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जूतों का लाइव और मेरे जूते की गुमशुदगी

[caption id="attachment_20576" align="alignleft" width="94"]मनीष दुबेमनीष दुबे[/caption]बीते कुछ समय से मैं कंगाली काट रहा हूँ.  पिछले दिनों भड़ास ने मेरी आप बीती “आजाद के गौरी ने हड़पे मेरे 35,000 रुपये”  प्रकाशित की.  कई लोगों के विचार आए, कई फ़ोन आए मेरे पास.  इन सब के बीच आई- गई बातों के बीच सबसे पहले मैं भड़ास का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ,   जिसने मुझे और मेरी कलम को अपने दिनोंदिन नामचीन होते पोर्टल में जगह दी. अपनी बात रखने का मौका दिया. थैंक्‍यू.

मनीष दुबे

मनीष दुबे

मनीष दुबे

बीते कुछ समय से मैं कंगाली काट रहा हूँ.  पिछले दिनों भड़ास ने मेरी आप बीती “आजाद के गौरी ने हड़पे मेरे 35,000 रुपये”  प्रकाशित की.  कई लोगों के विचार आए, कई फ़ोन आए मेरे पास.  इन सब के बीच आई- गई बातों के बीच सबसे पहले मैं भड़ास का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ,   जिसने मुझे और मेरी कलम को अपने दिनोंदिन नामचीन होते पोर्टल में जगह दी. अपनी बात रखने का मौका दिया. थैंक्‍यू.

भड़ास ने जिस दिन मेरी स्टोरी छापी मन को थोड़ी तसल्ली लाजिमी थी. पर यह तसल्ली दूर तक न जा सकी क्योकि किसी ने मेरे इकलौते जूते के जोड़े को मुझसे दूर कर दिया था. कंगाली में आटा गीला,  और उस में थोड़ा पानी ज्‍यादा हो गया. आज जब देश विदेश में बड़ी-बड़ी हस्तियों पर जूते चल रहे हैं. जूते पे स्क्रोल, जूते पे फ़ोनों, जूतों के लाइव के टाइम में जूते मंहगे हैं या सस्ते यह कहना मेरे लिए बेकार की बात होगी, क्योकि भाई अपन न तो मंहगे में हैं न सस्ते में.

सोचा चलो कहीं से व्यवस्था कर के इसे भी झेल लूँगा, पर यकीन मानिये मैंने पीठ पीछे भी उस शख्‍स को भला-बुरा नहीं कहा, जिसने मेरे जूते मुझसे दूर किये थे. क्या पता वो शायद मुझसे भी जादा कंगाल हो. मुझे सुबह अपने ऑफिस के लिए निकलना था और पहनने के लिए मेरे पास केवल 45 रुपये वाली हवाई चप्पल बची थी.  मैंने बैग उठाया और चप्पल पहन कर ऑफिस के लिए निकल पड़ा. थोड़ी शर्मिंदगी के बीच मन में सवाल उठ रहे थे. जांऊ की न जांऊ, पर नई-नई नौकरी है, कहीं चली गई तो और लाले न पड़ जाये. पत्रकारिता निष्ठुर जो ठहरी. सोच कर कहा,  चलो यार चलते हैं.

गली से मार्केट, मार्केट से सड़क, सड़क से बस आदि जगहों पर लोगों ने मेरी चप्पल और मै उन सबके पैरों में पड़े ब्रांड्स देख रहा था. कोई वुडलैंड, कोई रीबोक, तो कहीं प्‍यूमा, इन जूतों के ज़माने में मेरी हवाई चप्‍पल की क्या चाल.  खैर जैसे- तैसे ऑफिस पहुंचा. एक दो लोगों खासकर ऑफिस की कन्याकर्मियों के सामने हीनता का शिकार हुआ. किनारे की एक कुर्सी में तशरीफ रखकर कलम को धार देने लगा. कलम घिसने में मन नहीं लगा,  क्योंकि सारे टॉपिक्‍स, सारे स्टोरी आइडिया, सारी स्क्रिप्ट तो मेरे जूते ले गए थे.

मनीष दुबे

नई दिल्ली

08130073382

mkkumar893 @gmail .com

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0 Comments

  1. gopal tripathi

    June 17, 2011 at 7:07 am

    bahot achhe bhai .

  2. मदन कुमार तिवारी

    June 17, 2011 at 7:41 am

    मेरा जूता था जापानी , पतलून इंग्लिस्तानी ,गुन गुनाना चाहिये था। आफ़िस वालों को बार-बार दिखाना चाहिये था , नया फ़ैशन हवाई चप्पल, वैसे यह हवाई चप्पल से एक आयडिया दिमाग में आया है , दिमाग थोडा छोटा है इसलिये आयडिया भी फ़ालतू सा है लेकिन विचार जरुर करना । सभी पत्रकारों के लिये सिर्फ़ हवाई चप्पल हीं पहनकर प्रेस कांफ़्रेस में जाने का कानून बनना चाहिये । नेताओं को चोत भी कम लगेगी , बम का खतरा नही होगा और पत्रकारों को घाटा भी कम होगा , भागने के दरम्यान हाथ में चप्पल लेकर भागना भी आसान है । जनार्दन द्विवेदी भी इस कानून का समर्थन करेंगें। हां महेश भट्ट से राय ले लेना जरुरी है , क्योंकि हवाई चप्पल वाला नाटक हिट होगा या नही , यह तो वही बता ससकते हैं।

  3. CallahanIla

    June 18, 2011 at 3:37 am

    Have no cash to buy a car? You not have to worry, because that’s real to get the home loans to solve such problems. Therefore take a college loan to buy everything you require.

  4. visrsingh

    June 18, 2011 at 5:37 am

    manish bhai gandhi jee ban jaao azad channel ke gate se tab tak nahi utho jab aap ke mehnat ke 35000 hazar rupe nahi de de…..

  5. brijesh sharma

    June 18, 2011 at 12:59 pm

    kaam karo faltu bato me kabhi nipat jaoge is patrakarita jagat se ye koi majak ki field nahi hai aur tumhara ye comment ki meri kangali ki vajah tumhare sath huyi thagi hai ye to sahi hai lekin aage apne hi aapko itna neeche gira kar apne liye baat karna sahi nahi hai baki tumhari marji

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