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साहित्य

विभूति कहां गलत हैं!

सिद्धार्थ कलहंस: प्रगतिशीलता की होड़ है, हो सको तो हो : गोली ही मारना बाकी रह गया है विभूति नारायण राय को। बसे चले तो भले लोग वह भी कर डालें। प्रगितशीलता के हरावल दस्ते की अगुवाई की होड़ है भाई साहब। न कोई मुकदमा, न गवाही और न ही सुनवाई। विभूति अपराधी हो गए। सजा भी मुकर्रर कर दी गयी। हटा दो उन्हें कुलपति के पद से। साक्षात्कार पर विभूति ने सफाई दे दी। पर प्रगतिशील भाई लोग हैं कि मानते नहीं। सबकी बातें एक हैं- बस विभूति को कुलपित पद से हटा दो।

सिद्धार्थ कलहंस

सिद्धार्थ कलहंस: प्रगतिशीलता की होड़ है, हो सको तो हो : गोली ही मारना बाकी रह गया है विभूति नारायण राय को। बसे चले तो भले लोग वह भी कर डालें। प्रगितशीलता के हरावल दस्ते की अगुवाई की होड़ है भाई साहब। न कोई मुकदमा, न गवाही और न ही सुनवाई। विभूति अपराधी हो गए। सजा भी मुकर्रर कर दी गयी। हटा दो उन्हें कुलपति के पद से। साक्षात्कार पर विभूति ने सफाई दे दी। पर प्रगतिशील भाई लोग हैं कि मानते नहीं। सबकी बातें एक हैं- बस विभूति को कुलपित पद से हटा दो।

लगता है बहस सबसे पहले इस बात पर आ गयी है कि ‘छिनाल’ शब्द का इस्तेमाल उतना अपमानजनक नहीं है, जितना यह कि कुलपति विभूति ने ये कहा। कईयों को तो मैं खुद जानता हूं जो इसी बहाने से अपना हिसाब निपटाने में जुट गए हैं। बयानबाजों में ज्यादातर ने तो साक्षात्कार पढ़ा नहीं पर जुबान चला डाली। कहीं प्रगतिशील होने की होड़े में पीछे न रह जाएं। विभूति लेखक भी हैं और ज्यादा जाने उसी वजह से जाते हैं। अमां कम से कम उन्हें अपनी बात कहने का हक तो दो। भत्सर्ना करो जम के करो। बोलने तो दो कि फासीवादियों की तरह जुबान पर भी ताला लगा दोगे।

कइयों का ये भी कहना है कि जिन्हें विभूति से फायदा लेना है, वो पत्रकार विभूति की चमचागिरी में लगे हैं। भाई, हमें न उनसे कुछ मिलना न पाने का मैं पात्र हूं। पर इतना जरूर कहूंगा कि विभूति को भी किसी की तरह अपनी बात कहने का हक है। क्या याद दिलाना होगा कि कब कब किस बड़े आदमी ने इससे भी घटिया शब्दों का इस्तेमाल साक्षात्कार या भाषण में किया है।

विभूति के विरोध पर लखनऊ विश्वविद्यालय की कुलपति रहीं रूपरेखा जी ने कहा कि अपने लेखन में सिर्फ स्त्री की देह को दिखाना मर्दवादी छवि को बढ़ावा देता है। भाई पूरी बात यहीं पर तो है कि विभूति स्त्री देह के इस्तेमाल के जरूरत से ज्यादा चित्रण पर बोल रहे हैं। बिस्तर की बातों से पन्ने रंगे जा रहे हैं। इसी को लेकर विभूति की आपत्ति है। शब्द गलत हो सकते हैं या साक्षात्कार लिखने में उनका इस्तेमाल, पर बाकी विभूति कहां गलत हैं!

लेखक सिद्धार्थ कलहंस बिजनेस स्टैंडर्ड, लखनऊ के प्रिंसिपल करेस्पांडेंट हैं और लखनऊ यूनियन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रेसीडेंट हैं.

