न्यूज चैनलों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है एनालॉग से डिजिटल की ओर का सफर

केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह फैसला न्यूज़ चैनलों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है। सरकार ने तय किया है कि वह केबल आपरेटरों को अनिवार्य रूप से डिजिटल तकनीक अपनाने के लिए अध्यादेश लाएगी। हमारे देश में अस्सी फीसदी टीवी उपभोक्ता केबल नेटवर्क के ज़रिये चैनलों को ख़रीदते हैं। जिसके लिए वो महीने में दो सौ से तीन सौ रुपये तक देते हैं। अभी एनालॉग सिस्टम चलन में है।एनालॉग सिस्टम में कई तरह के बैंड होते हैं।

करप्शन विरोधी अभियान को न्यूज चैनलों के समर्थन से डरी सरकार ने निकाला डंडा

: लाइसेंस रिन्यूअल के फंडे को डंडे की तरह इस्तेमाल करने की रणनीति : काटजू ने नई नीति त्यागने की अपील की : केन्द्र सरकार ने न्यूज चैनलों पर अंकुश लगाने की तैयारी कर ली है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने न्यूज चैनलों के लिए जो नई गाइडलाइन जारी की है उसमें इन अंकुश का उल्लेख है. कहा गया है कि अगर कोई न्यूज चैनल पांच से अधिक बार न्यूज व विज्ञापन के लिए तय नियमावली का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

अपनी बोली ने किया बंगाल के रीजनल चैनलों का भला

पश्चिम बंगाल में स्थानीय समाचार चैनलों की तादाद खूब बढ़ चुकी है। दरअसल ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को रिझाने और स्थानीय भाषा में खबरों की बढ़ती मांग ने इन्हें फलने-फूलने का पूरा मौका दिया है। हालांकि आगे होड़ घटने और चुनिंदा प्रमुख चैनलों के रह जाने की संभावना भी दिख रही है।

न्यूज चैनलों के पक्ष में खड़ी हुई भाजपा

: प्रेस की आजादी पर अपना नियंत्रण बनाना चाहती है सरकार : नई दिल्‍ली : न्यूज चैनलों के लाइसेंस नवीनीकरण पर हुए हाल के सरकारी फैसले से असहमति जताते हुए भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है इसका हर मोर्चे पर विरोध किया जाएगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने फैसले को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए आगाह किया कि सरकार प्रेस की आजादी पर प्रहार न करे।

इस पागल, नंगे व खतरनाक शख्स को पुलिस ने मारकर क्या गलत किया?

: देखें सीसीटीवी फुटेज और अन्य वीडियो : सतना (मध्य प्रदेश) की घटना याद होगी. न्यूज चैनलों पर बार-बार दिखाया गया. एक मानसिक रूप से बीमार आदमी को पुलिसवालों द्वारा मिलकर सरेराह पीटा जाना. और इसी के चलते उस आदमी की मौत हो जाना. पिटाई की सीन को जिसने भी देखा, उसने पुलिसवालों को जमकर गालियां दी और देश में अंग्रेजी राज जैसे पुलिस दमन की कल्पना की.

नेता खुश हुआ क्योंकि उसकी खींची लकीर पर मीडिया चल पड़ा

पुण्य प्रसून वाजपेयीमीडिया न हो, तो अन्ना का आंदोलन क्या फ़ुस्स हो जायेगा. मीडिया न होता, तो क्या रामदेव की रामलीला पर सरकारी कहर सामने आ नही पाता. और, सरकार जो खेल महंगाई, भ्रष्टाचार या कालेधन को लेकर खेल रही है, वह खेल बिना मीडिया के सामने आ नहीं पाता. पर जो कुछ इस दौर में न्यूज चैनलों ने दिखाया और जिस तरह सरकार ने एक मोड़ पर आकर यह कह दिया कि अन्ना की टीम संसद के समानांतर सत्ता बनाना चाहती है…

सरकार ने चैनलों को ‘समझाया’, अन्‍ना का लाइव टेलीकास्ट बंद

: अपडेटेड : केंद्र सरकार अन्‍ना हजारे और बाबा रामदेव से डर गई है. इसी कारण इनकी आवाज दबाने और इन्‍हें निपटाने के लिए गैर लोकतांत्रिक तरीके अपनाए जा रहे हैं. पहले लाठी डंडों के जरिए रामदेव के भक्तों को दिल्ली से भगाया, अब रामदेव व अन्ना की आवाज जनता तक न पहुंचने देने की तैयारी की गई है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने न्यूज चैनलों को एक एडवायजरी भेज कर अन्‍ना हजारे और बाबा रामदेव के कार्यक्रमों की कवरेज में संयम बरतने की सलाह दी है.

