निश्चित तिथि को भव्य समारोह में साधु-संतों की उपस्थिति में बाबा पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं। औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री का पद सँभालते ही वे भ्रष्टाचार हटाओ मुहिम में जुट जाते हैं। दरअसल, अनशन के मामले में विफल रहने के बाद से वे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करने लगे थे। एक तो रामलीला मैदान से सलवार कुर्ता पहनकर भागने की वजह से उनकी इमेज डरपोक की बन गई थी और फिर छह दिन के अनशन में ही अस्पताल पहुँचने की वजह से उनकी योग साधना भी सवालों की घेरे में आ गई थी।
निगमानंद के लंबे अनशन ने भी उनकी शारीरिक क्षमताओं पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। हालाँकि बाबा पर श्रद्धा रखने वालों को विशेष फर्क न पड़ना था न पड़ा। मगर बाबा का नैतिक बल इससे कमज़ोर ज़रूर हो गया। लिहाज़ा उन्होंने भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके पुरानी छवि और शक्ति पुन प्राप्त करने का संकल्प कर लिया और फिर इस कार्य में तत्काल ही जुट गए।
प्रधानमंत्री बनने के बाद बाबा ने अपना हुलिया नहीं बदला और वे भगवा वस्त्र ही धारण करते हैं। प्रधानमंत्री आवास को भी उन्होंने एक आश्रम के रूप में तब्दील कर दिया है, जहाँ संत-महात्माओं का जमावड़ा लगा रहता है। बीच-बीच में वे योग शिविर भी करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि सत्ता क्षणभंगुर है, मिथ्या है और मूल व्यवसाय को भूलना ठीक नहीं है क्योंकि बाद में वही काम आना है। बालकिशन उनके निजी सचिव के रूप में हमेशा उनके साथ रहते हैं। जनता को भरोसा हो जाता है कि बाबा अवतारी पुरूष हैं और अब वे इस पवित्र भूमि से भ्रष्टाचार का समूल नाश करके ही रहेंगे।
बाबा सबसे पहले विकीलीक्स से प्राप्त वो सूची जारी करने की तैयारी करते हैं जिसमें उन लोगों के नाम दर्ज़ हैं जिन्होंने विदेशी बैंको में पैसे जमा कर रखे हैं। मंत्रिमंडल में जैसे ही वे इसका प्रस्ताव रखते हैं, मंत्रिगण ज़बर्दस्त विरोध करने लगते हैं। सूची में शामिल नामों में से दो तो मंत्रिमंडल के सदस्य ही हैं। इसके अलावा आधे व्यापारियों, उद्योगपतियों का संबंध सरकार में शामिल विभिन्न दलों से है। वे उन्हें नियमित रूप से चंदा और नेताओं को भेंट ही नहीं देते, बल्कि सरकार बनाने या गिराने में धन-धान्य से भरपूर मदद करते रहते हैं। अगर इन लोगों के नाम सार्वजनिक हो गए तो सबके सब मारे जाएंगे, क्योंकि ये लोग भी चुप नहीं बैठेंगे और इनके हाथों में तो मीडिया भी है, वे हमारी भी पोलपट्टी खोलकर रख देंगे।
बाबा इनके नामों की घोषणा करने को प्रतिबद्ध तो थे मगर हालात नाज़ुक देखकर उन्होंने चुप लगाना ठीक समझा। सोचा अभी-अभी तो सरकार बनी है इसलिए उसे ख़तरे में डालना ठीक नहीं। इस काम को बाद में करेंगे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि क्यों न पहले वो कानून बनना लिया जाए जिसके तहत भ्रष्टाचारियों को फाँसी दी जा सकेगी। इसमें उन्हें कुछ ख़ास अड़चन नहीं आई, क्योंकि उनकी सरकार के पास विशाल बहुमत था और विपक्ष की आवाज़ सुनने की कोई मजबूरी उनके सामने नहीं थी। सत्तापक्ष के नेताओं ने भी सोचा कि कानून बनाने में क्या जाता है, उस पर अमल तो होना नहीं है इसलिए बाबा की इच्छा पूरी कर देते हैं। और हाँ, इससे जनता को भी लगेगा कि कुछ हो रहा है और कुछ समय के लिए उसका मुँह भी बंद हो जाएगा।
