इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन यूनिवर्सिटी (इग्नू) के स्कूल आफ जर्नलिज्म एंड न्यू मीडिया डिपार्टमेंट और डायचे वेले अकादमी, जर्मनी के संयुक्त तत्वावधान में पिछले दिनों इग्नू कैंपस में 30 दिनी वेब कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस वर्कशाप में ट्रेनर के रूप में जर्मनी से सोनिया फिल्नकर भी आईं थीं। सोनिया मूलत: भारत के पूना की रहने वाली हैं। उन्होंने वर्ष 2001-02 में एशियन स्कूल आफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की पढाई की। अब वे जर्मनी की होकर रह गई हैं। सोनिया स्टोरी पर काम करने के लिए हर साल भारत आती हैं। वर्कशाप में वेब जर्नलिज्म की ट्रेनिंग देने आईं सोनिया ने भारत की स्थिति से लेकर भारतीय मीडिया से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। पिछले आठ वर्षों में भारतीय मीडिया में आए बदलाव पर सोनिया की सोच कुछ इस तरह है- ”टीवी जगत में स्थिति विस्फोटक हो गई है। इतने चैनल आ गए हैं कि गिनना मुश्किल है। कुछ गंभीर विश्वसनीय चैनल हैं। मैं ज्यादातर अंग्रेजी चैनल देखती हूं इसलिए इन्हीं के बारे में बात कर सकती हूं। मुझे सीएनएन-आईबीएन, एनडीटीवी चैनल पसंद हैं। दुर्भाग्य की बात ये है कि सारा हिस्टीरिया हमारे समाचार चैनलों पर परोसा जाता है जो समाचार सिद्धांतों के खिलाफ है।
समाचार में गुणवत्ता की जगह आवाज तेज कर दिया गया है। समाचार पत्र या न्यूज चैनल के लोग कहते हैं कि वे वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है, जबिक उन्हें वह दिखाना चाहिए जो एक प्रबुद्ध पत्रकार का मस्तिष्क कहता है। बलात्कार, मर्डर जैसे विषयों पर चैनल अपने विचार उडे़लते नजर आते हैं। उन्हें हकीकत बताना चाहिए या फिर घटनाक्रम को बयान करना चाहिए। अपने नजरिए को थोपना नहीं चाहिए। भारत में कोई भी रिपोर्ट फाइल करने से पहले रिसर्च का काम बहुत कम होता है। रिपोर्ट में विचार और भाषण की भरमार होती है, तथ्य कम होते हैं।” भारतीय मीडिया से सोनिया को शिकायत है कि वो तुरंत किसी आरोपी पर अपना निर्णय सुना देती है। जैसे आरुषि मर्डर केस में उसने पिता को ‘मोनस्टर फादर’ यानि ‘राक्षस पिता’ की उपाधि से तुरंत नवाज दिया। बिना सबूत के ऐसा करना पत्रकारिता के सिद्धांत के खिलाफ है।”
भारत के बारे में सोनिया का कहना है कि इस देश ने बहुत तेजी से विकास किया है। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर और आधुनिकता में बहुत तेजी से विकास हुआ है। शहरी जनता का आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। इस कारण पश्चिम में लोगों की अवधारणा भारत और भारतीयों को लेकर बदल रही है। अब भूमंडलीकरण की हवा यहां भी बहने लगी है। पर एक शहरी और ग्रामीण भारत के बीच बढ़ती खाई परेशानी पैदा करने वाली है। शहरों में भी प्रत्यक्ष रूप से गरीब और अमीर इलाका दिखाई पड़ रहा है। यह चिंता का विषय है कि तरक्की हर किसी के लिए नहीं आई है।
आनलाइन पत्रकारिता की ट्रेनिंग देने जर्मनी से आईं सोनिया का मानना है कि आनलाइन पत्रकारिता का भविष्य बहुत उज्जवल है। वे कहती हैं कि आनलाइन पत्रकारिता के आने से अब सिर्फ पेशेवर पत्रकार ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्र से आए लोग भी पत्रकारिता की इस मुहिम में हिस्सा ले सकेंगे। अब समाचार लेक्चर नहीं लगेगा। ‘सामाजिक बुक मार्किंग’ के जरिये लोग एक दसरे से जुड़े रहेंगे। फेशबुक, ट्विट्लर, डिलिसियस ये वो उपकरण हैं जिनके द्वारा पत्रकार अपने-आपको ज्यादा बेहतर तरीके से पेश कर सकेगा। ‘ट्विट्लर’ के द्वारा कम शब्दों में समाचार को तेजी और जल्दी से फैलाया जा सकता है। ये औजार पश्चिमी मीडिया में बहुत इस्तेमाल किए जाते हैं। सोनिया ने वर्कशाप में इन्हीं चीजों के बारे में जानकारी दी। वर्कशाप में उन्होंने आडियो, वीडियो, फोटो के इस्तेमाल के प्रभावी तरीके से इस्तेमाल के गुर सिखाए।
दिल्ली के इग्नू कैम्पस में आयोजित कार्यशाला में छात्रों के बारे में सोनिया का कहना है कि कुछ छात्रों को यहां आने से पहले कम्प्यूटर का कोर्स करना चाहिए था। कई ऐसे लोग आए थे जिन्होंने पत्रकारिता में अच्छा-खासा वक्त बिताया है, इसलिए उनके ज्ञान का स्तर काफी अच्छा दिखा। कुछ पत्रकारिता के व्याख्याता भी थे। इतने विविध स्तरों के छात्रों को कोर्स के विषय में समझाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। कुछ छात्र तो एनजीओ की पृष्ठभूमि से आए थे इसलिए उन्हें पत्रकारिता की दुनिया की गहराई से समझ नहीं थी। कुछ प्रतिभागी म्यांमार और नेपाल से आए थे। सोनिया और उनके अमेरिकी सहयोगी केले जेम्स को यह कार्यशाला काफी चुनौतीपूण लगी। वेव पत्रकारिता की वर्कशाप में हिस्सा लेने वरिष्ठ पत्रकार विनोद वार्ष्णेय भी पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि वे यहां वेब पत्रकारिता के तकनीकी-कानूनी पक्ष को जानने के लिए आए हैं। वर्कशाप के जरिए पत्रकारों को काफी कुछ नया सीखने को मिला। आडियो, वीडियो को किस तरह समाचारों में या रिपोर्ट में अपलोड किया जाता है और इससे स्टोरी को किस तरह प्रभावी बनाया जाता है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
रिपोर्ट : माधवीश्री