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0 Comments

  1. Haider Rizvi

    August 3, 2010 at 11:46 am

    बजा फरमाया है। विभूति से सब हिसाब ही बराबर करने में जुट गए हैं। कुछ तो वो कुंठित लोग हैं जो उनके कुलपति बनने को ही नही पचा पा रहे हैं। विभूति के साक्षात्कार को अभी भड़ास पर पढ़ा। किस चीज को लेकर इतनी हाय तौबा। कई तो गड़े मुरदे भी उखाड़ रहे हैं। जरा बीते एक दशक का महिला लेखन देख तो लें। विभूति की चिंता भी वाजिब है। शब्द गलत हो सकते हैं।

  2. kamta prasad

    August 3, 2010 at 11:52 am

    यौन आजादी को लेकर हमारे युवा पगलाए हुए हैं और इसी प्रकार की सतही समझ नारी मुक्ति आंदोलन की झंडाबरदारों की भी जान पड़ती है। यौन अराजकता बोर्जुआ सांस्‍कृतिक विकार के अलावा और कुछ नहीं है। विभूति ने इसी विकार को लेकर तल्‍ख टिप्‍पणी की है जो एकदम से सटीक बैठती है। कलहंस भाई आप ही बतायें कि आज के इस भीषण दौर में रचनाओं का कथ्‍य क्‍या यौन अराजकता का महिमामंडन होना चाहिए, कत्‍तई नहीं।
    विरोध में फुंफकार रहे लोगों की समझ में वह परिप्रेक्ष्‍य ही नहीं आ रहा है जिसमें उक्‍त टिप्‍पणी की गयी है।

  3. पृथ्वीनाथ

    August 3, 2010 at 12:40 pm

    सिद्धार्थ जी
    आपने सच्चाई को सही तरीके से सामने रखा है।

  4. OP Sharma

    August 3, 2010 at 3:56 pm

    Dear Mr Kalhans,
    Aaj aap VN Rai ki tarafdaari kar rahe ho. Jaroor purane boss Darshan Desai ka karja utar rahe hoge. Warna aap badi morality ki baatein karte hain aur yaha auraton ko Chinaal kahne wale ko defend kar rahe hain. Waise aap ki ek baat sahi hai ki mamle ki oat mein kuch log VN Rai se khunnas nikal rahe hain.

  5. manik

    August 3, 2010 at 4:30 pm

    dusaraa pahalu bhi sunanaa chaahiye.

  6. ikram waris 0983865538

    August 3, 2010 at 7:26 pm

    Dada,
    aapne jin baatoun ko uthaya hai, wo nishchit roop se sahi hai, kyoun ki aaj ke dour me sab profit lene ke hod me hai………..)

  7. JASBIR CHAWLA

    August 4, 2010 at 6:18 am

    V N Rai.ne jo baat kahee hai uskaa andaj-e-bayan talkh ho sakta hai,par mudde ki baat galat kahan hai?Aatmkatha ke bahane Lekhikayen kayaa nahin paros rahin.Rai par aakrman unki Dharmnirpeksh chavee ko lekar bhee hai jo Sanghee vichaar ke barksa hai.Polce me rahkar poice vaywastha tatha khamion par unhone kalam uthaee hai.

  8. SUJIT THAMKE

    August 4, 2010 at 6:25 am

    JANAB AAP BUSINESS STANDARD KE HO YAA KO BADHE NEWSPAPERS KE EDITOR-IN-CHIEF JO GALAT HAI AGAR USKO GALAT MAANA TUMAHARA DHARMA AUR KARM NAHI TO AAP KAHE KI PATRAKARITA KAR RAHE……..”CHINAAL”………….KAA MATLAB SABHI JAANTE HAI ESKAA KOI DURSAA MATLAB NAHI HOTAA VO LAKH KITNI BHI SAFAI DE…..RAHI BAAT UNKE SAFAI KI VO EK ANTARASHTRIYA HINDI UNIVERSITY KE VC HAI AUR VC YE CONSTITUTIONAL POST HAI VO BAAD ME SAHITYAKAAR HAI PAHALE VC HAI.UNKO ES POST PE BANE RAHANE KAA KO MAULIK ADHIKAR NAHI HAI USKO ES PAD SE HATAA DENA CHAHIYE………………

