मैंने अमर उजाला में करीब साढ़े चार साल काम किया। अमर उजाला में ही मैंने इंटर्नशिप की। प्रशिक्षु बना और उसके बाद सब एडिटर। अमर उजाला से मैनें बहुत कुछ सीखा है। सन 2005 से 2010 का वह मेरा सफर मुझे अच्छी तरह याद है। मैं अतुल जी से कभी मिला तो नहीं लेकिन अमर उजाला लखनऊ यूनिट में उनके कार्य और व्यवहार की छवि प्रतिदिन कर्मचारियों में दिखाई देती थी। उनके रहते किसी भी कर्मचारी को यह भय नहीं था कि कभी उसे अखबार से निकाला भी जा सकता है। हर कर्मचारी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ काम करता था।
मेरे अमर उजाला के कार्यकाल के दौरान वहां के संपादक अशोक पांडेय जी भी लगभग-लगभग रोज ही अतुल जी के प्रेरणात्मक शब्दों द्वारा कर्मचारियों में आत्मविश्वास भरा करते थे। वह कहा करते थे कि अतुल जी का सपना है कि हर कर्मचारी खुश रहे। उसे किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। तब मैं सोचा करता था कि अतुल जी कितने नेक इंसान होंगे। हर कर्मचारी अखबार के प्रति बड़े ही निष्ठा से काम करता था क्योंकि उसे नौकरी खोने का भय नहीं था। लोग अतुल जी का नाम सिर्फ अमर उजाला में ही नहीं अन्य अखबारों के कर्मचारी भी लिया करते हैं। उनकी अच्छाइयों का बखान करते कोई भी नहीं थकता। खासतौर पर वो जो उनके साथ काम कर चुके हैं।
अतुल जी के पंचतत्व मे विलीन होने से देश के मीडिया जगत को भारी नुकसान हुआ है। वह लोग और भी ज्यादा दुखी हुए हैं जो किसी न किसी वजह से न्याय के दरवाजे पर खड़े थे। उन लोगों को यही लगता था कि अतुल जी के होते हुए उनके साथ अन्याय नहीं हो पाएगा। मैंने किसी आवश्यक कार्य से एक बार राजुल जी से मुलाकात की। राजुल जी की एक सब एडिटर के साथ इतने शालीन तरीके से की गई बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह एक इतनी बड़ी कंपनी के मालिक होंगे। राजुल जी की बातों से मुझे यह भी लगा कि जब राजुल जी ऐसे हैं तो अतुल जी, जिनके बारे में मैं संपादक जी और अन्य कर्मचारियों के मुंह से सुनता था, कितने सज्जन आदमी होंगे। अतुल जी को फेस टू फेस न देख पाने का गम मुझे जिंदगी भर सालता रहेगा। भगवान से मुझे यह शिकायत रहेगी कि इतने अच्छे और सुशील व्यक्ति को इतनी जल्दी अपने पास नहीं बुलाना चाहिए था।
लेखक प्रकाश चंद्र त्रिपाठी हिन्दुस्तान, रांची में सब एडिटर हैं.