भिलाई में रिद्धि सिद्धि महिला मंडल और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर ने संयुक्त रूप से एक संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें मीडिया और महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की गई. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि राहुल महाजन के स्वयंवर में पंद्रह लड़कियों में से राहुल सिर्फ एक को चुनने वाले थे. यह बात शो में शामिल हुई लड़कियां भी जानतीं थीं. फिर इस तरह से अपनी भावना, अस्तित्व के साथ खिलवाड़ किसलिए.
बाद में स्टार टीवी ने उन लड़कियों से सवाल किया कि इस शो से बाहर आने के बाद आप समाज में अपनी स्थितियों को कैसे देखती हैं, वगैरह-वगैरह. लड़कियां कोई नुमाइश की वस्तु नहीं हैं. अब मांओं का चेहरा बच्चों के लिए वैसा हो गया है जैसा टेलीविजन में मांओं का चरित्र दिखलाया जा रहा है. इस पूरे परिदृश्य में कहीं पर मीडिया दोषी है और कहीं महिलाएं. कुछ चैनलों में महिलाएं अश्लील भाषा का प्रयोग करते दिखाई देती हैं.
आईपीएस ऑफिसर अनुराधा ने कहा कि राममनोहर लोहिया, महात्मा गांधी ने पत्रकारिता को औजार के रूप में इस्तेमाल किया. श्रेष्ठतम पत्रकार पिंट मीडिया के हैं. सत्ता का खेल पत्रकारिता में इस तरह से मौजूद है कि पिछले बीस-तीस सालों में लोगों ने व्यावसायिक तरीके से सारी चीजों को तय करना शुरू कर दिया है. महिला को किसी एक फॉर्मूले में फिट करके देखना ठीक नहीं.
महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मृदुला सिन्हा ने कहा कि पत्रकारिता का कार्य प्रत्येक घर में दिया जलाने जैसा है. अखबारों की कुछ खबरें महिलाओं से संबंधित होती हैं. संगोष्ठी में सरोज पांडेय, डॉ डीएन वर्मा, रोहिणी पाटनकर, ज्योति धारकर आदि ने विचार व्यक्त किए. संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ प्रदेश के साहित्यकार धानेश्वर शर्मा, शायर मुमताज भाई, पत्रकारिता से जुड़े विद्यार्थी व शहर के विभिन्न तबकों के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
shashi kant rai
March 15, 2010 at 3:20 am
very good;sir
ajay
March 16, 2010 at 8:05 pm
very good
विकास श्रीवास्तव
March 17, 2010 at 5:32 am
महिलाएं दावा करती हैं कि वो दिखावे की चीज नहीं हैं। लेकिन राहुल महाजन के स्वयंवर के लिए लड़कियों की लाइन लगी थी, ये जानते हुए कि राहुल की पत्नी केवल एक ही बनेगी, लेकिन सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता था। स्वयंवर के पहले तक निकुंज, हरप्रीत, प्रियदर्शिनी, डिंपी को कितने लोग जानते थे, लेकिन आज उन्हे एक एक अच्छा खासा वर्ग जानता है। उधर मीडिया भी महिलाओं का इस्तेमाल करके टीआरपी पाने में पीछे नहीं है, अब चाहे वो राखी और राहुल का स्वयंवर हो या फिर बालिका वघू की आनंदी को कोमा में भेज कर देश भर में उसके लिए दुआएं कराना। हालांकि गलती मीडिया की भी पूरी तरह नहीं है, क्योंकि लोग शायद यही देखना पसंद करते हैं।