लखनऊ। गौरवशाली अतीत वाला दैनिक समाचार पत्र स्वतंत्र भारत सफेदपोश नटरवर लाल केके श्रीवास्तव के लिए दुधारू गाय बन गया है। स्वतंत्र भारत के सेन्ट्रल बैंक का खाता नम्बर 1233701786 के स्टेटमेंट से यही संकेत मिल रहे हैं। खाते में प्रतिमाह लगभग तीस लाख रुपए का ट्रांजेक्शन हो रहा है। इसके बावजूद जहां सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं करोड़ों रुपए का ऋण बकाया है वहीं स्वतंत्र भारत के कर्मचारियों को छह माह से वेतन नहीं मिला है। कर्मचारियों की बदहाली पर मीडिया के स्वंयभू नेता और सरकार चुप्पी साधे हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि बीते सात दशकों में स्वतंत्र भारत उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला समाचार पत्र था। इस समचार पत्र में राजनाथ सूर्य, जैसे नामचीन सम्पादकों ने अपनी लेखनी के बल पर स्वतंत्र भारत को बड़ी पहचान दिलाई। वर्ष 1998 के बाद स्वतंत्र भारत की प्रतिष्ठा और आय में तेजी से गिरावट आई। इसकी वजह यह रही है कि स्वतंत्र भारत के चेयरमैन केके श्रीवास्तव ने अपने काले कारनामों के लिए सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से करोड़ों रुपए का ऋण लिया। लेकिन 'जिसका लेना, उसका कभी न देना' की तर्ज पर कभी किसी का ऋण नहीं लौटाया। सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं ने अपने ऋण वसूली के लिए कई बार नोटिस और कुर्की के आदेश दिए लेकिन स्वतंत्र भारत के बल पर काले कारनामों के परिणामों से केके श्रीवास्तव बचे हुए हैं।
सेन्ट्रल बैंक का खाता नम्बर 1233701786 का 1 अप्रैल से 30 अगस्त 2013 तक स्टेटमेंट से स्पष्ट होता है कि स्वतंत्र भारत को जानबूझकर घाटे में साबित किया जा रहा है। इसी खाते के माध्यम से स्वतंत्र भारत के सीएमडी ने अपने लिए महंगी लक्जरी गाडिय़ों की किश्तों का भुगतान किया है। स्वतंत्र भारत के वर्तमान कर्मचारियों को बीते छह माह से वेतन नहीं मिला है। जबकि स्वतंत्र भारत के पूर्व 78 कर्मचारियों का लगभग 62 करोड़ रुपए बकाया है।
कई कर्मचारियों ने बताया कि अब स्वतंत्र भारत मैनेजमेंट समाचार पत्र के साथ खिलवाड़ कर रहा है। 2008 में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से जारी हुए दो टेंडरों को सिर्फ फाइल कॉपी में छापा था। जिसकी शिकायत पर हुई जांच में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने स्वतंत्र भारत समाचार पत्र को ब्लैकलिस्ट कर दिया था। लेकिन अपने हरफनमौला कार्यशैली के बल पर केके श्रीवास्तव ने स्वतंत्र भारत ब्लैकलिस्ट से बाहर करवा दिया है। उन्होंने बताया कि स्वतंत्र भारत मालिकान के काले कारनामों को छिपाने की ढाल बन गया है। श्रमजीवी पत्रकारों के वेतन निर्धारण के लिए कई आयोग गठित हुए। लेकिन स्वतंत्र भारत में सरकारी नियमों को ताक पर रखकर मनरेगा मजदूरों से कम वेतन ढाई से तीन हजार रुपए के बीच दिया जा रहा है।
यूपी न्यूज पेपर इम्प्लाइल यूनियन की अध्यक्ष श्रीमती चंद्रलेखा ने बताया कि स्वतंत्र भारत के सीएमडी के.के. श्रीवास्तव ने पूर्व कर्मचारियों का बकाया वेतन का भुगतान जल्द नहीं किया तो पूर्व कर्मचारी आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराकर कार्रवाई करे।
निष्पक्ष दिव्य संदेश में प्रकाशित अब्दुल हसैनन ताहिर की रिपोर्ट. खुलासे से जुड़ी अन्य खबरों को पढ़ने के लिए कमेंट बाक्स से नीचे जाएं.