  9. Pundit Ram Vilas Sharma, Varanasi

    August 4, 2010 at 9:02 am

    Siddharth Bhai theek farmaya aapne. Bina Sune saja suna di logon ne Rai Sahab ko. Sibbal bhi kood pade akhir mantri hain kaise rahe sakte hai. Rai sahab ek jahin admi hai aur kabhi kabhi jahin admiyon ki “SANKAITIK BAATEIN” logon ko samaj me nahi aati. Are bahi unko bhi sun lijiye ek baar

  10. Roli Singh

    August 4, 2010 at 9:50 am

    Doston ko defend karne ke liye kahan tak neeche jayenge aap mahanubhaav. You are in the league that consider VN Rai as the torchbearer of secularism but in fact he is a big MCV and we have to think twice abt u also.

  11. Siddharth Kalhans

    August 4, 2010 at 11:42 am

    Post par comment karne walon ka swagat. Roli Ji first of all its not mcv but mcp. otherwise ur views are welcomed. Sujit Sahab ab baki bachchi patrakarita aap se seekh lenge. Dear Mr Sharma Desai sahab ka Karja itna halka bhi nahi jo ek post se utar jaye.
    Mamla khatam hai bhai log.

  12. Darshan Desai

    August 4, 2010 at 12:03 pm

    I don’t know this respected OP Sharma, who suffers from a typical problem people in Uttar Pradesh suffer from — the inability to see things objectively and the tendency to attach it to “karja utarna” and “badla lena”. This is exactly the bane and the undoing of UP. I am really keen to know what kind of “karja” Mr Kalhans took from me that he needs to return it?? And how does that “karja” to me get returned by Kalhans by giving some view on VN Rai’s writings or otherwise. I find this absolutely hilarious, immature, unobjective and that reflects the overall backward mindset in India’s most populous state, that is bleeding from inefficiency, corruption, lack of objectivity and petty politics with a strange kind of convulated logic. Need to rise above these things Mr Sharma, whoever you are, except that, I am sure you are a pucca UP-wala. Pinch yourself and think again. 😉

  13. mohammad azad,

    August 4, 2010 at 1:27 pm

    सिद्धार्थजी आपने बिल्कुल सही फरमाया है। आजकल के तथाकथित बुद्धिजीवी किसी तरह मुद्दे की तलाश में रहते हैं और मौका लगते उधम मचाना शुरू कर देते हैं। न जाने लोग इतनी हायतौबा क्यों मचाना शुरू कर देते हैं। अब वीएन राय ने इतना बड़ा अपराध तो नहीं कर दिया कि उसे सजा-ए मौत दिलाकर ही चैन लिया जाए।

  14. Dr.Hari Ram Tripathi

    August 4, 2010 at 6:29 pm

    I agree with Mr.Siddharth.–H.R.Tripathi, mob.09415020402

  15. santosh rai

    August 5, 2010 at 5:13 am

    कुछ लोगों को मैं देख रहा हूं. वीएन राय के कुलपति बनने के बाद से ही हायतौबा
    मचाए हुए हैं। और वो हर पल उनके खिलाफ मुद्दा खोजने की जुगत में है। छिनाल प्रकरण के बाद हो सकता है ऐसे पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग उनका कोई फेक एमएमएस बनाने में ना जुट जाएं। सावधान वीएन राय

  16. अमर

    August 5, 2010 at 5:43 am

    बिभूति की माँ “कितनी बिस्तरों में कितनी बार ” के बाद ऐसे पुत्र को जन्म दे पायी इससे किसी को कोई मतलब नही होना चाहिए … हाँ ‘ चोरगुरु’ अनिल का फैसला क्या , कब होता है इसका इन्तजार है .