लोकल चैनलों के संचालन के लिए लागू नए कानून की जानकारी दी जाए

यशवंत भाई जी नमस्कार, भड़ास में पढ़ रहा था कि न 42 लाख होंगे और न चलेंगे लोकल चैनल। मुझे इस बारे में पूरी जानकारी दी जाए कि यह कानून जम्मू कश्मीर में भी लागू होता है? जम्मू में ले देकर दो तीन ही लोकल चैनल हैं और उनमें से एक के मालिक ने तो इस कदर दादागिरी मचाई हुई है कि अपनी मर्जी से ही कोई राष्ट्रीय चैनल चलाता है तथा अपनी मर्जी से ही बंद कर देता है।

न होगा 42 लाख और न चलेंगे लोकल चैनल

गोरखपुर शहर के सात लोकल चैनल सरकार के नये फरमान की वजह से बंद हो गये है। पिछले पांच वर्षों से स्थानीय समाचार पत्रों के साथ अपनी अहम पहचान बना चुके लोकल चैनल आम आदमी की जरूरत बन चुके थे। पर सरकार के बिना सोचे-समझे यह नियम लागू कर दिया। आप सभी को यह जानकर हैरानी होगी 1988 में जब वीडियो पार्लर की शुरुआत हुई थी तब सरकार ने प्रति वीडियो स्‍क्रीन 100 रुपये का टैक्स रखा था।

ब्‍लैकमेलिंग कर रहे हैं ग्‍वालियर के केबल न्‍यूज चैनल

श्रीमान जी, ग्वालियर में पिछले काफी दिनों से केबल न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गयी है। नेताओं के संरक्षण में निजी न्यूज चैनलों की इस भरमार से ग्वालियर के रहवासी तो त्रस्‍त हैं ही साथ ही इन चैनलों की ब्‍लैकमेलिंग से व्यापारी वर्ग भी परेशान है। इन न्यूज चैनलों के पास केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से प्राप्त कोई लाइसेंस भी नहीं है, इसके बावजूद भी इन्हें धड़ल्ले से चलाया जा रहा है।

कैसे होता है काम…सीखें 24 घंटों वालों से

ये प्रसंग काल्पनिक है परंतु सत्य घटना पर आधारित है। इस चैनल के सभी पात्र काल्पनिक हैं… परंतु सभी के चरित्र यथार्थपर हैं। इस चैनल में बहुत सारे (माफी चाहता हूं)… नहीं एक मात्र विद्वान हैं। जो सरकारी काम करते हैं। मतलब मालिक के वफादार हैं। मालिक जी को कहीं भाषण देना हो… तो इनकी लेखनी काम आती है।

आपके चैनल में ब्‍लॉस्‍ट होने वाला है!

दो भाइयों की हरकत ने एक न्‍यूज चैलन वालों को परेशान करके रख दिया. दोनों ने दिल्ली स्थित एक न्यूज चैनल के अ‍ाफिस में फोन किया और कहा कि आपके चैनल में ब्लास्ट होने वाला है. परेशान चैनल वालों ने इसकी शिकायत पुलिस से की. पुलिस ने जांच के बाद फोन करने वाले दोनों युवकों को पकड़ा तो दोनों ने कहा कि वे मजाक कर रहे थे.

बिहार-झारखंड में साधना नम्‍बर वन

43वें हफ्ते की जीआरपी-टीआरपी से जुड़ी कई सूचनाएं हैं. बिहार में साधना न्यूज 15+ की कैटगरी की जीआरपी में नंबर वन बन गया है. साधना की जीआरपी 7.4 है. 7.04 जीआरपी के साथ महुआ न्‍यूज दूसरे नम्‍बर पर है. सहारा समय तीसरे नंबर है 6.5 के साथ. मौर्या टीवी की जीआरपी 5.9 है जबकि ईटीवी बिहार 5.86 जीआरपी के साथ पांचवें नम्‍बर पर है.

अथारिटी के जरिए कंट्रोल होंगे न्यूज चैनल!

सरकार की भाषा व चाल-चलन को समझने में थोड़ा वक्त लगता है लेकिन गहराई से समझें तो सब कुछ समझ में आ जाता है. न्यूज चैनलों के बेलगाम कंटेंट पर मचे विवाद के बाद केंद्र सरकार ने इस मीडिया पर सीधे नियंत्रण की जो कोशिश शुरू की थी, उसे विरोध के चलते फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. लेकिन चोर दरवाजे से अब एक प्राधिकरण के जरिए कंटेंट पर सरकारी कंट्रोल की कवायद की जा रही है. अगर यकीन न हो तो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के बयान को पढ़िए.