सपा के पूर्व महासचिव अमर सिंह की कुछ प्रमुख नेताओं और फिल्मी हस्तियों से टेलीफोन पर बातचीत के अंश वाला टेप सार्वजनिक हो सकता है। मीडिया को इन टेप के अंश के प्रकाशन और प्रसारण की इजाजत मिल सकती है। अमर सिंह फोन टैपिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस आशय के संकेत दिए।
शीर्ष न्यायालय ने संकेत दिया कि इन टेप के प्रकाशन और प्रसारण से मीडिया को प्रतिबंधित करने संबंधी अपने पूर्व के आदेश को वह वापस ले सकती है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ ने कहा, ‘हमें आदेश को रद करने की जरूरत नहीं है क्योंकि आपकी (अमर सिंह) याचिका में कोई दम नहीं रह गया है। यह मामला फर्जी दस्तावेज पर आधारित था।’
पीठ ने पूर्व सपा नेता से आगे कहा, ‘आपकी निजता में हस्तक्षेप की बात तो साबित होती है। लेकिन आपकी समस्या का समाधान रिलायंस के खिलाफ कार्रवाई से है, जिसने आपका फोन टैप किया। आपकी समस्या का अन्य समाधान है।’ अमर सिंह का फोन टैप होने के मामले में सरकारी एजेंसियों का हाथ नहीं होने और इस संबंध में आदेश पत्र के फर्जी होने के मद्देनजर पीठ ने कहा कि सिंह निजी दूरसंचार कंपनी के खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं।
शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी अमर सिंह के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की उस दलील पर की, जिसमें उन्होंने कहा था कि फोन पर हुई बातचीत के टैप अंशों के प्रसारण पर लगी रोक हटाने से उनके मुवक्किल की निजता का और अधिक उल्लंघन होगा। रिलायंस इंफोकाम ने 2005 में फर्जी दस्तावेज के आधार पर अमर सिंह के फोन टैपिंग की अनुमति दी थी। सिंघवी ने कहा कि उनके मुवक्किल को निजी कंपनी और अन्य के खिलाफ कार्रवाई के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। उसके बाद ही कोर्ट मीडिया पर लगाए रोक को हटाए।
मीडिया का धर्म है यह : सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की बातचीत के अंश वाले कई टेप हैं। अगर रोक हटा ली गई तो प्रामाणिकता का सत्यापन किए बगैर उनके अंश सार्वजनिक हो जाएंगे। इस पर पीठ ने कहा कि टेप के अंश का प्रकाशन और प्रसारण करना उनका ( मीडिया) धर्म है क्योंकि उनके पास इसकी प्रामाणिकता सत्यापित करने का कोई जरिया नहीं है।
एक टेप सुनकर ही अदालत हैरान : वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के साथ अमर सिंह की बातचीत के अंश वाले एक टेप को ही सुनकर अदालत हैरान रह गई। उक्त टेप में दोनों नेता एक मामले को अपने माफिक पीठ को सौंपने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से संपर्क साधने के बारे में बातचीत कर रहे थे।
कोर्ट ने कहा, ‘यह हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका के लिए सर्वाधिक काला दौर है। मुख्य न्यायाधीश को प्रभावित करने के लिए एक सांसद और मुख्यमंत्री के बीच हुई बातचीत का होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। एक दौर वह भी हुआ करता था जब कोई किसी जज से संपर्क साधने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।’ कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।
क्या है मामला : अपना फोन टैप किए जाने का आरोप लगाते हुए अमर सिंह ने इसकी न्यायिक जांच की मांग करने संबंधी एक याचिका जनवरी, 2006 में शीर्ष न्यायालय में दाखिल की। जिसमें उन्होंने अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी, केंद्रीय गृह मंत्री, दूरसंचार मंत्री, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और रिलायंस इंफोकाम सहित आठ को प्रतिवादी बनाया।
अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और इंडियन टेलीग्राफ एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए उनका टेलीफोन टेप किया गया। ये टेप मीडिया के पास पहुंच गए थे। अमर सिंह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2006 को इन टेप के प्रसारण और प्रकाशन पर रोक लगाकर मीडिया को प्रतिबंधित कर दिया। साभार : जागरण