एक चिट्ठी ने बदल दी मेरी कविता की दिशा : डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ योगेशजी जैसे कवि मीडिया के मोहताज नहीं होते। मैंने लोगों में तब भी उनका क्रेज देखा था जब मीडिया का इतना प्रसार नहीं था। मैंने योगेशजी को पहली बार नवादा के एक कवि सम्मेलन में देखा था। वह जिस तरीके कविता में ही मंच संचालन कर रहे थे, उसे देखकर चमत्कृत हो गया।
यह दूसरे आशुकवियों की तरह सिर्फ तुकबंदी नहीं थी, बल्कि पूरा साहित्य था। इतनी सरल, सहज भाषा कि श्रोता कवि के कविता खत्म होते ही आवाज लगाकर उन्हें बुलाते। यह कवि श्रोता संवाद मुझे कहीं और देखने को नहीं मिला था। मेरी तब तक हिंदी गीतों की तीन किताबें सुधि-संगीत, सुप्रणय विदा और मधुमय गीत आ गई थीं। उसे लेकर मैं उनसे मिला। उन्होंने पन्ने पलटे, कुछ गीत पढ़े। दो ही दिन बाद मेरे पास उनकी एक चिट्ठी आई और मेरी कविता की दिशा ही बदल गई। इसके बाद से मैं जनभाषा मगही में लिखने लगा। उस चिट्ठी के एक एक शब्द मुझे आज भी याद हैं, इसे आप भी देखें-
प्रियवर श्री रामाश्रय झा जी, मिली पुस्तकें तीन।
सुधि संगीत, सुप्रणय विदा के मधुमय गीत नवीन।।
मीसी गांव के रहनेवाले रूपस के नजदीक।
बहुत चकित मैं हुआ देख तेरी कविता की लीक॥
मानवता रो रही आज, फैला है भ्रष्टाचार।
क्यों न तुम्हारे गीत बनें अब जन जन के उपचार॥
हिंदी में लिख रहे मधुर, मोहक सुंदर संगीत।
बढ़ते जाओ भाई तेरी, होगी निश्चय जीत॥
लेकिन मां की भाषा मगही, पर भी दें कुछ ध्यान।
माता का ममता पर होता है मन का अरमान॥
मगही में भी चले कलम, हो भाषा का श्रृंगार।
भूल न जाना भाई, करते रहना पत्राचार॥
कुछ दिनों में छपकर आने वाले योगेश जी के मगही के पहले महाकाव्य ‘गौतम’ की भूमिका की रचना उन्होंने कुछ यूं की है-
कउन पुरुस दुनियां में अइसन
दिया ग्यान के बारे?
जुग-जुग से जेकर इंजोर में
अदमी जम के मारे।1।
जउन जोत के आगू भोथर
भेल धार फरसा के
भागऽ हे बन्दूक तोप भी
जहाँ फूल बरसा के।2।
दुखी भेल जे देख जगत में
मिरतू, रोग, बुढ़ारी
जग के सुख लऽ तज के सबकुछ
बनलइ कउन भिखारी?।3।
कउन पुरुस जे लात मार के
राजपाट के भागल?
दुनियां के दुख से दरवित हो
बनल ग्यान ल पागल।4।
गूंज रहल जेकर बोली से
जग के कोना-कोना,
कउन पुरुस जेकर आगू
हो गेल धूर ई सोना।5।
धरती पर हे आग लगल
रे कइसन ई लहका हे?
मलक रहल कइसन सगरो
ई परलय के मलका हे।6।
अदमी अदमी के खा जा हे
खून बनल पानी हे।
मारपीट झगड़ा सगरो हे
चोरी बेइमानी हे।7।
अदमी के नय कहीं सरन
अइसन बउखी अन्हड़ हे
केकर दीपक सांत भाउ से
रहलइ अभिओ बर हे।8।
केकर पंचसील के लौ
ई जुग में बढ़ते जा हे
अन्हड़ बरखा में भी
ओकर लौ नय तनिक बुझा हे।9।
हमर हिया में ऊ दीपक के
जोत देख ल जागल
ओकर गीत सुनावे लऽहम
हो उठलूँ हे पागल।10।
जे पढ़ के अनपढ़ भी समझे
हम्मर बात खुलासा,
पंडित मूरख सब लऽ सुन्नर
होलइ मगही भासा।11।
कविता के नय लूर-भास
नय ग्यान सु। भासा के
जन भासा में कविता लऽ
चमकल प्रकास आसा के।12।
अलंकार रस के हमरा
परवाह रहल नय भाई।
जन-जन तक सनेस पहुँचइलक
ऊ असली कविताई।13।
हम केकर गुन-गान करउँ
अदमी तो हे अदमीए
केकर आगू में जाके
सब अदमी सुख से जीये।14।
संत, विप्र, सुर, गौ के कारन
रघुवर बान उठइलन
बल चतुराई से राछस कुल
के बिनस्ट ऊ कइलन।15।
माय-बाप के आज्ञा से
रघुवर वनवासी भेलन
सीता खातिर जु। मचा के
आखिर वन दे देलन।16।
गा के गीता कृष्ण, पार्थ के
राजनीत बतलाके
कौरव-कुल के रौरव देलन
मायाबेनु बजा के।17।
माय-बाप के बदला लेलन
अरि से कृष्ण-कन्हैया
अउर द्वारकाधीस कहइलन
गोपी रास-रचैया।18।
लेकिन बिना उठइले लाठी
अउर बिना चतुराई
लेलक जीत सकल दुनियाँ के
कउन पुरुस ऊ भाई।19।
अपने मन से राज छोड़ के
भेलन कउन भिखारी?
