैं साहित्य समाज और संवेदनशील लोगों से मांग करती हूं कि इस पर व्यापक स्तर पर चर्चा हो और विभूति और रवींद्र बतायें कि कौन सी लेखिकाएं ‘छिनाल’हैं। मेरा साफ मानना है कि ये लोग शिकारी हैं और शिकार हाथ न लग पाने की कुंठा मिटा रहे हैं। मेरा अनुभव है कि तमाम जोड़-जुगाड़ से भी विभूति की किताबें जब चर्चा में नहीं आ पातीं तो वह काफी गुस्से में आ जाते हैं। औरतों के बारे में उनकी यह टिप्पणी उसी का नतीजा है।
लेखिका मैत्रेयी पुष्पा जानी-मानी साहित्यकार हैं. उनसे बातचीत अजय प्रकाश ने की. जनज्वार से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया गया है.
mahesh sharma
August 4, 2010 at 6:48 am
comment kuntha ka parichayak hai
sanjay bharatiya,साकेत कलेग फैजाबाद
July 4, 2011 at 8:26 pm
मैंने विभूति जी का लेख तो पूरा नहीं पढ़ा है पर उसके बारे में अपने साहित्याकअर मित्रों से सुना जरूर है.सर को ऐसा नही कहना चाहिए था .अब आप अंधे को अंधा कहेगे तो उसे कैसा लगेगा /