जनता को कानून के झुनझुने से बहलाना बहुत आसान है, ऐसी तमाम नेताओं की धारणा थी। उन्हें ये भी लगा कि इससे अन्ना हजारे एंड कंपनी जो एक बार फिर से अनशन की तैयारी कर रही थी वह भी शांत हो जाएगी। फिर इसका फ़ायदा आने वाले चुनावों में भी उठाया जा सकेगा। अलबत्ता काँग्रेस ने इसका विरोध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि उसे भय सता रहा था कि इस कानून का उपयोग उसी के नेताओं पर सबसे ज़्यादा होगा क्योंकि भ्रष्ट शिरोमणियों की तादाद उसी में ज़्यादा है। मतदान के समय उसने सदन का बहिष्कार भी किया मगर इससे ज्यादा उसके हाथ में कुछ नहीं था।
कानून बन जाने के बाद के दृश्य उलझे हुए थे, एक दूसरे में गड्डमड्ड। चूँकि बाबा ने ऊँचे पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था इसलिए उन्होंने सोचा कार्रवाई यहीं से शुरू की जानी चाहिए। उन्होंने करप्शन के चार्जेज वाली सारी फाइलें मँगाईं और फैसला लेना शुरू कर दिया, मगर ये क्या…..पूरे देश में हंगामा मच गया। आरोप लगाए जाने लगे कि प्रधानमंत्री डिक्टेटर की तरह काम कर रहे हैं, चुन चुन के लोगों को टारगेट बना रहे हैं। काँग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी आदि विपक्षी दलों ने मोर्चाबंदी कर दी। हर दल दूसरे दलों के भ्रष्टाचारियों की सूचियाँ जारी करने लगा। बाबा धर्मसंकट में फँस गए। करें तो क्या करें। किसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करें और किसके ख़िलाफ़ न करें।
अफसरों और बाबुओं ने अलग हंगामा मचाना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि वे भ्रष्ट नहीं हैं बल्कि उन्हें नेताओं, दलालों और व्यापारियों की वजह से भ्रष्ट बनना पड़ता है। अगर वे भ्रष्ट न बनें तो ये लोग उनका जीना ही मुहाल कर देंगे इसलिए अगर फाँसी पर किसी को चढ़ाना है तो सबसे पहले भ्रष्टाचारी बनाने वालों को चढ़ाओ। यही नहीं, उन्होंने उन लोगों की एक लंबी फेहरिस्त भी उन्हें भेज दी जो उन्हें ललचाकर या धमकाकर भ्रष्ट बना रहे थे। इस सूची में इतने बड़े-बड़े नाम थे कि बाबा गश खाकर गिर पड़े। उन्हें तुरंत ग्लूकोज की बोतलें चढ़ाई गईं।
कुछ तबकों से फाँसी की सज़ा के प्रावधान को समर्थन भी मिला। मसलन, रुढ़िवादी मुसलमानों के एक संगठन इसका इस्तकबाल करते हुए माँग की कि दूसरे जुर्मों के लिए भी कड़ी सज़ा का इंतज़ाम किया जाना चाहिए। चोरी करने वालों के हाथ काट दिए जाने चाहिए और दूसरे पुरूषों से संबंध बनाने वाली या अपने खाविंद के साथ बेवफाई करने वाली औरतों को सरे आम संगसार किया जाना चाहिए। उदारवादी मुसलमानों ने इसकी मुख़ाल्फ़त करनी शुरू कर दी। उनका कहना था कि हिंदुस्तान पाकिस्तान के रास्ते पर चल पड़ा है।
जारी…
इस व्यंग्य के लेखक मुकेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों और न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. इन दिनों हिंदी राष्ट्रीय न्यूज चैनल ‘न्यूज एक्सप्रेस’ के हेड के रूप में काम कर रहे हैं.