  17. रवि

    August 5, 2010 at 7:56 am

    श्रीमान सिद्धार्थ कलहंस जी , आप का लिखा “विभूति कहां गलत हैं! ” पढ़ा, आप ने पूछा विभूति कहां गलत हैं! … पहले आप यह बताये कि जो आपके परिचय में लिखा है
    ” लेखक सिद्धार्थ कलहंस लखनऊ यूनियन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रेसीडेंट हैं”
    क्या वह आपने लिखा है ? जान लीजिये यह गलत लिखा है .कृपया पहले इसे ठीक से लिखिए …फिर बताउंगा और क्या गलत है .

  18. Siddharth Kalhans

    August 5, 2010 at 3:56 pm

    Ravi Babu Likha to maine nahi hai. Ab kareeb 15 saal me IFWJ se juda hoon to kya sahi hai ye to janta hoon par aap ka margdarshan bhi mile. Main har roj seekhne to taiyaar hoon.
    Aapne dhyan diya iske liye Dhanyawaad.

  19. रवि

    August 6, 2010 at 2:34 pm

    सिद्दार्थ जी , अक्सर हम अपनी बात कहते समय यह ध्यान नही देते हैं कि हमारी बात तथ्य है या विचार . शायद आप इस बात से सहमत होंगे कि तथ्य और विचार में तथ्य ही सच के ज्यादा करीब होते है . मैंने आपके परिचय में लिखी जिस बात के बारे में पूंछा , वह आपने नही लिखी है इसलिए आप को बताने से कोई लाभ नही .
    धन्यवाद

  20. परमहंस

    August 9, 2010 at 7:53 am

    सिद्धार्थ कलहंस जी , अब जब विभूति स्वयं माफी मांग चुके है और उनको ज्ञानपीठ की प्रवर परिषद से हटा दिया गया है , आपको समझ में आ गया होगा की विभूति कंहा गलत है ! … और आप किस संगठन से जुड़े है उसका नाम हिन्दी (देवनागरी लिपि ) में जरुर लिखे . कृपया जवाब जरुर दे.

  21. रवि

    August 13, 2010 at 8:47 am

    सिद्धार्थ कलहंस जी , अभी भी आपको समझ में नही आया कि विभूति कंहा गलत है ! बताइए ना … और कृपया और आप जिस संगठन से जुड़े है उसका नाम हिन्दी (देवनागरी लिपि ) में ठीक से स्वयं लिख कर दिखा दे कि आप वाकई सीखने को तैयार है . मनुष्य जन्म से मृत्यु तक सीखता ही रहता है (शायद आप भी मनुष्य है ! ) आपने पत्रकारिता की शिक्षा कंहा से ली है ? ली भी है या … उम्मीद है आप उत्तर दे सकते हैं .

  22. वशिनी

    September 15, 2010 at 2:40 am

    आप सब बयानबाज़ी करने और मुद्दे को गरमाए रखने में क्यों लगे हुए हैं ।
    विश्व साहित्य में लोलिता जैसे उपन्यास के लेखक भी विवाद ग्रस्त होने से बच नहीं पाए ।
    अब बस करें !इससे ज़्यादा रस लेना मानसिक विकृति ही लगेगी ।

  23. वशिनी

    September 15, 2010 at 2:47 am

    अब बस भी करें । कितनी देर जुगाली होती रहेगी ।
    हमें तो लगता है पक्ष और विपक्ष बस मज़ा ले रहे हैं ।
    दूसरे औरत की बात है न चाहे वो लेखिका ही क्यों न हो । तस्लीमा भी कहाँ बच पाई इन सबसे ।औरत होना और फिर लोकप्रिय होना ।

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