आई नेक्स्ट की इज्जत उड़ती देख मैनेजर कम एडिटर साहब ने कानपुर के एनई साहब की ऐसी क्लास ली कि उनके होश उड़ गए. एनई साहब इसके बाद मोबाइल से अखबार छोड़कर जाने वालों से वापस आने के लिए मिन्नतें करते नजर आने लगे. कुर्सी बचाने के लिए अखबार छोड़ने वालों के सामने अपनी नाक रगड़ने लगे. शशि पांडे और गौरव ने उनकी इज्जत को फालूदा होने से बचाने के लिए फिलहाल जाने का फैसला बदल दिया है, लेकिन उनका यह फैसला अनमना ही है, क्योंकि उन्हें ना तो संतोषजनक कोई उत्तर मिला है और ना ही कोई प्रमोशन.
सुनने में आ रहा है कि एनई साहब ने आने वाले अप्रैल में उन्हें अच्छे पैसे और प्रमोशन का लालच दिया है, लेकिन दोनों के तेवर से उनके रुकने की सम्भावना कम ही नजर आ रही है. रही बात मयंक शुक्ला की तो वह एनई साहब की रीढ़ हैं क्योंकि एनई साहब का हाथ अंग्रेजी में थोड़ा टाइट है, अंग्रेजी क्या हिंदी में भी टाइट ही समझिए, मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसे लोग सम्पादक जैसी पोस्ट तक पहुंच कैसे गए.
खैर बात हो रही थी मयंक शुक्ला जी की तो बताना चाहूंगा कि इसी वजह से एनई साहब ने उन्हें लोकल से हटाकर अपने असिस्टेंट के तौर पर रखा था. एनई साहब के मेल से लेकर सारे काम वही करते थे. आखिर मेल भी तो इंग्लिश में ही होती है, क्योंकि अब मयंक जी नहीं हैं तो कोई वैड का मेल नहीं चल रहा है, सब शांत है. उनके आने का इंतजार है, कोई कब तक अपना शोषण कराएगा, काम मेरा नाम तेरा वाला हिसाब यहां खूब देखने को मिलता है.
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.