d singh
June 20, 2011 at 8:36 am
मैं भी एक नई पार्टी बना रहा हूँ, देश का विकाश कैसे हो इसी पर दिमाग लगा रहा हूँ देश का पैसा अगर स्वीस बैंक में जमा हैं तो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है मगर बाबा है तो समझने को तैयार नहीं मेरी बात मानते तो एक ही दिन देश का सारा कालाधन भारत में आ जाता, देश मेें इतने सारे डाकू है चोर है सबको बुलाकर सम्मेलन करवाते विदेश का पैसा देश मेें कैसे इसके लिए दिमाग लगाते तो शायद अब तक कुछ न कुछ आ गया होता, सीधी अंगूली घी नहीं निकलता है तो फिर टाइम व्यर्थ करने से क्या फायदा, अगर आप को पता चल गया है कि काला धन किसके पास है तो आप लुटवाने का प्लान क्यों नहीं बनाते क्या देश के डाकू चोर बेरोगार नहीं है अगर है तो आप उनको काम पर लगाये जितने देश के लुटेरे है उनको लूट कर दिखाये अगर आप ये सब करने में आप असमर्थ है तो आप हमें बताये क्यो कि हमें पता है स्वीस बैंक को लूटना कितने घटें का काम है क्यों कि हमारे देश में चोर डाकूओ कि लम्बी तादात है मगर उनको भी एक अच्छे मौके कि तलाश है अगर आप ये मौका देते है तो ये देश के लिए एक बड़ा सम्मान है क्योंकि मेरे जनह में एक सिद्धात है कि लोहा लोहे से ही कटता है अगर आप को हमारे विचार समझ में आते है तो आप अमल करे अन्यथा राहुल बाबा जो कर रहें है उन्हेें करने दे
d singh
June 20, 2011 at 8:37 am
जिसके पास है जितना गाँधी वो उतना ही बड़ा ईमानदार है,
जिसके पास नहीं हैं गाँधी वो सबसे बड़ा गद्दार है।
मत पूछो ये कैसी सरकार है,
जिन लोगो ने धर्म के नाम पर देश के दो टुकड़े किए आज भी उन्हीं की सरकार हैं,
इसलिए तो कहते हैं मेरा भारत महान है।
100 में 99 बंे बेईमान है जो भारत को बेचने के लिए आज भी तैयार है। नेता
जब तिजोरियो में कैद है आजादी के बाद भी गाँधी,
तो कैसे आयेगी इस देश में विकास की आधी।
गाँधी को गोडसे ने मारा तो उनको फाँसी दे दी गई, मगर जो गाँधी को रोज मार रहे है उनका क्या होगा , भारत को गाँधी सुखी स्मृद्धि और आत्म निर्भर बनाना चाहतें थे,इसलिए उन्होने स्वराज का नारा दिया लेकिन हमारेदेश के नेता भारत को विदेश बनाना चाहतें है वो भी येसा देश जहा अपना कुछ न हो ,सारा विदेश कम्पनीयों का हो और हमारे देश के लोग विदेशी कम्पनियो के गुलाम हो , जिस तरह अंग्रेजों के होते थे , गाँधी के बताये रास्तेपर हमारेदेश का कोई नेेता चले न चले, लेकिन सारे नेता गाँधी के लिए परेशान कुछ भी करने को तैयार है । धर्म, जाति , भाषा ,प्रांत हर मुद्दे को भजाने के लिए बेकरार है, बडे़ दुख के साथ आप से अनुरोध करता हूँ,कि स्विस बैंक में जमा 1500 अरब डालर जो भारत की जनता को लूट कर जमा किया गया है, उसको भारत जाए तथा उन देश द्रोहियो को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए ,