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लाइफस्टाइल

कंडोम का नृशंस बाजारीकरण

[caption id="attachment_19102" align="alignleft" width="96"]योगेशयोगेश शीतल[/caption]रात के यही कोई ग्यारह बज रहे होंगे। कमरे में दम घुटने लगा था सो नीचे सड़क पर आ गया। ठण्ड की रात अकेले सड़क पर बिताने का वही मजा है जो जेठ की रात कोठे पर गजल सुन कर टहलते हुए बिताने का। फोन पर बात करते-करते रात सड़क पर बिताने की आदत बहुत पहले ही लग चुकी थी। घर में कोई सुन न ले इसलिए बात करने सड़क पर आ जाना और फिर नोकिया का बैटरी बैक-अप भी तो अच्छा था तब। धीरे-धीरे आदत लग गई।

योगेश
योगेश

योगेश शीतल

रात के यही कोई ग्यारह बज रहे होंगे। कमरे में दम घुटने लगा था सो नीचे सड़क पर आ गया। ठण्ड की रात अकेले सड़क पर बिताने का वही मजा है जो जेठ की रात कोठे पर गजल सुन कर टहलते हुए बिताने का। फोन पर बात करते-करते रात सड़क पर बिताने की आदत बहुत पहले ही लग चुकी थी। घर में कोई सुन न ले इसलिए बात करने सड़क पर आ जाना और फिर नोकिया का बैटरी बैक-अप भी तो अच्छा था तब। धीरे-धीरे आदत लग गई।

रोज की तरह आज भी निकला। गुलाब जामुन खाते हुए नजरें इधर-उधर दौड़ा रहा था। अचानक सामने के दुकान पर रखे कंडोम के डब्बों पे नजर पड़ी। डब्बी पर लडकी की अश्लील सी फोटो थी। ऐसा लग रहा था मानो डिब्बी के अन्दर कंडोम नहीं होकर उस लडकी का अता-पता हो। कंडोम के बगल में ही नैपकीन भी रखी थी। कॉटेक्स, स्टेफ्री, विस्‍पर वगैरह वगैरह। इन पर लडकियों का फोटो होना तो समझ में आ गया लेकिन इसी आधार पर कंडोम की डिब्बी पर लडकों की जगह लडकियों की इस तरह की फोटो ने दिमाग के अन्दर गुदगुदी कर दी। रेडियो और टीवी पर देख-सुन कर इतना तो सब जान चुके हैं कि कंडोम लड़के और नैपकीन लड़कियों के उपयोग की है, फिर ऐसी भी क्या जरूरत आ पड़ी कि कंडोम की डिब्बी पर नंगी लड़कियों को चिपकाकर सामने रखा जाए। सरे आम। क्या लड़कियों का जिस्म देखकर कंडोम की क्वालिटी का पता चलता है! दिमाग में सवालों का अंकुरण तेजी से शुरू हो गया।

जहां तक मेरी जानकारी है कोई भी सरकारी संस्था कंडोम की बिक्री इस तरह नहीं करती है। हां रेड लाइट एरिया में एनजीओ कंडोम का वितरण जरूर करता है। क्राइम रिर्पोटिंग के दौरान कई बार रेड लाइट एरिया गया हूं लेकिन वहां भी ऐसा प्रदर्शन इस तरह से नहीं होता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कटवरिया सराय में न रहकर रेडलाइट एरिया में जी रहा हूं। सच कहिए तो कंडोम का मजाक बन रहा है और यह अपने लक्ष्य से भटक रहा है।

कंडोम को कमोडिटी की तरह लांच किया जा रहा है। मेनफोर्स दस का, कामसूत्र बीस का…पांच सौ का भी आ गया है मार्केट में। थू। बेशक इसके लिए बाजार जवाबदेह है। वही बाजार जो कैंसर से तड़प-तड़प कर मरते समाज के लिए जब गुटखा को पैक कर रहा होता है तो वैधानिक चेतावनी एक ऐसी निशानी की तरह छापता है मानो महानगर की महिला के मांग का सिंदूर हो। बामुश्किल दिखता है जाने इरादा क्या होता होगा मैडम जी का! उच्चतम न्यायालय ने आजिज आकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि खबरदार जो मार्च 2011 के बाद से पाउच का प्रयोग किया।

