पश्चिम बंगाल में स्थानीय समाचार चैनलों की तादाद खूब बढ़ चुकी है। दरअसल ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को रिझाने और स्थानीय भाषा में खबरों की बढ़ती मांग ने इन्हें फलने-फूलने का पूरा मौका दिया है। हालांकि आगे होड़ घटने और चुनिंदा प्रमुख चैनलों के रह जाने की संभावना भी दिख रही है।
फिलहाल बांग्ला भाषा में 11 चैनल खबरें दिखा रहे हैं। ये चैनल स्टार आनंद, 24 घंटा, चैनल 10, न्यूज टाइम, आर प्लस, तारा न्यूज, एनई बांग्ला, महुआ बांग्ला, कोलकाता टीवी, ईटीवी बांग्ला और आकाश बांग्ला हैं। इनमें स्टार आनंद और 24 घंटा साझे उपक्रम का नतीजा हैं और इनमें राष्ट्रीय स्तर पर डंका बजा चुकी मीडिया कंपनियों का हिस्सा है। लेकिन न्यूज टाइम, आर प्लस, कोलकाता टीवी और चैनल 10 खांटी स्थानीय चैनल हैं और स्थानीय कारोबारी ही इनकी बागडोर संभालते हैं।
यहां चैनल छोटा हो या बड़ा, उसमें औसतन 150 से 180 कर्मचारी काम करते हैं। हालांकि बाजार में दबदबे पर विवाद है, लेकिन इस दौड़ में स्टार आनंद और 24 घंटा सबसे आगे चल रहे हैं और उनमें जबरदस्त होड़ भी रहती है। 24 घंटा तो दावा करता है कि पिछले साल 41 हफ्तों में वही अव्वल नंबर था। चैनल के इनपुट संपादक अंजन वंद्योपाध्याय ने बताया, ‘टैम के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल करीब 41 हफ्तों तक सबसे ज्यादा दर्शकों ने हमारे चैनल को देखा। अभी तो हमें इस क्षेत्र में और भी विस्तार देखने को मिलेगा।’
मीडिया के जानकार मानते हैं कि स्थानीय भाषा और स्थानयी खबरें ही इन चैनलों की जमा पूंजी है। अर्न्सट ऐंड यंग के सहायक निदेशक (सलाहकार सेवा) आशीष फेरवानी ने बताया, ‘क्षेत्रीय खबरें ज्यादा होने की वजह से ही दर्शक स्थानीय समाचार चैनलों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। प्राइम टाइम में राष्ट्रीय समाचार चैनल और अखबार दर्शकों को स्थानीय खबरों से वंचित रखते हैं और उसी कमी को ये चैनल पूरा करते हैं।’ हालांकि इन चैनलों की सही कीमत का आकलन बेहद मुश्किल काम है। लेकिन हाल में आई एक खबर के मुताबिक ईटीवी समूह अपने 11 क्षेत्रीय चैनल सोनी एंटरटेनमेंट को 2,600 करोड़ रुपये में बेचने के लिए बातचीत कर रहा था। इस हिसाब से प्रत्येक क्षेत्रीय चैनल की कीमत करीब 250 करोड़ रुपये बैठती है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग क्षेत्र के चैनल की कीमत भी अलग-अलग होती है।
अब बात कमाई की। ये चैनल स्थानीय कारोबारियों से मिलने वाले विज्ञापनों से ही कमाते हैं। कोलकाता टीवी के मालिक शिवाजी पांजा बताते हैं कि चैनल की ज्यादातर कमाई स्थानीय कंपनियों और कुछ सरकारी अभियानों से होती है। पांजा बताते हैं, ‘हमारे ज्यादातर विज्ञापन इमामी, रोज वैली जैसी कोलकाता की कंपनियों से मिलते हैं। हाल ही में हमने मलेरिया के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था, जिसकी प्रायोजक राज्य सरकार थी।’ यह बात सही है कि राष्ट्रीय चैनलों की तरह कमाई इन्हें नहीं हो पाती। लेकिन मीडिया जानकार मानते हैं कि दक्षिण और पूर्वी भारत में ये स्थानीय चैनल लोकप्रिय रहेंगे क्योंकि इन क्षेत्रों की प्रमुख भाषा हिंदी नहीं होती, इसलिए दर्शक इन्हें ही पसंद करते हैं। साभार : बीएस