झुक गेलन जिनखा आगू में
दुनियाँ के नर-नारी।20।
सब खातिर मुक्ती के देलन
खोल कउन दरबाजा?
खुद भिच्छुक आगू में झुकलन
रंको अउरो राजा।21।
दया-प्रेम ममता पइलक
जिनखा से सभे परानी
ऊ अदमी के जस गावेला
उमक रहल हे वानी।22।
दू हजार सोलह सम्बत हे
सावन मास सुहावन।
कथा सुरु कइलूं गौतम के
जस के सुन्दर पावन।23।
महाकाव्य बन गेल गान कर
महापुरुस के गाथा
महाकवि कहलइला से
हम्मर नय लमहड़ माथा।24।
गौतम के जीवन अइसन
दुनियाँ पुनीत हे गाके
जे कुछ हम्मर होत बड़ाई
सब गौतम के पाके।25।
औगुन हे हमरो में कत्तेे
ध्यान न लइहऽ भाई
गावे के हे जोर लालसा
हमरा कुछ कविताई।26।
नय अपूख हे भूख बहुत हे
गौतम के गाथा के।
मन के बोधे खातिर हम
संतोख करऽ ही गा के।27।
की कहलक इतिहास, न जानउँ
हम साहित्य – पुजारी।
माय सरसती के पूजा के
की नय हम अधिकारी?।28।
कविता के ई बाग, गुलाब
जहां वेली के लत्ती
हे नौ गो अध्याय प्रेम के
इहे फूल हे पत्ती।29।
जहां फूल हे उहाँ महक हे
अउर पात – कांटा भी
जहां बहुत हे लाभ उहां
पर हे थोड़ा घाटा भी।30।
अप्पन भासा में अप्पन
कविता हे सब के मिठ्ठी
बस्तर करतइ कउन साफ नय
पाके घर के रिठ्ठी ।31।
स्वारथ बस हम सब कह रहलूँ
हे अप्पन कविताई
अपने ओर निहारे अदमी
स्वारथ के वस भाई।32।
सास्त्र वेद के बन्धन के
हम कभी न पड़लूँ फेरा
महाकाव्य समझऽ चाहे
समझऽ हम्मर अनबेरा।33।
लेकिन जे कुछ हल सच कहलूँ
बात रहल नय झूठा
कविताई में हे पसीन नय
हमरा बासी-जूठा।34।
जे कविता के पंडित समझे
अनपढ़ समझ न पावे
ऊ कविता की? अप्पन लौ
जे नय सगरो फइलावे।35।
हम्मर हे विस्वास होय ग्यानी
चाहे हो बुधगर
राजा चाहे रंक सभे के
होत काव्य ई रुचगर।36।
कविता के रस भले मिलत नय
मिलत सान्ति तो दिल के
ई पथ पर चलके सब अदमी
पार करत मंजिल के।37।
जउन पुरुस के लौ फइलल
जलथल में अउर गगन में
ओकर जस गावे के हम
साहस कइलूँ हे मन में।38।
साग बेचताहर जइसे
जोखे पर्वत के चाहे
पंगू जइसे महासमुन्दर
बइठ तीर पर थाहे।39।
तइसन हम्मर अभिलासा हे
रहल मगह के भासा
गलती हठ पर ध्यान न लइहऽ
सबसे विनय खुलासा।4।
लेखक डा. रामाश्रय झा हिंदी और मगही के कवि-गीतकार हैं। उनसे संपर्क ‘सर्जना, बख्तियारपुर, पटना’ के पते या फोन व मोबाइल नंबरों 06132600070, 9097034804 से किया जा सकता है।