मैं कंडोम के साथ किए जाने वाले सेक्स के पक्ष में हूं लेकिन कंडोम का इस तरह का नृशंस बाजारीकरण कहीं इसे इसके लक्ष्य से न भटका दे, इसी का डर है मुझे। किसी भी समाज का एक अनुशासन होता है। बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने जब नक्सलियों तक नाई के माध्यम से कंडोम पहुंचाने की बात की थी तो मैंने इस रिपोर्ट को पहले पन्ने का लीड बनाया था। सुलभ शौचालय, रेलवे प्लेटफॉर्म जैसी सार्वजनिक जगहों पर डब्बे में कंडोम रखे जाने का कदम सराहनीय है, लेकिन शहर के मेडिकल स्टोरों में बडे-बडे पोस्टरों में घोर अश्लील तस्वीरों के साथ अश्लील शब्दों का मसाला बनाकर कंडोम की प्रदर्शनी से न तो परिवार नियोजन होगा और न ही जागरूकता आएगी। इससे बस असहजता आएगी। जागरूकता लाने के लिए ’’कंडोम बिंदास बोल’’ तक ठीक है लेकिन स्वीमिंग पूल में बिकनी में किसी महिला की घोर अश्लील तस्वीर को जागरूकता के नाम पर आम और सरे आम करना जागरूकता नहीं बदमाशी है। हमारे मनोविज्ञान पर इनका क्या असर होता है यह किसे नहीं मालूम है। सच पूछिए तो डर इस बात का भी है कि नियोजन या एड्स से रोकथाम के लिए बना कंडोम कहीं महिला संसर्ग का लाइसेंस न बन जाए! यूं तो इसके कोई प्रत्यक्ष दुष्परिणाम नहीं होंगे लेकिन यह सामाजिक ढांचे को तहस-नहस कर के रख देगा। संभ्रांत होने का दिखावा बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।

लेखक योगेश शीतल पत्रकार हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=NVFUrux8L5A

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0 Comments

  1. aashu bansal

    January 5, 2011 at 10:10 am

    yogesh bhai,aapka lekh bada hi sateek hai,condom pr ladkiyo ki nagn tasveer chaap kr bajar me bech kr ye kya saabit karna chahte hain.aakhir ye kiske upyog ki vastu hai,

  2. sanjay choudhary

    January 4, 2011 at 5:30 pm

    मैं कंडोम के साथ किए जाने वाले सेक्स के पक्ष में हूं लेकिन कंडोम का इस तरह का नृशंस बाजारीकरण कहीं इसे इसके लक्ष्य से न भटका दे, इसी का डर है मुझे।
    लेकिन शहर के मेडिकल स्टोरों में बडे-बडे पोस्टरों में घोर अश्लील तस्वीरों के साथ अश्लील शब्दों का मसाला बनाकर कंडोम की प्रदर्शनी से न तो परिवार नियोजन होगा और न ही जागरूकता आएगी। इससे बस असहजता आएगी। जागरूकता लाने के लिए ’’कंडोम बिंदास बोल’’ तक ठीक है …..
    ham uprorte bat se puri trah se sahmmat hi……

  3. A N Shibli

    January 4, 2011 at 9:42 am

    बहुत अच्छा लेख। मुझे नहीं लगता की किसी भी धर्म में इस बात की इजाज़त दी गयी है की बीवी के अलावा भी जहां चाहो मुंह मारते रहो। यह बात सरकार को भी पता है। इसके बावजूद आज जिस अंदाज़ में कंडोम का प्रचार किया जा रहा है उस से यही लगता है की सरकार आम लोगों को यह बताना चाह रही है की आप जहां चाहें अपना मुंह काला करें बस कंडोम का इस्तमल ज़रूर करें ताकि बीमारी न हो। बीवी के अलावा कहीं और रिश्ता बनाने से आपका घर तबाह हो जाये इस से हमें मतलब नहीं हैं हमें मतलब है तो सिर्फ इस से की आप एड्स जैसी बीमारी के शिकार न हों। कंडोम के प्रचार का मक़सद सिर्फ परिवार नियोजन होना चाहिए मगर ऐसा नहीं है। कॉलेज में कंडोम और पार्कों में कंडोम बाँट कर आखिर किया बताने की कोशिश हो रही है। पिछले दिनों मैंने देखा की दिल्ली में कालिंदी कुंज पार्क के बाहर कंडोम बांटा जा रहा था। इस का मतलब तो यही हुआ न की जाओ पार्क में अपना अपना मुंह काला करो बस कंडोम ज़रूर इसतमाल करो। सरकार अगर लोगों को एड्स से बचना चाहती है तो यह कियूं नहीं कहती की अपनी बीवी के अलावा किसी के साथ शारीरिक संबंध न बनाएँ वो तो सिर्फ यह कहती है की एड्स से बचने के लिए कंडोम का इस्तमल करें। कुल मिलकर कंडोम का प्रचार भी एक प्रकार से बुराई को बढ़ावा देना है।

  4. मदन कुार तिवारी

    January 4, 2011 at 6:08 am

    वाह मेरे मन मुताबिक लिखा है आपने। मैं इधर तीन दिनों से कंडोम उवाच लिखने के लिये सोच रहा था। कारण है , ३१ दिसंबर को पटना के तारामंडल में दिखा एक दिलचस्प नजारा। एक दोस्त का परिार भी साथ में था बच्चों को ताामंडल दिाने का प्रोग्ाम बना। ताामंडल में उपर गया तो बाथरुम जाा पडा बाथ रुम का मुख्य दरवाजा एक था , उसके अंदर दो दो बाथरुम था पहले महिा का फ़िर पुरुष का। वहां एक वेंडिंग मशीन लगी थी। सिक्के डालें , कंडोम और माला डी निकलेगा । कैमरा साथ रखने की आदत है । फ़ोटो और विडियो दोनो लिया। सबसे अधिक आश्चर्य यह देखकर हुआ की बाथरुम का मुख्य द्ार एकह ऐ। एकदम सन्ाटे में बने इस बाथ रुमकआ मुख्य द्ार से अंदर जाकर बंदकर लें , वहां वेंडिंग मशीन की व्यवस्ा है हीं। मतलब गलत काम के लिये सरकारी सुविधा का लाभ उठायें।

  5. Rajender Singh Nim

    January 4, 2011 at 5:20 am

    Vaastav main yeh ek sochi samajhee neeti ke anusar ho raha hai taki desh ka yuva
    sarkaar ki neetiuon ki or se udaaseen rahe.

  6. pravin rai

    January 25, 2011 at 9:05 am

    hme yeh pta hona chahiye ki bazar ko ye nahi dikhta ki ashlil aur shlil kaya hai use to apna saman bechana hota hai. hamra samaj bhi ab bazar ke changule me hai. kandom ki jagah yadi hamari sarkar logo ko samjhadar banane per jayada jor deti to ek panth do kaj khud b khud ho jata .

  7. geeta

    February 26, 2011 at 9:01 am

    yogesh ji mai aapki baat se puri tarh sahmat hu aaj kal to har vigya- pan main ladki ki tasveer hi lagti hai jaise ki uski koi aapni image nahi. chahe wo panprag ko ho ya t,t, underwear ka. Har jagah ladki ka majak hi banaya jata hai .apka yai lekh bilkul sateek hai,condom pr ladkiyo ki nagn tasveer laga kr bajar me bech kr yai kya saabit karna chahte hain.

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